सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अभिभावकों को बड़ी राहत मिलेगी और कोर्ट के इस फैसले के बाद पब्लिक स्कूल मनमानी नहीं कर सकेंगे। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने फीस बढ़ाने के मामले में पब्लिक स्कूलों पर शिकंजा कसते हुए साफ किया है कि फीस बढ़ोतरी पर सरकार ही कानून बना सकती है और पब्लिक स्कूल अपनी मर्जी से फीस में बढ़ोतरी नहीं कर सकते। सुप्रीम कोर्ट ने नियमित अंतराल पर फीस बढ़ाने की इजाजत से संबंधित पब्लिक स्कूलों की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि केवल सरकार ही इस पर नियम-कानून बना सकती है और पब्लिक स्कूलों को ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है। दिल्ली अभिभावक संघ और सोशल ज्यूरिस्ट संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह अभिभावकों के लिए बहुत बड़ी राहत है, क्योंकि इन स्कूलों की मनमानी से अभिभावक बहुत ही दुखी हैं।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इन स्कूलों को इस मुद्दे पर भी फटकार लगाई है कि उन्होंने शिक्षा को मात्र व्यापार के नजरिए से देखा है और अभिभावकों से अनाप-शनाप मदों में बेतहाशा धनराशि वसूली है। अग्रवाल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2004 के अपने उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें फीस बढ़ोतरी के मामले में शिक्षा निदेशक को अपनी शक्तियों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई थी और उन्हें ही अंतिम माना गया था। इसके अलावा फीस ढांचे पर रोक लगाने के शिक्षा निदेशक के फैसले को भी उचित ठहराया गया है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इन स्कूलों को इस मुद्दे पर भी फटकार लगाई है कि उन्होंने शिक्षा को मात्र व्यापार के नजरिए से देखा है और अभिभावकों से अनाप-शनाप मदों में बेतहाशा धनराशि वसूली है। अग्रवाल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2004 के अपने उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें फीस बढ़ोतरी के मामले में शिक्षा निदेशक को अपनी शक्तियों के इस्तेमाल की इजाजत दी गई थी और उन्हें ही अंतिम माना गया था। इसके अलावा फीस ढांचे पर रोक लगाने के शिक्षा निदेशक के फैसले को भी उचित ठहराया गया है।
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