Tuesday, December 31, 2013

3 से 4 लाख कनेक्शन ही हैं। ऐसे में बाकी लोगों का क्या ?

मीटर वाले कनेक्शनों को 667 लीटर पानी फ्री देने के केजरीवाल सरकार की स्कीम में कई पेच नजर आते हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और जल बोर्ड के अधिकारियों ने आंकड़ों की बाजीगरी करके इस स्कीम को लागू कर दिया। दिल्ली जल बोर्ड के आंकड़ों पर गौर फरमाया जाए तो केवल 9 लाख पानी के कनेक्शनों पर ही मीटर लगे हुए हैं। जानकारी के मुताबिक, महीने में 20 हजार लीटर पानी का इस्तेमाल करने वाले केवल 3 से 4 लाख कनेक्शन ही हैं। ऐसे में बाकी लोगों का क्या होगा।
उन अवैध कॉलोनियों, गांव और पुनर्वास कॉलोनियों में जहां पाइप लाइन के जरिए पानी की सप्लाई नहीं होती उनका क्या होगा। सिर्फ उन ही लोगों को फायदा मिलता दिख रहा है, जहां पहले से पानी के कनेक्शन लगे हुए हैं। पानी के कनेक्शन जल बोर्ड रेग्युलर कॉलोनियों में ही दिए जाते हैं। ऐसे में गरीब लोगों को मुफ्त पानी मिलता नहीं दिख रहा है।

इन सारे आंकड़ों को देखा जाए तो साफ हो जाता है कि किस कदर आंकड़ों का खेल किया गया है। दिल्ली जल बोर्ड का सालाना रेवेन्यू 2082 करोड़ रुपये है। जल बोर्ड के अधिकारियों के मुताबिक इस स्कीम को पूरे साल चलाने पर 165 करोड़ रुपये का खर्चा आएगा। 3 महीने में 41 करोड़ का। दूसरी ओर दिल्ली जल बोर्ड ने 10 फीसदी पानी के रेट बढ़ा दिए हैं। अगर 2082 करोड़ के रेवेन्यू को 10 फीसदी के संदर्भ में देखा जाए तो दिल्ली जल बोर्ड को सालाना 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का फायदा होगा। यानी इस पानी को फ्री में देने में कोई नुकसान नहीं हो रहा है उल्टे जल बोर्ड के रेवेन्यू में 40 करोड़ से ज्यादा का फायदा होता नजर आ रहा है।
यह 10 फीसदी पानी के बढ़े हुए रेट लोगों से ही वसूले जाने वाले हैं, जबकि केजरीवाल ने अपने संकल्प पत्र के पेज नंबर 18 पर लिखा है कि दिल्ली की सरकार ने हाल ही में जो सालाना दाम 10 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है उसे 100 दिन के अंदर रद्द किया जाएगा। हर साल बढ़ने वाले इन दामों को कम करने की बजाय जारी रखा गया है। 10 फीसदी रेट बढ़ने से जिन लोगों का बिल 1000 का आ रहा था अब 1 जनवरी, 2014 से उनका बिल 1100 रुपये आने लगेगा और जिनका 2000 का आता था उनका 2200 रुपये आने लगेगा।
प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता जितेंद्र कुमार कोचर ने इससे जनता के साथ धोखा बताया है। उनका कहना है कि जब उन्होंने दिल्ली के हर घर में 700 लीटर पानी मुहैया कराने का वादा किया था वह पूरा कहां हुआ है। कुछ लाख लोगों को ही इसका फायदा होगा बाकी लोगों को इससे कोई फायदा नहीं मिलने वाला। केजरीवाल जब बिजली पानी का आंदोलन कर रहे थे तब 700 लीटर पूरी तरह से फ्री करने की बात कर रहे थे बात में अपने मैनिफेस्टो में इसे बदल कर दिया कि 700 लीटर से ज्यादा इस्तेमाल करने पर पूरा चार्ज देना पड़ेगा।

Monday, December 30, 2013

चैनल ने कांग्रेस के पांच विधायकों की असलियत सामने लाने का दावा किया

अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण से पहले ही कांग्रेसी विधायकों के आम आदमी पार्टी को समर्थन का सच सामने आ गया है। एक निजी चैनल के स्टिंग ऑपरेशन में कांग्रेस के पांच विधायकों ने न सिर्फ केजरीवाल की पार्टी को समर्थन देने की 'सचाई' बयां की, बल्कि उनके खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का भी इस्तेमाल किया।
दिल्ली में कांग्रेस के आठ विधायकों के समर्थन से 'आप' सरकार बनने जा रही है, लेकिन समाचार चैनल ज़ी न्यूज के स्टिंग 'ऑपरेशन सरकार' में सुल्तानपुर माजरा के कांग्रेसी विधायक जय किशन को न सिर्फ केजरीवाल, बल्कि उनके पिता के लिए भी अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया है। चैनल ने कांग्रेस के पांच विधायकों की असलियत सामने लाने का दावा किया है।
कांग्रेसी विधायक जयकिशन ने दिल्ली के भावी सीएम के लिए बेहद गंदी भाषा का इस्तेमाल करने से भी परहेज नहीं किया। उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल एमएलए फंड को मोहल्ला समितियों के हवाले करना चाहते हैं तो उन्हें सदन में ही जूता मारा जाएगा। वह यहीं नहीं रुके, उन्होंने केजरीवाल और 'आप' के विधायकों को बंदर तक कह डाला। जयकिशन ने कहा, 'दिल्ली में बंदर के हाथ में माचिस थमा दी गई है। केजरीवाल के बाप का राज थोड़े है कि विधानसभा में वह अपना कानून चलाएगा। ऐसा करेगा तो सदन में जूते खाएगा। हम तो साल दो साल तक केजरीवाल को समर्थन देने के लिए तैयार हैं।'
स्टिंग में ओखला से एमएलए आसिफ मोहम्मद खान ने खुलासा किया कि कांग्रेस ने 'आप' को निपटाने के लिए समर्थन दिया है। उन्होंने कहा कि केजरीवाल ने मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाए हैं और कांग्रेस ने उन्हें खत्म करने के लिए सपोर्ट किया है। आसिफ ने कहा, 'कांग्रेस चाहती है कि जनता से किए आप के झूठे वादे सबके सामने आ जाएं और केजरीवाल गर्क में चले जाएं।' कांग्रेसी विधायक ने कहा कि उनकी पार्टी पागल नहीं, जो केजरीवाल को सत्ता देगी। जयकिशन की तरह आसिफ ने भी एमएलए फंड रोकने पर भड़ास निकालते हुए केजरीवाल के लिए बेहद अभद्र भाषा में कहा कि वह सिस्टम के बारे में नहीं जानते हैं और अपनी हरकतों से खुद निपट जाएंगे।
स्टिंग ऑपरेशन में बादली से कांग्रेसी विधायक देवेंद्र यादव ने भी आप को समर्थन देने के पीछे कांग्रेस की मंशा जाहिर करने में देरी नहीं की। वह भी अससंदीय भाषा का इस्तेमाल करते हुए दिखे। उन्होंने कहा कि आप को पूरे पांच सालों के लिए समर्थन नहीं दिया है। सीलमपुर से कांग्रेसी विधायक मतीन अहमद ने कहा कि हमने मजा लेने के लिए समर्थन दिया है। उन्होंने इस दौरान इस सरकार की नौटंकी का पूरा मजा लेने की बात कही।
मुस्तफाबाद से कांग्रेस विधायक हसन अहमद ने कहा कि जिस दिन विधायक फंड खत्म, समझो उसी दिन केजरीवाल खत्म। उन्होंने कहा, 'अरविंद केजरीवाल को राजनीति की ट्रेनिंग लेनी होगी। वह आयकर विभाग में कमिश्नर थे, लेकिन अब उन्हें ब्यूरोक्रेसी से ऊपर उठना चाहिए। हम तो मजबूरी में केजरीवाल को समर्थन दे रहे हैं।


सूरत में परमाणु बम हमले की योजना

लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियां परमाणु बम तक आतंकवादियों की पहुंच को लेकर चिंता जताती आई हैं लेकिन अब लगता है कि न सिर्फ आतंकवादियों की इन हथियारों तक पहुंच हो गई है बल्कि वह इनसे धमाके करने की भी योजना बनाने लगे हैं। सूत्रों के अनुसार इंडियन मुजाहिदीन के भारतीय चीफ अहमद जरार सिद्दीबप्पा उर्फ यासीन भटकल ने हाल ही में एनआईए को दिए अपने बयान में कहा है कि वह सूरत में परमाणु बम हमले की योजना बना रहा था।
यासीन भटकल को 27 अगस्त को नेपाल के पोखरा में अरेस्ट किया गया था और उसके बाद से ही एनआईए, इंटेलिजेंस ब्यूरो और कई राज्यों की पुलिस द्वारा लगातार उससे पूछताछ की गई है। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को इस पूछताछ रिपोर्ट की कॉपी मिली है।
भटकल ने जांचकर्ताओं को बताया कि उसने पाकिस्तान स्थित अपने बॉस रियाज भटकल से फोन पर पूछा था कि क्या वह (रियाज) एक छोटे परमाणु बम की व्यवस्था कर सकता है। इस पर रियाज ने कहा, 'पाकिस्तान में किसी भी चीज की व्यवस्था की जा सकती है।' यासीन ने जांच अधिकारियों को बताया कि, 'रियाज ने मुझे (यासीन) बताया कि परमाणु बमों से हमले किए जा सकते हैं। मैंने उससे सूरत पर हमले के लिए एक परमाणु बम की व्यवस्था करने को कहा।'
जांच रिपोर्ट के अनुसार यासीन ने कहा, 'रियाज ने कहा कि इसमें (परमाणु हमले में) मुस्लिम भी मारे जाएंगे। जिस पर मैंने कहा कि हम मस्जिदों में पोस्टर चिपका देंगे कि हर मुस्लिम अपने परिवार को लेकर चुपचाप शहर छोड़ दें।' लेकिन अगस्त में आईबी द्वारा यासीन की गिरफ्तारी के बाद इस योजना पर काम शुरू नहीं हो सका।सूरत हमेशा से ही यासीन के रेडार पर रहा है। उसने वर्ष 2008 में दिल्ली, जयपुर और अहमदाबाद में हुए सीरियल ब्लास्ट के दौरान आतिफ अमीन के साथ मिलकर 27 बम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। खुफिया अधिकारियों के अनुसार यासीन खुद भी इंडियन मुजाहिदीन का बम बनाने का एक्सपर्ट रहा है और उसकी गिरफ्तारी के बाद से इंडियन मुजाहिदीन की बम बनाने की क्षमता प्रभावित हुई है।
यासीन ने साथ ही इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों और दूसरे आतंकवादियों को पाकिस्तान में दी जाने वाली आर्मी लेवल ट्रेनिंग की भी जानकारी दी है। जिससे पता चलता है कि आतंकवादियों को पाकिस्तान की मदद से उच्चस्तरीय ट्रेनिंग दी जाती है। इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों को पाकिस्तान में दी जाने वाली ट्रेनिंग की जानकारी देते हुए यासीन ने बताया , ट्रेनिंग में सुबह की पीटी, हथियारों को संभालना और विस्फोटकों/IED की ट्रेनिंग, पिस्टल्स रिवॉल्वर्स, एके-47 आदि की ट्रेनिंग होती हैं। भारतीय हथियारों जैसे LMG और SLR और स्निफर राइफल्स भी ट्रेनिंग में शामिल होते हैं।'यासीन ने बताया कि हमें विस्फोटकों को संभालने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। उसने कहा, 'इनमें PE3A (काले रंग का विस्फोटक), C4, C3, TNT जैसे विस्फोटक शामिल है। साथ ही हमें अमोनियम नाइट्रेट, हाइड्रोडन परऑक्साइड, और जिलेटिन की छड़ियों से आईडी बनाना भी सिखाय गया। यह ट्रेनिंग 50 दिनों की थी।' सूत्रों के अनुसार सभी योजनाओं और सक्रिय ऑपरेशंस के लिए यासीन रियाज के संपर्क में रहा। रियाज ने वर्ष 2013 में यासीन के पास 17 लाख रुपये भेजे, जिसमें से 25 हजार रुपये यासीन के हर महीने के व्यक्तिगत खर्चे के लिए थे।
एक उच्चस्तरीय खुफिया अधिकारी ने बताया, 'पिछले कई सालों से हमारा सामना अलग-अलग तरह की IED's से हो रहा है और इसकी वजह यह है कि आंतकवादियों को आईएसआई की मदद से पाकिस्तान में आधुनिक ट्रेनिंग दी जा रही है। और अगर आतंकवादियों की पहुंच परमाणु बम तक हो गई है तो यह हमारे लिए (भारत) बहुत ही खतरनाक है।'

Friday, December 27, 2013

विश्वास मत के दौरान पार्टी लाइन के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की आशंका

आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण की तैयारी अंतिम चरण में है। इस बीच, 'आप' को समर्थन देने का ऐलान कर चुकी कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है। पार्टी में जहां 'आप' को समर्थन को लेकर मतभेद है, वहीं विधायक दल के नेता को लेकर भी अंतर्कलह की बात सामने आ रही है। अभी तक हारून यूसुफ नेता विधायक दल के लिए दावेदार बताए जा रहे थे, लेकिन बताया जा रहा है कि 8 में से छह विधायक उनके खिलाफ हैं। विश्वास मत के दौरान पार्टी लाइन के खिलाफ क्रॉस वोटिंग की आशंका भी जताई जा रही है।
पार्टी में कई लोग 'आप' को समर्थन के बारे में नाराजगी खत्म करते नहीं दिख रहे हैं। कहा जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल के विश्वास मत के दौरान कांग्रेस के दो-तीन विधायक खिलाफ वोट डाल सकते हैं या बहिष्कार कर सकते हैं या 'बीमार' हो सकते हैं। ऐसे में 28 विधायकों वाली 'आप' की सरकार मुश्किल में फंस सकती है, क्योंकि बीजेपी के पास 32 विधायक हैं। विनोद कुमार बिन्नी की नाराजगी और फिर सब कुछ सही हो जाने की खबरों के बाद 'आप' में भी कुछ लोग तमाम आशंकाओं से हिले हुए हैं।

हालांकि, कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन को लेकर आश्वस्त किया है। कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा है कि पार्टी के विधायक 'आप' के पक्ष में हैं और वे केजरीवाल सरकार को ही वोट देंगे। दिल्‍ली के कांग्रेस प्रभारी शकील अहमद ने भी केजरीवाल की सरकार को समर्थन देने की बात दोहराई है।इस बीच, अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को कहा कि सभी लोग शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित हैं। शपथ ग्रहण के बाद अगले साल 3 जनवरी को केजरीवाल को बहुमत साबित करना होगा। फ्लोर मैनेजमेंट के सवाल पर अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि वह अपने विधायकों के अलावा किसी के संपर्क में नहीं हैं। उन्होंने माना कि कल जेडी (यू) के विधायक शोएब इकबाल और मूंडका से निर्दलीय विधायक रामबीर शौकीन उनसे मिलने आए थे। माना जा रहा है कि बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान कर चुके इकाबल को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके बावजूद 'आप' के खेमे में विश्वास मत में बाजी जीत जाने के बारे में पक्का भरोसा नहीं है।
कांग्रेस में खींचतान की बातों को बल इस बात से मिल रहा है कि पार्टी अभी तक अपने विधायक दल का नेता तय नहीं कर पाई है। चौधरी मतीन अहमद और हारुन यूसुफ के नाम नेता पद के लिए चर्चा में हैं। मतीन के नाम पर जोर इस तर्क के साथ है कि हारून मंत्री रह चुके हैं और अरविंदर लवली भी मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस के विधायकों का कहना है कि लवली को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया और दूसरे पूर्व मंत्री हारून को यदि विधायक दल का नेता बनाया जाता है, तो क्या सबकुछ इन्हीं लोगों को मिलेगा। यह भी कहा जा रहा है कि केजरीवाल जिन मामलों की जांच कराने की बात कर रहें हैं, उनमें लवली और हारून के मंत्रालयों से जुड़े रहे मामले भी शामिल हैं।
केजरीवाल द्वारा जांच कराने की घोषणा की वजह से क्रॉस वोटिंग की चर्चाएं हैं। सूत्रों के अनुसार, इस माहौल में पार्टी के चार विधायकों ने कल दिल्ली के प्रभारी शकील अहमद से मुलाकात की। चौ. मतीन के अलावा प्रह्रलाद सिंह साहनी, हसन अहमद और देवेंद्र यादव ने शकील अहमद से कहा कि 'आप' को समर्थन दिया जाना चाहिए। बाकी चार विधायक क्यों नहीं थे? इस सवाल पर सूत्रों ने कहा कि कोई औपचारिक बैठक नहीं थी। समर्थन और क्रॉस वोटिंग के सवाल पर शकील अहमद के एक करीबी सूत्र ने कहा कि कोई गतिरोध नहीं है, सब साथ हैं और सभी का समर्थन है

विदेशों से गैरकानूनी चंदा- आम आदमी पार्टी (AAP)

आम आदमी पार्टी (AAP) को कथित तौर पर विदेशों से गैरकानूनी चंदा मिलने के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय जल्द दी पार्टी के खातों की जांच करेगा। AAP ने विदेशों से चंदा लेने के मामले में विदेशी दान नियमन अधिनियम के उल्लंघन के संबंध में गृह मंत्रालय के सवालों का जवाब भेजा है जिसके बाद इस तरह की खबरें आई हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमें AAP से और पूछताछ की जरूरत है क्योंकि उनके जवाबों पर कुछ स्पष्टीकरण चाहिए। हम उनके खातों के दस्तावेजों की जांच करेंगे।' दिल्ली हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर निर्देश दिया था जिसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा।
दिल्ली में सरकार बनाने जा रही AAP ने कहा कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार है। उसने दावा किया कि चंदा केवल भारतीयों से ही लिया गया, भले ही वे देश में रह रहे हों या विदेशों में बसे हों। AAP नेता योगेंद्र यादव ने कहा, 'अगर हम किसी भी अनियमितता के दोषी पाए जाते हैं तो हम दोगुनी सजा स्वीकार करेंगे।'
AAP ने बताया था कि उसने 8 नवंबर तक 63 हजार लोगों से करीब 19 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त किया, जिसमें कई एनआरआई की ओर से भेजी राशि भी शामिल है। पार्टी ने दावा किया था कि उसे 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक की रकम में सहयोग राशि मिली है जो उसे रिक्शाचालकों से लेकर व्यापारियों और उद्योगपतियों तक ने दी। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने AAP के चंदे के स्रोत पर सवाल खड़ा किया गया था।

28 दिसंबर को केजरीवाल सरकार का शपथ ग्रहण

28 दिसंबर को केजरीवाल सरकार के शपथ ग्रहण के बाद उसकी पहली परीक्षा 2 जनवरी को होगी जब विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव होगा। कांग्रेस इस पद के लिए 'बिना शर्त' समर्थन देने के लिए तैयार नहीं है। समर्थन मांगने पर ही इस बारे में सोचा जाएगा।
हालांकि राजनीतिक क्षेत्रों में यह माना जा रहा है कि शोएब इकबाल नए अध्यक्ष हो सकते हैं और वह इस बारे में अरविंद केजरीवाल से बात भी कर आए हैं। लेकिन कांग्रेस दूसरे ही मूड में है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने इस बारे में सिर्फ इतना ही कहा है कि विधायक दल की बैठक में फैसला होगा। विधायक दल की बैठक भी 28 दिसंबर को ही होने जा रही है और उसमें विधायक दल के नेता का चुनाव भी होगा।
माना जा रहा है कि हारुन युसूफ विधायक दल के नेता हो सकते हैं। लवली ने कहा कि उसी बैठक में औपचारिक रूप से विचार किया जाएगा। मगर, कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि केजरीवाल की सरकार को बाहर से बिना शर्त समर्थन दिया गया है, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष चुनाव के लिए ऐसा कोई समर्थन नहीं दिया गया और न ही दोनों दलों में इस विषय पर कोई बातचीत या सहमति हुई है। इन सूत्रों का कहना है कि आम आदमी पार्टी को विधानसभा अध्यक्ष के पद पर चुनाव की स्थिति में तभी समर्थन दिया जाएगा, जब केजरीवाल समर्थन मांगेंगे। समर्थन न मांगने पर कांग्रेस विधानसभा अध्यक्ष चुनाव में आप को समर्थन नहीं देगी।
अगर ऐसा होता है तो विधानसभा में बड़ी ही दिलचस्प स्थिति पैदा हो जाएगी। हालांकि बीजेपी ने भी अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन बदले हुए हालात में बीजेपी को लाभ हो सकता है। बीजेपी विधायक दल के नेता डॉ. हर्षवर्धन ने कहा है कि शुक्रवार को विधायक दल की पहली बैठक बुलाई गई है और उम्मीद है कि उसमें इस विषय पर बात होगी, लेकिन पार्टी में अभी इस सवाल पर विचार नहीं हुआ। बीजेपी सूत्रों का कहना है कि कुछ विधायक चाहते हैं कि अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा जाए और कुछ इसके विरोध में हैं। मगर, कांग्रेस के तेवर देखकर बीजेपी को चुनाव में उतरना पड़ सकता है। अगर अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से समर्थन नहीं मांगते तो कांग्रेस बीजेपी को समर्थन तो नहीं देगी, लेकिन संभव है कि वह अध्यक्ष पर होने वाले चुनाव में वोट ही नहीं डाले। उस हालत में बीजेपी उम्मीदवार को जीत मिल सकती है। अगर आम आदमी पार्टी के 28 एमएलए के साथ शोएब इकबाल और मुंडका के निर्दलीय एमएलए भी मिल जाएं तो कुल मिलाकर संख्या 30 तक ही पहुंचती है जबकि बीजेपी के 32 एमएलए हैं। इस तरह विधानसभा अध्यक्ष का पद बीजेपी की झोली में जा सकता है। वैसे, बीजेपी के प्रो़ जगदीश मुखी अस्थायी अध्यक्ष बनेंगे और वही विधायकों को शपथ भी दिलाएंगे।

मुआवजे के वितरण को लेकर भी शिकायतें

राहत शिविरों में रह रहे लोगों को लेकर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के तल्ख बयान के बाद प्रशासन ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। मुजफ्फरनगर के लोई राहत शिविर से लोगों को भेजने का काम तेज हो गया है। पिछले दो दिनों में तीस परिवारों को कैंप से भेजा जा चुका है। इस बीच, सांझक में कब्रिस्तान की जमीन पर तंबू लगाकर रह रहे 30 शरणार्थी परिवारों के खिलाफ सरकारी जमीन कब्जाने की रिपोर्ट लिखाई गई है। इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित शिविरों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई है।
समाजवादी पार्टी सितंबर में हुए दंगों के आम चुनाव पर प्रभाव को लेकर आशंकित है। इन दंगों में 60 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग विस्थापित हो गए थे, जो मुजफ्फरनगर और शामली के राहत कैंपों में रह रहे हैं। अखिलेश सरकार जल्द से इन लोगों को कैंपों से हटाना चाहती है। इस दिशा में प्रशासन भी निरंतर प्रयास कर रहा है, लेकिन दहशत के चलते विस्थापित फिलहाल इन कैंपों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
प्रशासन का कहना है कि तीन-चार दिनों में लोई शिविर से लोग सुरक्षित स्थान पर भेज दिए जाएंगे। डीएम कौशलराज शर्मा ने बताया कि लोई शिविर से बुधवार को 20 लोग गांव चले गए थे। गुरुवार को नौ और लोग शिविर से भेज दिए गए हैं। उनका कहना है कि सर्दी बढ़ने के कारण हालात बिगड़ सकते हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए। एडीएम प्रशासन इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि शुक्रवार को मुआवजा पा चुके सौ लोगों को कैंप से हटाया जाएगा। उनका कहना है कि इस कैंप में रहने वाले 167 परिवारों को मुआवजा दिया जा चुका है।
प्रशासन भले ही लोगों को राहत कैंपों से हटाने में जुटा है लेकिन इन्हें फिर से गांव या किसी सुरक्षित जगह पर बसाने की कोई योजना उसके पास नहीं है। बुढ़ाना के एसडीएम मुनीश चंद्र शर्मा, जिनके अंदर लोई गांव आता है, का कहना है कि कैंप से निकले लोगों के लिए हमारे पास कोई योजना नहीं है। कुछ विस्थापितों ने मुआवजे की राशि से जमीन खरीदी है।
मुआवजे के वितरण को लेकर भी शिकायतें हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि मुआवजा उन्हें ही दिया जा रहा है जिनके पास या तो राशन कार्ड है या रिश्वत दे रहे हैं। लोई कैंप में रहने वाले याकूब शेख का कहना है कि समस्या यह है कि संयुक्त परिवारों में से भी किसी एक को मुआवजा दिया जा रहा है। यासीन शेख का कहना है कि अधिकारी हमें बाहर निकल रहे हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि यहां से कहां जाएंगे। गांव में हमारे घर और जमीन पर प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर लिया है।
इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित राहत कैंपों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई। प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता ने समिति की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सभी बच्चों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है। उन्होंने दावा किया कि शिविर में सिर्फ 10-12 बच्चों की मौत हुई। शेष बच्चों की मौत शिविर से बाहर जाने के बाद हुई। इनमें से अधिकतर बच्चों की बीमारी का इलाज उनके परिवार के सदस्यों ने बाहर के डॉक्टरों से कराई थी। उन्होंने कहा कि शिविर में रह रहे परिवारों की सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर है
पत्रकारों ने जब प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता से पूछा कि ज्यादातर बच्चों की ठंड से मौत होने की बात सामने आ रही है, तब उन्होंने जवाब दिया कि ऐसी भी ठंड अभी नहीं पड़ी है। वह बोले कि बच्चों की मौत सितंबर से दिसंबर के दौरान हुई है वह भी विभिन्न कारणों से। ठंड से बच्चों की मौत का मुद्दा फिर से उठने पर उन्होंने उल्टा सवाल किया कि ठंड तो साइबेरिया में पड़ती है, तो क्या वहां लोग मर जाते हैं।

सख्ती बरतनी शुरू

राहत शिविरों में रह रहे लोगों को लेकर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के तल्ख बयान के बाद प्रशासन ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। मुजफ्फरनगर के लोई राहत शिविर से लोगों को भेजने का काम तेज हो गया है। पिछले दो दिनों में तीस परिवारों को कैंप से भेजा जा चुका है। इस बीच, सांझक में कब्रिस्तान की जमीन पर तंबू लगाकर रह रहे 30 शरणार्थी परिवारों के खिलाफ सरकारी जमीन कब्जाने की रिपोर्ट लिखाई गई है। इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित शिविरों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई है।
समाजवादी पार्टी सितंबर में हुए दंगों के आम चुनाव पर प्रभाव को लेकर आशंकित है। इन दंगों में 60 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग विस्थापित हो गए थे, जो मुजफ्फरनगर और शामली के राहत कैंपों में रह रहे हैं। अखिलेश सरकार जल्द से इन लोगों को कैंपों से हटाना चाहती है। इस दिशा में प्रशासन भी निरंतर प्रयास कर रहा है, लेकिन दहशत के चलते विस्थापित फिलहाल इन कैंपों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
प्रशासन का कहना है कि तीन-चार दिनों में लोई शिविर से लोग सुरक्षित स्थान पर भेज दिए जाएंगे। डीएम कौशलराज शर्मा ने बताया कि लोई शिविर से बुधवार को 20 लोग गांव चले गए थे। गुरुवार को नौ और लोग शिविर से भेज दिए गए हैं। उनका कहना है कि सर्दी बढ़ने के कारण हालात बिगड़ सकते हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए। एडीएम प्रशासन इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि शुक्रवार को मुआवजा पा चुके सौ लोगों को कैंप से हटाया जाएगा। उनका कहना है कि इस कैंप में रहने वाले 167 परिवारों को मुआवजा दिया जा चुका है।
प्रशासन भले ही लोगों को राहत कैंपों से हटाने में जुटा है लेकिन इन्हें फिर से गांव या किसी सुरक्षित जगह पर बसाने की कोई योजना उसके पास नहीं है। बुढ़ाना के एसडीएम मुनीश चंद्र शर्मा, जिनके अंदर लोई गांव आता है, का कहना है कि कैंप से निकले लोगों के लिए हमारे पास कोई योजना नहीं है। कुछ विस्थापितों ने मुआवजे की राशि से जमीन खरीदी है।
मुआवजे के वितरण को लेकर भी शिकायतें हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि मुआवजा उन्हें ही दिया जा रहा है जिनके पास या तो राशन कार्ड है या रिश्वत दे रहे हैं। लोई कैंप में रहने वाले याकूब शेख का कहना है कि समस्या यह है कि संयुक्त परिवारों में से भी किसी एक को मुआवजा दिया जा रहा है। यासीन शेख का कहना है कि अधिकारी हमें बाहर निकल रहे हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि यहां से कहां जाएंगे। गांव में हमारे घर और जमीन पर प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर लिया है।
इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित राहत कैंपों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई। प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता ने समिति की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सभी बच्चों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है। उन्होंने दावा किया कि शिविर में सिर्फ 10-12 बच्चों की मौत हुई। शेष बच्चों की मौत शिविर से बाहर जाने के बाद हुई। इनमें से अधिकतर बच्चों की बीमारी का इलाज उनके परिवार के सदस्यों ने बाहर के डॉक्टरों से कराई थी। उन्होंने कहा कि शिविर में रह रहे परिवारों की सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर है
पत्रकारों ने जब प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता से पूछा कि ज्यादातर बच्चों की ठंड से मौत होने की बात सामने आ रही है, तब उन्होंने जवाब दिया कि ऐसी भी ठंड अभी नहीं पड़ी है। वह बोले कि बच्चों की मौत सितंबर से दिसंबर के दौरान हुई है वह भी विभिन्न कारणों से। ठंड से बच्चों की मौत का मुद्दा फिर से उठने पर उन्होंने उल्टा सवाल किया कि ठंड तो साइबेरिया में पड़ती है, तो क्या वहां लोग मर जाते हैं।

Monday, December 23, 2013

राहुल गांधी उनके निशाने पर

प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद से नरेंद्र मोदी के भाषणों के मुद्दे, बोलने का अंदाज और भाव-भंगिमा, इन सभी में फर्क साफ नजर आने लगा है। अटल बिहारी वाजपेई की शैली में लिए गए 'पाज'। आरोह-अवरोह के उतार-चढ़ाव, जनता से सीधे संवाद की शैली और विरोधियों पर किए गए तीखे कटाक्ष। मोदी के भाषणों का मुख्य आकर्षण बनकर उभरे हैं।
मोदी के वक्तृत्व कौशल में सबसे बड़ी सुधार विषय-वस्तु के संयोजन में देखा जा सकता है। वे पहले से कहीं संयत भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। हर बार की तरह उनके प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी उनके निशाने पर हैं पर 'युवराज' का संबोधन तो दूर वाराणसी और अब मुंबई की रैलियों में वे उनका सीधा उल्लेख तक टालते दिखाई दिए हैं। 'कांग्रेस के एक बड़े नेता' के नए संबोधन में थोड़ा सा आदरभाव दिखाई देता है। हालांकि ये अदब ज्यादा देर नहीं ठहरता। 'दिल्ली में उपदेश देता है', 'बोलता एक है, करता दूसरा है'- वे 'आप' की तरफ जाने की बजाए 'तुम' से भी निचली दहलीज की बेतक्कलुफी पर उतर आते हैं। कम से कम तालियां तो यही साबित करती हैं, जनता को यह अच्छा लगता है।
हर बार की तरह मोदी ने मराठी में मुंबई के लोगों का अभिवादन कर रैली की शुरुआत की। कुछ वाक्य बिलकुल साफ-सुथरी मराठी में बोलने के बाद वे राष्ट्रभाषा हिंदी की तरह मुड़ जाते हैं। महाराष्ट्र की बड़ी हस्तियों को याद करते हैं और 1950 से पहले महाराष्ट्र और गुजरात एक ही राज्य का हिस्सा होने की दलील देते हैं। ध्यान रखते हैं कि दोनों राज्यों के गठन के समय की राजनीतिक तल्खी मामले को कहीं बिगाड़ न दे। पुराने संयुक्त राज्य को उसके वास्तविक 'बॉम्बे स्टेट' के नाम से पुकारने की बजाए उसे 'बृहद महाराष्ट्र्' का नया नाम देना पसंद करते हैं। महाराष्ट्र को गुजरात का बड़ा भाई बताना नहीं चूकते। 24 घंटे बिजली वाले गुजरात की तुलना 'अंधियारे' महाराष्ट्र से करते हैं। सिंचाई घोटाले से लेकर आदर्श घोटाले तक की मिसाल देते हैं।
हर बार इस दुर्दशा के लिए यहां का राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराने की सावधानी बरतते चलते हैं। तुलना में गुजरात कहीं बड़ा दिखाई देता है, वे जब यह कहते हैं, 'लेकिन भाइयो-बहनो... जब गुजरात अलग हुआ तब चर्चा होती थी कि राज्य प्रगति कैसे करेगा। पानी नहीं है, प्राकृतिक संपदा नहीं है, उद्योग नहीं हैं और इतना रेगिस्तान है और उधर पाकिस्तान है। लेकिन, अलग होने के बाद भी गुजरात ने विकास की ऊंचाइयों को छुआ है। इससे पहले भारी संख्या में जुटे भाषाई वर्ग को संभालते हुए मुंबई को गुजराती भाषा का मायका बताते हुए एक नया रिश्ता जोड़ चुके होते हैं।
भूमिका बांधते हुए कहते हैं कि 'कुछ लोगों के पेट में दर्द होता है, इसलिए आज गुजरात के बारे में नहीं बोलूंगा'। इसके बाद मध्य प्रदेश को 'बीमारू' राज्य से उबारने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चव्हाण की स्तुति करने लगते हैं। एमपी और छत्तीसगढ़ ने देश के अन्न भंडार भर दिए हैं, कहते हुए दोनों बीजेपी शासित प्रदेशों की गौरव बखान करते हैं। इसके बाद किसानों का आत्महत्या जैसे महाराष्ट्र के मसलों को जोड़ते ही विचार प्रवाह फिर गुजरात की ओर लौटने लगता है। तुलनात्मक अध्ययन का नया दौर शुरू हो जाता है। वे कहते हैं, गुजरात में 14 मुख्यमंत्री बने लेकिन यहां 26 मुख्यमंत्री बने। सोचिए यहां की राजनीति के तौर-तरीके कैसे होंगे। एक आता है तो दूसरा भगाने में लग जाता है। हमारे गुजरात और महाराष्ट्र में सीमा के दोनों तरफ चेक पोस्ट हैं। दोनों के रेट बराबर हैं। लेकिन महाराष्ट्र के बजाय गुजरात के चेकपोस्ट में टेक्नॉलजी की मदद से काम होता। गुजरात की इनकम अपने चेकपोस्ट से 1470 करोड़ है जबकि महाराष्ट्र की 437 करोड़। महाराष्ट्र सरकार बताए कि 1033 करोड़ रुपये कहां चले जाते हैं?
मोदी की चाय की दुकान की पृष्ठभूमि का मुद्दा जब से सपा नेता नरेश अग्रवाल ने उठाया है, तब से गंगा में काफी पानी बह चुका है। पटना रैली के पास चायवालों को बांटकर स्थानीय बीजेपी ने इस मुद्दा बना डाला। इसी सप्ताह वाराणसी की रैली में मोदी खुद मंच से गरजे- 'चाय बेची है, देश नहीं बेचा है'। मुंबई रैली में 10 हजार चायवालों को VIP पास दिए जाने का उल्लेख करते हुए मोदी बोले, अब चायवाले VIP बन गए हैं। समय बदल रहा है, अब देश का हर गरीब VIP होगा'। मोदी एक छोटे से वर्ग को नई व्यापकता प्रदान कर चुके होते हैं। 'बेराजगार घूमता नौजवान' और उसकी नौकरी की राह ताकती 'बूढ़ी गरीब मां' -ऐसे पात्र हैं जिनके बिना मोदी का कोई भाषण पूरा नहीं होता। इन्हीं दोनों को समाहित करते हुए मोदी गुजरात में सिफारिश और घूस को दरकिनार करने वाली नई नियुक्ति तकनीक बताते हैं। वे कहते हैं- '30 हजार टीचर्स की भर्ती के लिए हमने इंटरव्यू नहीं लिया। हमने राज्य के युवाओं से अपनी जानकारी कंप्यूटर में फीड करने के लिए कहा। हमने युवाओं से उनके मार्क्स और क्वॉलिफिकेशन के बारे में पूछा। जिसकी क्वॉलिफिकेशन सबसे ज्यादा थी, कंप्यूटर की मदद से उन्हें चुना और उन्हें ऑफर लेटर भेज दिया।'
कांग्रेस पार्टी को वे देश की हर समस्या की जड़ बताते हैं। वे कहते हैं, कांग्रेस पार्टी का चरित्र जब तक हम नहीं समझेंगे, देश की समस्याओं का समाधान नहीं सूझेगा। देश की समस्याओं का कारण देश की जनता नहीं है। हमारी समस्याओं की वजह है कांग्रेस शासित सरकारें। इसलिए हमें कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करना होगा। साथ ही यह भी आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति में डूब कर समाज को तोड़ने और बांटने में जुटी हुई है। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते कांग्रेस ने डिवाइड ऐंड रूल की पॉलिसी अपना ली है। नदियों के लिए लड़ाया जा रहा है लोगों को। पानी के बंटवारे को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं लोग और केंद्र में बैठी सरकार को भाई को भाई से लड़ाने में आनंद आ रहा है। देश को वोट बैंक की राजनीति से उबारना होगा, तभी देश समस्याओं से मुक्त होगा। ठोस तर्क भी देते हैं और लोग सहमति में सिर हिलाते दिखाई देते हैं। वे जनता से पूछते हैं देश का काला धन कहां है। जवाब गूंजता है तो हलकी मुस्कान के साथ कहते हैं, जब देश का बच्चा-बच्चा जानता है, तो कांग्रेस क्यों कार्रवाई नहीं करती। कांग्रेसियों का काला पैसा स्विस बैंक में है, यह तर्क गले उतर जाता है।
 
वोट बैंक की राजनीति पर प्रहार करते समय वे वोटों के लिए मुस्लिमों को ठगाने का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं- कांग्रेस ने 90 जिले ऐसे चुने थे, जहां पर मुस्लिम ज्यादा हैं। ऐलान किया कि इन जिलों के विकास के लिए अलग बजट का प्रावधान किया जाएगा। हिंदुस्तान के मुस्लिम भाइयों को लगने लगा कि चलो अब कुछ भला होगा। अभी पार्ल्यामेंट में किसी ने पूछा कि आपने जो योजना घोषित की थी, उसमें आपने क्या खर्च किया। आपको यकीन नहीं होगा कि सरकार ने जवाब दिया है कि 3 साल में एक रुपया खर्च नहीं हुआ है।
 


रॉबर्ट वाड्रा ने जमीन के जो सौदे किए थे, उनकी जांच

बीजेपी के 5 सीनियर सांसदों ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस अध्यक्ष रोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सांसदों ने मांग की है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार के दौरान रॉबर्ट वाड्रा ने जमीन के जो सौदे किए थे, उनकी जांच की जानी चाहिए। 
सांसदों ने वसुंधरा को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वाड्रा और उनकी कंपनियों द्वारा बीकानेर के पास खरीदी गई जमीन में बरती गईं अनियमितताओं की कमिशंस ऑफ इन्क्वायरी ऐक्ट के तहत जांच की जानी चाहिए। जाए। यह लेटर रविशंकर प्रसाद, अर्जुन मेघवाल, जेपी नड्डा, भूपिंदर यादव और राजेंद्र अग्रवाल ने लिखा है। बीजेपी सांसदों ने यह चिट्ठी उस वक्त लिखी है, जब केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने गुजरात के जासूसी कांड की जांच जूडिशल कमिशन से कराने के संकेत दिए हैं। एक महिला की जासूसी से जुड़े इस मामले में नरेंद्र मोदी की भी भूमिका होने के भी आरोप लगे हैं।
 
इस लेटर में बीजेपी सांसदों ने कहा है, 'राजस्थान में लैंड सीलिंग ऐक्ट है और अगर कोई आम आदमी इसे तोड़ता है तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। वाड्रा और उनकी कंपनियों ने न सिर्फ इस ऐक्ट की धज्जियां उड़ाई हैं, बल्कि कई शिकायतें मिलने के बावजूद उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने भी इसपर कोई ऐक्शन नहीं लिया। इस मामले में निष्पक्ष जांच की जरूरत है।' इसमें यह भी कहा गया है, 'उस वक्त की सरकार के दौरान अधिकारियों ने वाड्रा और उनकी कंपनियों को जमीन खरीदने में मदद करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। जिस तरीके से जमीन खरीदी और रजिस्टर की गई है, उसकी जांच होनी चाहिए।'
 
पिछले महीने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव किरीट सोमैया ने कहा था कि अगर बीजेपी राजस्थान में सरकार बनाती है तो वाड्रा ने पश्चिमी राजस्थान में जो 1 हजार एकड़ जमीन खरीदी है, सरकार उसका अधिग्रहण करके किसानों को लौटा देगी। अगर राजस्थान की बीजेपी सरकार इस मामले में जांच शुरू करती है तो 2014 में होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हरियाणा के सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया।


रॉबर्ट वाड्रा ने जमीन के जो सौदे किए थे, उनकी जांच

बीजेपी के 5 सीनियर सांसदों ने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चिट्ठी लिखकर कांग्रेस अध्यक्ष रोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सांसदों ने मांग की है कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार के दौरान रॉबर्ट वाड्रा ने जमीन के जो सौदे किए थे, उनकी जांच की जानी चाहिए। 
सांसदों ने वसुंधरा को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वाड्रा और उनकी कंपनियों द्वारा बीकानेर के पास खरीदी गई जमीन में बरती गईं अनियमितताओं की कमिशंस ऑफ इन्क्वायरी ऐक्ट के तहत जांच की जानी चाहिए। जाए। यह लेटर रविशंकर प्रसाद, अर्जुन मेघवाल, जेपी नड्डा, भूपिंदर यादव और राजेंद्र अग्रवाल ने लिखा है। बीजेपी सांसदों ने यह चिट्ठी उस वक्त लिखी है, जब केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने गुजरात के जासूसी कांड की जांच जूडिशल कमिशन से कराने के संकेत दिए हैं। एक महिला की जासूसी से जुड़े इस मामले में नरेंद्र मोदी की भी भूमिका होने के भी आरोप लगे हैं।
 
इस लेटर में बीजेपी सांसदों ने कहा है, 'राजस्थान में लैंड सीलिंग ऐक्ट है और अगर कोई आम आदमी इसे तोड़ता है तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। वाड्रा और उनकी कंपनियों ने न सिर्फ इस ऐक्ट की धज्जियां उड़ाई हैं, बल्कि कई शिकायतें मिलने के बावजूद उस वक्त की कांग्रेस सरकार ने भी इसपर कोई ऐक्शन नहीं लिया। इस मामले में निष्पक्ष जांच की जरूरत है।' इसमें यह भी कहा गया है, 'उस वक्त की सरकार के दौरान अधिकारियों ने वाड्रा और उनकी कंपनियों को जमीन खरीदने में मदद करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। जिस तरीके से जमीन खरीदी और रजिस्टर की गई है, उसकी जांच होनी चाहिए।'
 
पिछले महीने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव किरीट सोमैया ने कहा था कि अगर बीजेपी राजस्थान में सरकार बनाती है तो वाड्रा ने पश्चिमी राजस्थान में जो 1 हजार एकड़ जमीन खरीदी है, सरकार उसका अधिग्रहण करके किसानों को लौटा देगी। अगर राजस्थान की बीजेपी सरकार इस मामले में जांच शुरू करती है तो 2014 में होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। हरियाणा के सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने कांग्रेस प्रेजिडेंट सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा को फायदा पहुंचाने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया।


Friday, December 20, 2013

दिल्ली में सरकार गठन को लेकर फिर पेच

आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल की ओर से सरकार बनाने के संकेत के बीच शुक्रवार को कांग्रेस ने ऐसा बयान दे दिया है जिससे दिल्ली में सरकार गठन को लेकर फिर पेच फंस सकता है। कांग्रेस के नवनियुक्त दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने कहा कि 'आप' के झूठे वादों का सच सामने लाने के लिए हमने उन्हें समर्थन दिया है। उन्होंने कहा कि सभी जानते हैं कि 'आप' ने जनता को गुमराह किया है।
लवली ने 'आप' के नेताओं को जबान संभलकर बोलने की नसीहत दी है। इसके साथ ही उन्होंने इस भाषा को आम आदमी पार्टी का सियासी पैंतरा भी करार दिया है। लवली ने कहा, 'आप जनता को अपनी ऐसी ही भाषा से गुमराह करके यहां तक पहुंची है। आज भी उसके नेता कांग्रेस के खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि हम गुस्से में समर्थन वापस ले लें और उन्हें सरकार बनाने से छुटकारा मिल जाए क्योंकि वे जनता से किए गए अपने वायदे पूरे नहीं कर सकते।'
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, 'हमने किसी पार्टी को समर्थन देने की बात नहीं की है। कांग्रेस का समर्थन 'आप' के घोषणापत्र को है न कि पार्टी को। कांग्रेस केवल उन्हें विधानसभा में समर्थन करेगी और उसके कामकाज में कोई दखल नहीं देगी। आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने वो‌ट दिया है और हम उसका सम्मान करते हुए समर्थन कर रहे हैं।' उन्होंने कहा कि केजरीवाल को समर्थन देने का फैसला इसलिए हुआ, ताकि 'आप' सरकार बनाए और जनता को यह पता चल सके कि उन्होंने जनता को धोखा दिया है।

Tuesday, December 17, 2013

संसद के दोनों सदनों में प्रस्तावित लोकपाल बिल पारित

हालांकि, आम आदमी पार्टी (AAP) ने सरकार बनाने या न बनाने का फैसला जनता पर छोड़ दिया है, लेकिन आप के अधिकतर एमएलए सरकार बनाने के पक्ष में नजर आते हैं। कम से कम जनता की इच्छा बताते हुए उन्होंने अपनी यह राय जाहिर की है।
AAP के एमएलए की मीटिंग में कुल मिलाकर 28 में से 27 एमएलए मौजूद थे, जिनमें अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मीटिंग में हरेक एमएलए को अपनी राय जाहिर करने के लिए कहा गया। कुछ एमएलए खुलकर बोले और कुछ ने दबी जुबान में कहा कि इस बारे में अब फैसला कर लेना चाहिए। कुल मिलाकर 24 एमएलए ने यह राय जाहिर की कि सरकार गठित की जानी चाहिए। उनका कहना था कि अब वह जहां भी जाते हैं, उनसे यही सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर आम आदमी पार्टी सरकार क्यों नहीं बना रही। इस सवाल का जवाब उनसे नहीं बन पा रहा।
खासतौर पर कांग्रेस द्वारा बिना शर्त समर्थन देने के बाद लोगों की राय बदलने लगी है और वे बीजेपी की बजाय आम आदमी पार्टी की सरकार के ज्यादा पक्षधर नजर आने लगे हैं। मीटिंग में यह भी बताया गया कि कांग्रेस ने 18 में से 16 शर्तें प्रशासनिक बताकर जनता के मन में यह बात बिठा दी है कि आम आदमी पार्टी अब सरकार बनाने से बच रही है।
ऐसे में अगर सरकार नहीं बनाई गई तो फिर पार्टी के लिए उचित फैसला नहीं होगा। एक एमएलए का कहना था कि जनता तो चाहती है कि आप की सरकार बने लेकिन मैं नहीं चाहता। अरविंद केजरीवाल ने अपनी राय जाहिर नहीं की और यही कहा कि अब इसका फैसला जनता पर ही छोड़ देना चाहिए। सरकार बनाने के पक्षधर एमएलए चाहते हैं कि सोमवार को एलजी के सामने सरकार बनाने का पत्र ही दिया जाए।
पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि आम आदमी पार्टी के एमएलए के पास आजकल बड़ी संख्या में एसएमएस, मेल और फेसबुक के जरिये भी लोगों की राय पहुंच रही है। पिछले तीन दिनों में आने वाले इन संदेशों में लोगों की भाषा बदल गई है।
दस में से करीब आठ लोग सरकार बनाने के पक्ष में ही अपनी राय जाहिर कर रहे हैं लेकिन एकाध ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि आप ने कांग्रेस और बीजेपी की करप्ट नीतियों को उखाड़ने के लिए चुनाव लड़ा और अब उसी के समर्थन से सरकार नहीं बनानी चाहिए। कुछ लोग तो इन संदेशों में धमकियां भी दे रहे हैं।

अंजलि दमानिया और बीजेपी नेता नितिन गडकरी के बीच लोकसभा चुनाव

आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया और बीजेपी नेता नितिन गडकरी के बीच छिड़ा वाकयुद्ध 2014 के लोकसभा चुनावों में एक नया रूप ले सकता है। अंजलि दमानिया ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया है कि वह नागपुर से नितिन गडकरी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। हालांकि, गडकरी ने अभी नागपुर से चुनाव लड़ने की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक वह नागपुर से ही खड़े होंगे।
दमानिया ने कहा, 'मेरी पार्टी मुझे कुछ समय से नितिन गडकरी के खिलाफ खड़ा होने के लिए कह रही थी लेकिन मैं पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते इससे बच रही थी। लेकिन शुक्रवार को हमारी राज्य कार्यकारिणी की बैठक हुई और मैंने इसके लिए सहमति दे दी।' अब दमानिया को नागपुर लोकसभा सीट से 'आप' का कैंडिडेट घोषित किए जाने की औपचारिकता मात्र रह गई है। उन्होंने बताया, '22 और 23 दिसंबर को औरंगाबाद में हमारी जिला समिति की बैठक होगी, जिसमें इस पर चर्चा की जाएगी। उसके बाद, अधिक से अधिक 8 दिन में पार्टी द्वारा इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी।'

गडकरी नई दिल्ली में थे और उन्होंने इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की। उनके सहायक सुधीर देउलगांवकर ने कहा कि इस पर गडकरी कोई प्रतिक्रिया नहीं देंगे। उन्होंने बताया, 'गडकरी नागपुर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं और उम्मीदवार ऐसी चीजों पर प्रतिक्रिया नहीं देते। जरूरत पड़ने पर पार्टी की स्थानीय युनिट इसपर जवाब देगी।'
एक स्थानीय नेता को चुनौती देने के परिणाम के बारे में पूछने पर दमानिया ने कहा कि वह इस चुनाव में एक संदेश देना चाहती हैं जो जीतने से ज्यादा जरूरी है। दमानिया ने कहा, 'यहां हमारा उद्देश्य गडकरी को चैलेंज देना और यह संदेश देना है कि हम हर जगह भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे। हम चाहते हैं कि अगर नागपुर के लोगों को लगता है कि मैं सही हूं तो नागपुर के लोग इस लड़ाई में हमारे लिए कैंपेनिंग करें।'
दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिले ठोस जनमत के बाद उसे कम नहीं आंका जा सकता। नागपुर के मौजूदा एम पी विलास मुत्तेवार किसी भी उम्मीदवार को हल्के में नहीं ले रहे। उन्होंने कहा, 'हालांकि इसपर कुछ कहना जल्दबाजी होगी, मैं सिर्फ इतना कहूंगा कि चुनाव के दौरान हम हर परिस्थिति के लिए तैयार रहेंगे और किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों को हल्के में नहीं लेंगे।'
अंजलि दमानिया महाराष्ट्र से ही हैं और पेशे से पैथॉलजिस्ट हैं। उन्होंने 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए इंडिया अगेन्स्ट करप्शन जॉइन किया था। उन्होंने महाराष्ट्र में सिंचाई घोटाले का खुलासा किया था।
सितंबर 2012 में दमानिया ने नैशनल टीवी पर कहा था कि जब उन्होंने तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से सिंचाई घोटाले पर मदद मांगी तो गडकरी ने उन्हें फटकारा। अक्टूबर 2012 में दमानिया ने मीडिया को बताया कि गडकरी ने अपने राजनीतिक संपर्कों का नाजायज फायदा उठाते हुए कृषियोग्य जमीन को अपनी कंपनी पूर्ति पावर ऐंड शुगर लिमिटेड के लिए हथिया लिया था।
इसके बाद 2007 में दमानिया द्वारा खुद को किसान बताकर खरीदे गए 36 प्लॉटों पर भी सवाल उठे और उनसे वे सभी प्लॉट वापस ले लिए गए।

Monday, December 9, 2013

अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने इसी वैक्यूम को भरने का काम किया


दिल्ली में एक नई पार्टी ने मजबूत दस्तक दी है। आम आदमी पार्टी (आप)। बहुत ही कम वक्त में इस पार्टी ने उम्मीद से बड़ी उपलब्धि हासिल की है। हम उन विवादों में नहीं पड़ते हैं कि किस तरह इस पार्टी ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को हासिल करने के लिए अन्ना हजारे के सामाजिक आंदोलन का इस्तेमाल किया। हम सिर्फ इस पार्टी और देश के नए राजनीतिक मिजाज पर चर्चा करते हैं।
आमतौर पर दिल्ली देश का प्रतिनिधित्व करता है। यहां देश के हर इलाके से लोग आते हैं। दिल्ली का अपना कोई क्षेत्रवाद नहीं है। हालांकि, कुछ लोग ऐसा करने की कोशिश जरूर करते हैं, लेकिन उनको राजनीतिक या फिर सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिली। इसका एक अलग ही मिजाज है। यह (दिल्ली) एक छोटे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। ऐसे में हम दिल्ली के राजनीतिक परिणाम को देश के सियासी भविष्य से जोड़ सकते हैं।
सबसे बड़ा सवाल, आखिर अपने पहले ही चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने इतनी बड़ी उपलब्धि कैसे हासिल की? इसके कई जवाब हो सकते हैं, लेकिन मेरी समझ में जो जवाब आए हैं मैं उन्हें यहां रख रहा हूं। दिल्ली में शुरू से देश की 2 प्रमुख पार्टियों, कांग्रेस और बीजेपी की मजबूत पकड़ रही है। दिल्ली की सत्ता (एमसीडी, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार) इन्हीं दोनों पार्टियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। ये दोनों पार्टियां पुरानी हैं।

इन पार्टियों की उपलब्धियों ने इनके नेताओं और कार्यकर्ताओं के भीतर अभिमान (घमंड) भर दिया। यानी हम ही शासन के लिए बने हैं। जनता हमारे ही इर्द-गिर्द घूमेगी। सत्ता का मजा चखने के लिए हम ही पैदा हुऐ हैं। जनता जाएगी कहां, आना तो बीजेपी और कांग्रेस के ही पास है। इनकी पूरी राजनीति का केंद्र इनके बड़े और कद्दावर नेता रहे। कभी 'आम जनता' को इन्होंने अपने साथ नहीं जोड़ा। इनके इसी सियासी व्यवहार ने एक बड़े वर्ग को सत्ता की भागीदारी से दूर कर दिया। आम आदमी सत्ता में भागीदार कैसे बने, इसकी व्यवस्था धीरे-धीरे इन पार्टियों में लगभग खत्म हो गई। वह (आम आदमी) मजबूर थाउसके पास विकल्प का अभाव था। विकल्प के अभाव की वजह से वह बीजेपी और कांग्रेस को वोट कर रहा था।
यही नहीं इन पार्टियों और इनके कार्यकर्ताओं ने कभी जनता के पास जाकर यह जानने की कोशिश नहीं की कि आपकी समस्या क्या है? वे चाहते क्या हैं? कैसी शासन व्यवस्था चाहते हैं? अपनी समस्या का समाधान किस तरह चाहते हैं? यही नहीं अगर कोई आम आदमी इन पार्टियों से जुड़ना चाहे तो कैसे जुड़े? यानी अपने क्षेत्र में वह पार्टी का मेंबर बनना चाहे तो कहां जाए? इसकी व्यवस्था नहीं थी। इन पार्टी के नेताओं के साथ सिर्फ ठेकेदार और दिल्ली के प्रॉपर्टी डीलर ही जुड़ पाते थे। क्योंकि, इन्हें इन दलों की सत्ता से लाभ कमाना था। अनैतिक लाभ। इन पार्टियों के राजनीतिक व्यवहार से धीरे-धीरे आम आदमी दूर होता गया। खुद को सत्ता से दूर पाने लगा। ये (आम आदमी) मेहनतकश लोग थे। शुरू में तो इन्हें लगता था कि हमें सरकार की जरूरत क्या है। लेकिन, धीरे-धीरे सरकारी तंत्र के भ्रष्टाचार का इन पर असर पड़ने लगा। अब इनके भीतर भी सत्ता में भागीदार बनने की महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी। ये भी सत्ता और राजनीतिक दलों में भागीदार बनने के लिए बेचैन होने लगे। बीजेपी और कांग्रेस में इनके लिए प्रवेश का रास्ता करीब-करीब बंद था। इस वजह से दिल्ली में एक बड़ा पॉलिटिकल वैक्यूम तैयार हो गया था।
अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने इसी वैक्यूम को भरने का काम किया है। केजरीवाल के पास कोई नया अजेंडा नहीं है। बस उसे लागू करने का तरीका अलग है। (वह कितना सही है यह वक्त बताएगा।) उन्होंने शुरू में खुद को प्रॉपर्टी दलालों से दूर रखा है। उन लोगों को जोड़ने का काम किया, जो सत्ता से खुद को अलग समझ रहे थे। इन्होंने हर इलाके में पार्टी दफ्तर खोला। लोग यहां आकर इनकी पार्टी से मेंबर बने। आम लोगों को लगा कि अरविंद की पार्टी की मदद से वे सत्ता में भागीदार बन सकते हैं। उनकी (आम आदमी की पार्टी) पार्टी सत्ता संभालेगी। यह पार्टी उनकी समस्याएं सुनेगी। उनकी जरूरत के हिसाब से समस्याओं का समाधान करेगी। सब कुछ उनके हिसाब से होगा। इन्हीं सब चीजों ने केजरीवाल की पार्टी की तरफ उन्हें आकर्षित किया है। 
यह सवाल जरूर उठेगा कि क्या केजरीवाल की पार्टी आम लोगों के अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी? क्या उनकी पार्टी ठेकेदारों (सियासी चमचों) और प्रॉपर्टी डीलरों से दूरी बनाकर रह पाएगी? यह सब भविष्य बताएगा, लेकिन एक बात तय है कि केजरीवाल की पार्टी देश के डिमॉक्रेटिक सिस्टम में बदलाव शुरुआत कर दी है। वह है पार्टिसिपेटरी डिमॉक्रेसी की। जी हां, जैसे पत्रकारिता में सोशल मीडिया और ऑनलाइन मीडिया के आने के बाद पार्टिसिपेटरी जर्नलिजम की शुरुआत हुई है उसी तरह भारत में आम आदमी पार्टी के आने से दिल्ली में पार्टिसिपेटरी पॉलिटिक्स की शुरुआत हुई है। मुझे लगता है कि देश की स्थापित पार्टियों ने अगर केजरीवाल से सीखने की जहमत नहीं उठाई तो पूरे देश में उनके खिलाफ केजरीवाल जैसे विकल्प देखने को मिलेंगे। अगर उन्होंने जड़ता दिखाई तो वे रसातल में चली जाएंगी। अब ज्यादा दिन तक वे आम आदमी से कटकर अपनी राजनीतिक रोटियां नहीं सेंक सकेंगे। अब आम आदमी के भीतर भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जग गई है। उन्हें पार्टिसिपेटरी डिमॉक्रेसी को स्वीकार करना ही पड़ेगा। अगर ये पार्टियां ऐसा नहीं करेंगी तो बर्बाद हो जाएंगी। बर्बादी में कितना वक्त लगेगा, यह तो बताना मुश्किल जरूर है।

Thursday, December 5, 2013

पिछले 10 सालों के दौरान पॉलिटिशंस और कई पार्टियों के सांसदों को 1000 से ज्यादा पेमेंट्स करने का जिक्र



कोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की जांच कर रही सीबीआई ने आदित्य बिड़ला ग्रुप के ऑफिस से मिली एक डायरी सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है। इस डायरी में पिछले 10 सालों के दौरान पॉलिटिशंस और कई पार्टियों के सांसदों को 1000 से ज्यादा पेमेंट्स करने का जिक्र है। इन लोगों को ये पेमेंट्स बिड़ला कंपनी ट्रस्ट की ओर से की गई थीं।
हिंडाल्को को तालाबीरा कोल ब्लॉक अलॉट करने में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों के सिलसिले में सीबीआई ने कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इसके बाद 16 अक्टूबर को ग्रुप के ऑफिसों पर छापे मारे गए थे, जिस दौरान यह डायरी बरामद हुई थी। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी रिपोर्ट में इस डायरी का जिक्र किया था।
इंग्लिश अखबार इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक नेताओं और अलग-अलग पार्टियों के सांसदों को ज्यादातर पेमेंट्स उस वक्त की गई हैं, जब चुनाव का माहौल था। डायरी में 2 लोकसभा चुनावों और विभिन्न राज्यसभा चुनावों के दौरान बिड़ला कंपनी ट्रस्ट की तरफ से पेमेंट करने का जिक्र है। सीबीआई ने इस डायरी को सुप्रीम कोर्ट के हवाले कर दिया है और आगामी आदेशों का इंतजार कर रही है।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने भी कंपनी के ऑफिस से एक ऐसी 'नोटबुक' बरामद की है, जिसमें कहीं से 100 करोड़ रुपये लिए जाने का जिक्र है। जब सीबीआई चार शहरों में कंपनी के ऑफिसों पर छापे मार रही थी, तब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की भी मदद ली गई थी। ऐसा इसलिए किया गया था, क्योंकि कंपनी के दिल्ली कॉर्पोरेट ऑफिस में 25 करोड़ रुपये कैश मिले थे।
जिस जगह से 25 करोड़ रुपये बरामद हुए थे, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को वहीं से यह 'नोटबुक' मिली थी। माना जा रहा है कि बरामद 25 करोड़ रुपये उन्हीं 100 करोड़ रुपयों का हिस्सा हैं, जिनका जिक्र नोटबुक में किया गया है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के इन्वेस्टिगेशन विंग ने इस नोटबुक के बारे में आदित्य बिड़ला ग्रुप के अधिकारियों से पूछताछ की है।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस का कहना है कि ग्रुप इन पैसों पर टैक्स देने के लिए राजी हो गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक बिड़ला कंपनी के प्रवक्ता ने इन डायरियों के बारे में बताया, 'चूंकि अभी इस मामले में जांच जारी है, ऐसे में अभी हमारा कुछ भी कहना सही नहीं होगा।'

सुनंदा ने कहा, 'धारा 370 मौजूदा स्वरूप में काफी भेदभावपूर्ण

जम्मू-कश्मीर की महिलाओं के राज्य के बाहर के पुरुषों से शादी करने पर उनके साथ भेदभाव होने के नरेंद्र मोदी के बयान पर जमकर राजनीति हो रही है। इस बीच उन्हें एक ऐसे शख्स से सपोर्ट मिला है, जिसकी उम्मीद उन्हें कतई नहीं रही होगी। केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी और मूल रूप से कश्मीर की रहने वालीं सुनंदा पुष्कर ने कहा कि 'बाहर' के शख्स से शादी करने पर राज्य में महिलाओं के साथ भेदभाव होता है और कोई कहता है कि ऐसा नहीं है तो वह झूठ बोल रहा है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह इस मसले पर किसी तरह की राजनीति में नहीं पड़ना चाहती हैं।
सुनंदा पुष्कर ने अपना अनुभव बताते हुए कहा, '2006-07 और 2010 में मैंने जम्मू में जमीन खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन डीसी ऑफिस के अधिकारियों ने मुझे बताया कि बाहर के शख्स से शादी करने की वजह से मेरा 'स्टेट सब्जेक्ट' (नागरिकता) रिन्यू नहीं हुआ है, इसलिए मैं राज्य में जमीन नहीं खरीद सकती हूं। सुनंदा ने कहा, 'धारा 370 मौजूदा स्वरूप में काफी भेदभावपूर्ण है और इसकी समीक्षा की जरूरत है।'
सुनंदा के मुताबिक, सन् 1992 में उन्होंने एक मलयाली से शादी की थी और पति की मौत के बाद वह राज्य में जमीन खरीदने गई थीं। उन्होंने अधिकारियों से कहा कि उनके पति की मौत हो गई है और वह राज्य लौट आई हैं। लेकिन अधिकारियों ने उनकी बात को अनसुना कर दिया।
उन्होंने इस मसले को एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में और अपने ट्विटर हैंडल के जरिए भी उठाया है। सुनंदा पुष्कर ने कहा कि इस मसले पर उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से बात की थी और उन्होंने इसमें मदद करने का भरोसा दिलाया। उन्होंने आगे कहा, 'हाई कोर्ट द्वारा महिला विरोधी कानून में सुधार लाए जाने के बावजूद जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं आया है। उमर ने मुझे बताया कि आपको पता होगा कि कानून में बदलाव के बावजूद आपके बच्चे इन संपत्तियों को नहीं पा सकते हैं। यह मुझे बहुत अजीब लगा। मेरे कजिन ने महाराष्ट्र की लड़की से शादी की है और उनके दोनों बच्चे के नाम से राज्य में प्रॉपर्टी हैं।'
सुनंदा ने कहा, 'जमीन खरीदने की कोशिश मैं जम्मू में कर रही थी, जबकि घाटी में हमारी पुश्तैनी जमीन है। मेरे पिता ने मुझे कहा था कि तुम अब स्टेट सब्जेक्ट नहीं रह गई हो इसलिए अपने हिस्से की जमीन भाइयों के नाम कर दो।'
थरूर की पत्नी ने इस मसले पर बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया और दबे स्वर में इसके लिए नेहरू का जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि बीजेपी जब सत्ता में थी तो इसके लिए कोई कदम नहीं उठाया। इसके बाद सुनंदा ने कहा कि हो सकता है कि मेरे जबाव से मेरे पति चिढ़ जाएं लेकिन मैं एक कश्मीरी और महिला भी हूं।
सुनंदा ने कहा कि अगर मेरी जानकारी गलत नहीं है तो अनुच्छेद-370 की धीरे-धीरे विदाई होनी थी, लेकिन मुझे नहीं पता कि यह कैसे होना था। उन्होंने कहा, 'जवाहर लाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला और राजा हरि सिंह में हुए समझौते के मुताबिक यह सब हुआ। नेहरू ने कश्मीर का विभाग अपने पास रखा और सरदार पटेल गृह मंत्री होने के बावजूद कश्मीर से अलग रहे।'


Wednesday, November 20, 2013

अन्ना की टोपी ,

सब जानते हैं , “अन्ना की टोपी”´ और यह टोपी पिछले वर्ष 2012 में माननीय अन्ना जी द्वारा चलाये गए आंदोलन में  खूब चली । मैं भी टोपी पहनकर “ मैं भी अन्ना “ के नारे लगता था । मैं भी अन्ना आदि, और ऐसा कर मुझे गर्व होता था कि आंदोलन के जरिये हम भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करने मे सफल हो जाएंगे  । मतलब यह कि इस टोपी को “अन्ना जी का पर्याय” भारतीय जनमानस ने अपने  लिए मान लिया , इसलिए नहीं कि कुछ अलग होकर लोग भी इस टोपी का प्रयोग अपने फायदे के लिए कर सकेंगे । मुझे अभी भी शक है कि अन्ना जी ने इस टोपी को पहनकर अपना उल्लू सीधा करने का अधिकार किसी को दिया है और यदि ऐसा है तो लोग अन्ना जी को भी भूलने मे समय नहीं लगाएंगे  ऐसा मेरा मत है । अन्ना जी आरंभ से ही राजनीति करने के खिलाफ थे ।  अतः आज भी कह रहे हैं कि अन्ना कार्ड से मेरा कोई मतलब नहीं,  पैसे से मेरा कोई मतलब नहीं । अन्ना जी मैं आपका तहे दिल से अभिनंदन करता हूँ । आप पारदर्शी हैं, कोई शक नहीं फिर भी क्या यह सत्य हैं कि :
·         क्या “आप पार्टी “ वाले आंदोलन से पहले “ मैं भी अन्ना “ टोपी का इस्तेमाल करते थे ?
·         यदि नहीं , तो आज अपनी अलग पार्टी बनाकर भी  टोपी का इस्तेमाल क्यों ?
·         यह सत्य है कि चंदा तो टोपी को ही मिला । झाड़ू को नहीं ।
·         मुझे याद है कि आपने चुनाव के लिए अपना नाम किसी भी प्रकार से इस्तेमाल करने पर विरोध जताया था तो आज फिर आपके प्रतीक टोपी का इस्तेमाल क्यों ?
·         आपके द्वारा शुद्ध रूप से मना करने के बावजूद टोपी का इस्तेमाल करके क्या आपका इस्तेमाल चुनाव के लिए नहीं हो रहा है ?
·         चुनावी चंदा किसी प्रतीक पर मिलता है जो कि टोपी है ।
·         क्या टोपी दिखाकर चंदा मांगना अन्ना जी का इस्तेमाल नहीं है ?
·         यदि नहीं, तो फिर टोपी क्यों नहीं उतार देते और अपनी पूर्व वेषभूषा मे आकर अर्थात बिना टीपी चुनाव ।
अगर “आप पार्टी “ वाले  इन तथा कथित नेताओं मे आपका इस्तेमाल नहीं किया तो “आप पार्टी “ के सभी लोग टोपी का इस्तेमाल क्यों करते हैं ?

कृपया विचार करें और अपने नाम का इस्तेमाल आपके नाम पर वोट मांगने के लिए न होने दें । 

Monday, November 18, 2013

अन्ना जी के नाम खुला पत्र

महोदय,
मैं आपका आलोचक नहीं हूँ , और बीजेपी या कांग्रेस  का कार्यकर्ता भी नहीं । लेकिन आपसे और आपकी स्वच्छ छवि , बेदाग जीवन से प्रेरणा लेता रहा हूँ । भारत के करोड़ो लोग और युवा भी आपसे प्रेरणा लेते रहे हैं ।   पिछले दो दिन की खबरों से मैं भी आहत हुआ हूँ । मैं आपको कोई सलाह भी नहीं दे सकता परंतु प्रार्थना कर सकता हूँ कि आप भूतकाल की तरह मेहरबानी कर अपने सिद्धांतों पर कायम रहे, और आगे भी कायम रहें । आपका नाम लेकर वोट लेना या चंदा लेना  मेरी समझ में आपके प्रति अन्याय है । वे कुछ भी सफाई दें लोग आपके नाम से ही चंदा देते हैं ।

मैं माननीय केजरीवाल जी पर कोई टिप्पणी भी नहीं करना चाहता क्योंकि वह इस लायक नहीं है कि कोई आम आदमी उस जैसे पर कोई टिप्पणी करे । दिल्ली में रहकर कुछ ऐसा होना स्वाभाविक है कि केजरीवाल भी आज आपकी वजह से मलमाल हो गए । 20 करोड़ का चंदा मिल गया , आपको आंदोलन के लिए इतना चंदा नहीं मिला  यह उनका तर्क हो सकता है । उनकी पार्टी के अधिकतर उम्मीदवार करोड़पति हैं , तो आम आदमी की पार्टी का ढोंग क्यों ? आज आपके नाम से चंदा लेकर आपको धोका दे रहे हैं यदि जीत गए तो देश के आम आदमी को ही धोका देंगे ।

राजेंद्र गुप्ता , मुंबई 

अमित शाह के अपने 'साहब' के इशारे पर युवा महिला आर्किटेक्ट का पीछा करवाने के मामले में कई सनसनीखेज बातें

गुजरात के पूर्व गृह राज्य मंत्री और यूपी में बीजेपी के चुनाव प्रभारी अमित शाह के अपने 'साहब' के इशारे पर युवा महिला आर्किटेक्ट का पीछा करवाने के मामले में कई सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं।  'मुंबई मिरर' की पड़ताल के मुताबिक 'साहब' का इस युवती से करीबी रिश्ता था। 'साहब' ने युवती को अपना पर्सनल मोबाइल नंबर दे दिया था और दोनों के बीच इस नंबर पर दिन में 18 बार तक बातें हुई हैं।
लड़की का पीछा क्यों करवाया गया, इसकी कहानी एक मिस्ड कॉल से शुरू हुई। यह मिस्ड कॉल साहब के पर्सनल नंबर पर आई थी। इसके बाद से ही इस युवती को दो महीने अवैध रूप से सर्विलांस पर रखा गया।
न्यूज़ पोर्टल कोबरापोस्ट और गुलेल ने शुक्रवार को खुलासा किया था कि यह सर्विलांस 2009 में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री और नरेंद्र मोदी के करीबी अमित शाह के कहने पर शुरू किया गया था। दावा यह भी है कि यह आदेश किसी 'साहब' के इशारे पर दिया गया। हालांकि साहब कौन हैं इस बात का खुलासा नहीं हुआ है।
हमारे सहयोगी अखबार मुंबई मिरर के सूत्रों के मुताबिक 62 दिन चले इस सर्विलांस में गुजरात के आठ बड़े पुलिस अधिकारी शामिल थे। इस पूरी कार्रवाई की कमान आईपीएस अधिकारी जी एल सिंघल के हाथों में थी। सिंघल को उस समय अमित शाह का बेहद करीबी माना जाता था। हालांकि उसके बाद से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए हैं। अमित शाह और जी एल सिंघल दोनों राज्य में हुए दो अलग-अलग फर्जी एनकाउंटरों के मामले में आरोपी हैं और फिलहाल बेल पर बाहर हैं। अमित शाह जहां सोहराबुद्दीन एनकाउंटर के आरोपी हैं वहीं सिंघल पर इशरत जहां एनकाउंटर मामले में आरोप लगाए गए हैं।
सिंघल ने शाह से अपनी नजदीकी के बावजूद उनसे हुई बातचीत की कुछ रिकॉर्डिंग्स अपने पास रखी थीं। इस साल जून में सिंघल ने इस बातचीत के 267 रिकॉर्डिंग्स सीबीआई को सौंप दी। इन रिकॉर्डिंग्स में इस पूरे सर्विलांस के मामले की डीटेल्स हैं।
मामले की जानकारी रखने वाले नजदीकी सूत्रों का कहना है कि इस युवती से 'साहब' की मुलाकात पहली बार 2005 में हुई थी। उसने भूकंप प्रभावित भुज में सरकारी पुनर्निर्माण के प्रयासों के तहत एक हिल गार्डन डिजाइन किया था। दोनों की मुलाकात तत्कालीन जिलाधिकारी प्रदीप शर्मा ने कराई थी। शर्मा इस मामले में एक अहम कड़ी के तौर पर सामने आए हैं।
 इस मुलाकात के दौरान 'साहब' ने उसके काम से खुश होकर युवती की तारीफ की। बाद में 'साहब' ने दूसरे शहर के अपने दफ्तर से भी इस युवती को कॉल किया। प्रफेशनल तारीफ से शुरू हुआ यह रिश्ता बाद में गहराता चला गया। 'साहब' ने बाद में उसे अपना पर्सनल सेल नंबर (******3400) भी दे दिया जिससे वह कभी भी उनसे बात कर सकती थी। कहा जा रहा है कि एक समय यह हाल भी था कि दोनों के बीच एक दिन में 18 बार बात हुई।
इस युवती ने 'साहब' के साथ अपने रिश्ते के बारे में अपने दोस्त भुज के कलेक्टर और दोनों को पहली बार मिलवाने वाले प्रदीप शर्मा को बताया। कथित तौर पर युवती ने शर्मा को साहब के प्राइवेट नंबर से भेजे गए कुछ टेक्स्ट मेसेज भी दिखाए। कहा जा रहा है कि शर्मा ने यह नंबर सेव कर लिया। बाद में 'साहब' के पजेसिव बिहेवियर और एक अन्य कारण से दोनों के संबंधों में समस्याएं आ गईं। साहब चाहते थे कि सार्वजनिक तौर पर यह दिखे कि वह इस युवती को अपनी बेटी की तरह मानते हैं।
प्रदीप शर्मा को इस बारे में पता चला तो साहब के प्राइवेट नंबर पर फोन लगा दिया। कॉल उठाया तो नहीं गया लेकिन इस मिस्ड कॉल से साहब को संदेह हो गया कि आखिर उनका पर्सनल नंबर किसके पास है। कॉल डीटेल्स में शर्मा का नाम सामने आ गया। इस मिस्ड कॉल के बाद से ही युवती और 'साहब' के संबंधों का समीकरण बदल गया।
शर्मा के फोन पर नजर रखी गई और यह बात सामने आ गई कि शर्मा और यह युवती बराबर संपर्क में रहते थे। सूत्रों के मुताबिक, इसके बाद ही अमित शाह ने इस युवती पर सर्विलांस लगाने का आदेश दिया। कोबरापोस्ट और गुलेल के मुताबिक, 'साहब' इस युवती के बारे में सबकुछ जानना चाहते थे- वह क्या करती है, कहां जाती है, किससे मिलती है। सिंघल इस सर्विलांस की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। इसी दौरान अमित शाह से हुई बातचीत उन्होंने रिकॉर्ड करके रखी थी। इन्हीं टेप्स को सीबीआई को सौंपा गया है और इन्हें इशरत जहां केस के पंचनामे में शामिल भी किया गया है।
माना जा रहा है कि कुछ ही दिनों बाद प्रदीप शर्मा को उनकी हरकत का दंड मिल गया। उनके खिलाफ गुजरात सरकार ने आपराधिक मामलों में चार शिकायतें दर्ज कराई हैं। शर्मा को सस्पेंड कर दिया गया और फिर वह गिरफ्तार भी कर लिए गए। 62 दिनों तक चला सर्विलांस का सिलसिला तब खत्म हुआ जब इस युवती ने शादी कर गुजरात छोड़ने का फैसला किया।
हालांकि, इस युवती के पिता ने शुक्रवार को कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री उनके पुराने पारिवारिक मित्र हैं और उन्होंने ही मुख्यमंत्री से अपनी बेटी का खयाल रखने का निवेदन किया था। उनकी बेटी बेंगलुरु से अहमदाबाद आई थी और उसे अपनी मां के इलाज के सिलसिले में 'ऑड आवर्स' पर बाहर निकलना पड़ता था। उनका कहना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री और उनकी बेटी का रिश्ता बाप-बेटी की तरह था।
इस पूरे मामले पर जहां अमित शाह ने हमारे मेसेज या कॉल का कोई जवाब दिया, वहीं सिंघल ने यह कहकर किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया कि मामले में अभी जांच चल रही है। उधर, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कोबरापोस्ट और गुलेल के खुलासों को खारिज करते हुए कहा है कि इस पूरे मामले के पीछे कांग्रेस के 'डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट' का हाथ है। गुजरात सरकार के प्रवक्ता और मंत्री नितिन पटेल का कहना है कि गुजरात सरकार इस मामले की पूरी रिपोर्ट देखने के बाद ही कुछ कहेगी।

Wednesday, November 13, 2013

अगर आप रेप को नहीं रोक सकते हैं, तो इसका आनंद लीजिए

 सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा खेलों में सट्टेबाजी को कानूनी रूप देने की पैरवी करते हुए एक बेतुका बयान देकर विवादों में फंस गए हैं। उन्होंने सट्टेबाजी की तुलना रेप से करते हुए अपनी बात समझाने के लिए एक अजीबोगरीब उदाहरण दे डाला। सिन्हा के इस बयान की चौतरफा निंदा हो रही है। महिला संगठनों ने उनकी जमकर आलोचना करते हुए पद से हटाने की मांग की है।
टीम अन्ना की सदस्य रहीं पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने भी सिन्हा से इस बयान के लिए माफी मांगने को कहा है। हालांकि, सिन्हा ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि उनके कहने का मतलब बस इतना था कि सट्टेबाजी पर बैन जारी रखना बेहद मुश्किल काम है। इसी बात को समझाने के लिए उन्होंने यह उदाहरण दिया था।
सीबीआई डायरेक्टर का यह विवादित बयान नई दिल्ली में सीबीआई की गोल्डन जुबली सिलेब्रेशन के सवाल-जवाब सेशन के दौरान आया। आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और करीब 66 हजार करोड़ रुपये की सट्टेबाजी पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में सिन्हा ने कहा, 'यदि राज्यों में लॉटरी चल सकती है, यदि हमारे हॉलिडे रिजॉर्ट में कसीनो हो सकते हैं, यदि सरकार काला धन के स्वैच्छिक खुलासे की योजना की घोषणा कर सकती है, तो सट्टेबाजी को कानूनी रूप देने में क्या नुकसान है? क्या आपके पास इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए एजेंसी है? नहीं ना? यह कहना उसी प्रकार है कि अगर आप रेप को नहीं रोक सकते हैं, तो इसका आनंद लीजिए।'

Friday, November 8, 2013

पटेल के दबाव से कश्मीर में सेना भेजने का निर्णय हुआ

सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर झा की ओर से किए गए मानेकशॉ के इंटरव्यू के हवाले से आडवाणी ने कहा कि महाराजा हरि सिंह की ओर से विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। इसमें नेहरू, पटेल और रक्षा मंत्री बलदेव सिंह आदि शामिल हुए। मानेकशॉ ने उसमें 'सैन्य स्थिति' को पेश किया और सुझाव दिया कि भारतीय सेना को आगे बढ़ना चाहिए। आडवाणी ने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा कि हमेशा की तरह नेहरू संयुक्त राष्ट्र, रूस, अफ्रीका, ईश्वर और हर किसी की उस समय तक बात करते रहे, जब तक कि सरदार पटेल ने अपना आपा नहीं खो दिया। उन्होंने कहा कि जवाहरलाल, आप कश्मीर चाहते हैं या आप उसे गंवाना चाहते हैं? नेहरु ने कहा, 'निस्संदेह, मैं कश्मीर चाहता हूं।' तब पटेल ने कहा, 'मेहरबानी करके आदेश दीजिए।' और इससे पहले कि वह कुछ कहते पटेल मेरी तरफ पलटे और कहा, 'आपको आदेश मिल चुका है'।बीजेपी नेता ने कहा कि इसके बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लेने के लिए श्रीनगर विमानों से भेजा गया और महाराजा हरि सिंह के मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान की ओर पाला बदल लिया। आडवाणी ने कहा कि मानेकशॉ और प्रेम शंकर झा से संबंधित यह रिपोर्ट नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों की ठोस पुष्टि करती है। इससे पहले उन्होंने अपने ब्लॉग पर 5 नवंबर को 1947 बैच के आईएएस अधिकारी एम. के. के. नायर की पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ ऐन ऐरा टोल्ड विदआउट इल विल' का हवाला दिया।
इस किताब में हैदराबाद के खिलाफ 'पुलिस कार्रवाई' से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच हुए कथित 'तीखे वार्तालाप' का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया कि नेहरू हैदराबाद के भारत में विलय के लिए पटेल की पुलिस कार्रवाई की योजना के खिलाफ थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने गुरुवार को हालांकि बीजेपी नेता की ओर से पेश इस सामग्री पर संदेह जताते हुए ट्वीट किया कि आईएएस की स्थापना 1946 में हुई थी। अगर नायर ने 1947 में ज्वाइन किया तो क्या उस स्तर के अधिकारी को 1948 में कैबिनेट की गोपनीय चर्चाओं की जानकारी हो सकती थी? गौरतलब है कि बीजेपी कुछ समय से सरदार पटेल को हिंदुत्व की विचारधारा के करीब बताने की कोशिश कर रही है।सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।

गोल्डमैन सैक्स ने नरेंद्र मोदी फैक्टर की वजह से भारत की रेटिंग 'अंडरवेट' से बढ़ाकर 'मार्केटवेट' करने का फैसला किया

कॉमर्स और इंडस्ट्री मिनिस्टर आनंद शर्मा ने 'देश की अंदरूनी राजनीति को लेकर बयान देने पर' गोल्डमैन सैक्स की कड़ी आलोचना की है। ऐसा बहुत कम हुआ है, जब किसी सीनियर मिनिस्टर ने ग्लोबल इनवेस्टमेंट बैंक के बारे में इस तरह की बात कही हो। गोल्डमैन सैक्स ने कहा था कि बीजेपी की लीडरशिप वाला एनडीए अगले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर सकता है।
इस हफ्ते गोल्डमैन सैक्स ने नरेंद्र मोदी फैक्टर की वजह से भारत की रेटिंग 'अंडरवेट' से बढ़ाकर 'मार्केटवेट' करने का फैसला किया था। 'मोदी-फाइंग आवर व्यू' रिपोर्ट गोल्डमैन ने कहा था, 'अभी भारत उच्च राजस्व घाटा, ज्यादा महंगाई दर और सख्त मॉनेटरी पॉलिसी जैसी मुश्किलों का सामना कर रहा है। हालांकि, अगले साल केंद्र में सत्ता बदलने की उम्मीद इन पर भारी पड़ रही है। माना जा रहा है कि मई 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी की अगुवाई में केंद्र में एनडीए की सरकार बनेगी।' बैंक के अनालिस्टों ने इनवेस्टर्स को भेजे नोट में लिखा है, 'इक्विटी इनवेस्टर्स बीजेपी को बिजनेस-फ्रेंडली मानते हैं। वे समझते हैं कि बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी बदलाव के प्रतीक हैं।'
इस रिपोर्ट पर मोदी या बीजेपी की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन शेयर बाजार में हवा मजबूत हुई है कि 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी की जीत हो सकती है। कांग्रेस की लीडरशिप वाले यूपीए और उसके मंत्रियों को यह बात नागवार गुजरी है। ओपियन पोल में भी बीजेपी को जीतता हुआ दिखाने पर कांग्रेस ने इस विषय पर टीवी चर्चाओं का बॉयकॉट कर दिया है। गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट को खारिज करते हुए यूपीए सरकार ने कहा है कि भारतीय इकॉनमी की खराब हालत ग्लोबल फैक्टर्स के चलते है। सरकार ने अपनी तरफ से हालात सुधारने के लिए हर कोशिश की है। शर्मा ने कहा कि चुनाव और राजनीति को वोटरों पर छोड़ देना चाहिए।

Monday, November 4, 2013

अदालतों पर बैन क्यों नहीं लगा दिया जाए ?

ओपिनियन पोल को बैन करने की कांग्रेस की मांग पर बवाल बढ़ता जा रहा है। बीजेपी के पीएम कैंडिडेट और गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस को इस रुख को 'बचकाना' करार देते हुए अपने ब्लॉग में लिखा है, 'मेरी चिंता केवल ओपिनियन पोल्स पर बैन लगाने की कांग्रेस की मांग तक ही सीमित नहीं है। कल कांग्रेस चुनाव के समय इसी आधार पर लेख, संपादकीय, ब्लॉग लिखने पर रोक लगाने की मांग कर सकती है। अगर वे चुनाव हार गए तब चुनाव आयोग पर बैन लगाने की मांग कर सकते हैं।'
मोदी ने लिखा, 'अगर अदालतें कांग्रेस के पक्ष में फैसले नहीं देंगी तो वह कह सकती है कि अदालतों पर बैन क्यों नहीं लगा दिया जाए। इस पार्टी ने अदालत के असहज फैसले के जवाब में आपातकाल लगाया था।'
नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग के जरिए लोगों से कांग्रेस को न केवल ओपिनियन पोल में बल्कि मतदान केंद्र पर भी खारिज करने की अपील की है।
मोदी के मुताबिक, 'स्वतंत्रता के बाद जिन लोगों ने भारतीय राजनीति और कांग्रेस पार्टी के कामकाज को देखा होगा, वे सहमत होंगे कि उनके लिए कांग्रेस पार्टी का रुख आश्चर्य भरा नहीं है।' उन्होंने कहा, 'सत्ता में होने पर कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी समस्या उसका अहंकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकारों को कुचलने की प्रवृत्ति है।'
मोदी ने सोमवार को अपने ब्लॉग 'टुडे ओपिनियन पोल्स, वाट नेक्स्ट' में लिखा, 'अगर आप मुझसे पूछें, तो इसका हल बहुत आसान है। कांग्रेस के निरंकुश और विध्वसंकारी हथकंडों से निपटने की बजाए, अच्छा यह होगा कि हम अलोकतांत्रिक कांग्रेस को न केवल ओपिनियन पोल में बल्कि मतदान केंद्र पर भी खारिज करें।'
मोदी ने कहा, 'जैसा हम सुनना चाहते हैं, वैसे पोल के रिजल्ट नहीं आ रहे हैं। सिर्फ इसलिए ओपिनियन पोल्स को बैन कर देना चाहिए, इस तरह का कदम उठाना पूरी तरह से बचकाना है।'
ओपनियन पोल्स के बारे में उन्होंने लिखा कि उनका किसी खास से कोई लगाव नहीं है। मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा, 'वास्तव में मैं इनकी सीमाओं से परिचित हूं। हमारे जानकार चुनाव विश्लेषकों ने अनुमान व्यक्त किया कि साल 2002 में गुजरात में कैसे बीजेपी के खिलाफ मतदान होगा। इसके बाद 2007 और फिर 2012 में ऐसे बड़े विश्वास से पेश किए गए ओपिनियन पोल्स को लोगों ने गलत साबित किया था।'
कांग्रेस ने पिछले हफ्ते चुनाव आयोग को पत्र लिखकर चुनाव के दौरान ओपिनियन पोल पर रोक लगाने की बात कही थी। कांग्रेस ने ओपिनियन पोल को दोषपूर्ण, विश्वसनीयता की कमी और स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया करार दिया था

Sunday, November 3, 2013

शुभकामनायें

दीप पर्व की शुभकामनायें 

Thursday, October 31, 2013

सरदार वल्लभ भाई पटेल के दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति का शिलान्यास

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को एक सूत्र में बांधने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल के दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति का शिलान्यास करने के साथ ही कांग्रेस पर करारा हमला किया और कहा कि बड़े नेताओं की विरासत देश की होती है, किसी पार्टी की नहीं। उन्होंने कहा कि दल से देश बड़ा होता है। इस मौके पर मोदी ने सेक्युलरिज्म को लेकर अपने ऊपर हो रहे हमलों का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि पटेल भी सेक्युलर थे लेकिन उनका सेक्युलरिज्म सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण के रास्ते में नहीं आया। मोदी ने कहा कि हमें पटेल वाला सेक्युलरिज्म चाहिए न कि वोट बैंक वाला सेक्युलरिज्म।
मोदी नर्मदा जिले के केवड़िया में दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति बनवा रहे हैं। 2074 करोड़ की लागत से बनने वाली पटेल की इस मूर्ति को स्टैचू ऑफ यूनिटी का नाम दिया गया है। जाहिर है मोदी इस प्रॉजेक्ट से पटेल को सम्मान देने के साथ-साथ अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी गांधी-नेहरू सियासी वंश परंपरा को चुनौती देना चाहते हैं और उनके समानांतर एक राष्ट्र नायक खड़ा करना चाहते हैं।
इस मौके पर बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि जब देसी रियासतों के राजा मोहम्मद अली जिन्ना से तोल-मोल कर रहे थे तब पटेल ने साहसिक कदम उठाते हुए देश को एक किया। 565 रजवाड़ों को एक करना छोटी बात नहीं थी और यह जिम्मेदारी सरदार वल्लभ भाई पटेल ने बखूबी निभाई। लालकृष्ण आडवाणी ने इस पहल के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की। इस मौके पर नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरदार पटेल को लेकर मेरे मन में यह आकांक्षा कब से दबी हुआ थी। मोदी ने कहा कि यह लोगों की भी आकांक्षा है जो कि अब जमीन पर उतरने जा रही है

Tuesday, October 29, 2013

इनामी आतंकी तहसीन अख्तर उर्फ मोनू का नीतीश की पार्टी से कनेक्शन

नरेंद्र मोदी की पटना हुंकार रैली में हुए सीरियल ब्लास्ट पर अब सिसायत शुरू हो गई है। बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के कट्टर प्रतिद्वंद्वी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। बीजेपी ने कहा है कि पटना ब्लास्ट का मास्टरमाइंड और 10 लाख रुपये का इनामी आतंकी तहसीन अख्तर उर्फ मोनू का नीतीश की पार्टी से कनेक्शन है। बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव रामेश्वर चौरसिया और बिहार बीजेपी के सीनियर नेता गिरिराज सिंह ने यह आरोप लगाया है।
चौरसिया के मुताबिक, तहसीन अख्तर के चाचा समस्‍तीपुर में जेडीयू के बड़े नेता हैं। तहसीन के चाचा तकी अख्तर जेडीयू के समस्तीपुर जिले के महासचिव हैं। उन्होंने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है। हालांकि जेडीयू ने बीजेपी के दावे को खारिज कर दिया है।
गौरतलब है कि पटना में नरेंद्र मोदी की 'हुंकार रैली' के दिन रविवार को हुए 7 बम धमाकों के पीछे इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के आतंकवादी तहसीन अख्‍तर और वकास का नाम सामने आ रहा है। समस्‍तीपुर का रहने वाला 23 साल का तहसीन आईएम के टॉप आतंकवादियों में से एक है। तहसीन को ही पटना ब्लास्ट का मास्टरमाइंड माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि तहसीन अब भी पटना में ही मौजूद है।

Monday, October 28, 2013

हिंदू और मुसलमानों को आपस में लड़ने के बजाए गरीबी से लड़ना चाहिए

पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में हुए बम धमाकों के बीच नरेन्द्र मोदी ने बिलकुल अलग अंदाज में खुद को सेक्युलर रूप में पेश किया। मोदी ने कहा कि हिंदू और मुसलमानों को आपस में लड़ने के बजाए गरीबी से लड़ना चाहिए।
मोदी ने बिहार को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को तोड़ने के बजाए जोड़ने का मंत्र दिया। रैली में उनके निशाने पर नीतीश कुमार भी रहे, जिन्हें मोदी ने अवसरवादी करार दिया। मोदी ने यह भी कहा कि अब तोड़ने का नहीं, बल्कि जोड़ने का काम करेंगे, तभी बिहार आगे बढ़ेगा। चाणक्य के वक्त को इसलिए स्वर्णकाल कहा जाता है, क्योंकि उस वक्त सभी को जोड़ने की बात कही गई थी। मोदी के मुताबिक, कई नेता जातिवाद और धर्म के नाम पर समाज बांटने की कोशिश कर रहे हैं, जिनसे बचना होगा।
मोदी ने कहा कि कथित सेक्युलरवादी धर्म के नाम पर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। उन्होंने वादा किया कि अगर उनकी सरकार बनी तो उसका एक ही मजहब होगा और वह होगा 'नेशन फर्स्ट'। नीतीश कुमार का नाम लिए बिना ही मोदी ने कहा कि बिहार में उनके सीएम मित्र हैं, जिनके बारे में पूछा जाता है कि उन्होंने बीजेपी को क्यों छोड़ दिया। मैं उन्हें जवाब देता हूं कि जब वे जेपी को छोड़ सकते हैं तो बीजेपी को क्यों नहीं। मोदी ने कहा कि उन्होंने (नीतीश) राममनोहर लोहिया की पीठ में खंजर घोंपा है। उनके चेले नीतीश को माफ करें या नहीं, लेकिन जेपी और राममनोहर लोहिया की आत्मा जहां भी होगी, वह माफ नहीं करेंगी। मोदी ने ताना मारा कि जेडीयू से ज्यादा विधायक होने के बावजूद बीजेपी ने इसलिए नीतीश को सीएम बनाना मंजूर किया, क्योंकि बीजेपी नहीं चाहती थी कि बिहार में फिर से जंगल राज लौटकर आए।
मोदी ने कहा कि पार्टी की राज्य इकाई उन्हें बिहार बुलाना चाहती थी, लेकिन वे इसलिए नहीं आए, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन टूटे। इसलिए उन्होंने अपमान का घूंट भी पिया। मोदी के मुताबिक, नीतीश को उनके चेलों ने समझाया कि कांग्रेस से जुड़ जाओ तो पीएम बन जाओगे। बस उसी के बाद वह पीएम बनने के सपने देखने लगे और इसी वजह से उन्होंने बीजेपी के साथ विश्वासघात कर डाला। मोदी ने बिहार के लोगों से अपील की कि वे विश्वासघात करने वालों को माफ न करें और सजा दें। मोदी ने कहा कि महात्मा गांधी ने चंपारण से देश को अंग्रेजमुक्त करने का आह्वान किया था। अब बिहार के पटना से कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार होना चाहिए