Sunday, April 26, 2009

मृत्युदंड देने का उद्देश्य पूरा नहीं होता।

वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम ने राय दी है कि किसी अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हो जाने पर राष्ट्रपति के समक्ष उसकी क्षमा याचिका को अर्से तक लंबित नहीं रखा जाना चाहिए। इससे मृत्युदंड देने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। वह पुणे के राठी हत्याकांड का हवाला दे रहे थे। इस मामले में तीन अपराधियों ने एक परिवार की आठ महिलाओं की हत्या कर दी थी। उनके लिए मृत्युदंड की पुष्टि भी सुप्रीम कोर्ट से हो गई है। पर उनकी क्षमा याचिका पिछले दस सालों से लंबित है। अगर क्षमा याचिकाओं को अर्से तक लंबित रखने की अनुमति दी गई तो मृत्युदंड को कम कर उम्रकैद की सजा में बदल दिए जाने की संभावना रहती है। इससे मृत्युदंड दिए जाने का उद्देश्य पराजित होता है। निकम शुक्रवार की रात एक समारोह में बोल रहे थे, जहां उन्हें 'लोक अधिवक्ता' का सम्मान दिया गया। अलग-अलग मामलों में 713 अपराधियों को उम्रकैद और 33 को मृत्युदंड की सजा दिला चुके निकम ने कहा कि मृत्युदंड घृणित अपराधों को निरुत्साहित करता है। मुम्बई पर हुए आतंकी हमलों पर निकम ने कहा कि 26 नवंबर 2008 की घटना ने सारी दुनिया को झकझोर दिया।

No comments: