Tuesday, May 19, 2015

अरुणा शानबाग, एक ऐसी 'शख्सियत' जिसने जिंदा रहकर मौत को जिया

अरुणा शानबाग, एक ऐसी 'शख्सियत' जिसने जिंदा रहकर मौत को जिया है। 'शख्सियत' इसलिए, क्योंकि उनसे जुड़े रहे लोगों का उनके प्रति लगाव उनको एक शख्सियत होने का अहसास कराता रहा।
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नवंबर 1973 को अपने साथ हुए भयावह बलात्कार के बाद से असीम नींद (वेजिटेटिव स्टेट) में खोईं अरुणा आखिरकार 18 मई 2015 को सीधे महिलाओं के लिए इस बेहद असुरक्षित जगह को छोड़कर जहां से आई थीं वहीं लौट गईं।
पिछले कुछ दिनों से न्यूमोनिया और सांस की तकलीफ से जूझ रहीं अरुणा की सोमवार सुबह तबियत बिगड़ गई जिसके बाद उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
42 साल पहले मुंबई के परेल स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) हॉस्पिटल की जूनियर नर्स रहीं अरुणा शानबाग के साथ वहीं के एक वॉर्ड बॉय ने 27 नवंबर 1973 में बलात्कार की कोशिश करने के बाद जान से मारने का प्रयास किया था।
सोहनलाल भरथा वाल्मीकि नामक इस वॉर्ड बॉय ने कुत्ते के गले में बांधने वाली चेन से अरुणा का गला घोंटने की कोशिश की थी, जिससे अरुणा के मस्तिष्क में ऑक्सिजन की आपूर्ति बाधित हो गई थी और वह निष्क्रिय अवस्था में चली गई थीं।
इस हादसे के बाद से अरुणा वेजिटेटिव स्टेट में ही रहीं। वेजिटेटिव स्टेट यानी अर्द्ध चेतन अवस्था। ऐसी अवस्था में इंसान चीजों को महसूस कर सकता है, यहां तक कि भावों से अपनी प्रतिक्रिया जाहिर भी कर सकता है, लेकिन आम इंसान की तरह हंस-बोल, चल-फिर नहीं सकता। अरुणा भी 42 सालों से कुछ ऐसी ही अवस्था में थीं।

उस समय अरुणा की शादी केईएम हॉस्पिटल के ही एक डॉक्टर से होने वाली थी। इस हादसे के बाद वहां के डॉक्टर्स ने उस वक्त के डीन डॉ. देशपांडे के नेतृत्व में अरुणा को बदनामी से बचाने के लिए वॉर्ड बॉय सोहनलाल के खिलाफ पुलिस के पास चोरी और हत्या के प्रयास की शिकायत दर्ज कराई, जिससे अरुणा की होने वाली शादी पर प्रभाव न पड़े।
सोहनलाल पकड़ा गया और उसे बाद में दोषी भी करार दे दिया गया। उसने छेड़खानी और चोरी के लिए संयुक्त रूप से 7 साल की दो सजाएं भुगतीं। उस पर बलात्कार, यौन शोषण या अप्राकृतिक यौन अपराध की धाराएं नहीं लगाई गई थीं (जिनसे उसे कम से कम 10 साल तक की सजा होती)।
बता दें कि सोहनलाल ने सजा पूरी करने के बाद अपना नाम बदल कर दिल्ली के एक हॉस्पिटल में काम करना शुरू कर दिया था। न ही केईएम हॉस्पिटल ने और न ही कोर्ट ने सोहनलाल की कोई फाइल फोटो अपने पास रखी थी। इस वजह से अरुणा की दोस्त पिंकी वीरानी (पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता) चाहकर भी सोहनलाल का पता न लगा पाईं।

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