Saturday, July 25, 2009

बोलो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे?

यहां तो हर चीज बिकती है, बोलो जी तुम क्या-क्या खरीदोगे? इंजीनियरिंग की डिग्री खरीदोगे या मेडिकल की? टेक्निकल लाइन की हर डिग्री मिल जाएगी और वह भी सरकार से मान्यता प्राप्त! लॉ, सोशल वर्क, मास कॉम या होटल मैनेजमेंट की डिग्री चाहिए तो उसके भी इंस्टिट्यूट मौजूद हैं। माल सजा हुआ है। बस, ग्राहक को फंसाना है। यह किसी दुकान का विज्ञापन नहीं है बल्कि मौजूदा दौर के हायर एजुकेशन की कड़वी सचाई जिसे कुछ लोगों ने एक बड़ी मंडी में बदल दिया है। दिल्ली से बाहर निकलिए तो दूर-दूर तक ऐसे ही इंस्टिट्यूट नजर आएंगे। इनमें बहुत कम असली हैं और बाकी सब नकली। इन इंस्टिट्यूट्स को देखकर एक तरफ तो दिल बाग-बाग होता है कि शिक्षा के क्षेत्र में हम कितने अधिक विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं। हायर एजुकेशन की आज जितनी जरूरत है, सरकार उसे पूरा नहीं कर सकती। ऐसे में प्राइवेट इंस्टिट्यूट सरकार के मददगार ही साबित हो सकते हैं लेकिन अगले ही क्षण जब यह पता चलता है कि इनमें से बहुत -से इंस्टिट्यूट फर्जी हैं तो माथा ठनक जाता है। मेडिकल काउंसिल द्वारा ऐसे इंस्टिट्यूट्स को मान्यता देने का सवाल कई बार शक के दायरे में आ चुका है। अब एआईसीटीई जो इंजीनियरिंग और अन्य तकनीकी संस्थाओं को मान्यता देती है, उसके कामकाज पर भी संदेह पैदा हो चुका है। सीबीआई ने एआईसीटीई की मान्यता को जिस तरह बिकाऊ बताया है, उसे देखकर शिक्षा की कई दुकानों के पकवान फीके पड़ गए हैं। दरअसल, हायर एजुकेशन में जितनी अव्यवस्था है, उतनी शायद कहीं नहीं। लाखों रुपये की फीस भरने के बाद पैरंट्स के लिए बहुत -से संस्थान सिर्फ धोखा साबित होते हैं। यहां सिर्फ कुछ लाख रुपये का धोखा ही नहीं है बल्कि पूरी पीढ़ी के साथ धोखा है। एक युवक जो कल डॉक्टर - इंजीनियर बनने का सपना देखता है। उसका पूरा परिवार उस सपने में शामिल होता है लेकिन एक झटके में ही उसके सपने तब चकनाचूर हो जाते हैं जब उसे पता चलता है कि उसके हाथ में आई डिग्री फजीर् है। यह सच है कि स्कूली शिक्षा भी अब तक आम आदमी के सामने कड़वी सचाई ही रखती है लेकिन इस पर सरकार का किसी न किसी तरह का अंकुश जरूर नजर आता है। अगर पब्लिक स्कूल फीस में मनमानी वृद्धि करते हैं तो सरकार भले ही फीस कम न करा पाए, उन्हें धमकाती तो दिखाई देती ही है। कहने को तो यूजीसी हायर एजुकेशन पर नजर रखने वाली एजेंसी है लेकिन वह सिर्फ नजर ही रख पाती है, किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। यूजीसी की बेबसी इसी बात से साबित होती है कि उसकी साइट पर फर्जी यूनिवर्सिटी की लिस्ट तो है लेकिन उनके खिलाफ कोई कदम उठाने की क्षमता नहीं। एक परंपरा का निर्वाह करते हुए इस साल के शुरू में देशभर की ऐसी 22 यूनिवर्सिटियों की लिस्ट जारी कर दी गई जिन्हें यूजीसी फर्जी मानती है। इनमें दिल्ली की भी 6 यूनिवर्सिटी हैं। साल-दर-साल ऐसी लिस्ट जारी होती है लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती। कारण यह है कि केस दर्ज कराने का काम राज्य सरकार का है। राज्य सरकारों के पास इतना समय नहीं है कि वे कोई कदम उठाएं। उनके पास और भी बहुत-से महत्वपूर्ण काम हैं। यूजीसी एक्ट के अनुसार अगर कोई फजीर् संस्थान चलाता है तो उसके खिलाफ सिर्फ एक हजार रुपये का जुर्माना ही किया जा सकता है। जुर्माने की राशि बढ़ाने और एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव बरसों से केंद सरकार के पास लटक रहा है। एक तरफ शिक्षा की बढ़ती दुकानें, दूसरी तरफ उन्हें मान्यता देने के नाम पर घपला और तीसरी तरफ यूजीसी की बेबसी। क्या सचमुच हायर एजुकेशन भगवान भरोसे नहीं चल रही। नए मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल दसवीं क्लास में बोर्ड का एग्जाम खत्म करने जैसा कदम उठा रहे हैं लेकिन हायर एजुकेशन में तो एक क्रांति की जरूरत है। क्या वह इसकी पहल कर पाएंगे? यशपाल कमिटी ने भी नैशनल कमिशन फॉर हायर एजुकेशन की सिफारिश की है लेकिन ऐसे कमिशन के हाथ अगर खुरदरे होंगे, तभी कुछ भला हो पाएगा अन्यथा ऐसी दुकानों पर बैठे ठग लूटते ही रहेंगे।

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