डायरेक्टॉरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई) ने खुलासा किया है कि कुछ
कंपनियां अपने पावर प्लांट के लिए इंडोनेशिया से आयातित कोयले के मूल्य में हेरफेर
कर रही हैं। डीआरआई ने खुलासा किया है कि कोयले के आयात मूल्य को ज्यादा दिखाकर 2011 से 2014 के बीच 29 हजार करोड़ रुपये का घोटाला
किया गया।
डीआरआई ने महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल में 80 से अधिक शिपिंग कंपनियों, एजेंट और लैबों पर छापा मारा। यहां से जब्त किए गए दस्तावेजों से आयातित कोयले के वास्तविक मूल्य का पता चला है। डीआरआई ने कोयले की जांच करने वाली लगभग सभी लैब में छापा मारा ताकि आयातित कोयले की कैलरी क्षमता की रिपोर्ट की पुष्टि की जा सकते।
डीआरआई ने महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल में 80 से अधिक शिपिंग कंपनियों, एजेंट और लैबों पर छापा मारा। यहां से जब्त किए गए दस्तावेजों से आयातित कोयले के वास्तविक मूल्य का पता चला है। डीआरआई ने कोयले की जांच करने वाली लगभग सभी लैब में छापा मारा ताकि आयातित कोयले की कैलरी क्षमता की रिपोर्ट की पुष्टि की जा सकते।
आयात किए गए कोयले का मूल्य अधिक होने से टैरिफ पर भी
प्रभाव पड़ता है, जो कंज्यूमर को देना पड़ता है। दूसरे शब्दों में कहे, अगर कोयले के आयातित मूल्य को
अधिक नहीं दिखाया गया तो पावर टैरिफ शायद एक रुपये प्रति यूनिट से कम होगा। डीआरआई
इस घोटाले में पब्लिक सेक्टर कंपनियों के शामिल होने भी जांच कर रही है।
डीआरआई के एक अधिकारी का कहना है कि प्रतिष्ठित कंपनियों समेत लगभग सभी इंपोर्टर आयातित कोयले के दाम बढ़ाकर दिखाने में शामिल हैं। डीआरआई द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों से पता चला है कि पब्लिक सेक्टर समेत भारतीय कंपनियों ने 2012-13 में इंडोनेशिया से 77 मिलियन टन कोयला आयात किया था। डीआरआई के अधिकारियों के मुताबिक, आयात किए गए कोयले के मूल्य उसकी असल कीमत से दोगुना तक ज्यादा दिखाए गए।
सूत्रों का कहना है कि कंपनियां विदेशों में पैसा जमा करने के लिए इस तरीके को अपना रही हैं। इंडियन कंपनियां किसी मध्यस्त के माध्यम से कोयले के बढ़ाए गए मूल्य के आधार पर भुगतान करती हैं, लेकिन जिन कंपनियों से कोयला खरीदा जाता है उन्हें कम भुगतान किया जाता है। इस तरह कंपनियां बाकी बचा हुआ पैसा विदेशों में जमा कराने में कामयाब हो जाती है। मध्यस्त कमीशन के आधार पर यह काम करते हैं। कुछ मध्यस्त सीधे कंपनी से भी जुड़े होते हैं।
डीआरआई के एक अधिकारी का कहना है कि प्रतिष्ठित कंपनियों समेत लगभग सभी इंपोर्टर आयातित कोयले के दाम बढ़ाकर दिखाने में शामिल हैं। डीआरआई द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों से पता चला है कि पब्लिक सेक्टर समेत भारतीय कंपनियों ने 2012-13 में इंडोनेशिया से 77 मिलियन टन कोयला आयात किया था। डीआरआई के अधिकारियों के मुताबिक, आयात किए गए कोयले के मूल्य उसकी असल कीमत से दोगुना तक ज्यादा दिखाए गए।
सूत्रों का कहना है कि कंपनियां विदेशों में पैसा जमा करने के लिए इस तरीके को अपना रही हैं। इंडियन कंपनियां किसी मध्यस्त के माध्यम से कोयले के बढ़ाए गए मूल्य के आधार पर भुगतान करती हैं, लेकिन जिन कंपनियों से कोयला खरीदा जाता है उन्हें कम भुगतान किया जाता है। इस तरह कंपनियां बाकी बचा हुआ पैसा विदेशों में जमा कराने में कामयाब हो जाती है। मध्यस्त कमीशन के आधार पर यह काम करते हैं। कुछ मध्यस्त सीधे कंपनी से भी जुड़े होते हैं।
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