Monday, August 30, 2010

मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर महंगाई का विरोध करते हुए छात्रों ने अंडे और टमाटर फेंके।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया पर महंगाई का विरोध करते हुए छात्रों ने अंडे और टमाटर फेंके। हालांकि, मोंटेक सिंह को अंडे और टमाटर नहीं लगे। मोंटेक सिंह प्रेज़िडेंसी कॉलेज में इकनॉमिक्स पर राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने आए थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जब वह कॉलेज में प्रवेश कर रहे थे, तभी सीपीएम समर्थित छात्र संगठन एसएफआई के छात्रों ने वापस जाओ के नारे लगाते हुए उन्हें काले झंडे दिखाए। उसके बाद छात्रों ने उन पर अंडे और टमाटर फेंकने शुरू कर दिए। हालांकि, ये अंडे और टमाटर उन तक नहीं पहुंच पाए। एसएफआई के सूत्रों ने इस बात का खंडन किया है कि अहलूवालिया पर अंडे और टमाटर फेंके गए। उन्होंने कहा कि महंगाई और हायर एजुकेशन पर तापस मजूमदार रिपोर्ट को लागू करने में केन्द्र सरकार की असफलता को लेकर प्रदर्शन जरूर किया गया था।

Wednesday, August 25, 2010

भारी बारिश से मध्य दिल्ली के कई इलाकों में जल जमाव


दिल्ली में बुधवार सुबह हुई तेज वर्षा से कई स्थानों पर पानी भरने के साथ ही सड़क जाम की समस्या फिर सामने आ गई। इससे अपने दफ्तर जाने के लिए निकले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भारी बारिश से मध्य दिल्ली के कई इलाकों में जल जमाव हो गया है। कुछ स्थानों पर तो दो फीट तक पानी जमा हो गया। इसके कारण आश्रम, बाहरी रिंग रोड, धौलाकुआं, प्रगति मैदान, राजघाट, डीएनडी, अजमेरी गेट जैसे स्थानों पर भारी जाम लग गया है। उधर यमुना नदी खतरे के निशान से करीब एक फीट ऊपर बह रही है। बाढ़ के खतरे को देखते हुए यमुना में गिरने वाले शहर के सभी नालों को बंद कर दिया गया है।

Monday, August 16, 2010

तिरंगा फहराने के नियम-कायदे

रखरखाव के नियम - आजादी से ठीक पहले 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया। तिरंगे के निर्माण, उसके साइज और रंग आदि तय हैं। - फ्लैग कोड ऑफ इंडिया के तहत झंडे को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाएगा। - उसे कभी पानी में नहीं डुबोया जाएगा और किसी भी तरह नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। यह नियम भारतीय संविधान के लिए भी लागू होता है। - कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी ने बताया कि प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-2 के मुताबिक, फ्लैग और संविधान की इन्सल्ट करनेवालों के खिलाफ सख्त कानून हैं। - अगर कोई शख्स झंडे को किसी के आगे झुका देता हो, उसे कपड़ा बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद हुए आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे की इन्सल्ट माना जाएगा। - तिरंगे की यूनिफॉर्म बनाकर पहन लेना भी गलत है। - अगर कोई शख्स कमर के नीचे तिरंगा बनाकर कोई कपड़ा पहनता हो तो यह भी तिरंगे का अपमान है। - तिरंगे को अंडरगार्मेंट्स, रुमाल या कुशन आदि बनाकर भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। फहराने के नियम - सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही तिरंगा फहराया जा सकता है। - फ्लैग कोड में आम नागरिकों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने की छूट थी लेकिन 26 जनवरी 2002 को सरकार ने इंडियन फ्लैग कोड में संशोधन किया और कहा कि कोई भी नागरिक किसी भी दिन झंडा फहरा सकता है, लेकिन वह फ्लैग कोड का पालन करेगा। - 2001 में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नागरिकों को आम दिनों में भी झंडा फहराने का अधिकार मिलना चाहिए। कोर्ट ने नवीन के पक्ष में ऑर्डर दिया और सरकार से कहा कि वह इस मामले को देखे। केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2002 को झंडा फहराने के नियमों में बदलाव किया और इस तरह हर नागरिक को किसी भी दिन झंडा फहराने की इजाजत मिल गई। राष्ट्रगान के भी हैं नियम - राष्ट्रगान को तोड़-मरोड़कर नहीं गाया जा सकता। - अगर कोई शख्स राष्ट्रगान गाने से रोके या किसी ग्रुप को राष्ट्रगान गाने के दौरान डिस्टर्ब करे तो उसके खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 की धारा-3 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। - ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर अधिकतम तीन साल की कैद का प्रावधान है। - प्रिवेंशन ऑफ इन्सल्ट टु नैशनल ऑनर ऐक्ट-1971 का दोबारा उल्लंघन करने का अगर कोई दोषी पाया जाए तो उसे कम-से-कम एक साल कैद की सजा का प्रावधान है।

Saturday, August 14, 2010

स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान एक पुलिस सब इंस्पेक्टर ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर जूता फेंका।

श्रीनगर में स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान एक पुलिस सब इंस्पेक्टर ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर जूता फेंका। इस घटना के तुरंत बाद उसको गिरफ्तार कर लिया गया। जम्मू-कश्मीर में सीएम उमर अब्दुल्ला जब स्वतंत्रता दिवस समारोह में राज्य की जनता को संबोधित कर रहे थे तभी एक पुलिस सब इंस्पेक्टर ने उन जूता फेंका। बाद में सुरक्षाबलों ने उस सब इंस्पेक्टर को गिरफ्तार कर लिया और उससे पूछताछ कर रहे हैं। इस घटना के बाबत सीएम उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि विरोध जताने का यह सही तरीका नहीं है।

Thursday, August 12, 2010

पंडित नेहरू और लेडी एडविना माउंटबेटन के बीच कथित प्रेम प्रसंग ही देश के विभाजन की वजह बना था।

शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना में आजादी के समय देश के विभाजन के पीछे एक नई ही थिअरी पेश की है। इस वयोवृद्ध नेता का कहना है कि पंडित नेहरू और लेडी एडविना माउंटबेटन के बीच कथित प्रेम प्रसंग ही देश के विभाजन की वजह बना था। ठाकरे के मुताबिक, लॉर्ड माउंटबेटन ने इसी दीवानगी का फायदा उठाया और देश के साथ धोखा हो गया। पाकिस्तान से भारत को खतरे की बाबत पूछे एक सवाल में ठाकरे ने कहा कि मेरे पास एक फिल्म है जिसमें नेहरू-एडविना प्रसंग और पाकिस्तान के निर्माण को फिल्माया गया है। इस फिल्म को इंग्लैंड में बैन कर दिया गया था, क्योंकि इससे देश की बदनामी का डर था। देशभक्ति इसे कहा जाता है। ठाकरे ने अपने भतीजे राज ठाकरे का नाम लिए बिना सामना में लिखा है कि अब कुछ लोग मेरे स्टाइल की नकल कर रहे हैं। उनका दावा है कि वे मराठियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ध्यान हो कि राज की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना भी मराठियों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है। शिवसेना प्रमुख ने अपराधियों को टिकिट देने, मतदाताओं को धन या शराब बांटने पर भी ऐतराज जताया। उन्होंने दावा किया कि मैंने पूर्व में शिवसेना सांसद और अब कांग्रेस में शामिल हो चुके संजय निरुपम को मतदाताओं को शराब देकर लुभाने पर फटकार लगाई थी।

Friday, August 6, 2010

अगले जन्म में शांति एवं सुकून की जिंदगी पाने की उम्मीद में हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया

हॉलिवुड सुपरस्टार जूलिया रॉबर्ट्स ने अगले जन्म में शांति एवं सुकून की जिंदगी पाने की उम्मीद में हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया है। बैप्टिस्ट और कैथोलिक माता-पिता से जन्मीं जूलिया (42) अपनी फिल्म 'ईट प्रे लव' की शूटिंग के लिए भारत आई थीं और तब से वह हिन्दू बन गई हैं। एले मैगजीन में अकादमी पुरस्कार विजेता जूलिया ने कहा कि अब वह अपने कैमरामैन पति डेनियल मोडर और तीन बच्चों हैजल फिनायस और हेनरी के साथ भजन-कीर्तन तथा प्रार्थना करने के लिए मंदिरों में जाती हैं।
जूलिया ने कहा, ' मैं निश्चित तौर पर हिन्दू बन गई हूं। इस जीवन में मेरे दोस्तों और परिवार ने मुझे जरूरत से ज्यादा बिगाड़ दिया। अगले जन्म में मैं शांति से रहना चाहती हूं।' भारत में शूटिंग के दौरान जूलिया को हिंदू धर्म को करीब से जानने का मौका मिला था। एलिजाबेथ गिलबर्ट की बेस्ट सेलर किताब पर आधारित इस फिल्म में जूलिया ने एक ऐसी तलाकशुदा महिला की भूमिका निभाई है, जो खुद की खोज में दुनियाभर में घूमती है। यह महिला भोजन के लिए इटली और आध्यात्मिकता के लिए भारत तथा बाली जाती है जहां उसे प्यार मिलता है।

30 करोड़ के गमले...135 करोड़ के पौधे... कुछ की कीमत 2700 रुपये

30 करोड़ के गमले...135 करोड़ के पौधे... कुछ की कीमत 2700 रुपये तक... । बात कॉमनवेल्थ गेम् की ही हो रही है। कॉमनवेल्थ गेम्स में फिजूलखर्जी का एक और उदाहरण सामने आया है। स्टेडियम की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर दिल्ली सरकार ने जिन महंगे गमलों और पौधों पर करोड़ों रुपये फूंक डाले, उन्हें दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा कारणों से स्टेडियम के पास रखने तक से मना कर दिया है। कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए दिल्ली सरकार ने 30 करोड़ रुपये में 43 लाख गमले खरीदे। इसके अलावा 135 करोड़ रुपये के पौधे भी खरीदे गए हैं। इनमें से कुछ की कीमत 2700 रुपये तक है। इन गमलों को स्टेडियम के गेट और उनके पास रखा जाना था। लेकिन पुलिस कमिश्नर ने दिल्ली सरकार को गेम्स वेन्यू के गेट के पास सुरक्षा कारणों से कोई भी गमला न रखने की हिदायत दी है। बता दें कि स्टेडियम के अंदर गमलों को न रखने के बारे में आर्गनाइजिंग कमिटी और दिल्ली पुलिस पहले ही इनकार कर चुकी थी। अब इतनी भारी तादाद में अलग-अलग एजेंसियों से तैयार करवाए गए इन गमलों को गेम्स वेन्यूज़ के नजदीक के फ्लोईओवर्स के नीचे खपाया जा रहा है। गेम्स के लिए ये पौधे विशाखापत्तनम की अर्बन डेवलेपमेंट अथॉरिटी और देहरादून के फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट से खासतौर पर तैयार करवाए गए हैं। दिल्ली पार्क ऐंड गार्डन्स सोसाइटी के सीईओ डीडी सिंह ने कहा कि कुछ पौधे विजाग से आ रहे हैं। ट्रांसपोर्ट के खर्चे के साथ उनकी कीमत 1700 रुपये बैठ रही है। दिल्ली की अलग-अलग एजेंसियां 50 लाख पौधे तैयार कर रही है। इसमें से दिल्ली पार्क सोसाइटी अकेले 8 लाख पौधे विशाखापत्तनम और देहरादून से खरीद रही है। इन सबकी लागत 135 करोड़ रुपये के करीब है ।

Monday, August 2, 2010

रोजमर्रा के कठिन जीवन संघर्ष में जुटे आम लोगों की इस तरह के नाटक या प्रतिनाटक में कोई दिलचस्पी नहीं


महंगाई को लेकर संसद में चल रही बहस एक अंधी गली में फंस गई जान पड़ती है। सरकार इस मुद्दे पर पहले की तरह इस बार भी एक कागजी सफाई देकर अपनी जान छुड़ा लेना चाहती है, जबकि विपक्ष को 10 प्रतिशत से ऊंची महंगाई में फिलहाल सरकार को पानी पिला देने का सुनहरा मौका नजर आ रहा है। उसे लग रहा है कि अगर महंगाई पर वोटिंग हो गई तो तृणमूल कांग्रेस और डीएमके ट्रेजरी बेंच में दिखने के बजाय वोटिंग का बॉयकॉट करना ज्यादा पसंद करेंगी। ऐसे में सरकार या तो गिर जाएगी या घिघियाती हुई नजर आएगी। लेकिन संसद के बाहर रोजमर्रा के कठिन जीवन संघर्ष में जुटे आम लोगों की इस तरह के नाटक या प्रतिनाटक में कोई दिलचस्पी नहीं है। वे अब सरकार से कोई सफाई नहीं कोई दिलासा नहीं, एक साफ ब्लूप्रिंट चाहते हैं कि आने वाले दिनों में वह महंगाई से कैसे निपटने जा रही है। प्रणव मुखर्जी, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और शरद पवार के पास इस बारे में कहने के लिए बहुत सारी बातें हैं, जिन्हें वे पिछले कई महीनों से तोते की तरह रटते आ रहे हैं। मॉनसून आने के साथ ही महंगाई कम हो जाएगी, साल के अंत तक यह आठ प्रतिशत और अगले मार्च तक छह प्रतिशत तक आ जाएगी, वगैरह-वगैरह। लेकिन ऐसे मनोवैज्ञानिक उपायों से न लोगों का आटा-दाल सस्ता होता है, न ही उनके बाकी खर्चे कम होते हैं। सचाई यह है कि असेर् बाद भारत को एक साथ डिमांड-साइड और सप्लाई-साइड, दोनों तरह की मुद्रास्फीतियों का सामना करना पड़ रहा है। रोजमर्रा की जरूरत की चीजें- अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जियां वगैरह- इसलिए महंगी हैं क्योंकि उनकी आपूर्ति कम है, जबकि कारखानों में बनने वाली चीजें, मैन्युफैक्चर्ड सामान इसलिए महंगे हैं क्योंकि देश का खाता-पीता मध्यवर्ग उन्हें महंगे दामों पर भी खरीदने को तैयार है। भारत की अस्सी प्रतिशत या उससे भी ज्यादा आबादी के लिए यह स्थिति भयंकर है, क्योंकि बाजार में हर चीज उसे पिछले साल से पंदह-बीस प्रतिशत महंगी मिल रही है, जबकि उसकी आमदनी बढ़ने की कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं बनी है। विपक्ष इस मुद्दे पर अगर सरकार को घेर लेता है, या यहां तक कि उसे गिरा भी देता है तो इससे किसी को कोई भावनात्मक कष्ट नहीं होगा। लेकिन दुर्भाग्यवश, महंगाई जैसे बुनियादी महत्व के मामलों में इससे किसी को कोई राहत भी नहीं मिलेगी। पिछले कुछ दिनों से लगातार यह देखा जा रहा है कि सरकार जब भी संकट में पड़ती है, उसके तीनों बड़े गैर-कांग्रेस घटकों के मजे हो जाते हैं। आपातकालीन स्थिति में उसे बाहर से समर्थन देने को राजी हुआ कोई दल भी मौके का भरपूर फायदा उठाता है। इससे सरकार तो बची रह जाती है लेकिन सत्तारूढ़ धड़ों के बीच हुई सौदेबाजी की मार अंतत: आम लोगों के ही सिर पड़ती है। ऐसे में अच्छा यही होगा कि विपक्ष कुछ सियासी मोहरे मार लेने के बजाय सरकार को महंगाई पर कोई ठोस बात बोलने के लिए मजबूर करे। इससे लोगों का भला होगा और उनकी नजर में विपक्ष की हैसियत भी ऊंची उठेगी।