कांग्रेस हाई कमान राहुल गांधी की बैलट के जरिये पार्टी संगठन चुनाव कराने की
मांग को चुपचाप खारिज करने की तैयारी में है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इसके बजाय जिला, प्रदेश कांग्रेस कमिटी और
एआईसीसी स्तर पर आगामी संगठन चुनावों में अधिकतम मुमकिन सहमति को पैमाना बनाया
जाएगा।
पार्टी के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के लिए इस संकट की घड़ी में बैलट की मांग पर और मतभेद बढ़ेंगे, लिहाजा संकट की इस घड़ी में कांग्रेस की कोशिश आंतरिक स्तर पर अधिकतम एकता बनाए रखने की होनी चाहिए। साथ ही, कांग्रेस नेतृत्व की राज्यों की कमिटी में सभी स्तर पर पकड़ बरकरार है, लिहाजा आशंका इस बात की भी है कि हाल में गांधी की तरफ से नियुक्त किए गए गए कई राज्यों के मुखिया बैलट की लड़ाई में खुद को मुश्किल में पा सकते हैं।
पार्टी के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि कांग्रेस के लिए इस संकट की घड़ी में बैलट की मांग पर और मतभेद बढ़ेंगे, लिहाजा संकट की इस घड़ी में कांग्रेस की कोशिश आंतरिक स्तर पर अधिकतम एकता बनाए रखने की होनी चाहिए। साथ ही, कांग्रेस नेतृत्व की राज्यों की कमिटी में सभी स्तर पर पकड़ बरकरार है, लिहाजा आशंका इस बात की भी है कि हाल में गांधी की तरफ से नियुक्त किए गए गए कई राज्यों के मुखिया बैलट की लड़ाई में खुद को मुश्किल में पा सकते हैं।
इनमें केरल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष वी एम सुधीरन, हरियाणा में अशोक तंवर, एमपी में अरुण यादव, राजस्थान में सचिन पायलट आदि
शामिल हैं। इनमें से कुछ नेता भी सहमति के आधार पर चुनाव लड़ने की वकालत कर सीनियर
नेताओं के साथ सुलह की कोशिश कर रहे हैं। केरल में ओमान चांडी-रमेश सेन्निथाला के
समर्थक सुधीरन को चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे हैं, जो एआईसीसी के लिए चेतावनी का संकेत है।
एआईसीसी से जुड़े एक नेता ने बताया, 'हमारी कोशिश संगठन का निष्पक्ष चुनाव कराने की होगी, जो सभी समुदायों और इनसे जुड़े सामाजिक आधार की सहभागिता को सुनिश्चित करेगा। पार्टी की कोशिश सही मायनों में सहमति तलाशने की होगी और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर मुकाबला होगा।'
उन्होंने सोनिया गांधी का हवाला देते हुए कहा कि असम, गोवा और ओडिशा में नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति कांग्रेस नेतृत्व के आम-सहमति वाले रवैये को प्रतिबिंबित करती है। कांग्रेस हाई कमान पहले ही उन दो नाकाम अनुभवों को खारिज कर चुकी है, जो टीम राहुल ने लोकसभा चुनाव के दौरान पेश किए थे।
राहुल गांधी और उनकी सलाहकार टीम इस बात पर जोर दे रही है कि कांग्रेस संगठन को भी उसी तरह के प्रयोग करने चाहिए , जैसा भारतीय युवा कांग्रेस के संगठन में किया गया। हालांकि, हकीकत यह है कि युवा कांग्रेस में हुए चुनावों में पैसे की ताकत का जमकर दुरुपयोग हुआ और इससे गुटबाजी भी बढ़ी है। इससे कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं को इस तरह का प्रयोग व्यवहारिक नहीं लग रहा है।
कुछ महीने पहले इकनॉमिक टाइम्स ने खबर दी थी कि हार के बाद रणनीति तैयार करने के लिए हुई बैठक में कांग्रेस के कई नेताओं ने सोनिया गांधी से कहा था कि युवा कांग्रेस के संगठन के चुनावों का काफी नुकसान हुआ है और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर पार्टी कमजोर ही होगी।
एआईसीसी से जुड़े एक नेता ने बताया, 'हमारी कोशिश संगठन का निष्पक्ष चुनाव कराने की होगी, जो सभी समुदायों और इनसे जुड़े सामाजिक आधार की सहभागिता को सुनिश्चित करेगा। पार्टी की कोशिश सही मायनों में सहमति तलाशने की होगी और अगर ऐसा नहीं हुआ, तो फिर मुकाबला होगा।'
उन्होंने सोनिया गांधी का हवाला देते हुए कहा कि असम, गोवा और ओडिशा में नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति कांग्रेस नेतृत्व के आम-सहमति वाले रवैये को प्रतिबिंबित करती है। कांग्रेस हाई कमान पहले ही उन दो नाकाम अनुभवों को खारिज कर चुकी है, जो टीम राहुल ने लोकसभा चुनाव के दौरान पेश किए थे।
राहुल गांधी और उनकी सलाहकार टीम इस बात पर जोर दे रही है कि कांग्रेस संगठन को भी उसी तरह के प्रयोग करने चाहिए , जैसा भारतीय युवा कांग्रेस के संगठन में किया गया। हालांकि, हकीकत यह है कि युवा कांग्रेस में हुए चुनावों में पैसे की ताकत का जमकर दुरुपयोग हुआ और इससे गुटबाजी भी बढ़ी है। इससे कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं को इस तरह का प्रयोग व्यवहारिक नहीं लग रहा है।
कुछ महीने पहले इकनॉमिक टाइम्स ने खबर दी थी कि हार के बाद रणनीति तैयार करने के लिए हुई बैठक में कांग्रेस के कई नेताओं ने सोनिया गांधी से कहा था कि युवा कांग्रेस के संगठन के चुनावों का काफी नुकसान हुआ है और इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर पार्टी कमजोर ही होगी।
No comments:
Post a Comment