Friday, December 27, 2013

सख्ती बरतनी शुरू

राहत शिविरों में रह रहे लोगों को लेकर समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के तल्ख बयान के बाद प्रशासन ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। मुजफ्फरनगर के लोई राहत शिविर से लोगों को भेजने का काम तेज हो गया है। पिछले दो दिनों में तीस परिवारों को कैंप से भेजा जा चुका है। इस बीच, सांझक में कब्रिस्तान की जमीन पर तंबू लगाकर रह रहे 30 शरणार्थी परिवारों के खिलाफ सरकारी जमीन कब्जाने की रिपोर्ट लिखाई गई है। इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित शिविरों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई है।
समाजवादी पार्टी सितंबर में हुए दंगों के आम चुनाव पर प्रभाव को लेकर आशंकित है। इन दंगों में 60 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग विस्थापित हो गए थे, जो मुजफ्फरनगर और शामली के राहत कैंपों में रह रहे हैं। अखिलेश सरकार जल्द से इन लोगों को कैंपों से हटाना चाहती है। इस दिशा में प्रशासन भी निरंतर प्रयास कर रहा है, लेकिन दहशत के चलते विस्थापित फिलहाल इन कैंपों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
प्रशासन का कहना है कि तीन-चार दिनों में लोई शिविर से लोग सुरक्षित स्थान पर भेज दिए जाएंगे। डीएम कौशलराज शर्मा ने बताया कि लोई शिविर से बुधवार को 20 लोग गांव चले गए थे। गुरुवार को नौ और लोग शिविर से भेज दिए गए हैं। उनका कहना है कि सर्दी बढ़ने के कारण हालात बिगड़ सकते हैं। ऐसे में उन्हें सुरक्षित स्थान पर जाना चाहिए। एडीएम प्रशासन इंद्रमणि त्रिपाठी ने बताया कि शुक्रवार को मुआवजा पा चुके सौ लोगों को कैंप से हटाया जाएगा। उनका कहना है कि इस कैंप में रहने वाले 167 परिवारों को मुआवजा दिया जा चुका है।
प्रशासन भले ही लोगों को राहत कैंपों से हटाने में जुटा है लेकिन इन्हें फिर से गांव या किसी सुरक्षित जगह पर बसाने की कोई योजना उसके पास नहीं है। बुढ़ाना के एसडीएम मुनीश चंद्र शर्मा, जिनके अंदर लोई गांव आता है, का कहना है कि कैंप से निकले लोगों के लिए हमारे पास कोई योजना नहीं है। कुछ विस्थापितों ने मुआवजे की राशि से जमीन खरीदी है।
मुआवजे के वितरण को लेकर भी शिकायतें हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि मुआवजा उन्हें ही दिया जा रहा है जिनके पास या तो राशन कार्ड है या रिश्वत दे रहे हैं। लोई कैंप में रहने वाले याकूब शेख का कहना है कि समस्या यह है कि संयुक्त परिवारों में से भी किसी एक को मुआवजा दिया जा रहा है। यासीन शेख का कहना है कि अधिकारी हमें बाहर निकल रहे हैं, लेकिन हमें नहीं पता कि यहां से कहां जाएंगे। गांव में हमारे घर और जमीन पर प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर लिया है।
इस बीच, राज्य सरकार ने माना है कि दंगा प्रभावित परिवारों के लिए मुजफ्फरनगर और शामली में स्थापित राहत कैंपों के कुल 34 बच्चों की मौत हुई। प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता ने समिति की जांच रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सभी बच्चों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई है। उन्होंने दावा किया कि शिविर में सिर्फ 10-12 बच्चों की मौत हुई। शेष बच्चों की मौत शिविर से बाहर जाने के बाद हुई। इनमें से अधिकतर बच्चों की बीमारी का इलाज उनके परिवार के सदस्यों ने बाहर के डॉक्टरों से कराई थी। उन्होंने कहा कि शिविर में रह रहे परिवारों की सुरक्षा को लेकर सरकार गंभीर है
पत्रकारों ने जब प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता से पूछा कि ज्यादातर बच्चों की ठंड से मौत होने की बात सामने आ रही है, तब उन्होंने जवाब दिया कि ऐसी भी ठंड अभी नहीं पड़ी है। वह बोले कि बच्चों की मौत सितंबर से दिसंबर के दौरान हुई है वह भी विभिन्न कारणों से। ठंड से बच्चों की मौत का मुद्दा फिर से उठने पर उन्होंने उल्टा सवाल किया कि ठंड तो साइबेरिया में पड़ती है, तो क्या वहां लोग मर जाते हैं।

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