Thursday, April 29, 2010

देश में मध्य वर्ग की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं

सचमुच देश में मध्य वर्ग की चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। देश की कुल आबादी में मध्य वर्ग की संख्या करीब 40 प्रतिशत है। इसके अलावा जैसे-जैसे विकास दर बढ़ रही है, वैसे-वैसे इसमें बड़ी संख्या में लोग जुड़ते जा रहे हैं। लेकिन देश में मध्य वर्ग का विशेष महत्व नहीं है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि मध्य वर्ग का एक बड़ा भाग मतदान नहीं करता है। हर साल बजट के पहले वित्तमंत्री उद्योगों, किसानों, श्रम संगठनों तथा विभिन्न लॉबियों के प्रतिनिधियों से मिलते हैं। बजट में इन सबकी मांगों और आवश्यकताओं के अनुरूप राहत पैकेज दिए जाते हैं। लेकिन मध्य वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन होने के बाद भी बजट का चमकीला हिस्सा नहीं बन पाता। मध्य वर्ग अपने विकास के लिए सकारात्मक वातावरण और उपयुक्त सुविधाएं चाहता है। वह मेरिट में विश्वास करता है और विकास के लिए समान अवसर चाहता है, समाज में शिक्षा और रोजगार के असमान अवसरों को ईर्ष्या का विषय मानता है, बढ़ती महंगाई से मुकाबले के लिए सरकार से कर राहत चाहता है। वह आवास, वाहन और उपभोक्ता कर्जों पर ब्याज रियायत चाहता है और पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, बेहतर प्रशासन और भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था की अपेक्षा रखता है। देश में उच्च शिक्षा के लिए 18000 कॉलेज और 500 यूनिवर्सिटी हैं लेकिन उच्च व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के लिए बजट आवंटन में लगातार कमी हुई है। 1990 के दशक में शिक्षा पर जीडीपी का चार फीसदी खर्च होता था जो हाल के सालों में गिरकर 3.5 फीसदी हो गया है। उच्च शिक्षा में सरकारी निवेश की कमी से देश की 90 फीसदी यूनिवर्सिटी दोयम दर्जे की शिक्षा दे रही हैं। आईआईटी, आईआईएम, रीजनल इंजिनियरिंग कॉलेज जैसे कुछ ही चमकीले शिक्षण संस्थान देश और विदेश में अपना परचम फहराते हुए दिखाई दे रहे हैं, लेकिन सरकारी क्षेत्र के ज्यादातर उच्च शिक्षा संस्थान संसाधन और गुणवत्ता की कमी के कारण निराशा के पर्याय बन गए हैं। इससे निजी क्षेत्र की महंगी शिक्षा को बढ़ावा मिला है और मध्य वर्ग की स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ गई हैं। 2010-11 के बजट में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से आयकर राहत की उम्मीद थी लेकिन छोटे आयकर दाताओं को इसमें कोई फायदा नहीं मिला। जिन आयकरदाताओं की आय तीन लाख रुपए से कम है उन्हें पिछले बजट में जितना आयकर देना होता था उतना ही नए बजट के बाद भी देना होगा। निवेश के लिए धन जमा करके आयकर छूट लेना उनके बूते के बाहर है, फिर भी ज्यादातर लोग टैक्स सेविंग के लिए आयकर की धारा 80सी के तहत दिए गए निवेश विकल्पों की ओर देखते हैं। लेकिन 80 सी की भी एक सीमा है। इसके तहत फिलहाल एक लाख रुपए तक का निवेश करके अधिकतम 30,000 रुपए की बचत ही कर सकते हैं। नए बजट में वित्त मंत्री ने धारा 80 सी के तहत निवेश की सीमा को इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड के लिए 20 हजार रुपए बढ़ाकर 1.20 लाख रुपए कर दिया है। न केवल महंगाई से मध्य वर्ग की जेब खाली हो रही है, वरन अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए मध्य वर्ग द्वारा लिए जाने वाले सबसे जरूरी हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कन्जयूमर लोन आदि पर भी ब्याज दर बढ़ने के परिदृश्य ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) अर्थव्यवस्था के मंदी से बाहर आने पर कठोर मौद्रिक नीति की ओर बढ़ चला है। पिछले तीन सालों से नए ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए अपनी विशेष ग्राहक आकर्षण योजनाओं के तहत होम लोन, ऑटो लोन और उपभोग लोन पर आरंभिक वर्षों में रियायती ब्याज दर वसूलने वाले बैंकों ने आगे ऐसी स्कीमों जारी न रखने का फैसला किया है। देश के सबसे बड़े निजी बैंक आईसीआईसीआई ने 1 मार्च, 2010 से 8.25 फीसदी की फिक्स्ड ब्याज दर पर मिलने वाली स्पेशल होम लोन योजना को समाप्त कर दिया है और अब यह 8.75 फीसदी से 9.50 फीसदी के फ्लोटिंग रेट पर होम लोन देगा। भारतीय मध्य वर्ग विकासपरक उद्देश्यों के लिए उपलब्ध सुविधाओं और संसाधनों से संतुष्ट नहीं है। सरकार को उसकी आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को समझना चाहिए। केंद्र और राज्यों के वित्त मंत्रियों को अपना-अपना हित साधने वाली उद्योग, कृषि और श्रम संबंधी लॉबियों के साथ-साथ बिना लॉबी वाले उस विशाल मध्य वर्ग पर भी ध्यान देना चाहिए जो देश की अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उसकी नई पीढ़ी को शैक्षणिक राहत देने के लिए उच्च शिक्षा प्रणाली में बड़े सुधार और वित्तीय सहयोग की जरूरत है। शिक्षा की उपलब्धता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए राजनीतिक दखल, जातिवाद और कई दूसरी खामियों को दूर करना होगा। यह समझना जरूरी है कि मध्य वर्ग की मौजूदा शैक्षणिक परेशानियों को कोई विदेशी निवेशक या विदेशी संस्थान सरलता से बदल नहीं सकता। अत: केंद्र सरकार को ही उच्च शिक्षा व्यवस्था में सुधार के अजेंडे को आगे बढ़ाना चाहिए। केंद्रीय वित्त मंत्री को मध्य वर्ग के आयकरदाताओं की बढ़ती निराशा पर भी ध्यान देना चाहिए और उसके लिए आयकर संबंधी राहत की मुठ्ठी खोलनी चाहिए। रेलों में यात्री किराए घटाए जाने चाहिए ताकि यातायात पर मध्य वर्ग के बढ़ते हुए व्यय में कमी आ सके। गरीबी की रेखा के ऊपर (एपीएल) आने वाले परिवारों को भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत रियायती मूल्यों पर खाद्यान्न उपलब्ध होना चाहिए। हम आशा करें कि सरकार जिस तरह से गरीबों और अमीरों को विभिन्न सब्सिडियां और प्रोत्साहन पैकेज दे रही हैं, वैसे ही मध्य वर्ग को भी विभिन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए उपयुक्त सरकारी राहत और सहयोग प्रदान करेगी। ऐसा होने पर मध्य वर्ग हताशा और बेचैनी को दूर कर देश के आथिर्क विकास का और अधिक सहयोगी व सहभागी बनता हुआ दिखाई देगा।

अगर हम कहें कि आईआईएम का स्टूडेंट अपनी करोड़ों की नौकरी छोड़कर सब्जी बेच रहा है तो

आईआईएम में दाखिला लेकर मोटी सैलरी वाली नौकरी पाने की हसरत हर किसी की होती है। लेकिन अगर हम कहें कि आईआईएम का स्टूडेंट अपनी करोड़ों की नौकरी छोड़कर सब्जी बेच रहा है तो ! यकीन नहीं होता, तो आइए आपको मिलाते हैं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमैंट, अहमदाबाद के छात्र कौशलेंद्र से। शहरी और ग्रामीण इलाकों के बीच बढ़ रही विकास की खाई को पाटने के लिए कौशलेंद्र ने मोटी सैलरी वाली नौकरी छोड़कर एक अनोखी पहल की है। वह बिहार के सब्जी उत्पादक किसानों को राजधानी पटना से सीधे जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। कौशलेंद्र की इस पहल से जहां एक ओर सब्जी उगाने वाले किसान बिचौलियों से मुक्त होकर सीधे राजधानी के बाजारों से जुड़ेंगे। वहीं उन्हें अपनी सब्जियों की वाजिब कीमत भी मिल सकेगी। कौशलेंद्र ने कंकडबाग में ठेला लगाकर सब्जी बेचने का काम शुरू भी कर दिया है। पहली नजर में उनक यह ठेला आम लगता है, लेकिन इसकी खासियत यह है कि यह पूरी तरह से एयर कंडीशन है। जिससे गर्मी के इस मौसम में भी अधिक समय तक सब्जियों में ताजगी बनी रहती है। कौशलेंद्र का कहना है कि किसानों की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। पूरे साल मेहनत करने के बावजूद उन्हें बड़ी मुश्किल से तीनों वक्त अनाज मिल पाता है। वह कहते हैं किसानों को उनकी पैदावार की उचित कीमत दिलाना समय की मांग है। किसानों को सीधे बाजार से जोड़े जाने की जरूरत है।

Sunday, April 25, 2010

सितारों ने अपनी चमक से आईपीएल ग्रेंड फिनाले को एक यादगार शाम में बदल दिया।

तमाम विवादों के बीच आईपीएल-3 के रोमांच की अंतिम निशा यानी फाइनल मैच का मुम्बईकरों को बेसब्री से इंतजार था और हो भी क्यों नहीं, इस बार का फाइनल आमची मुम्बई जो खेल रही थी। यूं तो, रविवार का दिन वैसे भी छुट्टी का होता है, पर सामान्यतया इस दिन मुम्बईकर या तो आराम करते हैं या फिर मौज-मस्ती। लेकिन, यह संडे कुछ खास रहा, जब लोगों ने अपने तय कार्यक्रम छोड़ आईपीएल-3 के फाइनल पर नजरें गड़ाए रखीं। क्रिकेट के इस महापर्व की तैयारियां दिन से ही नजर आने लगीं, जब जगह-जगह उत्साही युवा मुम्बई इंडियंस की ड्रेस पहने नवी मुम्बई का रुख करते दिखे। जो लोग घरों में थे, वो अपने दैनिक काम जल्दी निपटाकर सात बजे से ही टीवी सेट से चिपक गए और जो रास्ते में थे, वो मोबाइल से अपडेट होते नजर आए। लोकल ट्रेनों में आम संडे से कम भीड़ रही, तो सड़कों पर ट्रैफिक क्लियर था। जिसे देखो, बस आईपीएल की चर्चा करते दिखा, मैच शुरू होने तक मुम्बईकरों में असमंजस रहा कि उनका प्रिय सितारा सचिन फाइनल खेल रहा है या नहीं! फिर, सचिन के मैच खेलने की घोषणा के साथ ऐसे खुश हुए मानो, सबकुछ मिल गया। समापन समारोह में बॉलीवुड सितारों ने अपनी चमक से आईपीएल ग्रेंड फिनाले को एक यादगार शाम में बदल दिया। इन सभी घटनाओं का गवाह बना नवी मुंबई के डी. वाई. पाटील स्टेडियम।

Thursday, April 15, 2010

शशि थरूर से कहा है कि वह इस मुद्दे पर अपनी स्थिति साफ करें।

केन्द्रीय राज्यमंत्री शशि थरूर पर आईपीएल विवाद काफी भारी पड़ रहा है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने आज शशि थरूर से कहा है कि वह इस मुद्दे पर अपनी स्थिति साफ करें। आईपीएल मुद्दे पर वह संसद पर बयान दें। सूत्रों के अनुसार शशि थरूर पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री के देश लौटने के बाद किया जाएगा। अपडेट 11:00 am संसद में थरूर मामले में हंगामा। थरूर संसद में देंगे आईपीएल विवाद पर बयान। इससे पहले विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर ने बुधवार को कहा कि आईपीएल कोच्चि फ्रैंचाइजी में उनकी कथित भागीदारी को लेकर पैदा हुए विवाद पर वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से बातचीत करेंगे। थरूर ने कहा, 'जो कुछ घटा है, उस बारे में मैं उनसे बातचीत करना चाहूंगा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हमारी पार्टी की नेता हैं और मैं उनके समक्ष भी अपनी बात रखूंगा।' थरूर उस समय से विवादों में आ गए, जब इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) कमिश्नर ललित मोदी ने दावा किया कि थरूर की करीबी मित्र सुनंदा पुष्कर की उस कंपनी में हिस्सेदारी है, जो उस कंसोर्टियम का हिस्सा है, जिसके पास आईपीएल कोच्चि की फ्रैंचाइजी है। मोदी ने यह भी आरोप लगाया है कि थरूर ने उनसे कहा था कि वह उस कंपनी के मालिकाना हक का खुलासा न करें, जिसने फ्रैंचाइजी हासिल की है।

Tuesday, April 13, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के प्रोजेक्ट अब पब्लिक की जेब पर भारी

कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 के प्रोजेक्ट अब पब्लिक की जेब पर भारी पड़ रहे हैं। लगभग सभी प्रोजेक्ट की लागत 100 फीसदी बढ़ चुकी है। सभी प्रोजेक्टों के लिए जहां पहले 1000 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान था, वहां अब उनकी लागत बढ़कर 2460 करोड़ पहुंच गई है। तमाम प्रोजेक्टों के लेट होने की वजह से अधिकारी तमाम आरोपों का सामना कर रहे हैं लेकिन प्रोजेक्टों की लागत बढ़ने का मामला उससे भी ज्यादा गंभीर है। ऐक्टिविस्ट एस. सी. अग्रवाल की एक आरटीआई के जवाब में सीपीडब्ल्यूडी ने यह स्वीकार किया है कि जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में निर्माण और अपग्रेडेशन की लागत लगभग दोगुनी हो गई है। पहले जहां इसकी अनुमानित लागत 455 करोड़ रखी गई थी, वह अब बढ़कर 961 करोड़ पहुंच गई है। शहर के कुछ अन्य स्टेडियमों में भी निर्माण लागत बेतहाशा बढ़ गई। उदाहरण के लिए कर्णी शूटिंग रेंज की लागत 16 करोड़ से 149 करोड़ जा पहुंची है। इसी तरह इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम की अनुमानित लागत 271 करोड़ से 669 करोड़ तक जा पहुंची जबकि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्विमिंग पूल की लागत 145 करोड़ से 377 करोड़ रुपये हो गई है। मेजर ध्यानचंद नैशनल स्टेडियम, जिसका खेल मंत्री ने पिछले महीने उद्घाटन किया था, पर लागत 262 करोड़ बैठी जबकि पहले इस पर 113 करोड़ खर्च होने का अनुमान था। इसमें 42 करोड़ की लागत सिर्फ कंसलटेंसी के नाम पर बैठी, जिसकी मद पहले से तय ही नहीं थी। सीपीडब्ल्यूडी का कहना है कि लागत बढ़ने की कई सारी वजहें हैं। कई मामले में तो कुछ चीजें बाद में जोड़ी गईं, कुछ वेन्यू बदल गए, निर्माण सामग्री महंगी हो गई, सर्विस टैक्स और क्वॉलिटी बढ़िया करने की वजह से भी लागत बढ़ी।

Wednesday, April 7, 2010

एक बढ़िया फसल देश में महंगाई पर अंकुश लगा सकती है

देश में खाने-पीने की चीजों की महंगाई से आम जनता काफी परेशान है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक खाद्य पदार्थों की महंगाई का सूचकांक 16.35 प्रतिशत पर है। सरकार कह रही है कि इस महंगाई में जल्द ही कमी आ सकती है, क्योंकि रबी की बढ़िया फसल की उम्मीद है। पर सवाल यह है कि क्या एक बढ़िया फसल देश में महंगाई पर अंकुश लगा सकती है? खाद्य पदार्थों की महंगाई का कोई एक कारक नहीं है। भारत में इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। जैसे इसका सबसे बड़ा कारण खाद्यान्न के मामले में देश में प्रति हेक्टेयर कम उत्पादन होना है। देश में 14.6 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है जिससे 10.8 करोड़ टन अनाज का औसत उत्पादन होता है। हमारी तुलना में चीन में मात्र 10 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है, पर वहां 40 करोड़ टन का औसत उत्पादन होता है। भारत में अनाज उत्पादन कम होने की सबसे अहम वजह मॉनसून की अनिश्चितता है। पिछले साल देश में सूखे की स्थितियां थीं। इस कारण 2008-09 के खाद्यान्न उत्पादन में 1.8 करोड़ टन की कमी आ गई। अनाज उत्पादन कम होने से जमाखोरी और कालाबाजारी भी बढ़ गई और इसके फलस्वरूप मुदास्फीति में भी तेज इजाफा हुआ। साफ है कि देश में कृषि भूमि में और विस्तार नहीं किया जा सकता। ऐसे में बढ़ती मांग से मुकाबला करने का एक ही उपाय है उत्पादकता बढ़ाना। उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि में सार्थक निवेश की आवश्यकता है। वॉशिंगटन स्थित अंतरराष्ट्रीय कृषि नीति अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर एक भारतीय की औसत वाषिर्क आय 3.7 प्रतिशत की दर से बढ़ती है तो 2020 तक देश में 3.6 से 6.4 करोड़ टन अनाज की कमी हो सकती है। खाद्यान्न की बढ़ती मांग की पूतिर् के लिए देश में 2010 तक चावल के उत्पादन में 32 प्रतिशत, फलों में 72 प्रतिशत और सब्जियों में 53 प्रतिशत वृद्धि करने की आवश्यकता है। वर्ष 2020 तक इसमें दो गुना बढ़ोतरी की जरूरत होगी। यह भी ध्यान में रखने वाली बात है कि बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ लोगों की खानपान की आदतें भी बदल रही हैं। आज गरीब तबके के लोग उपभोग अधिक कर पा रहे हैं, क्योंकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के जरिए उन्हें नियमित मजदूरी मिल रही है। मध्यमवर्ग के लोगों में दूध, अंडा, मांस, फल और सब्जियों का उपभोग बढ़ रहा है जिससे परोक्ष रूप से खाद्यान्न उत्पादन पर दबाव बढ़ता ही जा रहा है। उत्पादकता में कमी की एक वजह मॉनसून की अनिश्चितता तो है, पर भारतीय कृषि को अब जलवायु परिवर्तन यानी ग्लोबल वॉमिंर्ग के खतरे का सामना करना पड़ रहा है। जैसे-जैसे औसत तापमान में वृद्धि होती है, सूखे और बाढ़ जैसी आपदाएं नियमित रूप से आने लगती हैं। ऐसे में कृषि उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। देश में कभी हरित क्रांति से खाद्यान्न क्षेत्र में काफी क्रांतिकारी बदलाव आए थे। आज उसी तरह की एक और हरित क्रांति की जरूरत है जिसमें गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, दलहनी फसलों, तिलहनों की ऐसी प्रजातियां विकसित की जाएं जिन्हें सूखे इलाकों में कम पानी और कम खाद देने पर भी उगाया जा सके। बायो टेक्नॉलजी और मालेक्युलर बायॉलजी में इतना आगे बढ़े चुके देश में ऐसी प्रजातियां विकसित करना कोई मुश्किल काम नहीं है। ऐसी प्रजातियों के विकास से उत्पादन लागत में कमी आएगी तो उत्पादकता अपने आप बढ़ जाएगी। मौजूदा खाद्यान्न संकट का एक हल प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने बीटी कॉटन का उदाहरण देते हुए जीएम फसलों के रूप में भी सुझाया है। परिषद ने इस बात पर बल दिया है कि सरकार को ऐसी फसलों के लिए एक स्पष्ट नीति तैयार करनी चाहिए। संबंधित संस्थाओं को इन फसलों की परीक्षा खेतों में जाकर करनी चाहिए। साथ ही वातावरण पर इनके प्रभाव और खाद्य सुरक्षा जैसे पहलुओं को जल्द से जल्द सार्वजनिक करना चाहिए। खेतों से मंडी और वहां से उपभोक्ता तक पहुंचने के दौरान खाद्यान्नों और खाद्य पदाथोंर् का काफी नुकसान होता है। एक आकलन के अनुसार इस तरह लगभग 30 प्रतिशत खाद्यान्न बर्बाद हो जाते हैं। इसकी वजह है देश में भंडारण, परिवहन, कोल्ड चेन जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध न होना। यह बर्बादी भंडारण और सप्लाई चेन में सबसे अधिक है। इस संबंध में कृषि में निवेश एक बड़ा मसला है। हाल में, प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद ने सुझाव दिया है कि उत्पादकता की चुनौतियों का सामना करने के लिए कृषि अनुसंधान और विकास पर व्यय को बढ़ाना पड़ेगा। परिषद के सुझाव के अनुसार वर्तमान में इसे जीडीपी के 0.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 1 प्रतिशत करना होगा। पर यहां यह भी ध्यान में रखना होगा कि कृषि में निवेश का मामला अकेले केंद्र अथवा राज्य सरकारों के बूते की बात नहीं है। इसमें निजी और विदेशी, दोनों क्षेत्रों की भागीदारी भी जरूरी है। दुनिया के कई मुल्कों में कृषि बाजारों में ठेके पर खेती जैसे उदारीकरण के मॉडल अपनाए गए हैं, जिसमें निजी और सहकारी क्षेत्र बराबर शामिल हैं। ऐसी ही नीति बनाकर ही भारत में खाद्यान्न उत्पादन, प्रसंस्करण, रिटेल चेन और उपभोक्ताओं के बीच एक मजबूत कड़ी बनानी होगी। पर इस तथ्य की अनदेखी नहीं हो सकती कि खेती के व्यवसाय में घटते माजिर्न, सूखा और बाढ़ का प्रकोप, कृषि उत्पादों के शीघ्र खराब होने की प्रवृत्ति से खेती के लिए पूंजी जुटाने की किसानों की क्षमता में कमी आई है। आज कुछ लोग रिटेल क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का विरोध कर रहे हैं, पर उनकी आंखें खाद्य पदाथोंर् की बढ़ती मुदास्फीति से खुल जानी चाहिए। पोस्ट हार्वेस्ट फार्मिंग को प्राथमिकता क्षेत्र घोषित किए जाने के बावजूद इसमें अपेक्षित पूंजी का निवेश नहीं हुआ। इसलिए कृषि को संकट से उबारने के लिए एक तरफ तो निजी क्षेत्रों को निवेश के लिए बढ़ावा देना होगा तो दूसरी ओर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश लाना होगा। तभी किसानों को खुशहाल बनाया जा सकता है। इस बारे में अंतरराष्ट्रीय रिटेल चेन वालमार्ट के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि अगर किसानों के साथ फसल बेचने पर मिलने वाले मूल्य के बारे में पहले से करार हो, तो इससे किसानों की खेती में दिलचस्पी बढ़ती है और वे उसमें निवेश बढ़ाने को प्रेरित होते हैं। ऐसे उपायों से देश खाद्यान्न उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकता है।

Tuesday, April 6, 2010

आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का काफी नुकसान पहुंचाया :वीएचपी

वीएचपी ने मंगलवार को कहा कि अगर बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 1989 में रथयात्रा नहीं निकाली होती तो अब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका होता। वीएचपी ने कहा है कि आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का काफी नुकसान पहुंचाया है। वीएचपी प्रमुख अशोक सिंघल ने हरिद्वार में कहा कि आडवाणी ने उस समय रथयात्रा निकाल कर एक गलत कदम उठाया था। यह रथयात्रा उन्होंने वोट बैंक की खातिर निकाली थी। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने केंद्र की तत्कालीन वी.पी.सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने का रास्ता तैयार करने के मकसद से रथयात्रा निकाली थी। सिंघल ने कहा कि आडवाणी अगर उस समय रथयात्रा नहीं निकालते तो सभी राजनीतिक दलों को बातचीत के जरिए इस मुद्दे पर मनाया जा सकता था। ऐसी स्थिति में अभी तक राम मंदिर का निर्माण हो गया होता। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिमों से सहयोग लेने के सुझाव के बारे में उन्होंने कहा, 'बीजेपी का इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है। बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी राजनीति नहीं करे। राम मंदिर आंदोलन साधु-संतों ने चलाया है और वही इस मामले में फैसला करेंगे।'

आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का काफी नुकसान पहुंचाया :वीएचपी

वीएचपी ने मंगलवार को कहा कि अगर बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 1989 में रथयात्रा नहीं निकाली होती तो अब तक अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो चुका होता। वीएचपी ने कहा है कि आडवाणी ने राम मंदिर आंदोलन का काफी नुकसान पहुंचाया है। वीएचपी प्रमुख अशोक सिंघल ने हरिद्वार में कहा कि आडवाणी ने उस समय रथयात्रा निकाल कर एक गलत कदम उठाया था। यह रथयात्रा उन्होंने वोट बैंक की खातिर निकाली थी। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने केंद्र की तत्कालीन वी.पी.सिंह सरकार से समर्थन वापस लेने का रास्ता तैयार करने के मकसद से रथयात्रा निकाली थी। सिंघल ने कहा कि आडवाणी अगर उस समय रथयात्रा नहीं निकालते तो सभी राजनीतिक दलों को बातचीत के जरिए इस मुद्दे पर मनाया जा सकता था। ऐसी स्थिति में अभी तक राम मंदिर का निर्माण हो गया होता। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिमों से सहयोग लेने के सुझाव के बारे में उन्होंने कहा, 'बीजेपी का इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है। बीजेपी राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी राजनीति नहीं करे। राम मंदिर आंदोलन साधु-संतों ने चलाया है और वही इस मामले में फैसला करेंगे।'