Tuesday, December 30, 2008

यू पी की पुलिस क्या नहीं कर सकती, मरे को जिन्दा और जिन्दे को मरा साबित करना बायें हाथ का खेल

यू पी की पुलिस क्या नहीं कर सकती, मरे को जिन्दा और जिन्दे को मरा साबित करना बायें हाथ का खेल
यूपी पुलिस की कार्यशैली पर फिर सवालिया निशान लग गया है। इस बार मुजफ्फरनगर जिले की
पुलिस ने एक स्टूडंट के अपहरण और हत्या के मामले में तीन बेकसूर किशोरों को जेल भेज दिया। पुलिस के कारनामे की पोल उस समय खुली जब पुलिस फाइल में मर चुका स्टूडंट 6 महीने के बाद खुद ही घर लौट आया। मामला मानवाधिकार आयोग तक पहुंचने पर दो तत्कालीन थाना प्रभारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। गांव माजरा का स्टूडंट राजन एक अप्रैल 2008 को स्कूल से घर लौटते समय लापता हो गया था। पुलिस ने इस मामले में सोनू, सुनील और रवि नाम के तीन किशोरों को गिरफ्तार किया। पुलिस ने उनके खिलाफ अपहरण और हत्या का मामला दर्ज किया। पुलिस ने बाद में उन्हें जेल भेज दिया। पुलिस की काली करतूत यहीं नहीं रुकी। उसने राजन की हत्या को साबित करने के लिए राजन की चप्पल और स्कूल बैग के साथ हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू भी बरामद कर डाला। इसके अलावा उसने अदालत को बताया कि सभी आरोपियों ने राजन के अपहरण और हत्या में अपना हाथ होने का बयान दिया है। पुलिस की इस पुख्ता कहानी को किसी और ने नहीं, खुद राजन ने झूठी साबित कर दिया। छह महीने से गायब राजन खुद ही अपने घर लौट आया। राजन के सामने आने और मामला मानवाधिकार आयोग पहुंचने से घबराए पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन दो थाना प्रभारियों देवेंद बिष्ट और विनोद कुमार के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लिया है।

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