Tuesday, March 31, 2009

वरूण को मरवाने की साजिश


वरूण को मरवाने की साजिश, दाऊद इब्राहिम के दाहिने हाथ छोटा शकील का गुर्गा राशिद मालबरी उर्फ डबल इस मिशन पर था।
पीलीभीत में मारने की साजिश थी। दाऊद इब्राहिम के दाहिने हाथ छोटा शकील का गुर्गा राशिद मालबरी उर्फ डबल इस मिशन पर था। उसे वरुण को कोर्ट में सरेंडर करते वक्त मारने की सुपारी दी गई थी। मालबरी को आईबी और कर्नाटक पुलिस के एक साझा ऑपरेशन में 27 मार्च को मेंगलूर में अरेस्ट किया गया। इसके बाद ही इस साजिश का खुलासा हुआ। वह दिल्ली होते हुए पीलीभीत जाने की तैयारी कर रहा था। कैसे हुआ साजिश का खुलासा IB की टीम ने 15 मार्च को राशिद मालबरी की उसकी आकाओं से बातचीत टैप की। इस बातचीत ने पुलिस के होश उड़ा दिए। 21 मार्च तक की बातचीत के आधार पर पुलिस को पता चला कि मालबरी और उसके तीन साथियों को वरुण गांधी को मारने की सुपारी दी गई है। चारों भारत में भी दाखिल हो चुके हैं। बढ़ा दी गई थी वरुण की सिक्यूरिटी आईबी के इस खुलासे के बाद गृह मंत्रालय ने तुरंत वरुण की सिक्यूरिटी बढ़ा दी थी। वरुण जब दिल्ली से पीलीभीत के लिए रवाना हुए तो उनकी सिक्यूरिटी में डीएसपी की अगुआई में दर्जनभर जवान और दो इंस्पेक्टर तैनात थे। कैसे शिकंजे में आया राशिद मालबरी पुलिस ने फोन पर बातचीत के आधार पर इस ऑपरेशन में लगे राशिद के तीन साथियों सयफ , मोहम्मद हाशिम और साहिब इब्राहिम को अरेस्ट किया। इसके बाद पुलिस को राशिद का सुराग मिला। कर्नाटक पुलिस और आईबी की टीम के एक साझा ऑपरेशन में मेंगलूर में उसे अरेस्ट कर लिया गया। उसके कब्जे से दो पिस्तौल , कई क्रेडिट कार्ड्स और 11 मोबाइल फोन बरामद किए गए। राशिद ने पूछताछ में कबूल किया कि उसे वरुण गांधी को मारने की सुपारी दी गई थी। आखिर कैसे घुसा भारत में
इंटेलिजंस के मुताबिक मालबरी भारत में नौ महीने पहले दाखिल हुआ था। वह नेपाल के रास्ते भारत में घुसा। उसका मकसद यूपी में लोकसभा चुनावों में गड़बड़ी फैलाना था। पीलीभीत में वरुण के भड़काऊ भाषण के बाद उसे वरुण की हत्या की सुपारी दी गई। आखिर कौन है राशिद मालबरी मालबरी का नाम पहली बार तब सामने आया था जब उसने सितंबर 2000 में बैंकॉक में छोटा राजन पर हमला कर उसे घायल किया था। इस हमले में छोटा राजन बाल - बाल बचा था। इसके बाद 2004 में उसने राजन के बेहद खास बालू डोकरे को मलेशिया में मार डाला था। मुंबई पुलिस के रेकॉर्ड में उसे पिछले 13 साल से लापता बताया गया है। डी कंपनी के इस 38 साल के गुर्गे के खिलाफ इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया हुआ है।

'ईमानदारी को जिताना है, स्विस बैंकों से पैसा लाना है'।

योग गुरु स्वामी रामदेव ने सरकार से कहा है कि वह असंवैधानिक तरीके से
स्विस बैंकों में जमा काले धन को तुरंत राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर उस धन को भारत में वापस लाए। उन्होंने नारा दिया कि 'ईमानदारी को जिताना है, स्विस बैंकों से पैसा लाना है'। यह कोई चुनावी नहीं, बल्कि देश का मुद्दा है और सारी पार्टियों को इसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहिए। इस धन के देश में आने से एक ही दिन में सारी समस्याएं दूर हो सकती हैं। बीजेपी नेता वरुण गांधी के मामले में उन्होंने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक के लिए राष्ट्र सर्वोपरि होना चाहिए। जो लोग आग भड़काते हैं उन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता, फिर इसमें वरुण हो या अन्य कोई। प्रेस कॉन्फ्रंस के जरिए स्वामी रामदेव ने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक स्विस बैंकों में भारतीयों का 72 लाख 80 हजार करोड़ रुपया जमा है, जिसे कुछ भ्रष्ट और बेईमान राजनेताओं,भ्रष्ट नौकरशाहों और बेईमान व्यापारियों ने जमा करा रखा है। पहली बार अमेरिकी प्रेजिडंट बराक ओबामा के दबाव में स्विट्जरलैंड में ऐसा संभव हुआ है कि यदि कोई देश चाहे तो उसके नागरिकों द्वारा जमा कराए धन की सूचना उपलब्ध करा सकता है। इसलिए अब इस मसले पर कतई देर नहीं करनी चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इसमें पहल करते हुए इस धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर देश में वापस लाने का इंतजाम करना चाहिए। योग गुरु ने कहा कि ताज्जुब की बात है कि इस गंभीर मुद्दे पर एक-दो नेता ही बोले हैं, बाकी मौन हैं। मैं इन राजनेताओं से पूछता हूं कि यदि स्विस बैंकों में जमा धन उनका या उनके पिट्ठुओं का नहीं है तो फिर वह मौन क्यों हैं? अगर इस धन को निष्पक्ष होकर देश के विकास में खर्च किया जाए तो 12,133 करोड़ 33 लाख रुपया प्रति जिला के हिसाब से विकास के लिए उपलब्ध होता है। 6 लाख से अधिक गांवों के विकास के लिए खर्च किया जाए तो प्रति गांव 12 करोड़ 13 लाख रुपया मिलेगा। देश के 84 करोड़ गरीब जिनकी औसत दैनिक आमदनी केवल 20 रुपये है के परिवारों के हिस्से में 3 लाख 64 हजार रुपया प्रति परिवार विकास धन उपलब्ध होगा। उन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों से इस काले धन के बारे में अपनी-अपनी नीति एवं नीयत स्पष्ट करने की भी बात कही। स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान से संबंधित समस्त 21 संगठनों की 616 जिलों में फैली इकाइयों से जुड़े कार्यकर्ताओं और समर्थकों से कहा है कि वह पूरे देश के लाखों गांवों में मतदान से 5 दिन पहले मतदान जागरण रैली निकालें और मतदान के दिन लोगों को घर से बाहर निकालें और उन्हें बताएं कि 'जिस पार्टी की नीयत में खोट, उसे हम नहीं देंगे वोट'। उन्होंने लोगों से 100 फीसदी मतदान करने का आह्वान किया और कहा कि धर्म और मजहब छोड़कर सबको चुनाव लड़ने वाले नेताओं में से उन्हें वोट देना चाहिए, जो कमोबेश अन्य नेताओं से कम भ्रष्ट और अपराधी हैं।

राहुल गांधीआम आदमी के पक्ष में सिर्फ बोलते है, करते कुछ नहीं, इसलिए उनकी सभा से नेता गायब

राहुल गांधीआम आदमी के पक्ष में सिर्फ बोलते है, करते कुछ नहीं, इसलिए उनकी सभा से नेता गायब
Congress general secretary Rahul Gandhi hit the campaign trail in Maharashtra on Tuesday by addressing two public rallies-one in Wardha and another in chief minister Ashok Chavan's home turf Nanded. With the crowd swaying to Jai Ho, the Congress poll anthem, Rahul harped on the party's central theme of "aam aadmi" and asked voters to bring the UPA government back to power so that "the good work for the common man could be continued''. Rahul spoke about controversial issues but did not get into the details. Even his criticism of the BJP-led NDA came in a measured tone. He said the NDA talked about privatisation, stock markets and divisive policies, but never about the common man. They (NDA) raise religious issues or ask why people from Uttar Pradesh come to Mumbai, but do little for the "aam aadmi", he alleged. Giving a certificate of good governance to PM Manmohan Singh, he said several schemes were launched in the last five years keeping the common man in mind. Chavan thanked Rahul for entrusting him with the "difficult job" of leading Maharashtra after the 26/11 terror attacks. He also assured Rahul that the state would provide the maximum number of seats to the UPA. Former home minister Shivraj Patil and MPCC chief Manikrao Thakre were the other speakers, but ex-CM Vilasrao Deshmukh was absent

अब तो विरोधी भी मानते है , वरूण पर रासुका लगाना अनुचित

supporter from the rival camp. Veteran Congress leader from city, Satya
Prakash Malviya has lambasted the Mayawati government for invoking the National Security Act (NSA) against Gandhi scion. Talking to our correspondant, the septuagenarian leader said the issue reminds him of gross misuse of Maintenance of Internal Security Act (MISA) during the emergency period against political opponents. Malviya, however, agreed that whatever Varun spoke was anti-national but added there was no need to invoke NSA against him without a fair trial. He said that when veteran Kashmiri leader Sheikh Abdullah was detained under the Preventive Detention Act (PDA), the great socialist leader Ram Manohar Lohia had vehemently opposed the same and exhorted the countrymen to observe "Sher-e-Kashmiri Diwas" in protest against the illegal detention. When Malviya's attention was drawn towards the fact that his statements may send wrong signals in his own party, the veteran leader said that his party spokesperson had publicly admitted that invoking the NSA was the sole prerogative of the state government but the Congress party condemns the alleged remarks of Varun. He exuded confidence that his comments on the issue would not create any misunderstanding in his party and clarified that he has no intention to offend the party high command by issuing such statements. Meanwhile, at a meeting of newly founded Varun Gandhi Fans Association held under the presidentship of Ratan Khare the speakers described the young leader as the future of the country

Wednesday, March 25, 2009

शैक्षणिक व परीक्षा सुधारों पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) चाहता है कि देश भर की यूनिवर्सिटीज़ में विदेशी कॉलिजों की तरह ग्रेडिंग और सेमेस्टर सिस्टम लागू हो। यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज़ के वाइस चांसलर को पत्र लिखकर इसे लागू करने को कहा है। यूनिवर्सिटीज को दोनों सिस्टम पूरी तरह से लागू करने के लिए दो साल तक का समय दिया गया है, क्योंकि इसके लिए पूरे सिलेबस को रिवाइज करना पड़ता है और उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ती है। यूजीसी चेअरमन प्रफेसर सुखदेव थोराट ने बताया कि शैक्षणिक व परीक्षा सुधारों पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है और हायर एजुकेशन को ज्यादा असरदार बनाने के लिए इस तरह के सुधार जरूरी हैं। थोराट के मुताबिक मार्क्स और डिविजन से कहीं बेहतर है ग्रेडिंग सिस्टम। खास बात यह है कि जो यूनिवर्सिटीज यूजीसी के इन शैक्षणिक सुधारों को लागू नहीं करेंगी, उनको काफी घाटा उठाना पड़ सकता है। हालांकि प्रो. थोराट ने साफ तौर पर तो नहीं कहा, लेकिन यह संकेत जरूर दिए कि ऐसी यूनिवर्सिटीज को दिए जाने वाले ग्रांट में कमी का फैसला भी लिया जा सकता है। यूजीसी चेअरमन ने सभी यूनिवर्सिटीज के वाइस चांसलर को लिखे पत्र में कहा है कि यूनिवर्सिटीज को यूनिफॉर्म ऐकडेमिक कैलिंडर का पालन करना चाहिए और ग्रेड पॉइंट स्कोर सिस्टम लागू करना मार्क्स और डिविजन देने से बेहतर है। लेकिन पत्र में एक और महत्वपूर्ण बात इंटरनल इवैल्युएशन को लेकर है। यूजीसी चाहती है कि इंटरनल इवैल्युएशन की वैल्यू 25 फीसदी से बढ़ाकर 50 तक कर दिया जाए। यूजीसी के अनुसार क्लासरूम टीचिंग को अधिक महत्व मिलना चाहिए और इंटरनल असेसमंट को बढ़ावा इसी दिशा में उठाया गया कदम है। हालांकि डीयू में सेमेस्टर सिस्टम को लेकर काफी बवाल मचा हुआ है लेकिन वाइस चांसलर इसे हर हाल में लागू करना चाहते हैं। यूजीसी और यूनिवर्सिटीज के अधिकारियों का मानना है कि सेमेस्टर से छात्रों पर परीक्षा का तनाव कम होगा, क्योंकि उन्हें एकसाथ पूरे कोर्स की तैयारी नहीं करनी पड़ेगी। साथ ही टीचर्स को भी सेमेस्टर के हिसाब से कोर्स पूरा करवाना होगा, क्लासेज पूरी व्यवस्था के अनुसार ही होंगी। पीजी लेवल पर तो इस सेशन में सेमेस्टर लागू हो जाएगा लेकिन अंडर ग्रैजुएशन लेवल पर इसे लागू करना डीयू के लिए बड़ी चुनौती है। डीयू के डीन ऑफ एग्जामिनेशन प्रफसर एम. एल. सिंघला ने बताया कि पीजी लेवल पर कोर्सेज को नया रूप दिया जा रहा है और इन कोर्सेज में सेमेस्टर और ग्रेडिंग पहले लागू की जाएगी। उन्होंने बताया कि डीयू ने पीजी लेवल पर इंटरनल असेसमंट के लिए दो पॉइंट तय कर दिए हैं। या तो फैकल्टी 70-30 का रेश्यो अपनाए या फिर 50-50 का यानी 70 की लिखित परीक्षा और 30 का इंटरनल असेसमंट।

भारत के लोग नैनो के लिए कहना चाहेंगे - आई एम लविंग इट।

प्रैक्टिकल और आरामदेह कार है। यह हमने जाना पूरे एक दिन तक इसकी टेस्ट ड्राइव के जरिए। जिग वील्स के ऑटो एक्सपर्ट ने मुम्बई की भीड़ भरी सड़कों , खुले हाइवे और वेस्टर्न घाट की चढ़ाई पर नैनो में लंबा सफर तय किया। यहां पेश है उस अनुभव की रिपोर्ट - नैनो के आलोचक और कॉम्पिटीटर के लिए यह निराश होने का वक्त है। टाटा की छोटी कार आ चुकी है और वह उससे ज्यादा है , जिसकी उम्मीद उसके चाहने वाले कर रहे थे। सबसे पहले डिजाइन की बात करें। नैनो बेमिसाल है। इसका डिजाइन फ्रेश और स्लीक है। ऑटो इंडस्ट्री की कल्पना के उलट इसकी ओवरऑल पैकिजिंग ऐसी है कि मशीनरी ने कम से कम जगह घेरी है। करीब 80 पर्सेन्ट स्पेस बैठने के लिए छोड़ दिया गया है। भीतर से भी कार खुली - खुली है। ड्राइविंग सीट से अच्छा व्यू दिखता है। अच्छी कद - काठी के चार लोग आराम से बैठ सकते हैं। अगर ड्राइवर सीट पीछे करे तो भी छह फुट के पैसिंजर को परेशानी नहीं होगी। कार में घुसने के लिए आपको बदन सिकोड़ने की जरूरत नहीं है। अलबत्ता सामान के स्पेस की दिक्कत हो सकती है। सिर्फ आगे बूट में एक सूटकेस आ सकता है। अगर सामान ज्यादा है , तो पिछली सीट फोल्ड करनी होगी। परफॉर्मन्स एंजिन स्टार्ट करते ही आपको नई आवाज सुनाई देगी। इसमें इटैलियन स्कूटर की फट - फट भी मिली है , लेकिन इतनी नहीं कि खटकने लगे। 624 सीसी का एंजिन एक सिटी वीइकल के हिसाब से पर्याप्त है। फोर स्पीड गीयर बॉक्स आसान और सुविधाजनक है। टाटा मोटर्स का कहना है कि नैनो 25 किलोमीटर तक की माइलेज़ दे सकती है , लेकिन अगर यह 20-21 भी दे , तो काफी होगा। पेट्रॉल टैंक 15 लीटर का है , जो छोटा लग सकता है , लेकिन इससे 300 किलोमीटर की दूरी तो तय की ही जा सकती है , जो सिटी वीइकल के लिहाज से बुरी नहीं है। नैनो सुस्त कार नहीं है , लेकिन इसे रॉकिट समझने की गलती भी मत कीजिए। भारत की सड़कों पर औसत रफ्तार वैसे भी कम ही रहती है। टाटा मोटर का दावा है कि यह आठ सेकंड में जीरो से 60 की स्पीड पकड़ सकती है। हमने इसे 9.97 सेकंड पाया। 80 की स्पीड तक नैनो का रेस्पॉन्स मारुति 800 से बेहतर लगा। मैक्सिमम स्पीड 105 की है। उतराई में आप बहक जाएं और कार खतरनाक तरीके से भाग रही हो तो स्पार्क और पेट्रॉल को रोककर मामला शांत करने का इलेक्ट्रॉनिक इंतजाम भी है। हमने इसे आजमाकर देखा। तीखे कर्व पर स्पीड से घूमने पर नैनो रोल करती है। लेकिन यह अनुभव उतना दिल दहला देने वाला नहीं है , जितना कुछ दूसरी कारों में होता है। नैनो का महंगा वर्जन बेहर के एसी से लैस है। 38 डिग्री के तापमान पर यह अच्छा काम कर रहा था। हमें यह बात पसंद नहीं आई कि लेफ्ट हैंड पर रीयर व्यू मिरर नहीं है। उसके लिए गुंजाइश भी नहीं छोड़ी गई है। अलबत्ता सीटें आरामदेह हैं। 12 इंच के व्हील एक पैसिंजर कार के लिए काफी हैं। ग्राउंड क्लियरेंस 180 एमएम का है , यानी नैनो उन जगहों तक भी जा सकती है , जहां इसकी कई बड़ी बहनें हार मान जाएंगी। टर्निन्ग सर्कल का डायामीटर आठ मीटर का है , यानी बेहतरीन। छोटी साइज की वजह से पार्किन्ग करना आसान है। मैकडॉनल्ड का नारा उधार लें , तो भारत के लोग नैनो के लिए कहना चाहेंगे - आई एम लविंग इट।

बहन प्रिया दत्त बुलाएगी और भाई संजय दत्त दौड़ा चला आएगा

बहन प्रिया दत्त बुलाएगी और भाई संजय दत्त दौड़ा चला आएगा, कम से कम छोटी बहन तो राखी के कच्चे धागों से जुड़ने वाले बंधन से यही उम्मीद लगाए बैठी है। मुन्नाभाई की शादी और उसके बाद एसपी से लड़ने की उनकी मंशा पर हुई राजनीति ने दत्त परिवार में भले ही जहर घोल दिया हो, मगर प्यार की डोर इतनी भी कमजोर नहीं। कांग्रेस के टिकिट पर अपने पिता सुनील दत्त की विरासत को आगे बढ़ाते हुए तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ने निकलीं उनकी पुत्री प्रिया के सामने पत्रकारों ने भाई से रिश्तों की दुखती नब्ज को छेड़ा। बिना किसी संकोच के प्रिया ने जवाब दिया, 'चुनाव प्रचार के लिए बुलाऊंगी तो भाई जरूर आएंगे'। उन्होंने विश्वास के साथ कहा, 'रिश्ते राजनीति से अधिक मजबूत होते हैं। मैं उसी को ज्यादा महत्व देती हूं।' उत्तर-मध्य मुम्बई लोकसभा चुनाव क्षेत्र से प्रिया दत्त कांग्रेस से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि उनके सगे भाई संजय दत्त लखनऊ से समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने के लिए पूरा दम लगा रहे हैं। बुधवार को प्रिया ने दावे के साथ कहा कि दोनों एक-दूसरे के चुनाव प्रचार के लिए जा सकते हैं। संजय ने प्रचार के लिए लखनऊ बुलाया तो वह जरूर जाएंगी। उन्होंने यह भी दावा किया कि वह जब भी चाहेंगी तब संजय को अपने चुनाव प्रचार के लिए बुला लेंगी। शिवसेना के विरोध पर खड़ीं प्रिया अपने भाई की जेल यात्रा के दौरान बाल ठाकरे के समर्थन का उपकार भूलने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दत्त और ठाकरे परिवार के बीच हमेशा से ही अच्छे रिश्ते रहे हैं और आज भी उनका आशीर्वाद दत्त परिवार के साथ है। प्रिया ने अपने कार्यकाल का जिक्र करते हुए कहा कि लोग उन्हें वोट उनके काम के कारण देंगे। पिछली बार जब उपचुनाव हुआ था तब प्रिया ज्यादा समय चुनाव प्रचार के लिए नहीं दे पाई थीं, लेकिन पिता सुनील दत्त की मृत्यु के कारण लोगों की सहानुभूति उनके साथ थी। परंतु इस बार मामला एकदम ही उलटा है और उन्हें हर पहलू पर खुद ध्यान देना पड़ रहा है।

Monday, March 23, 2009

यह तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं है कि किसे चुनाव लड़ना चाहिए

शुरुआती ऊहापोह के बाद अब बीजेपी ने खम ठोककर वरुण गांधी के साथ खड़ा होने का फैसला कर लिया है। बीजेपी ने चुनाव आयोग की सलाह को दरकिनार करते हुए पीलीभीत से वरुण गांधी को ही अपना उम्मीदवार बनाए रखने का फैसला किया है। बीजेपी के प्रवक्ता ने बलबीर पुंज ने वरुण गांधी को अब भी पार्टी का उम्मीदवार बताते हुए कहा कि चुनाव आयोग का फैसला पक्षपातपूर्ण है। उन्होंने कहा,' अन्य पार्टियों के कई उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। समाजवादी पार्टी के संजय दत्त को टाडा अदालत ने दोषी ठहराया है, कांग्रेस के जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार सिख विरोधी दंगों के संबंध में आरोपों का सामना कर रहे हैं, शिबू सोरेन हत्या के आरोपी हैं, फिर सिर्फ वरुण गांधी के खिलाफ ही ऐसा क्यों ?'
इसके साथ ही पार्टी ने आशंका जाहिर की कि सोनिया गांधी और मेनका गांधी के तनावपूर्ण संबंध भी चुनाव आयोग के फैसले की वजह हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम अगले मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला और कांग्रेस के नेतृत्व के बीच की निकटता के बारे में भी जानते हैं। मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। इससे पहले बीजेपी नेता प्रकाश जावडेकर ने कहा कि यह तय करना चुनाव आयोग का काम नहीं है कि किसे चुनाव लड़ना चाहिए और किसी की उम्मीदवारी के बारे में किसी कार्रवाई का निर्णय सिर्फ अदालतें ले सकती हैं।

कांग्रेस के दांव से बौखलाए लालू प्रसाद ने सोमवार को उन सीटों पर भी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी

बिहार में सोमवार को औपचारिक रूप से यूपीए का अंत हो गया। कांग्रेस को झटका देते हुए राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद ने कांग्रेस के तोनों निवर्तमान सांसदों के खिलाफ उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। जल्दबाजी में बुलाए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस में रेल मंत्री लालू प्रसाद ने अपनी पार्टी के 25 उम्मीदवारों की की सूची जारी कर दी।महाराजगंज, पटना साहिब और मधेपुरा सीटों पर अभी उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। गौरतलब है कि आरजेडी बिहार की 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बाकी की 12 सीटें एलजेपी के लिए छोड़ी गई हैं। इससे पहले आरजेडी और एलजेपी के बीच हुए समझौते में सासाराम (एससी), मधुबनी और औरंगाबाद सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया गया था। बाद में कांग्रेस ने इसका जवाब देते हुए 37 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की थी और सारण, पाटलिपुत्र और हाजीपुर सीट को छोड़ दिया था। लालू सारण और पाटलिपुत्र सीट से, जबकि पासवान हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के दांव से बौखलाए लालू प्रसाद ने सोमवार को उन सीटों पर भी उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जहां 2004 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे। आरजेडी ने सासाराम सीट से केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी मीरा कुमार के खिलाफ ललन पासवान को उम्मीदवार बनाया है। जेडीयू के विधायक पासवान एक दिन पहले ही आरजेडी में शामिल हुए थे। आरेजडी के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दिकी मधुबनी से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी शकील अहमद के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। जबकि आरजेडी के प्रवक्ता और विधायक शकील अहमद खान औरंगाबाद से कांग्रेस सांसद और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी निखिल कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। आरजेडी की लिस्ट में केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन (किशनगंज), रघुवंश प्रसाद सिंह (वैशाली), अखिलेश प्रसाद सिंह (पूर्वी चंपारण), जयप्रकाश नारायण यादव (बांका), कांति सिंह (कराकट), रघुनाथ झा (वाल्मीकिनगर) और एम. ए. ए. फातमी (दरभंगा) के नाम भी शामिल हैं। अन्य उम्मीदवारों में निवर्तमान सांसद सीताराम सिंह (शिवहर), सीताराम सिंह (सीतामढ़ी), देवेंद्र प्रसाद यादव (झंझारपुर)आलोक कुमार मेहता (उजियारपुर), आर के राणा (खगड़िया) और रामजी मां (गया) का नाम शामिल है। आरजेडी के विवादास्पद नेता और कुछ आपराधिक मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शाहबाब को सीवान से टिकट दिया गया है। जबकि अन्य उम्मीदवारों में अनिल कुमार (गोपालगंज -एससी सीट), शकुनी चौधरी (भागलपुर), श्याम रजक (जमुई-एससी सीट), सुरेंद्र प्रसाद यादव (जहानाबाद), जगदानंद सिंह (बक्सर) और रामबदन राय (मुंगेर) प्रमुख हैं। लालू प्रसाद ने पटना साहिब सीट से फिलहाल किसी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की. इस सीट से आरजेडी के महासचिव राम कृपाल यादव सांसद हैं। मधेपुरा सीट से भी किसी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की गई है, यहां से राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव सांसद हैं जो सीपीएम विधायक अजित सरकार की हत्या के मामले में अभियुक्त हैं।

नैनो को लोगों की आम बोलचाल का हिस्सा बना दिया जाए

नैनो के लॉन्च होने में अब कुछ घंटे ही बचे हैं। शाम 7 बजे इसे मुंबई में पेश कर दिया जाएगा। नैनो शुरू में 1 लाख लोगों को बेची जाएगी , जिनका सेलेक्शन रैंडमली किया जाएगा। इस कार की बुकिंग 9 अप्रैल से 25 अप्रैल के बीच होगी। नैनो की डिलिवरी जुलाई के शुरू से होने लगेगी। नैनो के लिए शुरुआती बुकिंग अमाउंट 2999 रुपये है। बाजार में जितनी नैनो कारें आएंगी , उनमें से आधी कारें नैनो का बेसिक मॉडल होंगी। देश भर के शोरूम में टाटा की नैनो के आने से न केवल आम लोगों का लंबा इंतजार खत्म होगा , बल्कि उद्योग जगत को कई नई मार्केटिंग तरकीबों से भी रूबरू होने का मौका मिलेगा। इंजीनियरिंग , डिजाइन और प्रोडक्शन प्रक्रियाओं में कई सफल प्रयोगों की गवाह रही नैनो ने मीडिया के सस्ते और नए तरीके से इस्तेमाल की मार्केटिंग रणनीति बनाई है।
नैनो की मार्केटिंग स्ट्रैटेजी की जानकारी रखने वालों ने बताया कि लोगों तक लखटकिया कार की आसान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए टाटा मोटर्स की टीम नैनो न केवल देश भर में फैले अपने डीलर नेटवर्क का सहारा लेगी , बल्कि वेस्टसाइड और क्रोमा जैसे पारंपरिक रीटेल आउटलेट का भी उपयोग करेगी। वेस्टसाइड एक लाइफस्टाइल रीटेल ब्रांड है और क्रोमा एक इलेक्ट्रॉनिक मेगा स्टोर है। दोनो टाटा ग्रुप के तहत आते हैं। वेस्टसाइड और क्रोमा आउटलेट पर नैनो को लोगों के देखने के लिए रखा जाएगा और यहीं इसके लिए बुकिंग भी कराई जा सकेगी। इन जगहों पर बेसबॉल कैप , टी - शर्ट और चाबियों की रिंग जैसे नैनो के तमाम मर्केंडाइज उपलब्ध होंगे। अपनी वेंडर पार्टनरशिप प्रोडक्शन रणनीति को आगे बढ़ाते हुए टाटा मोटर्स ने नैनो ब्रांड के प्रमोशन के लिए कई साझेदार पीएसयू बैंक से भी मदद लेने की तैयारी की है। ये पीएसयू फाइनेंसर टाटा मोटर्स के साथ मिलकर और अपने दम पर भी नैनो ब्रांड का साझा प्रमोशन करेंगे। नैनो की मार्केटिंग रणनीति के तहत पारंपरिक मीडिया को गैर पारंपरिक तरीके से इस्तेमाल किया जाएगा। दूसरी छोटी कारों की तरह नैनो विज्ञापन पर बहुत खर्च नहीं करने जा रही। इसके लिए कोई टेलीविजन पर कोई विज्ञापन नहीं दिया जाएगा और प्रिंट , रेडियो और दूसरे मीडिया माध्यमों , खास तौर पर इंटरनेट का इस्तेमाल भी बिलकुल नए तरीके से किया जाएगा। टाटा की टीम अखबारों में नैनो समाचार , रेडियो पर नैनो ब्रेक , टीवी पर टिकर या मैसेज के तौर पर , ऑनलाइन नैनो गेम , इंटरनेट पर नैनो चैटरूम , प्रमुख वेबसाइटों पर पॉप अप और फेसबुक , ऑर्कुट तथा ब्लॉगस्पेस पर नैनो वार्तालाप के जरिए छाने की तैयारी कर रही है। स्ट्रैटेजी से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया , ' विज्ञापन काफी सस्ते और अनूठे होंगे ताकि नैनो को '' छोटा , प्यारा और संक्षिप्त '' का पर्यायवाची बना दिया जाए। कुल मिला कर आइडिया यह है कि नैनो को लोगों की आम बोलचाल का हिस्सा बना दिया जाए। यह पूरी तरह एक मौखिक अभियान है।

Thursday, March 19, 2009

वाह रे सरकारी आंकडे, मंहगाई दर घट रही है और आम आदमी पिस रहा है

सरकार पिछले कुछ सप्ताहों से हर गुरुवार को यह दावा कर रही है कि देश में मुद्रास्फीति की दर में कमी हो रही है। इस कमी के आधार पर ऐसा दावा भी हो रहा है कि इससे महंगाई कम होती है और करोड़ों नागरिकों को इससे राहत मिलती है। अंदाजे ये भी लगाए जा रहे हैं कि मुद्रास्फीति की दर शून्य से नीचे भी जा सकती है। महंगाई को अर्थशास्त्र की भाषा में मुद्रास्फीति कहा जाता है। इस वक्त यह दर घटकर 2.43 प्रतिशत रह गई है जो पिछले 14 महीनों में सबसे कम है। लेकिन मुद्रास्फीति की दर में आई कमी का कोई असर वस्तुत: महंगाई पर पड़ता नहीं दिखाई दे रहा है। खाने-पीने की चीजों और रोजमर्रा के सामानों की कीमतें कम होने की बजाय चढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। मैं अपनी पत्नी के साथ हर महीने गृहस्थी का सामान पास में स्थित एक मॉल से लाता हूं। कभी-कभार स्थानीय बनिए की सेवाएं भी लेता हूं। लेकिन इस दौरान ऐसा नहीं लगा कि चीजों की कीमतें महंगाई की दर में गिरावट के अनुरूप कम हुई हैं। कुछ दिन पहले 17-18 रु. में मिलने वाली चीनी अब 21-22 रु. किलो है। दाल के भावों में कोई कमी नहीं आई है। छह महीने पहले जब कीमतों में तेजी से देश कराह रहा था, तब सबसे बढि़या किस्म के छोले थोक में 53 रु. किलो थे और रिटेल में उसकी कीमत 80 रु. थी। थोक में छोले की कीमत अब जरूर घटकर 33 रु. रह गई है, लेकिन मॉल्स और रिटेल स्टोर में कीमतें वही हैं। हरी सब्जियां अवश्य कुछ सस्ती हुई हैं, लेकिन आम आदमी की सब्जी आलू-प्याज पुराने भाव पर ही मिल रहे हैं। फलों की कीमतें कम नहीं हुई हैं। सेब 120 रु. किलो, अंगूर 60 रु. किलो, केला 23-24 रु. के एक दर्जन। ब्रेड तो दिन पर दिन महंगी ही हो रही है। यही हाल बिस्कुट, अंडे, बटर, जैम आदि का है। पेट्रॉल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें कम हुई हैं, लेकिन उनसे मेरे ऑटो या टैक्सी का बिल कम नहीं हुआ है। सवाल यह है कि अगर मुद्रास्फीति तीन प्रतिशत से नीचे आ गई है, तो होटेल-रेस्तरां में खाने की थाली या दाल की कटोरी की कीमत कम क्यों नहीं हुई है। हवाई भाड़ा भी कम नहीं हुआ है, बल्कि एटीएफ की कीमतों में कमी के बावजूद वह बढ़ाया जा रहा है। मुद्रास्फीति की दर में कमी और महंगाई बढ़ने के इस 'अनोखे रिश्ते' का कारण यही लगता है कि सरकार के जो आंकड़े हैं, वे असलियत से कोसों दूर हैं और महज कागजों में हैं। सरकार मुद्रास्फीति की जो दर घोषित करती है, वह थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर तय की जाती है। थोक व्यापारी मित्रों का कहना है कि थोक कीमतें जरूर कम हुई हैं, लेकिन रिटेल स्तर पर इस कमी को नहीं पहुंचाया गया है। पिछले कुछ महीनों में थोक स्तर पर दालों जैसे मूंग, उड़द, चना, अरहर आदि की कीमतें 20 से 30 प्रतिशत कम हो गई हैं। इसी तरह चीनी सस्ती हुई है। गेहूं-चावल काफी सस्ते हुए हैं, लेकिन कीमतों में यह कमी नीचे तक नहीं पहुंच रही है। इसका कारण यह है कि सरकार का डंडा थोक स्तर पर तो पड़ता है, लेकिन रिटेल दुकानदारी उससे बेअसर रहती है। इसकी एक अहम वजह यह हो सकती है कि थोक व्यापारियों की संख्या कम है, उन पर निगाह रखना और उन्हें काबू में रखना आसान होता है। इसके बरक्स मॉल, डिपार्टमेंटल स्टोर्स और परचून की दुकानों की संख्या हजारों-लाखों में है। इनकी निगरानी काफी कठिन है। दूसरी वजह यह है कि इनकी जांच के काम में लगे ज्यादातर इंस्पेक्टर भ्रष्ट और कामचोर हैं। और तीसरे जनता को अपने अधिकारों की जानकारी भी नहीं है। लोगों में न तो न तो इतनी समझ है कि वे हर हफ्ते महंगाई दर के मुताबिक चीजों की कीमतों की तुलनात्मक गणना कर सकें और न ही इसके लिए उनके पास समय है। यदि लोग ऐसा करते भी हैं, तो सवाल यह है कि वे इसकी फरियाद कहां करें? जहमत उठा कर यदि शिकायत की भी जाती है, तो उस पर फैसला आने में कई साल लग जाते हैं। इस समस्या का एक दूसरा पहलू भी है। बेरोजगारी के चलते अनेक नौजवानों ने दुकानें खोल ली हैं। संयुक्त परिवार ज्यों-ज्यों बड़े हुए, उसके नए सदस्यों ने अपने रोजगार के लिए आसपास ही अपनी नई दुकानें खोल लीं। दुकानों की संख्या तो बढ़ गई, लेकिन ग्राहकों की संख्या तो तकरीबन वही रही। जाहिर है, इस कारण दुकानदारों का माजिर्न कम हुआ है, जिसे पूरा करने के लिए वे थोक स्तर पर घटाए गए मार्जिन को आम ग्राहकों तक पहुंचाने में रुचि नहीं लेते हैं। पर यहां असल सवाल कीमतों में कमी लाए जाने का है। जब महंगाई की दर पिछले तीन महीनों में एक तिहाई रह गई हो, तो कीमतों में कुछ तो कमी होनी ही चाहिए। सरकार को थोक कीमतों में हुई कमी का कुछ लाभ रिटेल स्तर पर पहुंचाने की कोशिश करनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो एक दिन जनता मुद्रास्फीति की दर के आधार पर महंगाई कम होने के सरकार के दावे को मानने से ही इनकार कर देगी। सरकार चाहे तो चीजों की कीमतों और महंगाई की दर में स्पष्ट दिखने वाला रिश्ता कायम कर सकती है। गौरतलब है कि शहरों में अब ज्यादातर शॉपिंग मॉल और डिपार्टमेंटल स्टोर्स से की जाती है। इनकी संख्या कम होती है, पर आबादी के बड़े हिस्से की जरूरतें इनसे पूरी होती हैं। सरकार इन पर आसानी से निगाह रख सकती है। इसी तरह गली-नुक्कड़ों पर स्थित दुकानों, बनिया, पंसारी की निगरानी के लिए और ज्यादा इंस्पेक्टरों की नियुक्ति की जा सकती है। ये इंस्पेक्टर दुकानदारों की कारगुजारियों की अनदेखी नहीं करें, इसके लिए टीवी चैनलों पर और अखबारों में हर हफ्ते थोक कीमतों और उनसे प्रभावित अधिकतम रिटेल कीमतों की घोषणा करवाई जा सकती है। उन कीमतों को लागू नहीं करने वाले दुकानदारों के लिए कोई सजा मुकर्रर की जा सकती है। ऐसे दुकानदारों पर नकेल कसने का तरीका यह है कि उन्हें बैंक आदि से लोन न लेने दिया जाए। उनका बिजली-पानी का कनेक्शन काट दिया जाए। सोशल वर्करों को भी उनकी निगरानी का काम सौंपा जा सकता है।

Monday, March 16, 2009

वरुण ऐसी पार्टी से जुडे़ हैं, जिसकी विचारधारा और संस्कृति अल्पसंख्यक विरोधी है।

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत संसदीय क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे वरुण गांधी ने चुनावी सभा के दौरान मुसलमानों के खिलाफ जमकर जहर उगला। उन्होंने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। उनके इस आक्रामक तेवर से बीजेपी भी सकते में है। पार्टी ने उन्हें जमकर फटकार लगाई है। चुनाव आयोग ने उन्हें नोटिस भी जारी किया। वरुण ने हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में एक रैली में कहा था, 'यह हाथ नहीं है। यह कमल है। यह ...का सर काट देगा, जय श्रीराम।' एक अन्य सभा में उन्होंने कहा, 'अगर कोई हिंदुओं की तरफ उंगली उठाएगा या समझेगा कि हिंदू कमजोर हैं और उनका कोई नेता अगर कोई सोचता है कि ये नेता वोटों के लिए हमारे जूते चाटेंगे तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा।' वरुण ने कहा, 'जो हाथ हिंदुओं पर उठेगा, मैं उस हाथ को काट दूंगा।' वरुण गांधी ने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी नहीं बख्शा। उन्होंने कहा, गांधीजी कहा करते थे कि कोई इस गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके सामने दूसरा गाल कर दो ताकि वह इस गाल पर भी थप्पड़ मार सके। यह क्या है। अगर आपको कोई एक थप्पड़ मारे तो आप उसका हाथ काट डालिए कि आगे से वह आपको थप्पड़ नहीं मार सके। वरुण ने अपने विरोधियों पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'हमारे पास जो उम्मीदवारों की जो लिस्ट है, उस पर सभी दलों के प्रत्याशियों के फोटो लगे हैं। समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार की तस्वीर देखकर मेरी मौसी की बेटी ने कहा कि भैया मुझे नहीं पता था कि आपके खिलाफ ओसाम बिन लादेन चुनाव लड़ रहा है।' इस वरुण ने कहा, 'भले ही अमेरिका ओसामा को नहीं खोज पाया, पर मैं इस ओसामा को मजा चखा कर छोड़ूंगा।' बीजेपी एमपी मेनका गांधी के बेटे वरुण के यह बयान बीजेपी को भी रास नहीं आए। बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इस बहाने कांग्रेस पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि वरुण के भाषण में उनके परिवार का कांग्रेसी अतीत झलकता है। इसमें बीजेपी की परंपरा नहीं दिखती। इससे पहले, सोनिया ने कहा था कि वरुण ऐसी पार्टी से जुडे़ हैं, जिसकी विचारधारा और संस्कृति अल्पसंख्यक विरोधी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यूपीए सरकार से मांग की है कि वक्फ बोर्डों में परमानंट अधिकारियों की नियुक्ति की जाए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यूपीए सरकार से मांग की है कि वक्फ बोर्डों में परमानंट अधिकारियों की नियुक्ति की जाए और इमामों व मुअज्जिनों की तनख्वाह बढ़ाई जाए। माना जा रहा है कि इस मांग के पीछे संघ की मंशा अपनी इमेज सुधारने की है। ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ इमाम्स को लिखे पत्र में आरएसएस प्रमुख के. सुदर्शन ने कहा कि सरकार ने वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमणों की जांच के लिए एक संसदीय कमिटी बनाई थी। कमिटी की सिफारिशों को सरकार को तुरंत लागू करना चाहिए और राज्यों को भी ऐसा करने के लिए कहना चाहिए। आम चुनाव से ठीक पहले आरएसएस की यह मांग इसलिए भी अहम है क्योंकि कुल वोटरों में मुसलमानों की संख्या अच्छी-खासी है और वह किसी भी दल के समीकरणों को प्रभावित कर सकते

सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग की ताजा घटनाओं को देखते हुए अपने रुख को और सख्त कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग की ताजा घटनाओं को देखते हुए अपने रुख को और सख्त कर दिया है। कोर्ट ने संबंधित शिक्षण संस्थानों और राज्य सरकारों के अधिकारियों को नोटिस भेजे हैं। इसके अलावा कोर्ट ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से कहा है कि वह रैगिंग की वजह से जान गंवाने वाले छात्र अमन काचरू के इलाज में बरती गई लापरवाही की जांच करे। अमन कांगड़ा के राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलिज का छात्र था। उसकी 8 मार्च को सीनियर स्टूडंट्स के हाथों हुई पिटाई में मौत हो गई थी। इसके बाद एक दूसरे मामले में आंध्र प्रदेश के एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग कॉलिज की एक छात्रा ने भी रैगिंग की वजह से जहर खाकर आत्महत्या की कोशिश की। इन मामलों के मद्देनजर जस्टिस अरिजित पसायत और अशोक कुमार गांगुली की बेंच ने हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश के चीफ सेक्रेटरी और डायरेक्टर जनरल से कहा है कि वे हलफनामा दाखिल करके बताएं कि रैगिंग के मामले में कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने के लिए उन्होंने क्या कदम उठाए हैं। कोर्ट इससे पहले आर. के. राघवन कमिटी की सिफारिशों के आधार पर रैंगिग रोकने के निर्देश जारी कर चुकी है। कोर्ट ने राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलिज के रजिस्ट्रार से पूछा है कि हलफनामा पेश कर बताएं कि रैगिंग का वाकया सामने आने के बाद उन्होंने क्या किया। बेंच ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से उन आरोपों की जांच करने के लिए कहा है जिनके मुताबिक, डॉक्टर ने अमन की चोटों की पूरी तरह मेडिकल जांच नहीं की, जिनके चलते उसकी 8 मार्च को मौत हो गई। कोर्ट ने कहा है कि अगर डॉक्टर दोषी है तो बताया जाए कि उसके खिलाफ किस तरह का एक्शन लिया जाएगा। यूजीसी बनाएगी कडे़ कानून : अमन काचरू की मौत के बाद यूजीसी ने भविष्य में ऐसे मामले रोकने के लिए कडे़ कानून बनाने का फैसला किया है। इन्हें अप्रैल के पहले सप्ताह तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा। इसके लिए यूजीसी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन, डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया, नैशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन, फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से भी सलाह मशवरा करेगी। आरोपियों की कस्टडी बढ़ी : धर्मशाला की स्थानीय अदालत ने अमन काचरू की हत्या में आरोपी दो मेडिकल स्टूडंट्स अभिनव वर्मा और मुकुल शर्मा की पुलिस कस्टडी 19 मार्च तक के लिए बढ़ा दी है।

Sunday, March 15, 2009

अंग्रेजी हम पर हावी बनी हुई है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक के. सी. सुदर्शन का मानना है कि भारत भले ही 1947 में आजाद हो गया हो मगर वह अब भी अंग्रेजियत का गुलाम है। हम अपनी भाषा तक को आत्मसात नहीं कर पाए है और अंग्रेजी हम पर हावी बनी हुई है। सुदर्शन ने अपनी यह राय शनिवार को संघ के मध्य क्षेत्र कार्यालय समिधा के नवनिर्मित भवन के प्रवेशोत्सव कार्यक्रम के अवसर पर जाहिर की। सुदर्शन ने कहा कि भाषा सिर्फ विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम नहीं है बल्कि इसके जरिए भावों को व्यक्त किया जाता है। उन्होंने कहा कि अंगेजी सीखना बुरा नहीं है मगर उसके रंग में रंग जाना और हिन्दी व संस्कृत को त्यागना बुरा है, क्योंकि ऐसा होने पर अपनापन खो जाता है। वास्तव में भाषा प्रगति का माध्यम है। चीन और जापान इस बात के उदाहरण है कि उन्होंने अपनी भाषा से अपनापन पैदा किया और प्रगति के रास्ते पर चलते रहे। संघ प्रमुख ने भारत की शिक्षा व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, सरकारों से मदद लेकर समाज सेवा करने वालों और संविधान तक पर जमकर हमले बोले। उन्होंने एनसीईआरटी की सातवीं क्लास की इतिहास की पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि इसमें मुगलों के इतिहास को तो 80 पन्नों में बताया गया है मगर शिवाजी को चंद लाइनों में ही समेट दिया गया है। उन्होंने कहा कि भूतकाल का गौरव, वर्तमान की पीड़ा और भविष्य के सपने देश की धरोहर होते हैं मगर वर्तमान में बच्चों को मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ाया जा रहा है और यह सब हो रहा है केन्दीय मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के नेतृत्व में। उन्होंने कहा कि अगर सरस्वती शिशु मंदिर भारतीय संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को पढ़ाते हैं तो उन पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लग जाता है। इस मौके पर समाजसेवियों का सम्मान भी किया गया। इस कार्यक्रम में संघ के सह सरकार्यवाहक सुरेश सोनी, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित बड़ी तादाद में बीजेपी नेता व संघ कार्यकर्ता मौजूद थे।

Friday, March 13, 2009

बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के मन में प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदें एक बार फिर जवां

आम चुनाव से ठीक पहले तीसरा मोर्चा क्या बना , बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के मन में प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदें एक बार फिर जवां हो गई हैं। खबर है कि मायावती मोर्चा के नेताओं को अपनी इस ख्वाहिश के बारे में बता भी चुकी हैं। माया का कहना है कि वह मोर्चा में तभी शामिल होंगी , जब उन्हें पीएम कैंडिडेट के तौर पर पेश किया जाएगा। इसके लिए उन्होंने बाकायदा डेडलाइन भी तय कर दी है। गौरतलब है कि कर्नाटक के तुमकुर में एक रैली में तीसरे मोर्चे के गठन की औपचारिक घोषणा की गई थी। बीएसपी की तरफ से इसमें सतीश मिश्रा ने शिरकत की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक मिश्रा ने मायावती की इस इच्छा के बारे में थर्ड फ्रंट के नेताओं को बताया। मायावती ने इसके लिए डेडलाइन तय कर दी है। मायावती 15 मार्च को कांशीराम के जन्मदिन पर एक पार्टी देने जा रही हैं। इसमें थर्ड फ्रंड के नेताओं को न्योता दिया गया है। मायावती चाहती हैं कि इस मौके पर पीएम पद का मामला सुलझा लिया जाए। गौरतलब है कि टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और पूर्व प्रधानमंत्री एच . डी . देवेगौड़ा पीएम पद की दौड़ से पहले ही हट चुके हैं।

वाह रे इलेक्शन, टोपी जाइज, साडी, शर्ट नाजाइज

उम्मीदवार अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी टोपी पहना सकते हैं। पार्टी चिह्न वाले स्कार्फ भी दे सकते हैं। लेकिन साड़ियां और शर्ट बांटी जाती हैं, तो उम्मीदवारों का चुनाव रद्द हो सकता है। होली मिलन समारोह में सौ-सौ के नोट बांटने की कथित घटना से आयोग चुनाव आचार संहिता को लेकर और भी अधिक सतर्क हो गया है। उम्मीदवार अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को टोपियां और स्कार्फ बांटते हैं तो उसके खर्चे का बाकायदा रेकॉर्ड देना होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो इसे वोटरों को रिश्वत देना माना जाएगा। स्टेपनी पर पार्टी कवर भी नहीं : आयोग सूत्रों का कहना है कि पाटीर् उम्मीदवारों की तरफ से अगर कार्यकर्ताओं को साड़ियां और शर्ट बांटी जाती हैं, तो इसे प्रलोभन की कैटिगरी में रखा जाएगा। जैसे कि वोटरों को रिश्वत दी गई हो। लिहाजा उम्मीदवार का यह कदम आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन होगा। इसी तरह यदि मोटर वाहनों की स्टेपनी पर पार्टी चिह्न वाले कवर लगाए जाते हैं, तो इसे भी चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा। सूत्रों का कहना है कि वाहन चालकों को पार्टी की ओर से या उम्मीदवार द्वारा स्टेपनी कवर बांटना प्रलोभन के दायरे में आता है। ऐसे किसी भी तरह के वितरण की शिकायत डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट से की जा सकती है। पर्चों पर पब्लिशर-प्रिंटर का पता जरूरी : उम्मीदवार व राजनीतिक पार्टियां आसमान से प्रचार के पर्चे गिरा सकते हैं । लेकिन जिस उम्मीदवार के पक्ष में ये हैंड बिल या पर्चे गिराए जाते हैं, उस उम्मीदवार को इस प्रचार के खर्च का पूरा ब्यौरा आयोग को देना होगा। आयोग ने स्पष्ट किया है कि सभी तरह से प्रचार पोस्टरों, हैंड बिलों या पर्चों पर प्रिंटर और पब्लिशर का पता छपा होना अनिवार्य है। यदि किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में बांटे जा रहे पोस्टरों पर प्रिंटर व प्रकाशक का पता नहीं लिखा है, तो उसे जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की विभिन्न धाराओं का उल्लंघन माना जाएगा। पर, प्लास्टिक पर बैन नहीं : सूत्रों का कहना है कि जुलूस के दौरान वाहनों पर झंडे बैनर और पोस्टर लगाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन इन प्रचार सामग्रियों को वाहनों पर चिपकाना या लटकाना मोटर वाहन अधिनियम की धाराओं और स्थानीय नियमों के अनुकूल होना अनिवार्य है। पता चला है कि आयोग ने प्रचार सामग्री तैयार करने में प्लास्टिक शीट के इस्तेमाल पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। न ही इसे आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में लाया गया है। राजनीतिक दलों से अपील की गई है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जागरूकता प्रदर्शित करते हुए बैनर और पोस्टरों के लिए प्लास्टिक या फिर पॉलिथीन मटीरियल का उपयोग न करें। मंजूरी से ही घरों लगा सकते हैं झंडे : कोई भी उम्मीदवार या उसके समर्थक व पार्टी कार्यकर्ता किसी की निजी संपत्ति या मकान पर पार्टी झंडा, होर्डिन्ग, पोस्टर व बैनर नहीं लगा सकते। यदि कोई उम्मीदवार ऐसा करना चाहता है तो उसे पहले संपत्ति के मालिक से लिखित अनुमति लेनी होगी। उस अनुमति की कॉपी तीन दिन के अंदर रिटर्निन्ग ऑफिसर या फिर तैनात संबद्ध अधिकारी को देनी होगी। उसके बाद ही किसी निजी प्रॉपर्टी पर बैनर व पोस्टर लगाए जा सकेंगे। यदि उम्मीदवार व उसके समर्थक बिना अनुमति के पोस्टर चिपकाते हैं या बैनर लगाते हैं तो नियमों के तहत उम्मीदवार के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।

Tuesday, March 10, 2009

रैगिंग एक दुराचार है इसपर पूर्ण रोक होनी चाहिये

हिमाचल प्रदेश में मेडिकल कॉलिज में रैगिंग के दौरान मारे गए स्टूडंट के परिवार ने मेडिकल कॉलिज के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि छात्र को भारी हिंसा का शिकार होना पड़ा। अमन सत्य काचरू (19)कांगड़ा के डॉ. राजेन्द प्रसाद मेडिकल कॉलिज में फर्स्ट यिअर का स्टूडंट था। पिछले रविवार को एक हॉस्पिटल में उसकी मौत हो गई। ऐसा आरोप है कि कॉलिज के 4 सीनियर स्टूडंट्स ने रैगिंग के नाम पर उसके साथ मारपीट की जिसके कारण उसकी मौत हुई।
अमन की आंटी इंदिरा का कहना है कि उसे कई तमाचे मारे गए। उसे गंजा कर दिया गया। उसे घूंसे और लातों से पीटा गया। उसके सिर और सीने पर मारा गया और रात भर प्रोजेक्ट के काम में लगाया गया। अमन के अंकल रोहित काचरू का कहना है कि अमन ने अपने माता पिता को इंस्टीट्यूट में होने वाली रैगिंग के बारे में बताया था। उन्होंने कहा- इस घटना के लिए हमें खुद को ही दोष देना चाहिए। उसने तो रैगिंग के बारे में अपने माता-पिता को बताया था। हमने ऐसा नहीं सोचा कि मामला हिंसक हो जाएगा। अमन के एक अन्य रिश्तेदार ने उसे अच्छा लड़का बताते हुए कहा कि वह किसी से नहीं करता था। यह उसके स्वभाव में ही नहीं था। उन्होंने मेडिकल कॉलिज के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की। 4 आरोपियों में से 2 अजय वर्मा और नवीन वर्मा को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया गया जबकि दो अन्य आरोपी मुकुल शर्मा और अभिनव वर्मा फरार हैं।

सभी को होली की शुभकामनाएं

भारत जैसे धर्म प्रधान और तीज-त्योहारों वाले देश में होली इकलौता त्योहार है, जो आपके पास धर्म या देवताओं का सहारा ले कर नहीं पहुंचता। इसके साथ जो किंवदंतियां या धर्म कथाएं आ जुड़ी हैं, उनका प्रयोजन आपको किसी देवता विशेष की पूजा करने के लिए प्रेरित करना नहीं है। यह त्योहार हम पुण्य कमाने या अपने पाप नष्ट करने के लिए नहीं मनाते। दशहरा पर आप दुर्गा की पूजा करते हैं, दीवाली पर लक्ष्मी की पूजा करते हैं, मकर संक्रांति और बैसाखी पर दान का पुण्य अर्जित करते हैं, इनके बिना वे त्योहार पूरे नहीं होते। लेकिन होली पर किसकी पूजा करते हैं? न नरसिंहावतार की और न प्रह्लाद की। प्रह्लाद का चरित्र सिर्फ आपको सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देता है, लेकिन होली के अपने आयोजन से उसका कोई संबंध नहीं जुड़ता। यह लोक पर्व है, मनुष्यता का पर्व, समाज का पर्व। इसमें आप समाज को सर्वोपरि मानने की घोषणा करते हैं। भारत में होली जैसी धार वाला दूसरा कोई और त्योहार नहीं है। आप लोगों से पूछिए -वे या तो होली से नफरत करते हैं या उसके हुड़दंग में शामिल होते हैं। या तो वे रंग खेलने निकल पड़ते हैं या घर में छुपकर बैठ जाते हैं। दीवाली के साथ ऐसा नहीं होता, दशहरा के साथ ऐसा नहीं होता कि लोग उनका
नाम सुन कर ही मतवाले हो उठें या फिर घृणा से भर उठें। ऐसे दिनों पर दरवाजा बंद कर घर में छुप कर कोई नहीं बैठता। इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। उन त्योहारों को कोई कम उत्साह से मनाता है और कोई ज्यादा उत्साह से। लेकिन इतना तीखा विभाजन नहीं होता। ऐसे प्रेम और नफरत का रिश्ता सिर्फ होली के साथ ही होता है। होली के प्रति उदासीन नहीं रहा जा सकता। यह त्योहार आपसे दो टूक सवाल करता है -आप इस खेमे में हो या उस खेमे में। यह ऊपर से ओढ़ी हुई गंभीरता को चीर कर फेंक देता है और आपको आपके असली रूप में उजागर करता है। इसीलिए इसे व्यक्ति के विरेचन का पर्व कहा जाता है। हमारी दमित इच्छाएं और कुंठाएं विमुक्त हो जाती हैं। इस दिन हम देख पाते हैं कि किस तरह समाज ने हमारी कुरूपता देख कर भी हमें खारिज नहीं किया। यह बोध व्यक्ति के विरेचन से कहीं आगे ले जाता है। होली में भारत का सांस्कृतिक मानस छुपा है। उस मानस में क्या है? इसे आप हुल्लड़ और रंगपाशी के रिवाजों से समझिए। आप सजे-संवरे बैठे हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों का एक हुजूम आता है और आपको बदशक्ल बना देता है। आप के काले बालों में लाल गुलाल, गोरे चेहरे पर हरा रंग, सफेद कुर्ते पर कीचड़-मिट्टी पोत देता है। और आप हंसते हैं, नाराज नहीं होते। क्योंकि आप किसी व्यक्ति को अच्छे या बुरे रूप में स्वीकार करने के समाज के अधिकार को स्वीकार करते हैं। आपके गोरे रंग या काले बालों को कितना सुंदर माना जाए, यह तो समाज ही तय करता है। आप आईजी-डीआईजी, प्रफेसर, कवि या डॉक्टर हैं, पर किस प्रतिष्ठा के काबिल हैं, यह तो समाज ही तय करता है। होली का फूहड़पन हमको-आपको इसी सचाई का एहसास कराता है। इस बात का एहसास कि जो मान-प्रतिष्ठा है, जिसे हम अपनी खासियत मान लेते हैं, वह सब समाज का ही दिया है। अन्यथा हम सब किसी अन्य मनुष्य की तरह दो हाथ और दो पैरों वाले प्राणी हैं, कोई किसी से अलग नहीं। कैसा राजा, कैसा रंक। टीवी का एक विज्ञापन है -रंग से सराबोर एक बच्चा बारी-बारी से कई लोगों के पास जाता है और उनसे टॉफी के लिए पैसे मांगता है। उसके चेहरे पर इतना रंग पुता है कि उनमें से कोई नहीं पहचान पाता कि वह उनका बच्चा नहीं है। होली दरअसल हमें यही समझाती है कि जिंदगी के कई रंग ऐसे हैं, जिनमें डूबने के बाद हम सब एक जैसे होते हैं। हमारी वृत्तियों में, खुशियों में, मन के भीतर बैठे किसी बच्चे या युवा के नैसर्गिक उल्लास में कोई फर्क नहीं होता। जब हम बदशक्ल बनाए जाने या अपने ड्रॉइंग रूम को गंदा किए जाने से नफरत करते हैं, तो असल में हम उस झूठे अहंकार से घिरे होते हैं। किसी ने हमें रंग लगा दिया, कपड़े गीले कर दिए, भागने को मजबूर कर दिया तो हमारी ठसक, हमारी वह नकली प्रतिष्ठा, इज्जत की कलई उतर गई। लेकिन अपने लाड़ले के गाल पर एक लाल सा टीका लगा कर क्यों भला खुश होते हैं? या किसी को भूत सा चेहरा लिए झूम-झूम कर जोगिरा गाते देख कर क्यों हंसी आती है? या जब प्रेमिका चुटकी भर गुलाल फेंक कर भागती है, तब एक पिचकारी उसे मार कर आप भला क्यों निहाल हो जाते हैं? इसलिए कि यह पिचकारी उसे अपने रंग में रंग लेने, अपने हिसाब से ढाल लेने की आपकी इच्छा को मंजूर कर लेने की उसकी इच्छा का प्रतीक है। ठीक है, तुम जैसा चाहो, वैसे रंग डालो। लेकिन फिर ऐसे ही भला आपको भी कोई क्यों नहीं रंगे? क्या आपके दोस्तों और संबंधियों का -आपसे प्रेम करने वाले दूसरे लोगों का आप पर कोई अधिकार नहीं बनता? यदि एक दिन कपड़े पर कीचड़ डाल कर, किसी को मूर्ख नरेश कह कर मन की नफरत या गुस्सा निकल जाए तो क्या हर्ज है? सालों भर मन में दबा रहेगा तो रोडरेज होगा, पार्किन्ग और खिड़की का शीशा टूटने पर झगड़ा होगा। होली की थोड़ी सी ठिठोली, अवैध जुगुप्साकारी संबंधों से तो बेहतर होगी -जगहंसाई होगी पर परिवार तो नहीं तोड़ेगी। होली सिर्फ रंगों से नहीं होती। हास्य इसमें अनिवार्य रूप से शामिल है। लोग एक दूसरे का नामकरण करते हैं, चटपटी टिप्पणियां करते हैं, मूर्ख बनाते हैं और ऐसा करते हुए व्यक्ति की तमाम पहचान गौण हो जाती हैं और हर व्यक्ति समान धरातल पर आ खड़ा होता है। यह पैमाना है किसी समाज के सदस्यों की व्यक्तिवादी प्रवृत्ति को नापने का। हमारी सहनशक्ति को जांचने का। जो समाज एक-दूसरे पर हंसने का माद्दा नहीं रखता, वह भला एक साथ खुशी से जीवन कैसे गुजार सकता है। यह समाज और उसकी इकाइयों की सहनशक्ति का पैमाना है। आप लोगों पर हंसते हैं और लोग आप पर हंसते हैं, फिर भी कोई बुरा नहीं मानता। और सब लोग साथ रहते हैं।

Sunday, March 8, 2009

संजय दत्त के लखनऊ से चुनाव लडने पर मायावती कैंम्प में हडकंप

ऐक्टर संजय दत्त के लखनऊ से चुनाव लड़ने के बारे में सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला 30 मार्च को सुना सकता है। इस आदेश से यूपी-बिहार के कई बाहुबली आस लगाए बैठे हैं। बीएसपी छोड़कर एसपी में आए मित्रसेन यादव और डी.पी. यादव जैसे बाहुबलियों को खुद चुनाव लड़ने या परिजनों को लड़वाने का मसला संजय दत्त की याचिका पर फैसले से जोड़कर देखा जा रहा है। बिहार के सूरजभान, पप्पू यादव, मोहम्मद शहाबुद्दीन और आनन्द मोहन सिंह जैसे लोग भी इस फैसले के इंतजार में हैं। इनमें से कुछ को एसपी और बीएसपी से टिकट मिलने का आश्वासन मिला है। मगर इन सबके सजायाफ्ता होने के कारण कानूनी अड़चनें आ रही है। जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक, जिस व्यक्ति को 2 साल से अधिक सजा हुई हो, वह तब तक चुनाव नहीं लड़ सकता, जब तक उस पर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट रोक न लगा दे। गौरतलब है कि बॉलिवुड ऐक्टर संजय दत्त ने पिछले गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी कि आगामी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट के सिलसिले में दोषी ठहराए जाने का मामला सस्पेंड किया जाए। हाल में समाजवादी पार्टी में शामिल हुए संजय दत्त को लखनऊ संसदीय सीट से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया है। उन्हें आर्म्स ऐक्ट के तहत दोषी करार देने के बाद 6 साल की कैद की सजा दी गई है। संजय दत्त को टाडा के तहत गंभीर अपराधों से बरी कर दिया गया था।

Friday, March 6, 2009

महात्मा गांधी की धरोहरों को प्रसिद्ध बिजनसमन विजय माल्या द्वारा खरीद लेने को बापू के प्रपौत्र तुषार गांधी ने चमत्कार करार दिया।

अमेरिका में हुई नीलामी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धरोहरों को प्रसिद्ध बिजनसमन विजय माल्या द्वारा खरीद लेने को बापू के प्रपौत्र तुषार गांधी ने चमत्कार करार दिया। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि वह इस बात से खुश हैं कि ये स्मृति चिहन अब भारत आ सकेंगे। उन्होंने कहा- मैं काफी खुश हूं कि विजय माल्या ने ये वस्तुएं खरीदीं और अब वह भारत आ सकेंगी। तुषार ने कहा कि वह इस बात को लेकर काफी आशंकित थे कि नीलामी में कुछ भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि अपने मित्र और पूर्व क्रिकेटर दिलीप दोषी की मदद से इन धरोहरों को हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने एनडीटीवी से कहा- हमने कुछ सुरक्षा उपाय कर रखे थे और दोषी भी इन वस्तुओं के लिए बोली लगा रहे थे। लेकिन हमने महसूस किया कि ऐसा हो सकता है कि कोई भारतीय उनके खिलाफ बोली लगा रहा हो तो उन्होंने 17 लाख डॉलर पर बोली लगानी बंद कर दी। यह पूछे जाने पर कि क्या बिजनसमन माल्या के बोली लगाने से वह आश्चर्यचकित थे तो तुषार ने कहा- यह नहीं कह सकता कि मैं आश्चर्यचकित था। मैं उम्मीद कर रहा था कि इस तरह का कुछ होगा क्योंकि मुझे हमेशा विश्वास रहा कि चमत्कार होते हैं और जो हुआ उसके बारे में मेरा मानना है कि यह चमत्कार है। तुषार ने कहा कि माल्या सबसे आगे बढ़कर बोली लगाने और बापू की धरोहरों को खरीदने में सक्षम थे। यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रपिता की विरासत खो गई हैं तो उन्होंने कहा कि बापू की विरासत को मुझे और लोगों से दूर होने की अनुमति दी गई।

Monday, March 2, 2009

चुनावी जंग का ऐलान, उम्मीदवारी तय करेंगी आलाकमान,

चुनावी जंग का ऐलान, उम्मीदवारी तय करेंगी आलाकमान, इसलिए यह कहना गलत है कि चुनाव में ठीक आदमी चुनकर आएंगे ।

चुनावों की घोषणा होते ही राजधानी में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई हैं। कांग्रेस चुनाव समिति के अधिकतर सदस्यों ने दिल्ली की सात सीटों पर उम्मीदवारों के चयन का अंतिम फैसला पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी पर छोड़ने का सुझाव दिया है। उधर, बीजेपी में भी उम्मीदवारों के नामों पर गंभीर चिंतन शुरू हो गया है। कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक प्रदेश प्रभारी मुकुल वासनिक की अध्यक्षता में हुई। बैठक में सत्यव्रत चतुर्वेदी और डॉ. कुरियन भी मौजूद थे। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल, मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, उनके मंत्री डॉ. अशोक वालिया, अरविंदर लवली, हारून यूसुफ, किरण वालिया, दिल्ली के सांसद सज्जन कुमार, अजय माकन, कपिल सिब्बल, जगदीश टाइटलर, कृष्णा तीरथ, संदीप दीक्षित और सचिव व विधायक जयकिशन ने भी शिरकत की। बैठक में किसी उम्मीदवार के नाम पर तो चर्चा नहीं की गई, लेकिन यह साफ तौर पर कहा गया कि जो भी उम्मीदवार बनाया जाए, उसकी जीत का आधार अवश्य ही देखा जाना चाहिए। वह वर्करों में लोकप्रिय हो और उसकी छवि साफ होनी चाहिए। यह भी माना गया कि परिसीमन के बाद दिल्ली की सातों सीटों का स्वरूप बदल गया है, इसलिए अब किसी भी नाम पर फैसला करने से पहले यह अवश्य देखा जाना चाहिए कि वह जीत सकता है या नहीं। पार्टी के नेताओं ने वर्करों को यह संदेश देने पर भी जोर दिया कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेसी नेता हवा में न रहें और यह न समझें कि लोकसभा चुनाव आसानी से जीता जा सकता है, इसके लिए विरोधियों को कमजोर समझना भारी भूल होगी। विशेषकर उत्तर-पश्चिम दिल्ली की सुरक्षित सीट पर किसी बाहरी उम्मीदवार को लाने का विरोध किया गया। दूसरी तरफ बीजेपी ने दिल्ली स्तर पर उम्मीदवारों के नामों पर विचार तेज कर दिया है। हालांकि प्रदेश स्तर से 26 जनवरी को ही उम्मीदवारों के नामों के पैनल भेजे जा चुके हैं लेकिन उसके बाद से स्थितियां काफी बदल गई हैं। विजय गोयल अब चांदनी चौक की बजाय नई दिल्ली से लड़ना चाहते हैं। सुषमा स्वराज का नाम पश्चिमी दिल्ली से सामने आया है। चांदनी चौक से विजेंद्र गुप्ता और दक्षिण दिल्ली से प्रवेश वर्मा या रमेश बिधूड़ी के नामों पर चर्चा चल रही है। अभी पार्टी को हाईकमान के इशारे का इंतजार है और माना जा रहा है कि इसी सप्ताह कोई ठोस फैसला हो सकता है।

राजनीति में यह सब चलता है उल्टे लोकप्रिय होते है उम्मीदवार

राजनीति में यह सब चलता है उल्टे लोकप्रिय होते है उम्मीदवार

हरियाणा के पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद से प्यार में धोखा खाने वाली अनुराधा बाली उर्फ फिजा ने अब सियासत के मैदान में धमाकेदार एंट्री करने का मन बना लिया है। वह लोकसभा चुनाव में नैशनल लोकहिंद पार्टी (एनएलपी)के उम्मीदवार के रूप में गाजियाबाद से बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह के खिलाफ मैदान में उतरेंगी। रविवार को बुलंदशहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एनएलपी के अध्यक्ष डॉ. मसूद ने कहा कि फिजा ने मौजूदा हालात का सामना जिस तरह से किया है, उससे वह बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि हम फिजा को संसद में पहुंचाने के लिए कृतसंकल्प हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या फिजा से बात हुई है, तो उन्होंने जवाब दिया कि फिजा ने ही टिकट के लिए संपर्क किया है। मसूद ने कहा कि जिस दिन से अनुराधा ने इस्लाम धर्म कबूल किया है, वह इस्लाम की बेटी बन गई हैं। उसे न्याय दिलाने और संसद में पहुंचाने को पार्टी कमर कस चुकी है। पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ. मसूद ने इस मौके पर सोहन पाल सिंह राजौरा को बुलंदशहर लोकसभा सीट से एनएलपी का उम्मीदवार बनाने की घोषणा करते हुए कहा कि पार्टी, अपना दल, बीएसफोर, सर्वोदय क्रांति पार्टी, भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन के तहत प्रदेश की सभी लोकसभा सीटों पर अपना स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा करेगी।

Sunday, March 1, 2009

सुशासन, सुरक्षा और विकास के मुद्दों को रखने की कोशिश

अब पछताए क्या होत है जब चिडिया चुग गई खेत,
बीजेपी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से शनिवार को यूपीए पर चौतरफा हमला बोला। देश की सुरक्षा
और अर्थव्यवस्था पर बड़ा सवालिया निशान लगाने के लिए पार्टी ने कांग्रेस नीत यूपीए सरकार की नीतियों को दोषी ठहराया है। बीजेपी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए देश की जनता के समक्ष सुशासन, सुरक्षा और विकास के मुद्दों को रखने की कोशिश की। इसी क्रम में पार्टी नेताओं ने किसानों और आम आदमी के हितों में काम करने के वादे किए। एनडीए की ओर से पीएम कैंडिडेट लालकृष्ण आडवाणी पिछले दिनों विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय जानने का प्रयास करते रहे हैं और इस दिशा में बीजेपी का कहना है कि आर्थिक हालात बिगड़े हैं, लेकिन इससे भी बुरे दिन आने वाले हैं। उनका मानना है कि तीन-चार महीनों में डेढ़ करोड़ नौकरियां जाएंगी। वह किसानों की आत्महत्याओं और बढ़ती बेरोजगारी के लिए यूपीए सरकार की नीतियों को दोषी ठहराते रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि एनडीए सरकार की नदी जोड़ो परियोजना और हाइवे से गांवों को जोड़ने वाली संपर्क सड़क योजनाओं को यूपीए सरकार ने रोक दिया। सत्ता में आने पर एनडीए किसानों और आम आदमी के हितों का खास ध्यान रखेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं को प्रोत्साहन देगा, जिससे मंदी को दूर किया जा सकेगा। छोटे किसानों के लिए इनकम गारंटी स्कीम और वृद्ध किसानों के लिए पेंशन योजना शुरू की जाएगी। आंध्र प्रदेश में संकल्प रैली में आडवाणी ने कहा कि बीजेपी 'सुशासन, सुरक्षा और सभा क्षेत्रों में विकास' के मुद्दों पर चुनाव में उतरेगी। उन्होंने अमेरिका और इस्त्राइल की तरह आतंकवाद पर शून्य सहनशीलता पर चलने की सरकार से मांग की। उन्होंने कहा कि आम आदमी की सुरक्षा का मुद्दा महंगाई और बेरोजगारी से बड़ा विषय है। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी न दिए जाने का उल्लेख करते हुए आडवाणी ने आरोप लगाया कि यदि अफजल गुरु का नाम कुछ और होता तो फांसी की सजा पूरी कर दी जाती। पार्टी के महासचिव अरुण जेटली ने मुंबई में यूपीए सरकार पर पूरी तरह से विफलता का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस का यह गठबंधन नेतृत्व के अभाव में संकट में है। गांधी परिवार का नाम लिए बिना आडवाणी की नेतृत्व क्षमता से तुलना करते हुए जेटली ने कहा कि अच्छा नेतृत्व सर्वानुमति बनाने की कला है लेकिन यूपीए में असली और नकली नेता का भ्रम फैलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री को जब कि कप्तान होना चाहिए लेकिन यूपीए में वह नाइटवॉच मैन की भूमिका निभा रहे हैं। अन्य दलों की ओर भी ध्यान आकर्षित करते हुए जेटली का कहना था कि कुछ अन्य दल भी कांग्रेस मॉडल पर चलने लगे हैं लेकिन इस तरह के बंधक नेतृत्व को क्षमतावान नेतृत्व से बदल डालना चाहिए।

चुनाव आयुक्त नवीन चावला

लोकसभा चुनावों की तारीख पर से अगले सप्ताह पर्दा उठना तय है। सूत्रों का कहना है कि चुनाव की
तारीखों का ऐलान सोमवार को ही कर दिया जाएगा। इसके साथ ही सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी)एन. गोपालस्वामी की सिफारिशों को दरकिनार करते हुए चुनाव आयुक्त नवीन चावला को ही उनका उत्तराधिकारी बनाने का फैसला किया है। 20 अप्रैल को गोपालस्वामी के रिटायर हो जाने के बाद चावला मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यभार संभालेंगे। सरकार ने नवीन चावला को आयोग से हटाने की सीईसी एन. गोपालस्वामी की सिफारिश को खारिज कर दिया है। राष्ट्रपति भवन से जारी एक बयान के अनुसार, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने चावला के खिलाफ सीईसी की सिफारिश को खारिज करने संबंधी सरकार की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। सरकार ने सिफारिश की थी कि सीईसी की रिपोर्ट और नवीन चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटाने की सिफारिश को खारिज किया जा सकता है। यह फैसला आम चुनावों और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा के कुछ दिनों पहले किया गया है। उम्मीद है कि तीन सदस्यीय आयोग एक- दो दिन के भीतर चुनाव की तारीखों का ऐलान कर देगा। चुनाव आयोग के सूत्र ने बताया कि आयोग तारीख पर फैसला कर चुका है और इसकी घोषणा अगले सप्ताह की जाएगी। उन्होंने कहा कि चुनाव चार से अधिक चरणों में होंगे। अगर चुनाव के तारीखों का ऐलान सोमवार को नहीं होगा तो सरकार को विज्ञापन अभियान के लिए कुछ और मोहलत मिल जाएगी। सरकार की ओर से 6 मार्च तक के लिए सारे विज्ञापन बुक कराए गए हैं, लेकिन चुनाव की तारीख का ऐलान इससे पहले होने पर इन विज्ञापनों को रोक दिया जाएगा। इस बीच कैबिनेट सचिव के. एम. चंद्रशेखर ने कई दिशा-निर्देशों पर भ्रम की स्थिति को स्पष्ट करने क लिए सीईसी गोपालस्वामी से मुलाकात की। सूत्र ने कहा कि कैबिनेट सचिव चाहते थे कि सारे मुद्दे स्पष्ट हो जाएं, ताकि चुनाव के दौरान कोई विवाद की स्थिति पैदा ना हो।