Thursday, July 30, 2009

दो बार डेड घोषित कर दिया, वह दफनाए जाने से पहले जीवित निकला।

इसे ईश्वरीय चमत्कार कहें या डॉक्टरों की लापरवाही कि जिस नवजात शिशु को मध्य प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल ने मंगलवार को यहां दो बार डेड घोषित कर दिया, वह दफनाए जाने से पहले जीवित निकला। हालांकि प्राइवेट अस्पतालों के खर्चीले इलाज के कारण उसके पैरंट्स को लौटकर उसी सरकारी अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। नवजात के पिता मनोज शर्मा ने कहा कि यह कोई चमत्कार नहीं है, बल्कि डॉक्टरों लापरवाही है। उन्होंने एक नहीं, दो बार मेरे बेटे को मृत घोषित कर सर्टिफिकेट जारी कर दिया। वहीं, सरकारी हमीदिया अस्पताल के शिशु शल्यक्रिया विभाग के सर्जन डॉ. राजन ने बस इतना बताया कि शिशु कमजोर और औसत से कम वजन का था। उसका फूड पाइप ब्लॉक था।

युवती को कथित तौर पर छेड़ने के बाद युवती ने उस पर हमला कर दिया

असम के उत्तरी कछार पर्वतीय जिले के हाफलॉन्ग में सेना के जवान द्वारा एक युवती को कथित तौर पर छेड़ने के बाद युवती ने उस पर हमला कर दिया और उसे पत्थर मारे। सेना की सिख रेजीमेंट की आठवीं बटालियन का लांस नायक गुरविंदर सिंह इस युवती रालि फैहरियन की मध्य हाफलॉन्ग स्थित कपड़ों की दुकान पर बुधवार को गया था। सूत्रों ने कहा कि वर्दी में आए सिंह ने रालि से कुछ अंडरवेयर्स दिखाने को कहा। जब वह अंडरवेयर्स दिखाने लगी तो सिंह ने कथित तौर पर कुछ आपत्तिजनक हरकतें कीं। उन्होंने कहा कि रालि उसे दुकान से बाहर ले आई और उस पर पत्थर फेंके। इस पर स्थानीय लोग तथा अन्य सैनिक उसे बचाने लगे। उग्रवादी संगठन दीमा हलाम दाओगा (ज्वेल) के व्यापक तौर पर हिंसा फैलाने के बाद अशांत उत्तरी कछार पर्वतीय जिले में उग्रवाद निरोधी अभियानों के लिये सेना की तैनाती की गई है।

Monday, July 27, 2009

20 लाख रुपये तक के मकानों के 10 लाख रुपये तक के होम लोन पर ब्याज में एक पर्सेंट की सब्सिडी

सरकार ने 20 लाख रुपये तक के मकानों के 10 लाख रुपये तक के होम लोन पर ब्याज में एक पर्सेंट की सब्सिडी की घोषणा की है। इसके दायरे में सभी सरकारी बैंकों के होम लोन होंगे। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में वित्त विधेयक पर हुई चर्चा का उत्तर देते हुए अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के कुछ नए कदमों का एलान किया। इनमें 10 लाख रुपये तक के सभी होम लोन पर एक पर्सेंट ब्याज सब्सिडी देने की घोषणा भी शामिल है। लेकिन इसकी शर्त यह होगी कि उन मकानों की कीमत 20 लाख रुपये से ज्यादा न हो। हालांकि यह नई रियायत सिर्फ एक साल के लिए ही होगी। इसके लिए उन्होंने एक हजार करोड़ रुपये का मौजूदा बजट में अतिरिक्त प्रावधान किए जाने का संशोधन भी पेश किया। वित्त मंत्री ने शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए एजुकेशन लोन के लाभ का दायरा बढ़ाते हुए अब छात्रों के कानूनी अभिभावकों को भी इसमें शामिल कर लिया। अब तक इसका लाभ सिर्फ व्यक्तिगत तौर पर या फिर पति या पत्नी अथवा बच्चों तक ही सीमित था। मुखर्जी ने मिल्क, पोल्ट्री और मीट प्रॉडक्ट्स की प्रोसेसिंग को प्रेजरवेशन को बढ़ावा देते हुए अब इन्हें भी टैक्स हॉलिडे का लाभ देने की घोषणा की। अब तक यह लाभ सिर्फ फलों और सब्जियों तक सीमित था। वित्त मंत्री ने विकलांग और गंभीर विकलांगता से प्रभावित लोगों को इनकम टैक्स में राहत देते हुए उनकी मानक कटौती 75 हजार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी।

Saturday, July 25, 2009

बोलो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे?

यहां तो हर चीज बिकती है, बोलो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे? इंजीनियरिंग की डिग्री खरीदोगे या मेडिकल की? टेक्निकल लाइन की हर डिग्री मिल जाएगी और वह भी सरकार से मान्यता प्राप्त! लॉ, सोशल वर्क, मास कॉम या होटल मैनेजमेंट की डिग्री चाहिए तो उसके भी इंस्टिट्यूट मौजूद हैं। माल सजा हुआ है। बस, ग्राहक को फंसाना है। यह किसी दुकान का विज्ञापन नहीं है बल्कि मौजूदा दौर के हायर एजुकेशन की कड़वी सचाई जिसे कुछ लोगों ने एक बड़ी मंडी में बदल दिया है। दिल्ली से बाहर निकलिए तो दूर-दूर तक ऐसे ही इंस्टिट्यूट नजर आएंगे। इनमें बहुत कम असली हैं और बाकी सब नकली। इन इंस्टिट्यूट्स को देखकर एक तरफ तो दिल बाग-बाग होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में हम कितने अधिक विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं। हायर एजुकेशन की आज जितनी जरूरत है, सरकार उसे पूरा नहीं कर सकती। ऐसे में प्राइवेट इंस्टिट्यूट सरकार के मददगार ही साबित हो सकते हैं लेकिन अगले ही क्षण जब यह पता चलता है कि इनमें से बहुत -से इंस्टिट्यूट फर्जी हैं तो माथा ठनक जाता है। मेडिकल काउंसिल द्वारा ऐसे इंस्टिट्यूट्स को मान्यता देने का सवाल कई बार शक के दायरे में आ चुका है। अब एआईसीटीई जो इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी संस्थाओं को मान्यता देती है, उसके कामकाज पर भी संदेह पैदा हो चुका है। सीबीआई ने एआईसीटीई की मान्यता को जिस तरह बिकाऊ बताया है, उसे देखकर शिक्षा की कई दुकानों के पकवान फीके पड़ गए हैं। दरअसल, हायर एजुकेशन में जितनी अव्यवस्था है, उतनी शायद कहीं नहीं। लाखों रुपये की फीस भरने के बाद पैरंट्स के लिए बहुत -से संस्थान सिर्फ धोखा साबित होते हैं। यहां सिर्फ कुछ लाख रुपये का धोखा ही नहीं है बल्कि पूरी पीढ़ी के साथ धोखा है। एक युवक जो कल डॉक्टर - इंजीनियर बनने का सपना देखता है। उसका पूरा परिवार उस सपने में शामिल होता है लेकिन एक झटके में ही उसके सपने तब चकनाचूर हो जाते हैं जब उसे पता चलता है कि उसके हाथ में आई डिग्री फजीर् है। यह सच है कि स्कूली शिक्षा भी अब तक आम आदमी के सामने कड़वी सचाई ही रखती है लेकिन इस पर सरकार का किसी न किसी तरह का अंकुश जरूर नजर आता है। अगर पब्लिक स्कूल फीस में मनमानी वृद्धि करते हैं तो सरकार भले ही फीस कम न करा पाए, उन्हें धमकाती तो दिखाई देती ही है। कहने को तो यूजीसी हायर एजुकेशन पर नजर रखने वाली एजेंसी है लेकिन वह सिर्फ नजर ही रख पाती है, किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। यूजीसी की बेबसी इसी बात से साबित होती है कि उसकी साइट पर फर्जी यूनिवर्सिटी की लिस्ट तो है लेकिन उनके खिलाफ कोई कदम उठाने की क्षमता नहीं। एक परंपरा का निर्वाह करते हुए इस साल के शुरू में देशभर की ऐसी 22 यूनिवर्सिटियों की लिस्ट जारी कर दी गई जिन्हें यूजीसी फर्जी मानती है। इनमें दिल्ली की भी 6 यूनिवर्सिटी हैं। साल-दर-साल ऐसी लिस्ट जारी होती है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। कारण यह है कि केस दर्ज कराने का काम राज्य सरकार का है। राज्य सरकारों के पास इतना समय नहीं है कि वे कोई कदम उठाएं। उनके पास और भी बहुत-से महत्वपूर्ण काम हैं। यूजीसी एक्ट के अनुसार अगर कोई फजीर् संस्थान चलाता है तो उसके खिलाफ सिर्फ एक हजार रुपये का जुर्माना ही किया जा सकता है। जुर्माने की राशि बढ़ाने और एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव बरसों से केंद सरकार के पास लटक रहा है। एक तरफ शिक्षा की बढ़ती दुकानें, दूसरी तरफ उन्हें मान्यता देने के नाम पर घपला और तीसरी तरफ यूजीसी की बेबसी। क्या सचमुच हायर एजुकेशन भगवान भरोसे नहीं चल रही। नए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल दसवीं क्लास में बोर्ड का एग्जाम खत्म करने जैसा कदम उठा रहे हैं लेकिन हायर एजुकेशन में तो एक क्रांति की जरूरत है। क्या वह इसकी पहल कर पाएंगे? यशपाल कमिटी ने भी नैशनल कमिशन फॉर हायर एजुकेशन की सिफारिश की है लेकिन ऐसे कमिशन के हाथ अगर खुरदरे होंगे, तभी कुछ भला हो पाएगा अन्यथा ऐसी दुकानों पर बैठे ठग लूटते ही रहेंगे।

Tuesday, July 21, 2009

कलाम के साथ दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बदसलूकी की गई।

एनडीए सरकार के दौर में आपको वह घटना तो याद होगी तो जब तत्कालीन रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडीज को अमेरिकी एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के नाम पर कपड़े उतारने पड़े थे। लेकिन अब तो हमारे देश के सम्मानित नागरिकों की इज़्ज़त हमारी सरजमीं पर ही उतर रही है। ताजा मामला पूर्व राष्ट्रपति और ' जनता के प्रेज़िडंट ' माने जाने वाले डॉ . एपीजे अब्दुल कलाम से जुड़ा हुआ है। भारतीय मिसाइल कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ . कलाम के साथ दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर बदसलूकी की गई। पिछले दिनों अमेरिका की एक एयरलाइन कंपनी के कर्मचारियों ने सुरक्षा जांच के नाम पर डॉ . कलाम की जेब में रखा पर्स , उनका मोबाइल ही नहीं बल्कि जूते तक उतरवा लिए। कलाम के साथ यह घटना उस समय हुई जब वह सरकारी यात्रा पर कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस की फ्लाइट संख्या सीओ -083 से न्यू यॉर्क जा रहे थे।

डॉ. कलाम की बेइज़्ज़ती का जवाब कैसे दिया जाना चाहिए

इस दौरान डॉ . कलाम के साथ भारत सरकार के एक प्रोटोकॉल अधिकारी कस्टम , सीआईएसएफ , इमीग्रेशन और डायल के अफसर एयरोब्रिज के नजदीक पहुंचे। वहां मौजूद कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस के अफसरों ने डॉ . कलाम को सुरक्षा जांच के लिए लाइन में लगने को कहा। प्रोटोकॉल अफसरों ने जांच अधिकारियों को डॉ . कलाम के कद और पद के बारे में सूचित भी किया। बावजूद इसके अपने देश की सरजमीं पर ही उन्हें एयरलाइंस के जांच अधिकारियों ने सुरक्षा संबंधी जांच में छूट देने से इनकार कर दिया। अधिकारियों ने न केवल डॉ . कलाम का पर्स , मोबाइल स्कैन किया बल्कि उनके जूते तक उतरवा लिए। डॉ . कलाम ने अपनी सादगी का परिचय देते हुए अफसरों की मांग के मुताबिक न केवल जांच से सहयोग किया बल्कि बिना शिकायत विमान में सवार हो गए।
एयरपोर्ट सूत्रों के मुताबिक , कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस ने इंडियन एयरलाइंस की सब्सिडरी कंपनी एएसएल को सुरक्षा जांच की जिम्मेदारी सौंपी हुई है। कलाम की जांच करने वाली टीम के सदस्य का कहना है कि पूर्व राष्ट्रपति को देखने के बाद वह असमंजस में पड़ गए लेकिन मौके पर मौजूद एयरलाइंस के विदेशी अधिकारी ने नो वन इज एग्जेम्टेड ( किसी को छूट नहीं ) कहते हुए जांच के आदेश दिए। इसी एयरलाइंस से जुडे़ एक अन्य अधिकारी ने घटना को शर्मनाक बताते हुए कहा , कई बार इसी कंपनी के कर्मचारी भारत में प्रशिक्षण के लिए आते हैं और कभी सुरक्षा जांच से नहीं गुजरते हैं , लेकिन यह एयरलाइंस अक्सर भारत के प्रतिष्ठित नागरिकों और राजनयिकों की सुरक्षा जांच के नाम पर बेइज्जत करती आई है। जबकि , कानून के मुताबिक राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्रियों को एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच से छूट मिलती है। लेकिन इस अमेरिकी एयरलाइन कंपनी ने नियमों की धज्जियां उड़ा दीं।

राज्य सभा में गूंजा मामला , सरकार ने दिए जांच के आदेश

इस मामले की गूंज संसद में भी मंगलवार को सुनाई दी। बीजेपी ने राज्यसभा में इस मामले को जोरदार तरीके से उठाते हुए अमेरिकी एयरलाइन की उड़ानों पर रोक लगाने की मांग कर दी। वहीं , समाजवादी पार्टी ( एसपी ) के वरिष्ठ नेता जनेश्वर मिश्र ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है। उन्होंने कहा कि यह मामला महज प्रक्रियागत या खानापूरी नहीं है। बल्कि इसके पीछे काले - गोरे , ऊंचे - नीचे इंसानों की सोच काम कर रही है। उन्होंने गांधी , मंडेला और राम मनोहर लोहिया जैसी हस्तियों का नाम इस सिलसिले में लेते हुए पूरे मामले को एक भारतीय का अपमान करार दिया। उन्होंने कहा कि यह साफ तौर पर रंगभेद का मामला है। बीजेपी के राज्यसभा नेता अरुण जेटली ने भी कहा कि यह महज जांच का मुद्दा नहीं है बल्कि मामले की गंभीरता कहीं आगे तक है। सदन की भावनाओं को भांपते हुए सरकार की ओर से नागरिक उड्डयन मंत्री ( सिविल एविएशन मिनिस्टर ) प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि मैं सदन की भावनाओं का सम्मान करता हूं और इस मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

बच्चों को क, ख ग, घ वगैरह को पुराने ढर्रे से हटा कर फिल्मी सितारों के नाम के साथ संबोधित करके समझाने की कोशिश

'ए' से आमिर खान, 'बी' से बच्चन, 'सी' से चमेली वगैरह संबोधन से अगर बच्चों को पढ़ाया जाए तो यह किसी फनी मूवी से कम नहीं होगा। कॉमेडी फिल्म बनाने वाले तो इस तरह के मसाले की खोज में रहते ही हैं। दर्शकों को कुछ समय के लिए सिनेमा हॉल में हंसाने के लिए इस तरह का फिल्मी मसाला काफी होता है। लेकिन यहां हम जो बताने जा रहे हैं वह किसी फिल्म की कहानी नहीं है। न ही इस विषय पर कोई फिल्म बनने वाली है। असल में फनी कही जाने वाली यह असलियत उत्तर प्रदेश के कई स्कूलों में अमली जामा पहने है। उत्तर प्रदेश में भी कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है। दिल्ली से सटे नोएडा के एक नामी स्कूल की दो टीचरों ने हिंदी की वर्णमाला का ज्ञान कराने वाली बच्चों की एक पुस्तक तैयार की है। एक नामी इंग्लिश मीडियम स्कूल में इस पुस्तक से बच्चों को क, ख ग, घ वगैरह को पुराने ढर्रे से हटा कर फिल्मी सितारों के नाम के साथ संबोधित करके समझाने की कोशिश की गई है। मसलन 'ऋ' से हम बचपन से ही तपस्या करने वाले महानुभाव ऋषि का संबोधन करते आ रहे है। लेकिन इस पुस्तक में 'ऋ' से ऋतिक रोशन बताया गया है। इसी तरह 'ऐ' से बच्चे ऐश्वर्य राय सीख रहे हैं। इन सभी बातों को यूपी के राज्य मंत्री कलराज मिश्र ने कल उठाया। उनका कहना है कि इस तरह से ये कुछ स्कूल बच्चों को सही ज्ञान देने की बजाए फिल्मों की तरफ धकेल रहे हैं। श्री मिश्र के अनुसार हिंदी की वर्णमाला में ही खामियां नहीं हैं। यूपी के कई नामी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली साइंस और अन्य विषय की पुस्तकों में भी कई खामियां हैं। मसलन एक पुस्तक के 2004-05 के एडिशन में जगदीश चंद बोस का जन्म 30 नवंबर 1858 छपा था। लेकिन इसी पब्लिकेशन्स की 2008-09 के एडिशन में श्री बोस का जन्म 13 नवंबर 1858 छपा है। यह पुस्तक यूपी के कई नामी अंग्रेजी स्कूलों में लगी हुई है।

Saturday, July 18, 2009

देशभर में मशहूर हो चुके प्रोफेसर मटुकनाथ को पटना यूनिवर्सिटी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया

लव गुरु के रूप में देशभर में मशहूर हो चुके प्रोफेसर मटुकनाथ को पटना यूनिवर्सिटी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। यूनिवर्सिटी में शनिवार को हुई सिंडिकेट की बैठक में सर्वसम्मति से प्रोफेसर चौधरी को बर्खास्त करने का निर्णय लिया गया। मटुकनाथ पटना यूनिवर्सिटी के बी. एन. कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर थे। करीब छह साल पहले मटुकनाथ तब सुर्खियों में आए थे, जब उनकी पत्नी ने उन्हें और उनकी प्रेमिका व स्टूडेंट जूली को सरेआम पीटा था। इसके बाद 15 जुलाई 2006 को उन्हें निलंबित कर दिया गया था। निलंबन अवधि में भी प्रोफेसर चौधरी पत्र- पत्रिकाओं एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रेम पर व्याख्यान देते रहे। उनके विरुद्ध लगे आरोप की जांच करने के लिए कमेटी की रिपोर्ट पर कुलपति श्यामल लाल की अध्यक्षता में सिंडिकेट में प्रो. चौधरी की सेवा समाप्त करने का निर्णय लिया गया। हालांकि सिंडिकेट ने बी.एन. कॉलेज के ही अंग्रेजी के शिक्षक ऋषिकेश मिश्रा के निलंबन को चेतावनी देकर वापस ले लिया। उन्हें अपने काम करने के तरीके में सुधार करने की चेतावनी देने के साथ ही उनकी एक साल की वेतन बढ़ोतरी वापस ले ली गई।

टीचरों को भी ऊंची सैलरी दी जानी चाहिए

बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने के समर्थकों को अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के रूप में बड़ा तरफदार मिल गया है। बकौल हिलेरी, अमेरिका में भी इस मुद्दे पर बहस जारी है। हिलेरी जेवियर कॉलिज के स्टूडेंट्स के साथ खास इंटरएक्टिव सेशन में हिस्सा ले रही थीं। उनके साथ टीच इंडिया कैंपेन के ब्रैंड ऐंबैसडर आमिर खान और सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ के अरनब गोस्वामी भी थे। इस मौके पर हिलेरी आमिर की तारीफ करने से भी नहीं चूकीं। उन्होंने कहा, आमिर खान यहां हमारे साथ हैं, यह मेरे लिए खुशी की बात है। वह न केवल बॉलिवुड के आइकन हैं बल्कि शिक्षा के जबर्दस्त समर्थक भी हैं। हिलेरी ने कहा, मैं यहां यह देखने आई हूं कि अमेरिका और भारत किस तरह शिक्षा के साझा मुद्दे पर काम कर सकते हैं। शिक्षा सभी अंतरों को पाटकर नए अवसर मुहैया कराती है। शिक्षा हमेशा से मेरे दिल के बहुत नजदीक रही है। शिक्षा के माध्यम पर हिलेरी का कहना था, न्यू यॉर्क सिटी में प्रमुख स्कूल स्पैनिश, चाइनीज, रशियन भाषा के हैं। समाज का बड़ा हिस्सा कहता है कि बच्चों को उन्हीं की भाषा में पढ़ाया जाए। लेकिन दिक्कत यह है कि न्यू यॉर्क सिटी के स्कूलों में एक से अधिक भाषा जानने वाले टीचर ज्यादा नहीं हैं। आमिर का मानना था कि किसी भी बच्चे को उसी भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए जिसमें वह और उसका परिवार सुकून महसूस कर सके। इससे वह अपनी संस्कृति से जुड़ा रहेगा। अमेरिका में शिक्षा की चुनौतियों पर हिलेरी की कहना था, अमेरिका में शिक्षा पर काफी पैसा खर्च होता है लेकिन हम उन बच्चों के लिए कुछ नहीं करते जो पीछे रह जाते हैं। वहां बहुत ज्यादा असमानता है। भारत में तकनीकी शिक्षा दुनिया में सबसे बेहतरीन है। शिक्षा में अवसर के मुद्दे पर हमें मिलकर काम करना होगा। तारे जमीन पर में शिक्षा के व्यापक स्वरूप पर जोर देने वाले आमिर का कहना था, शिक्षा को सबसे ज्यादा अहमियत दी जानी चाहिए। टीचरों को भी ऊंची सैलरी दी जानी चाहिए ताकि इस क्षेत्र में प्रतिभावान लोगों को खींचा जा सके। हिलेरी ने टीच इंडिया और टीच फॉर इंडिया अभियान की तारीफ करते हुए कहा, इससे ऐसा आंदोलन शुरू होगा जो भारत में शिक्षा क्षेत्र में मौजूद गैरबराबरी को खत्म करने के लिए एक पुल का काम करेगा।

Friday, July 17, 2009

एस. बी. सुब्बाराव ने एआईसीटीई के मेंबर सेक्रेटरी के. नारायण राव की ओर से रिश्वत मांगी

एआईसीटीई के मेंबर सेक्रेटरी नारायण राव और मिडिल मैन एस. बी. सुब्बाराब को शुक्रवार को 3 दिन के लिए सीबीआई रिमांड पर भेजा दिया गया। सीबीआई ने पटियाला हाउस कोर्ट में इन दोनों को पेश किया और कहा कि पूरी साजिश का पर्दाफाश करने के लिए पूछताछ की जरूरत है, लिहाजा उन्हें रिमांड पर दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने दोनों को 20 जुलाई तक रिमांड पर भेज दिया है। गौरतलब है कि हैदराबाद स्थित एक इंजीनियरिंग कॉलिज के मालिक ने सीबीआई के सामने शिकायत दर्ज कराई कि मिडल मैन एस. बी. सुब्बाराव ने एआईसीटीई के मेंबर सेक्रेटरी के. नारायण राव की ओर से रिश्वत मांगी है। सुब्बाराव ने शिकायती से कहा कि उसके कॉलेज के इंस्पेक्शन और उसे मान्यता देने के एवज में उसे 20 लाख रुपये देने होंगे। पहली किस्त के रूप में 5 लाख रुपये देने की बात तय हुई। इस बाबत सीबीआई ने जाल बिछाया और 16 जुलाई की सुबह मेंबर सेक्रेटरी और मिडल मैन दोनों को 5 लाख रुपये की रिश्वत की रकम के साथ गिरफ्तार कर लिया। सीबीआई ने दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत केस दर्ज किया है। गुरुवार को सीबीआई ने मेंबर सेक्रेटरी के राजधानी स्थित दफ्तर, घर और उनके हैदराबाद स्थित घर पर भी छापे मारे। सीबीआई ने बड़ी संख्या में आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए हैं। सीबीआई के मुताबिक मेंबर सेक्रेटरी के राजधानी के निवेदिता कुंज स्थित घर से 9 लाख रुपये कैश, बैंक अकाउंट व प्रॉपर्टी से संबंधित दस्तावेज बरामद किए गए हैं। बैंक में साढ़े 8 लाख रुपये जमा हैं। सीबीआई तमाम दस्तावेजों की छानबीन कर रही है। सीबीआई ने मिडल मैन सुब्बाराव के ठिकानों पर भी छापेमारी की है।

(DDA) वर्ष 2014-15 तक दिल्ली में 66 हजार से अधिक मकानों का निर्माण

दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) वर्ष 2014-15 तक दिल्ली में 66 हजार से अधिक मकानों का निर्माण
करने जा रहा है। शहरी विकास राज्य मंत्री सौगत राय ने लोकसभा में जयाप्रदा, मधु गौड़, यास्खी भास्करराव, बापूराव पाटिल खतगांवकर और एकनाथ महादेव गायकवाड़ के सवालों के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि डीडीए ने सूचित किया है कि वर्ष 2009-10 से लेकर वर्ष 2014-15 के बीच शहर के विभिन्न भागों में एचआईजी, एमआईजी, एलआईजी और ईडब्ल्यूएस जैसी श्रेणियों के 66 हजार से अधिक मकानों के निर्माण की आवासीय परियोजनाओं की योजना बनाई जा रही है। राय ने बताया कि एचआईजी श्रेणी में 8373, एमआईजी श्रेणी में 2929, एलआईजी श्रेणी में 26666 तथा ईडब्ल्यूएस में 28508 मकान बनाए जाएंगे। इन मकानों का निर्माण मोलड़ बंद, जसोला, कोंडली, मुखर्जी नगर, मोतिया खान अशोक नगर, कल्याण विहार, नरेला, पीतमपुरा, वसंत कुंज, सुल्तानगढ़ी, त्रिलोकपुरी, रोहिणी और द्वारका आदि इलाकों में किया जाएगा। एनबीटी नजरिया: सिर्फ नए मकान बनाने से क्या फायदा यदि इनके ड्रॉ में पारदर्शिता न बरती जाए। डीडीए की 2008 की फ्लैटों की स्कीम को लेकर काफी हंगामा हुआ। इसमें गड़बड़ी के आरोप लगे और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। हालांकि, सरकार ने अब साफ किया है कि इसमें कोई धांधली नहीं हुई। लेकिन जबतक डीडीए के कामकाज में पारदर्शिता नहीं होगी, ऐसे सवाल उठते रहेंगे। इसलिए, बड़ी संख्या में फ्लैट बनाने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित हो कि यह सही लोगों को मिलें।

Tuesday, July 14, 2009

बजट को दिशाहीन और गरीबों का विरोधी

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी का कहना है कि इंडियन इकॉनमी में पॉजिटिव बदलाव
यानी रिकवरी शुरू हो चुकी है। कई सेक्टरों में इसके साफ संकेत मिल रहे हैं। इसके बावजूद कई बड़ी चुनौतियां बरकरार हैं। वित्तीय घाटा 6 फीसदी की ऊंचाई पर पहुंच गया है। कर्ज का मर्ज भी बढ़ रहा है। ग्रोथ रेट बढ़ाकर ही इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। इन चुनौतियां से निपटने के पुख्ता उपाय हमने 2009-10 के बजट में कर दिए हैं। मंगलवार को लोकसभा में बजट पर बहस का जवाब देते हुए प्रणव ने विपक्षी पार्टियों के उन नेताओं को आड़े हाथ लिया, जिन्होंने बजट को दिशाहीन और गरीबों का विरोधी बताया था। वित्त मंत्री ने कहा, 'मैंने बजट को लेकर विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रिया संसद और टीवी में सुनी। मौजूदा समय में विश्व और भारत की अर्थव्यवस्था का जो हाल है, वह किसी से छिपा नहीं है। ऐसी परिस्थिति में इससे बेहतर बजट बनाया नहीं जा सकता। बजट में सभी को कुछ न कुछ देने की कोशिश की गई है। विपक्षी नेताओं को यह जानना और समझना होगा कि बजट बनाते समय वैश्विक और अपने देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखना जरूरी होता है।' प्रणव ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों में सुधार यानी रिकवरी के संकेत मिल रहे हैं। सीमेंट और स्टील सेक्टर में उत्पादन काफी बढ़ा है। एफएमजीसी सेक्टर की ग्रोथ रेट मई और जून दोनों महीनों में 12 फीसदी से ज्यादा रही है। यही हाल ऑटो सेक्टर का है। खरीदारी यहां भी बढ़ रही है। यह सुधार की शुरुआत है, अब हमें इसको आगे बढ़ाना है। इसके लिए जरूरी है कि ग्रोथ रेट बढ़े, लोगों की आमदनी बढ़े, ताकि खरीदारी करने की शक्ति में इजाफा हो। ऐसा होने पर ही बाजार में डिमांड बढ़ेगी और बाजार में रौनक वापस आएगी। दादा ने कहा कि बेशक मॉनसून आने में थोड़ी देरी हो गई है। मगर देर से सही अगर यह दुरुस्त आया, तो हमें हाई ग्रोथ रेट हासिल करने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। बेशक मैं ज्यादा आशावादी नहीं हूं, मगर मुझे उम्मीद है कि बरसात सामान्य आएगी और अर्थव्यवस्था में तेजी की हरियाली देखने को मिलेगी। बढ़ते वित्तीय घाटे का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि बेशक यह अनुमान से ज्यादा हो गया है। इसके बावजूद हमने 3 लाख करोड़ रुपये कर्ज लेने की बात बजट में की है। इसका एक ही मकसद है कि रोजगार बढ़ाने, गरीबों को पर्याप्त अनाज देने और विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की गति में और तेजी लाई जा सके। क्या किसी वित्त मंत्री ने पहले ऐसा किया था। मैंने रिस्क लिया है, मगर सारे समीकरणों का सही तरीके से गणित करके। मुझे उम्मीद है कि हमारा गणित सही बैठेगा। दादा ने कहा कि 27 साल पहले जब हमने अपना पहला आम बजट पेश किया था तो बजट लक्ष्यों और वादों को लेकर विपक्षी नेताओं ने ताने कसे थे। मगर बाद में जब वे लक्ष्य हासिल हो गए और वादे पूरा हो गए तो विपक्षी नेताओं को मुंह पर ताला लगाना पड़ा। इस बार भी बजट को लेकर कई तरह की बातें की गई हैं। समय बताएगा कि हमारा बजट कितना सही है।

Saturday, July 11, 2009

राजनीति में वह अभी भी केंद्रबिंदु बने हुए हैं।

मुनाफे को लेकर पूर्व रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव पर आंकड़ों की बाजीगरी के आरोप लगाए गए हैं। पर
उन्हीं आंकड़ों को आधार बनाकर वह खुद को पाक-साफ साबित करने की जुगत में लगे हैं। कहते हैं आंकड़ों को घुमा-फिराकर भ्रम पैदा किया जा रहा है।
उनका कहना है कि राजनीति में वह अभी भी केंद्रबिंदु बने हुए हैं। इन सब और तमाम दूसरे मुद्दों पर उन्होंने नरेश तनेजा से बातचीत की। पेश है पूरी बातचीत: क्या सही है कि आपके रेल मंत्री रहते एक लाख सत्तर हजार से अधिक खाली पद इसलिए नहीं भरे गए, ताकि खर्च बचाकर सरप्लस दिखा सकें? बिल्कुल झूठ है। बल्कि रेलमंत्री रहते हुए तो मैंने पहले से बंद की गई भर्ती प्रक्रिया को खोलकर खाली पदों को भरने का काम शुरू किया था। मैंने तो अपने कार्यकाल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के बैकलॉग में रिक्त पदों को भरवाया था। एनडीए सरकार के रेलमंत्री नीतीश कुमार ने तो अपने कार्यकाल में सभी विभागों के 20 प्रतिशत पद स्क्रैप कर दिए थे। अभी भी कई परीक्षाओं के रिजल्ट आने बाकी हैं। मैं तो चाहता हूं कि अभी भी खाली सीटों पर भर्ती की जाए ताकि गरीबों को नौकरी मिल सके। वर्तमान रेलमंत्री श्वेतपत्र लाने की बात कह रही हैं, आपका क्या कहना है? जब बात दिमाग में आ ही गई है तो श्वेतपत्र लाया जाए। इसमें मेरे खिलाफ क्या है? कोई चार्जशीट थोड़े ही है। मैंने तो खुद मांग की है कि एक हफ्ते में ही लाया जाए। सदन की कमिटी बनाकर सारे फाइनैंस, बजट वगैरह की जांच कर ली जाए। ममता जी ने अपने भाषण में कहा था कि वे विजन 2020 के मद्देनजर रेलवे पर श्वेतपत्र लाएंगी। पहले भी नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस के रेलवे मंत्री रहते हुए श्वेतपत्र लाया जा चुका है। ममता जी द्वारा श्वेतपत्र लाए जाने की बात की गलत ढंग से व्याख्या की जा रही है। आंकड़ों की बाजीगरी है। कहा जा रहा है कि भारतीय रेलवे के नब्बे हजार करोड़ रुपये सरप्लस अर्न करने की बात लालू यादव ने झूठ कही है। आपने 90 हजार करोड़ रुपये सरप्लस होने की बात कही जबकि सरकार 8,361 करोड़ यानी तकरीबन दस गुना कम सरप्लस की बात कर रही है, इतना फर्क कैसे? दुर्भाग्य है कि लोग पूरी बात पढ़ते ही नहीं। यह 8,361 करोड़ का जो आंकड़ा है वह तो सिर्फ वर्ष 2008-09 यानी एक ही वर्ष का है। यह आंकड़ा इस वर्ष के लाभांश पूर्व कैश सरप्लस 17,400 करोड़ रुपये में से 3,000 करोड़ रुपये का डिविडेंड व 7,000 करोड़ रुपये का डीआरएफ घटाने और बची हुई राशि में रेलवे के सरप्लस फंड पर मिले एक हजार करोड़ रुपये के ब्याज को जोड़ने पर आता है। अब अगर वर्ष 2008-09 के सरप्लस 17, 400 करोड़ रुपये में पिछले चार साल का सरप्लस 71,576 रुपये जोड़ दें तो 88,966 करोड़ रुपये की राशि आ जाएगी। मैंने वर्ष 2009 का अंतरिम बजट पेश करते हुए 2008-09 के लाभांश पूर्व कैश सरप्लस का अनुमान 17, 400 करोड़ रुपये की जगह 19,320 करोड़ रुपये लगाया था। पिछले चार साल की लाभांश पूर्व कैश सरप्लस राशि में अगर 17, 400 करोड़ रुपये की जगह यह 19,320 करोड़ रुपये की अनुमानित राशि जोड़ दें तो कुल राशि 88,966 करोड़ रुपये नहीं, बल्कि 90,896 करोड़ रुपये ही आएगी, जिसका मैं दावा कर रहा था। अब बताइए मैं गलत कहां हूं। ममता जी ने जो आंकड़ा दिया वह शुद्ध मुनाफा है न कि कैश सरप्लस। जबकि मैंने लाभांश पूर्व कैश सरप्लस की बात की थी। दोनों में अंतर होता है। इसी को आधार बनाकर भ्रम फैलाया जा रहा है। यह कहना कितना सही है कि आप पलिटिकली फिनिश हो रहे हैं? बोलने वालों को मैं भला रोक सकता हूं क्या? मैं आज भी सभी का केंद्रबिंदु और शक्तिशाली हूं, इसीलिए आज भी सब लोग मेरे पीछे लगे रहते हैं। खैर, अब राज्य की राजनीति करेंगे या सेंटर में ही बने रहेंगे? बिहार में तो हमारी जड़ें हैं, उसको मैं कैसे छोड़ सकता हूं। बिहार से ही तो मैं देश की राजनीति तक पहुंचा हूं। वहां पर तो हमेशा मेरा ज्यादा ध्यान बना ही रहेगा, पर मैं केंद्र में भी सक्रिय रहूंगा। बिहार में अपनी जड़ों को फिर से मजबूत करने के लिए क्या योजना है? पूरी पार्टी को फिर से मजबूत करने के उपायों पर जोर दिया जा रहा है। कार्यकर्ताओं से मिलने-जुलने का दौर शुरू हो चुका है। रैलियों, जुलूसों और आंदोलन चलाए जाने के कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। आंदोलन क्यों और किस मुद्दे पर? बिहार की सरकार हर मोर्चे पर फेल हो गई है। हम जनता के मुद्दों को लेकर आंदोलन और रैलियां करेंगे। बिहार में गिली-गिली छू करने वाले गोगिया पाशा के तमाशों जैसी सरकार काम कर रही है। झूठ और अफवाह फैलाने वाले ढोंगी लोग मिलकर सरकार चला रहे हैं। लालू जी आप अगर इस समय रेलमंत्री होते तो कैसा बजट पेश करते? मैं तो दोबारा रेलमंत्री बनता ही नहीं। रेल मंत्रालय मैं लेता ही नहीं। क्यों क्या एक ही बार से घबरा गए आप? नहीं घबराने की बात नहीं है, मैंने वहां अपना काम पूरा कर दिया है तो दोबारा लेकर क्या करता। आपके साले साधु यादव ने आपका साथ छोड़ दिया, इसका कितना नुकसान हुआ आपको? मेरा क्या नुकसान होगा। साधु यादव ने मुझे नेता थोड़े ही बनाया है। मैंने उसे बनाया है। साथ छोड़ने से उसे ही नुकसान हुआ, वह चुनाव हार गया। तो अब उनसे रिश्तेदारी और बातचीत है? नहीं हमारी उनसे कोई बातचीत नहीं है। पिछली केंद्र सरकार में आपकी हैसियत काफी मजबूत थी, पर अब आपको कोई पद नहीं दिया गया? मुझे इससे किसी तरह का तनाव या शिकायत नहीं। आई एम रिलेक्स्ड नाउ। जब हमारे पास इतनी ताकत ही नहीं, सिर्फ चार सांसद ही हैं तो वे भला हमें मंत्री पद क्यों देंगे। अब दिन ज्यादा अच्छे बीत रहे हैं या मंत्री पद पर रहने के दौरान बीतते थे? मैं तो बल्कि अब ज्यादा खुश और रिलेक्स्ड हूं। मंत्री बनकर कोई ज्यादा लाभ नहीं था। क्या अभी भी आपको मैनिजमंट स्कूलों से लेक्चर देने के लिए बुलावे आते हैं? नहीं, अभी तो मैं मंत्री नहीं हूं तो मुझे बुलावा क्यों आएगा। हां, अगर कहीं से आया तो जरूर जाऊंगा। आपने जो चौथा मोर्चा तो चौथे नंबर पर ही रह गया? मैं क्या कह सकता हूं। जनता ने हमें वोट ही नहीं दिए। हम फिर आगे आने की कोशिश करेंगे। कांग्रेस अगर बिहार में आगे भी अकेली ही चली तो आपकी रणनीति क्या रहेगी? इस पर अभी से अडवांस में कुछ नहीं कहा जा सकता। मौका और हालात देखकर ही तय किया जाएगा कि क्या करें। घर के काम में हाथ बंटाते हैं कि नहीं? खाना-वाना बनाना जानते हैं? नहीं-नहीं। बस मेरा काम तो डायरेक्शन देने तक ही सीमित है।

''गांवों में विद्युतीकरण से जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण में मदद

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलामनबी आजाद ने शनिवार को ग्रामीण विद्युतीकरण की जमकर वकालत की। उन्होंने तर्क दिया कि इससे गांवों में टेलीविजन की पहुंच होगी और जनसंख्या वृद्धि पर लगाम लगाई जा सकेगी। विश्व जनसंख्या दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आजाद ने कहा, ''गांवों में विद्युतीकरण से जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण में मदद मिल सकती है। बिजली के कारण घरों में टेलीविजन की पहुंच होगी, जिससे जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित होगी। जब बिजली नहीं रहती है तो लोग जनसंख्या वृद्धि की प्रक्रिया में लग जाते हैं।''
आजाद ने आगे कहा, ''ऐसा मत सोचिए कि मैं इसे हल्के में कह रहा हूं। मैं गंभीरता के साथ कह रहा हूं। टीवी का एक बड़ा प्रभाव है। इस समस्या से निपटने का यह एक बड़ा माध्यम है।'' आजाद ने कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार गांवों में विद्युतीकरण के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रही है। उन्होंने कहा, 'गांवों में बिजली होगी तो टीवी के जरिए जनसंख्या वृद्धि 80 प्रतिशत तक कम की जा सकती है।' हालांकि आजाद को अपनी इस योजना से काफी उम्मीदें हैं लेकिन फिलहाल यह देखना है कि इस अनोखी योजना और इसके इसके उद्देश्यों पर विपक्षी दलों की क्या प्रतिक्रिया होती है।

Thursday, July 9, 2009

जी-8 समिट में कई दिलचस्प बातें हुईं।

इटली की राजधानी रोम में हुए जी-8 समिट में कई दिलचस्प बातें हुईं। आप भी पढ़िए और आनंद उठाइए...
सबसे महफूज है गद्दाफी का तंबू! दुनिया के सबसे बडे़ औद्योगिक देशों के संगठन जी-8 और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों जी-5 के शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहे इटली के ला किला शहर में लीबियाई नेता मुअम्मर गद्दाफी का तंबू चर्चा में है। असल में गद्दाफी कोप्पिटो में एक आलीशान तंबू में रात बिताएंगे। इस शहर में बीते अप्रैल में आए विनाशकारी भूकंप को देखते हुए बाकी राष्ट्राध्यक्षों को भी शायद तंबू में सोने से गुरेज न होता, पर वे सभी होटलों में ठहरे हैं। ये होटल पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के एक कॉम्प्लेक्स की होटलों में तब्दील कर दी गई इमारतें हैं। इतालवी अधिकारियों ने भी कबूल किया है कि भूकंप के झटकों के मद्देनजर तंबू में सोना सेफ है। गद्दाफी ने वादा किया है कि वह लौटते समय अपना तंबू भूकंप पीड़ित शहर के नागरिकों को दे जाएंगे। पीएम को गिफ्ट में मिली टी-शर्ट ब्राजीली फुटबॉल टीम के अध्यक्ष लुईस इनासियो लूला डा सिल्वा ने यहां भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत जी-5 नेताओं को अपनी राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की पीली टी-शर्ट तोहफे में दी। इस पर खिलाड़ियों के ऑटोग्राफ हैं। इन टी-शर्ट पर 1 से 5 तक के नंबर छपे हैं। जी-8 शिखर वार्ता के मौके पर इकट्ठा हुए जी-5 नेताओं को यह तोहफा जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिया गया। मनमोहन सिंह को जर्सी देते हुए सिल्वा ने उम्मीद जताई कि ब्राजील की तरह भारतीय फुटबॉल टीम भी कामयाबी की बुलंदियों को छुएगी। मनमोहन की 2006 में ब्राजील यात्रा के दौरान भारत ने अपने फुटबॉलरों की कोचिंग में ब्राजील से मदद मांगी थी। इसके बाद कुछ दिनों के लिए एक मशहूर ब्राजीली कोच भी भारत आया था। ओबामा ने की बर्लुस्कोनी की अनदेखी जी-8 समिट की मेजबानी कर रहे इटली के पीएम सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने सोचा भी नहीं होगा कि स्वागत करने के लिए आगे बढ़ाए गए उनके हाथ की इतनी अनदेखी हो जाएगी। यह मामला समिट के पहले दिन फोटो शूट के वक्त का है। बर्लुस्कोनी ने सीढ़ी की तरफ बढ़ रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा का अभिनंदन करने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया पर ओबामा इसकी अनदेखी करते हुए आगे बढ़ते गए। मजबूरन, बर्लुस्कोनी को अपना हाथ वापस लेना पड़ा। हालांकि जब ओबामा को इस भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने बर्लुस्कोनी को मुस्कराकर जवाब दिया। पत्नियां निकलीं दौरे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पत्नी गुरशरण कौर ने गुरुवार को जी-8 व जी-5 नेताओं की पत्नियों के साथ मिलकर ला किला शहर के सिटी सेंटर का दौरा किया। बीते 6 अप्रैल को आए विनाशकारी भूकंप में यह जगह तबाह हो गई थी। इस भूकंप में 300 लोगों ने जान गंवाई जब कि 50,000 के करीब लोग बेघर हुए थे। ला किला में बुधवार को भी रिक्टर पैमाने पर भूकंप के 2.1 और 2.5 तीव्रता के झटके महसूस किए गए। इससे पहले बुधवार को कौर और चार अन्य विश्व नेताओं की पत्नियों ने पोप बेनिडिक्ट 16वें से मुलाकात की थी।

गर्व किसका?

धन, जन और यौवन का गर्व मत करो, क्योंकि काल उसे क्षणमात्र में ही हर लेता है। गर्व किसका? धन का, तन का, यौवन का। इस संपूर्ण मायामय प्रपंच को छोड़ कर तुम ब्रह्मापद को जानो और उसमें प्रवेश करो। ज्ञान को प्राप्त करो। अध्यात्म में आओ। अपने समय की एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेत्री है। इतनी सुंदर थी कि जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन जैसे ही बुढ़ापा आया, शक्ल इतनी बिगड़ गई कि टेलिविजन वाले इंटरव्यू लेने जाते हैं तो वह इंटरव्यू नहीं देतीं। क्योंकि वह शक्ल जो बड़ी सुंदर थी, आज देखने लायक नहीं रही। इसमें दोष उस स्त्री का नहीं है, समाज का नहीं है, दोष किसी का नहीं। विधि का विधान है कि जिसका हम गर्व करते हैं, जिस चीज के लिए हम सबसे ज्यादा अहंकार करते हैं, वह चीज जब खो जाती है तो हमारा जीना मुश्किल हो जाता है। हमारे पांव के नीचे से जमीन खिसक जाती है। तन का गर्व, धन का गर्व, मेरे पीछे इतने लोग हैं सुनने वाले, यह सब भी आदमी को परेशान करता है। और समय क्षण मात्र में कभी भी वह सब आपके सामने से छीन सकता है। एक बार की बात है, एक राजा था। उसकी कोई औलाद नहीं थी। मंत्री राजा को कहने लगे -महाराज आपकी कोई औलाद नहीं है। आपके बाद इस सत्ता का कोई उत्तराधिकारी तो बना दीजिए। राजा ने काफी सोचा, किसको बनाऊं? उसने एक योजना बनाई। एक मेला रचवाया। सारे राज्य में ऐलान करवाया कि राजा एक बहुत बड़ा मेला रचेगा, उस मेले में राजा कहीं छुपा होगा। और जो भी उसे ढूंढ निकालेगा, वो इस राज्य का राजा बन जाएगा। तो तयशुदा दिन को एक बहुत बड़े मैदान में मेला रचा गया। सारा का सारा राज्य ही उस मेले के अंदर घुसने की कोशिश में लग गया। लोग उसमें किसलिए घुस रहे थे? राजा को ढूंढने। एक ही मकसद था, एक ही प्रयोजन था, एक ही कारण था कि इस मेले में राजा को ढूंढेंगे और राजा बनेंगे। लेकिन राजा भी बड़ा ज्ञानी था। मेले के दरवाजे के भीतर घुसते हीं दाईं और बाईं ओर शानदार दुकानें सजी हुई थीं। सबसे पहले गोलगप्पों की दुकान, और वे भी बिल्कुल मुफ्त। जितनी मर्जी जी भर के खाइए। लोग गए किसलिए थे उस मेले में? राजा को ढूंढने। लेकिन चंद लोग गोलगप्पों की दुकान पर रुक गए। कहने लगे, पहले ये जो मुफ्त में गोलगप्पे मिल रहे हैं, ये खाते हैं। फिर आगे चलेंगे। कुछ लोग जो उस लालच के सामने नहीं फिसले, उन्होंने कहा कि हम यहां पर राजा को ढूंढने आए हैं, गोलगप्पे खाने नहीं। लेकिन जो आगे बढ़े उन्हें फिर रंग-बिरंगे कपड़ों की दुकान मिली, कपड़े भी मुफ्त। जो चाहो वो ले लो। राजा ने यह नया लालच रख दिया। तो कुछ लोग गोलगप्पों में अटक गए और उसके बाद कुछ कपड़ों में। जो इन दोनों में नहीं फंसे, वो आगे बढे़ तो राजा ने और दूसरे किस्म के लालच दिए हुए थे। तो हर कोई आगे बढ़ता गया और किसी न किसी लालच में रुकता गया। एक नवयुवक हर तरह के लालच से बचता अंतत: आखिरी पड़ाव तक पहुंचा तो वहां एक मंदिर नजर आया। मंदिर में एक पुजारी पूजा कर रहा था। उस युवक ने वहां पर भी पूजा स्थल पर ध्यान नहीं दिया, पुजारी पर ध्यान दिया। और जैसे ही पुजारी ने पीछे पलट कर देखा, पहचान गया। वो पुजारी ही राजा था। उसने राजा को पहचान लिया तो क्या हुआ? जैसे ही उसने राजा को ढूंढा तो वो मेले की सारी वस्तुओं का मालिक बन गया। हम संसार रूपी मेले में किसके लिए आए हैं? इस मेले में हम उस परमात्मा रूपी राजा को ढूंढने आए हैं। लेकिन अटक गए हैं कहां, फिसल गए कहां, छोटी-छोटी लालचों में। तो जिसने उस परमात्मा रूपी राजा को जान लिया, वह पूरे विश्व का, पूरे ब्रह्मांड का राजा बन जाएगा।

Saturday, July 4, 2009

सीबीएसई के 10वीं और 12वीं कक्षा के कोर्सों में भी स्किल डिवेलपमेंट कोर्स ला रहे हैं।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल शिक्षा को नए कलेवर में ढालकर नए दौर की जरूरतों के मुताबिक बनाना चाहते हैं। दसवीं के बोर्ड को गैर जरूरी बनाने की बात कहकर वे देश में शिक्षा सुधारों पर पहले ही नई बहस छेड़ चुके हैं। वे बच्चों के भारी-भरकम बस्तों के बोझ को तो कम करना ही चाहते हैं, शिक्षा को रोजगारपरक भी बनाना चाहते हैं। नरेश तनेजा से एक विशेष इंटरव्यू में उन्होंने शिक्षा और इससे जुड़े अपने अजेंडे के बारे में विस्तार से बताया : बस्तों का बोझ कैसे कम करेंगे? हमारे नैशनल करीकुलम फ्रेमवर्क-2005 में साफ लिखा है कि बच्चों का बोझ कम करना है। बच्चों को स्कूल में सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए। उनकी पढ़ाई का एक घंटा स्कूल में बेशक बढ़ा दिया जाए पर घर के होमवर्क का बोझ कम किए जाने की जरूरत है। हम 3-4 घंटे का होमवर्क देने के हक में नहीं हैं। घर जाकर उन्हें आजाद माहौल मिलना चाहिए। इसके लिए मार्किंग सिस्टम भी चेंज होना चाहिए। क्लास 6 तक कोई एग्जाम न हो। क्लास टेस्ट लेकर बच्चों को आगे बढ़ाने का काम होना चाहिए। पर्सेन्टाइल सिस्टम से असेसमेंट हो मार्क्स से नहीं। हम सिलेबस की फालतू चीजों को हटाने पर विचार करेंगे। 10वीं का बोर्ड हटाने के प्रस्ताव से लोग खुश नहीं हैं? सीबीएसई से संबंधित बारहवीं तक के जो स्कूल हैं, उनमें अगर बच्चों को उसी स्कूल में 10वीं से 12वीं में जाना है तो वहां बोर्ड की क्या जरूरत है। हां, जो स्कूल सिर्फ 10 वीं तक के ही हैं, वहां बोर्ड का एग्जाम जरूरी है, क्योंकि 10वीं के बाद बच्चा प्री-यूनिवर्सिटी या पॉलिटेक्निक कोर्स के लिए जाएगा। यूरोपीय देशों और अमेरिका में कौन-सा बोर्ड एग्जाम होता है? बच्चा वह विषय पढ़े जिनमें उसकी दिलचस्पी हो। 12वीं में बोर्ड हटाने की बात नहीं है। चीन में 12 वीं में ही बोर्ड है? 10वीं में बोर्ड सिर्फ इसलिए ना कि बच्चा साइंस, कॉमर्स या आर्ट्स में से एक चुन सके, पर इसके लिए बोर्ड जरूरी तो नहीं। नर्सरी, केजी लेवल पर एडमिशन की मारामारी और फीस विवाद का क्या हल है? इसका बेहतर उपाय यही होगा कि ज्यादा स्कूल बनाए जाएं। इनमें प्राइवेट सेक्टर, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप किए जाने की जरूरत है। सरकारी व पब्लिक स्कूलों का प्राइवेट मैनेजमेंट हो। जो सरकारी स्कूल ठीक काम नहीं कर रहे उनमें प्राइवेट मैनेजमेंट के जरिए शिक्षा स्तर को सुधारा जा सकता है। शिक्षा के अधिकार वाला राइट टु एजुकेशन का कानून भी जल्दी ही पास किया जा रहा है। इसके तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा के प्रावधान किए जाएंगे। जिस एरिया में स्कूल होगा उस एरिया के 25 प्रतिशत बच्चे फ्री पढ़ाए जाएंगे। रही बात ज्यादा फीस की तो आप चाहते हैं कि बच्चा वर्ल्ड क्लास सुविधाओं वाले स्कूल में शिक्षा पाए और दुनिया के बढ़िया टीचर भी उसे पढ़ाएं। ऐसे में अगर स्कूल चार्ज करता है और आप फीस न देना चाहें तो यह न्याय नहीं है? सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कैसे सुधारेंगे? जिन एमसीडी या सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई बढ़िया ढंग से नहीं हो रही उन्हें हम अच्छे रेकॉर्ड वाले प्राइवेट मैनेजमेंट को सौंपना चाहते हैं। तरीका यह होगा कि इन सरकारी स्कूलों की दो मंजिला बिल्डिंग के ऊपर ही प्राइवेट पार्टियों के लिए दो मंजिल बनाकर अपने स्कूल चलाने की इजाजत दी जाएगी। शर्त यह रहेगी कि जो टीचर्स उनके प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाएंगे, वही टीचर्स नीचे की मंजिलों में पढ़ने वाले सरकारी स्कूल के बच्चों को भी पढ़ाएंगे। इससे जहां प्राइवेट सेक्टर को भी स्कूल खोलने का मौका मिलेगा, वहीं सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी अच्छे व प्राइवेट स्कूलों जैसे टीचर्स से पढ़ने का मौका मिलेगा। क्या गारंटी है कि एफडीआई से फायदा होगा? दूसरे देशों में क्या विदेशी यूनिवर्सिटीज नहीं आतीं? जब भारत ने डब्लूटीओ या विश्व व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तब भी कहा गया कि भारत पश्चिमी देशों का गुलाम होकर रह जाएगा। न्यूक्लियर समझौते के वक्त भी यही हवा बनाई गई थी कि हम अमेरिका के अधीन हो जाएंगे। बताइए ऐसा कुछ हुआ? हम शिक्षा के क्षेत्र में रेगुलेटरी या नियंत्रक अधिकार अपने पास रखेंगे। फिर डर किस बात का? आपका मदरसा एजुकेशन बोर्ड का प्रस्ताव कितना प्रभावी है? इस मामले में मुस्लिम समुदाय में संकोच या रिजर्वेशंस वाली कोई बात नहीं है। हम इस काम को स्वैच्छिक आधार पर करना चाहते हैं। जो लोग इसके पक्ष में होंगे, वे इसे स्वीकारेंगे जो नहीं वे ना मानें। कोई प्रेशर नहीं होगा। मदरसों को हम सीबीएसई के बराबर की सुविधाएं देकर बराबर लेवल पर लाना चाहते हैं। कॉरपोरेट इनवेस्टमेंट से शिक्षा अमीरों की बनकर नहीं रह जाएगी? किसने कहा कॉरपोरेट का मकसद पैसा कमाना ही है। अजीम प्रेमजी, नारायणमूर्ति और सुनील मित्तल भारती जैसे लोग क्या चैरिटेबल काम नहीं कर रहे? शिक्षा के क्षेत्र में कॉरपोरेट के पैसे से हमें परहेज नहीं है। क्या वे आईआईटी में नहीं जा रहे हैं? उनके आने से स्किल डिवेलपमेंट प्रोग्राम आगे बढ़ेगा क्योंकि उन्हें मालूम है कि उन्हें कैसा लेबर चाहिए। एजुकेशन सेक्टर में आरक्षण को कैसे देखते हैं? कॉलेज के लेवल पर रिजर्वेशन जरूरी है क्योंकि झुग्गी-झोपड़ी और पिछड़ी जाति वाले बच्चों के पास तो इतने साधन भी नहीं हैं। हां, रिसर्च जैसे उच्चतर स्तरों पर तो वैसे भी रिजर्वेशन नहीं है। फैकल्टी में भी रिजर्वेशन जायज है। यह हो भी रहा है। फैकल्टी में भी तो उन्हीं को लिया जाएगा जो योग्यता के मानदंड पूरे करेंगे। रोजगार परक शिक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? इसके लिए हमारा स्किल डिवेलपमेंट कार्यक्रम है। यह एक रोजगार देने वाली योजना है। प्रधानमंत्री का कहना है कि 2020 तक 50 करोड़ लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में वोकेशनल तरीके से योग्य बना दिया जाए, ताकि वे रोजी-रोटी कमाने लायक हो जाएं। इसके लिए 30 हजार करोड़ रुपया रखा गया है। हम सीबीएसई के 10वीं और 12वीं कक्षा के कोर्सों में भी स्किल डिवेलपमेंट कोर्स ला रहे हैं।

Thursday, July 2, 2009

दो व्यस्कों द्वारा आपसी सहमति से बनाए जाने वाले अप्राकृतिक संबंधों को अपराध नहीं माना

दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को दिए अपने एक अहम फैसले में दो व्यस्कों द्वारा आपसी सहमति से बनाए जाने वाले अप्राकृतिक संबंधों को अपराध नहीं माना है। कोर्ट ने कहा कि यदि दोनों की उम्र 18 साल से ऊपर है , तो वे अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं। गौरतलब है कि इस मामले में हाई कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में फैसला सुरक्षित रखा था। आईपीसी की धारा -377 के तहत अप्राकृतिक संबंध बनाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है और दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक हो सकती है।
चुटकी : सहमत समलिंगी करें खुलकर यौनाचार
दिल्ली स्थित नाज फाउंडेशन ने 2001 में हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस धारा में संशोधन की मांग की थी। अर्जी में कहा गया था कि दो वयस्कों ( होमो अथवा हेट्रो ) के बीच अगर आपसी सहमति से अप्राकृतिक संबंध बनाए जाते हैं , यानी दो लोग अगर होमो सेक्सुअलिटी में संलिप्त हैं तो उनके खिलाफ धारा -377 का केस नहीं बनना चाहिए। : दुनिया भर में गे परेड
हाई कोर्ट ने इस दलील को सही माना और कहा कि दो व्यस्कों पर किसी तरह की पाबंदी लगाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।