और जसवंत आउट
बीजेपी के वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अपनी किताब में जिन्ना को सेक्युलर बताना जसवंत सिंह को काफी महंगा पड़ा है। जसवंत सिंह पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं और दार्जिलिंग से सांसद भी हैं। सूत्रों के मुताबिक, संघ परिवार और पार्टी के कई हलकों ने जसवंत सिंह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का दबाव बनाया था। इसी का नतीजा है कि जसवंत सिंह को पार्टी ने निष्कासित कर दिया है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने जसवंत से बैठक में न आने के लिए कहा था। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने बताया कि जसवंत सिंह की प्राथमिक सदस्यता खत्म कर दी गई है। अब जसवंत सिंह पार्टी के किसी भी पद पर नहीं हैं। राजनाथ ने बताया कि यह फैसला पार्टी के संसदीय बोर्ड ने मिलकर लिया। लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार की जवाबदेही तय करने की मांग करनेवाले नेताओं अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा को भी इस चिंतन बैठक से दूर रखा गया है। गौरतलब है कि बीजेपी के सीनियर लीडर लाल कृष्ण आडवाणी जब पाकिस्तान में जिन्ना की मजार पर गए, तब उन्होंने जिन्ना की काफी तारीफ की थी। इसके बाद भी पार्टी में खूब बवाल मचा था और आडवाणी को पार्टी अध्यक्ष का पद गंवाना पड़ा था। अपडेट@ 11:30 AM अपनी किताब में मोहम्मद अली जिन्ना को सेक्युलर बताने के कारण विवाद में आए जसवंत सिंह इस चिंतन बैठक से दूरी बनाए हुए हैं। जसवंत ने अपने लिए शिमला में अलग होटल बुक कराया है और वह मंगलवार को आडवाणी द्वारा दिए गए रात्रिभोज में भी शामिल नहीं हुए। खबर है कि जसवंत सिंह अब तक अपने होटल से बाहर नहीं निकले हैं। गौरतलब है कि जसवंत ने अपनी किताब में देश के विभाजन के लिए जिन्ना को नहीं बल्कि नेहरू और कांग्रेस की नीतियों को जिम्मेदार बताया है। बीजेपी के सीनियर नेता शिमला की वादियों में बुधवार से तीन दिन तक आत्मनिरीक्षण करेंगे। वे सोचेंगे कि अपने सहयोगी दलों के साथ पार्टी पिछले लोकसभा चुनावों में इतनी सीटें क्यों नहीं ला सकी कि लालकृष्ण आडवाणी देश के प्रधानमंत्री बन सके। राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों के बागी तेवरों और बीजेपी के सीनियर नेता जसवंत सिंह की पुस्तक में मुहम्मद अली जिन्ना और सरदार वल्लभ भाई पटेल पर की गई टिप्पणियों से उठ रहे बवंडर के माहौल में यह बैठक होगी।
पार्टी आलाकमान ने वसुंधरा राजे से इस्तीफा मांगे जाने और जसवंत सिंह की जिन्ना और पटेल पर की गई टिप्पणियों से बन रहे माहौल को संभालने की पूरी कोशिश की है। वसुंधरा के मामले में आलाकमान ने कह दिया कि त्यागपत्र के मामले में कोई समयसीमा नहीं बांधी गई है और जसवंत सिंह की किताब में जिन्ना और पटेल की टिप्पणियों पर चिंतन बैठक की पूर्व संध्या पर पार्टी ने खुद को अलग कर लिया। हालांकि पार्टी की हार के बाद सवाल खड़े करने वाले सीनियर नेताओं में से यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी को चिंतन बैठक से दूर रखने में आलाकमान सफल रहे हैं लेकिन जसवंत सिंह उन 25 नेताओं में शामिल हैं जो इस बैठक में भाग ले रहे हैं। जसवंत सिंह ने पार्टी के मुख्य चुनाव प्रबंधक अरुण जेटली को राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने पर अप्रसन्नता प्रकट करते हुए चुनावों में बीजेपी की हार के बाद प्रदर्शन और पुरस्कार में संबंध बैठाने का सवाल खड़ा किया था। हालांकि संकेत इस प्रकार के मिल रहे हैं कि पार्टी आलाकमान चिंतन बैठक के दौरान 'बीती ताहे बिसार के, आगे की सुध ले' की तर्ज पर आने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी की चुनावी रणनीति को चर्चा का केंद्र बनाने की कोशिश करे। लेकिन जसवंत सिंह के रुख से लगता है कि वह पार्टी नेताओं के लिए कुछ असहज सवाल फिर से खड़े करने की कोशिश करें। बैठक में भाग लेने वाले नेताओं में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, संसद के दोनों सदनों के प्रतिपक्ष के नेता-सुषमा स्वराज और अरुण शौरी, चुनावों में खराब प्रदर्शन के कारणों का पता लगाने की जिम्मेदारी वहन करने वाले बाल आप्टे आदि शामिल हैं। दिल्ली से पार्टी के राष्ट्रीय सचिव विजय गोयल को ही बैठक में शामिल किया गया है। चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के कारणों का पता लगाने के लिए बाल आप्टे समिति का गठन किया गया था जिसने विभिन्न राज्यों की पार्टी की इकाइयों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की है। उस रिपोर्ट पर विचार किया जा सकता है। हरियाणा और महाराष्ट्र में होने वाले चुनावों को ध्यान में रख कर भी आगे की रणनीति तैयार की जा सकती है। नई दिल्ली में सत्ता में आने के लिए पार्टी की चिंता देश के दक्षिणी राज्यों में मतदाता का समर्थन प्राप्त करना है। आडवाणी भी दक्षिण भारत में अपना आधार मजबूत करने पर जोर दे चुके हैं। उन्होंने स्वीकार किया है कि देश के दक्षिणी हिस्सों की 145 लोकसभा सीटों पर प्रतिनिधित्व के मामले में बीजेपी फिलहाल शून्य है। वैसे पार्टी के नेता चिंतन बैठक के शुरू होने से पहले ही शंका प्रकट कर रहे हैं कि इस बैठक से कुछ खास हासिल होने वाला नहीं है। 2004 के चुनावों की हार के बाद भी पार्टी सबक नहीं सीख सकी तो तीन दिन की बैठक में क्या हो सकता है। आम चुनावों में अभी पांच साल का समय शेष है और विधानसभा चुनावों में हार जीत के कारण राज्यवार ही हो सकते हैं। इसलिए भिन्न राज्यों में एक रणनीति काम करने वाली नहीं है।
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