केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल शिक्षा को नए कलेवर में ढालकर नए दौर की जरूरतों के मुताबिक बनाना चाहते हैं। दसवीं के बोर्ड को गैर जरूरी बनाने की बात कहकर वे देश में शिक्षा सुधारों पर पहले ही नई बहस छेड़ चुके हैं। वे बच्चों के भारी-भरकम बस्तों के बोझ को तो कम करना ही चाहते हैं, शिक्षा को रोजगारपरक भी बनाना चाहते हैं। नरेश तनेजा से एक विशेष इंटरव्यू में उन्होंने शिक्षा और इससे जुड़े अपने अजेंडे के बारे में विस्तार से बताया : बस्तों का बोझ कैसे कम करेंगे? हमारे नैशनल करीकुलम फ्रेमवर्क-2005 में साफ लिखा है कि बच्चों का बोझ कम करना है। बच्चों को स्कूल में सिर्फ पढ़ाई करनी चाहिए। उनकी पढ़ाई का एक घंटा स्कूल में बेशक बढ़ा दिया जाए पर घर के होमवर्क का बोझ कम किए जाने की जरूरत है। हम 3-4 घंटे का होमवर्क देने के हक में नहीं हैं। घर जाकर उन्हें आजाद माहौल मिलना चाहिए। इसके लिए मार्किंग सिस्टम भी चेंज होना चाहिए। क्लास 6 तक कोई एग्जाम न हो। क्लास टेस्ट लेकर बच्चों को आगे बढ़ाने का काम होना चाहिए। पर्सेन्टाइल सिस्टम से असेसमेंट हो मार्क्स से नहीं। हम सिलेबस की फालतू चीजों को हटाने पर विचार करेंगे। 10वीं का बोर्ड हटाने के प्रस्ताव से लोग खुश नहीं हैं? सीबीएसई से संबंधित बारहवीं तक के जो स्कूल हैं, उनमें अगर बच्चों को उसी स्कूल में 10वीं से 12वीं में जाना है तो वहां बोर्ड की क्या जरूरत है। हां, जो स्कूल सिर्फ 10 वीं तक के ही हैं, वहां बोर्ड का एग्जाम जरूरी है, क्योंकि 10वीं के बाद बच्चा प्री-यूनिवर्सिटी या पॉलिटेक्निक कोर्स के लिए जाएगा। यूरोपीय देशों और अमेरिका में कौन-सा बोर्ड एग्जाम होता है? बच्चा वह विषय पढ़े जिनमें उसकी दिलचस्पी हो। 12वीं में बोर्ड हटाने की बात नहीं है। चीन में 12 वीं में ही बोर्ड है? 10वीं में बोर्ड सिर्फ इसलिए ना कि बच्चा साइंस, कॉमर्स या आर्ट्स में से एक चुन सके, पर इसके लिए बोर्ड जरूरी तो नहीं। नर्सरी, केजी लेवल पर एडमिशन की मारामारी और फीस विवाद का क्या हल है? इसका बेहतर उपाय यही होगा कि ज्यादा स्कूल बनाए जाएं। इनमें प्राइवेट सेक्टर, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप किए जाने की जरूरत है। सरकारी व पब्लिक स्कूलों का प्राइवेट मैनेजमेंट हो। जो सरकारी स्कूल ठीक काम नहीं कर रहे उनमें प्राइवेट मैनेजमेंट के जरिए शिक्षा स्तर को सुधारा जा सकता है। शिक्षा के अधिकार वाला राइट टु एजुकेशन का कानून भी जल्दी ही पास किया जा रहा है। इसके तहत 6 से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा के प्रावधान किए जाएंगे। जिस एरिया में स्कूल होगा उस एरिया के 25 प्रतिशत बच्चे फ्री पढ़ाए जाएंगे। रही बात ज्यादा फीस की तो आप चाहते हैं कि बच्चा वर्ल्ड क्लास सुविधाओं वाले स्कूल में शिक्षा पाए और दुनिया के बढ़िया टीचर भी उसे पढ़ाएं। ऐसे में अगर स्कूल चार्ज करता है और आप फीस न देना चाहें तो यह न्याय नहीं है? सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कैसे सुधारेंगे? जिन एमसीडी या सरकारी स्कूलों में पढ़ाई-लिखाई बढ़िया ढंग से नहीं हो रही उन्हें हम अच्छे रेकॉर्ड वाले प्राइवेट मैनेजमेंट को सौंपना चाहते हैं। तरीका यह होगा कि इन सरकारी स्कूलों की दो मंजिला बिल्डिंग के ऊपर ही प्राइवेट पार्टियों के लिए दो मंजिल बनाकर अपने स्कूल चलाने की इजाजत दी जाएगी। शर्त यह रहेगी कि जो टीचर्स उनके प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाएंगे, वही टीचर्स नीचे की मंजिलों में पढ़ने वाले सरकारी स्कूल के बच्चों को भी पढ़ाएंगे। इससे जहां प्राइवेट सेक्टर को भी स्कूल खोलने का मौका मिलेगा, वहीं सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को भी अच्छे व प्राइवेट स्कूलों जैसे टीचर्स से पढ़ने का मौका मिलेगा। क्या गारंटी है कि एफडीआई से फायदा होगा? दूसरे देशों में क्या विदेशी यूनिवर्सिटीज नहीं आतीं? जब भारत ने डब्लूटीओ या विश्व व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, तब भी कहा गया कि भारत पश्चिमी देशों का गुलाम होकर रह जाएगा। न्यूक्लियर समझौते के वक्त भी यही हवा बनाई गई थी कि हम अमेरिका के अधीन हो जाएंगे। बताइए ऐसा कुछ हुआ? हम शिक्षा के क्षेत्र में रेगुलेटरी या नियंत्रक अधिकार अपने पास रखेंगे। फिर डर किस बात का? आपका मदरसा एजुकेशन बोर्ड का प्रस्ताव कितना प्रभावी है? इस मामले में मुस्लिम समुदाय में संकोच या रिजर्वेशंस वाली कोई बात नहीं है। हम इस काम को स्वैच्छिक आधार पर करना चाहते हैं। जो लोग इसके पक्ष में होंगे, वे इसे स्वीकारेंगे जो नहीं वे ना मानें। कोई प्रेशर नहीं होगा। मदरसों को हम सीबीएसई के बराबर की सुविधाएं देकर बराबर लेवल पर लाना चाहते हैं। कॉरपोरेट इनवेस्टमेंट से शिक्षा अमीरों की बनकर नहीं रह जाएगी? किसने कहा कॉरपोरेट का मकसद पैसा कमाना ही है। अजीम प्रेमजी, नारायणमूर्ति और सुनील मित्तल भारती जैसे लोग क्या चैरिटेबल काम नहीं कर रहे? शिक्षा के क्षेत्र में कॉरपोरेट के पैसे से हमें परहेज नहीं है। क्या वे आईआईटी में नहीं जा रहे हैं? उनके आने से स्किल डिवेलपमेंट प्रोग्राम आगे बढ़ेगा क्योंकि उन्हें मालूम है कि उन्हें कैसा लेबर चाहिए। एजुकेशन सेक्टर में आरक्षण को कैसे देखते हैं? कॉलेज के लेवल पर रिजर्वेशन जरूरी है क्योंकि झुग्गी-झोपड़ी और पिछड़ी जाति वाले बच्चों के पास तो इतने साधन भी नहीं हैं। हां, रिसर्च जैसे उच्चतर स्तरों पर तो वैसे भी रिजर्वेशन नहीं है। फैकल्टी में भी रिजर्वेशन जायज है। यह हो भी रहा है। फैकल्टी में भी तो उन्हीं को लिया जाएगा जो योग्यता के मानदंड पूरे करेंगे। रोजगार परक शिक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? इसके लिए हमारा स्किल डिवेलपमेंट कार्यक्रम है। यह एक रोजगार देने वाली योजना है। प्रधानमंत्री का कहना है कि 2020 तक 50 करोड़ लोगों को विभिन्न क्षेत्रों में वोकेशनल तरीके से योग्य बना दिया जाए, ताकि वे रोजी-रोटी कमाने लायक हो जाएं। इसके लिए 30 हजार करोड़ रुपया रखा गया है। हम सीबीएसई के 10वीं और 12वीं कक्षा के कोर्सों में भी स्किल डिवेलपमेंट कोर्स ला रहे हैं।
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