धन, जन और यौवन का गर्व मत करो, क्योंकि काल उसे क्षणमात्र में ही हर लेता है। गर्व किसका? धन का, तन का, यौवन का। इस संपूर्ण मायामय प्रपंच को छोड़ कर तुम ब्रह्मापद को जानो और उसमें प्रवेश करो। ज्ञान को प्राप्त करो। अध्यात्म में आओ। अपने समय की एक बहुत प्रसिद्ध अभिनेत्री है। इतनी सुंदर थी कि जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। लेकिन जैसे ही बुढ़ापा आया, शक्ल इतनी बिगड़ गई कि टेलिविजन वाले इंटरव्यू लेने जाते हैं तो वह इंटरव्यू नहीं देतीं। क्योंकि वह शक्ल जो बड़ी सुंदर थी, आज देखने लायक नहीं रही। इसमें दोष उस स्त्री का नहीं है, समाज का नहीं है, दोष किसी का नहीं। विधि का विधान है कि जिसका हम गर्व करते हैं, जिस चीज के लिए हम सबसे ज्यादा अहंकार करते हैं, वह चीज जब खो जाती है तो हमारा जीना मुश्किल हो जाता है। हमारे पांव के नीचे से जमीन खिसक जाती है। तन का गर्व, धन का गर्व, मेरे पीछे इतने लोग हैं सुनने वाले, यह सब भी आदमी को परेशान करता है। और समय क्षण मात्र में कभी भी वह सब आपके सामने से छीन सकता है। एक बार की बात है, एक राजा था। उसकी कोई औलाद नहीं थी। मंत्री राजा को कहने लगे -महाराज आपकी कोई औलाद नहीं है। आपके बाद इस सत्ता का कोई उत्तराधिकारी तो बना दीजिए। राजा ने काफी सोचा, किसको बनाऊं? उसने एक योजना बनाई। एक मेला रचवाया। सारे राज्य में ऐलान करवाया कि राजा एक बहुत बड़ा मेला रचेगा, उस मेले में राजा कहीं छुपा होगा। और जो भी उसे ढूंढ निकालेगा, वो इस राज्य का राजा बन जाएगा। तो तयशुदा दिन को एक बहुत बड़े मैदान में मेला रचा गया। सारा का सारा राज्य ही उस मेले के अंदर घुसने की कोशिश में लग गया। लोग उसमें किसलिए घुस रहे थे? राजा को ढूंढने। एक ही मकसद था, एक ही प्रयोजन था, एक ही कारण था कि इस मेले में राजा को ढूंढेंगे और राजा बनेंगे। लेकिन राजा भी बड़ा ज्ञानी था। मेले के दरवाजे के भीतर घुसते हीं दाईं और बाईं ओर शानदार दुकानें सजी हुई थीं। सबसे पहले गोलगप्पों की दुकान, और वे भी बिल्कुल मुफ्त। जितनी मर्जी जी भर के खाइए। लोग गए किसलिए थे उस मेले में? राजा को ढूंढने। लेकिन चंद लोग गोलगप्पों की दुकान पर रुक गए। कहने लगे, पहले ये जो मुफ्त में गोलगप्पे मिल रहे हैं, ये खाते हैं। फिर आगे चलेंगे। कुछ लोग जो उस लालच के सामने नहीं फिसले, उन्होंने कहा कि हम यहां पर राजा को ढूंढने आए हैं, गोलगप्पे खाने नहीं। लेकिन जो आगे बढ़े उन्हें फिर रंग-बिरंगे कपड़ों की दुकान मिली, कपड़े भी मुफ्त। जो चाहो वो ले लो। राजा ने यह नया लालच रख दिया। तो कुछ लोग गोलगप्पों में अटक गए और उसके बाद कुछ कपड़ों में। जो इन दोनों में नहीं फंसे, वो आगे बढे़ तो राजा ने और दूसरे किस्म के लालच दिए हुए थे। तो हर कोई आगे बढ़ता गया और किसी न किसी लालच में रुकता गया। एक नवयुवक हर तरह के लालच से बचता अंतत: आखिरी पड़ाव तक पहुंचा तो वहां एक मंदिर नजर आया। मंदिर में एक पुजारी पूजा कर रहा था। उस युवक ने वहां पर भी पूजा स्थल पर ध्यान नहीं दिया, पुजारी पर ध्यान दिया। और जैसे ही पुजारी ने पीछे पलट कर देखा, पहचान गया। वो पुजारी ही राजा था। उसने राजा को पहचान लिया तो क्या हुआ? जैसे ही उसने राजा को ढूंढा तो वो मेले की सारी वस्तुओं का मालिक बन गया। हम संसार रूपी मेले में किसके लिए आए हैं? इस मेले में हम उस परमात्मा रूपी राजा को ढूंढने आए हैं। लेकिन अटक गए हैं कहां, फिसल गए कहां, छोटी-छोटी लालचों में। तो जिसने उस परमात्मा रूपी राजा को जान लिया, वह पूरे विश्व का, पूरे ब्रह्मांड का राजा बन जाएगा।
Thursday, July 9, 2009
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