सरदार पटेल को 'पूरी तरह
सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने
के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले
प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना
पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल
रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान
की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का
निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे
थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर झा की ओर से किए गए मानेकशॉ के इंटरव्यू के हवाले से आडवाणी ने कहा कि महाराजा हरि सिंह की ओर से विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। इसमें नेहरू, पटेल और रक्षा मंत्री बलदेव सिंह आदि शामिल हुए। मानेकशॉ ने उसमें 'सैन्य स्थिति' को पेश किया और सुझाव दिया कि भारतीय सेना को आगे बढ़ना चाहिए। आडवाणी ने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा कि हमेशा की तरह नेहरू संयुक्त राष्ट्र, रूस, अफ्रीका, ईश्वर और हर किसी की उस समय तक बात करते रहे, जब तक कि सरदार पटेल ने अपना आपा नहीं खो दिया। उन्होंने कहा कि जवाहरलाल, आप कश्मीर चाहते हैं या आप उसे गंवाना चाहते हैं? नेहरु ने कहा, 'निस्संदेह, मैं कश्मीर चाहता हूं।' तब पटेल ने कहा, 'मेहरबानी करके आदेश दीजिए।' और इससे पहले कि वह कुछ कहते पटेल मेरी तरफ पलटे और कहा, 'आपको आदेश मिल चुका है'।बीजेपी नेता ने कहा कि इसके बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लेने के लिए श्रीनगर विमानों से भेजा गया और महाराजा हरि सिंह के मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान की ओर पाला बदल लिया। आडवाणी ने कहा कि मानेकशॉ और प्रेम शंकर झा से संबंधित यह रिपोर्ट नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों की ठोस पुष्टि करती है। इससे पहले उन्होंने अपने ब्लॉग पर 5 नवंबर को 1947 बैच के आईएएस अधिकारी एम. के. के. नायर की पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ ऐन ऐरा टोल्ड विदआउट इल विल' का हवाला दिया।
इस किताब में हैदराबाद के खिलाफ 'पुलिस कार्रवाई' से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच हुए कथित 'तीखे वार्तालाप' का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया कि नेहरू हैदराबाद के भारत में विलय के लिए पटेल की पुलिस कार्रवाई की योजना के खिलाफ थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने गुरुवार को हालांकि बीजेपी नेता की ओर से पेश इस सामग्री पर संदेह जताते हुए ट्वीट किया कि आईएएस की स्थापना 1946 में हुई थी। अगर नायर ने 1947 में ज्वाइन किया तो क्या उस स्तर के अधिकारी को 1948 में कैबिनेट की गोपनीय चर्चाओं की जानकारी हो सकती थी? गौरतलब है कि बीजेपी कुछ समय से सरदार पटेल को हिंदुत्व की विचारधारा के करीब बताने की कोशिश कर रही है।सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर झा की ओर से किए गए मानेकशॉ के इंटरव्यू के हवाले से आडवाणी ने कहा कि महाराजा हरि सिंह की ओर से विलय के समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। इसमें नेहरू, पटेल और रक्षा मंत्री बलदेव सिंह आदि शामिल हुए। मानेकशॉ ने उसमें 'सैन्य स्थिति' को पेश किया और सुझाव दिया कि भारतीय सेना को आगे बढ़ना चाहिए। आडवाणी ने इंटरव्यू का हवाला देते हुए कहा कि हमेशा की तरह नेहरू संयुक्त राष्ट्र, रूस, अफ्रीका, ईश्वर और हर किसी की उस समय तक बात करते रहे, जब तक कि सरदार पटेल ने अपना आपा नहीं खो दिया। उन्होंने कहा कि जवाहरलाल, आप कश्मीर चाहते हैं या आप उसे गंवाना चाहते हैं? नेहरु ने कहा, 'निस्संदेह, मैं कश्मीर चाहता हूं।' तब पटेल ने कहा, 'मेहरबानी करके आदेश दीजिए।' और इससे पहले कि वह कुछ कहते पटेल मेरी तरफ पलटे और कहा, 'आपको आदेश मिल चुका है'।बीजेपी नेता ने कहा कि इसके बाद भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लेने के लिए श्रीनगर विमानों से भेजा गया और महाराजा हरि सिंह के मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान की ओर पाला बदल लिया। आडवाणी ने कहा कि मानेकशॉ और प्रेम शंकर झा से संबंधित यह रिपोर्ट नेहरू और पटेल के बीच मतभेदों की ठोस पुष्टि करती है। इससे पहले उन्होंने अपने ब्लॉग पर 5 नवंबर को 1947 बैच के आईएएस अधिकारी एम. के. के. नायर की पुस्तक 'द स्टोरी ऑफ ऐन ऐरा टोल्ड विदआउट इल विल' का हवाला दिया।
इस किताब में हैदराबाद के खिलाफ 'पुलिस कार्रवाई' से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में नेहरू और पटेल के बीच हुए कथित 'तीखे वार्तालाप' का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया कि नेहरू हैदराबाद के भारत में विलय के लिए पटेल की पुलिस कार्रवाई की योजना के खिलाफ थे। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने गुरुवार को हालांकि बीजेपी नेता की ओर से पेश इस सामग्री पर संदेह जताते हुए ट्वीट किया कि आईएएस की स्थापना 1946 में हुई थी। अगर नायर ने 1947 में ज्वाइन किया तो क्या उस स्तर के अधिकारी को 1948 में कैबिनेट की गोपनीय चर्चाओं की जानकारी हो सकती थी? गौरतलब है कि बीजेपी कुछ समय से सरदार पटेल को हिंदुत्व की विचारधारा के करीब बताने की कोशिश कर रही है।सरदार पटेल को 'पूरी तरह सांप्रदायिक' बताने का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आरोप लगाने के बाद बीजेपी के सीनियर नेता लालकृष्ण आडवणी ने कहा है कि 1947 में पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने के बावजूद देश के पहले प्रधानमंत्री वहां सेना भेजने के इच्छुक नहीं थे लेकिन पटेल के दबाव से ऐसा करना पड़ा। आडवाणी ने अपने ब्लॉग के नए लेख में 1947 में कर्नल रहे सैम मानिकशॉ के एक इंटरव्यू का हवाला दिया है। इसमें कहा गया था कि पाकिस्तान की मदद से कबाइलियों के श्रीनगर के पास पहुंचने पर भारतीय सेना को वहां भेजने का निर्णय करना था हालांकि, नेहरू इसके लिए तैयार नहीं लग रहे थे और वह उस मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाना चाहते थे।
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