Tuesday, April 28, 2009

मुसलमान भी इसी देश का नागरिक है अतः कोईनेता उन्हे वोट-बैंक न समझे

चुनाव का समय नज़दीक़ आते ही सभी राजनीतिक दलों को मुसलमानों का ध्यान आने लगता है। सभी को भरमा देने वाला शब्द 'मुस्लिम वोट बैंक' वास्तव में अंग्रेजी पत्रकारिता की देन है। सच्चाई यह है कि वोट बैंक तो क्या एक ही मुस्लिम परिवार के सभी सदस्य भी एक ही पार्टी को अपना वोट नहीं देते। हां, इन भटकाने वाले शब्दों से बिचौलियों, दलालों और एजंटों को लाभ अवश्य हुआ है। मुसलमानों के वोटों की ठेकेदारी और सौदागरी करने वालों की कमी नहीं है। ये ठेकेदार हर चुनाव के बाद लाखों-करोड़ों की दौलत के मालिक हो जाते हैं। गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार आज लगभग 25 करोड़ मुसलमान भारत में मौजूद हैं, जिनमें 10 से 15 करोड़ तो वोटर ही हैं। भारतीय मुसलमानों की त्रासदी यही है कि इतनी बड़ी संख्या होने के बाद भी वे यादवों, गूजरों, मीणाओं, दलितों आदि की तरह अपने अधिकार नहीं मनवा पाए हैं। पिछले दिनों मुसलमानों की कुछ पार्टियां भी बनीं, जैसे मुस्लिम उलेमा काउंसिल, यूडीएफ़ (यूनाइटेड डेमॉक्रेटिक फ्रंट ) आदि, जिनके रूहेरवां शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी व उनके साथी हैं। उलेमा काउंसिल के प्रवक्ता के अनुसार इस राजनीतिक पार्टी की स्थापना का मुख्य कारण यह है कि मुस्लिम संप्रदाय को सभी राजनीतिक दलों ने आज तक टिशू पेपर की भांति इस्तेमाल किया और फेंक दिया। अत: आवश्यकता इस बात की है कि एक मुस्लिम पार्टी की स्थापना हो। वैसे सेक्युलर पार्टियों के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए कि देश का मुसलमान आखिर ऐसा क्यों सोच रहा है। इधर जरनैल सिंह के 'जूता' कांड से मुस्लिम समाज में यह बहस भी शुरू हो गई है कि कांग्रेस पार्टी की निगाहों में उनके 20 प्रतिशत वोटों का महत्व मात्र 2 प्रतिशत सिख वोटों से भी कम है। तो क्या अपनी जायज मांग मनवाने के लिए उसे भी बीते समय में किसी मंत्री या नेता पर जूता फेंकना चाहिए था? कांग्रेस ने एक संप्रदाय विशेष को जिस प्रकार से दूसरे संप्रदाय विशेष की भावनाओं की अवहेलना करके खुश किया है, उससे मुसलमानों में बड़ी बेचैनी है और वे सोच रहे हैं कि जब भारत में धर्म की गंदी राजनीति का ही बोलबाला है तो वे फिर सैक्युलर होकर वोटिंग क्यों करें। उधर, समाजवादी पार्टी से भी मुस्लिम समुदाय का मोहभंग हो गया है क्योंकि उसने बाबरी मस्जिद विध्वंस के हीरो कल्याण सिंह से हाथ मिला लिया है। जहां तक बसपा का सवाल है तो उसके खिलाफ मुसलमानों का कोई तात्कालिक गुस्सा भले न हो मगर वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि मायावती को भाजपा से हाथ मिलाने में चौथाई मिनट भी सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी। उधर, लालू यादव ने भारतीय रेलवे को भले ही बड़ी ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया हो मगर मुस्लिम संप्रदाय के लिए तो उन्होंने कुछ नहीं किया। उनका किस्सा मुलायम सिंह यादव जैसा ही है, जिनका जब-जब उत्तर प्रदेश में राज रहा, तब-तब वहां मुस्लिम संप्रदाय को बिल्कुल भी घास नहीं डाली गई। देश के मुसलमानों ने 1952 से आज तक जब भी मतदान किया है, बिना यह सोचे किया है कि उनके प्रतिनिधि का धर्म क्या है। उन्होंने तो बस यही देखा है कि उनका प्रतिनिधि काम करने वाला हो और किसी सांप्रदायिक गुट का न हो। उनके मुद्दे सदा से ही यही रहे हैं कि वे धर्म निरपेक्ष वातावरण में रहें और उनके क्षेत्र में स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, बिजली, सड़कें और पीने का पानी उपलब्ध हो। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को भी लगभग पांच वर्ष बीत चुके हैं, मुसलमानों का पिछड़ापन सरकार के सामने है मगर किसी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। हां, इतना जरूर हुआ है कि चंद सरफिरे आतंकवादियों के कारण उस पर आतंकवाद का ठप्पा लग गया है, हालांकि आतंकवाद से जितनी दहशत मुसलमानों में है, उतनी ही शायद किसी और समुदाय में हो। मुसलमान अब सिर्फ मतदाता नहीं बने रहना चाहते, बल्कि राष्ट्र के बहुमुखी विकास में अपनी भागीदारी चाहते हैं। आरक्षण आरक्षण का झुनझुना उनके लिए ज्यादा काम का नहीं है। फ्रेंड्स फॉर एजुकेशन के अनुसार जिस समुदाय में मात्र 32 प्रतिशत पुरुष और 14 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हों वहां आरक्षण की निरर्थकता को आसानी से समझा जा सका है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में मुस्लिम जनसंख्या लगभग 15 प्रतिशत है जबकि महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों में उनकी हाजिरी 2 प्रतिशत ही दर्ज हो पाती है। पिछले चुनाव-परिणामों से यह स्पष्ट हो गया है कि पुराने नेतृत्व और भावनात्मक मुद्दों को मुसलमानों ने नकार दिया है। कुछ मुस्लिम 'शो ब्वायज' या 'शो गर्ल्ज' विभिन्न राजनीतिक दलों में स्थान अवश्य पा गए हैं मगर ऐसे लोगों को अपनी औकात पता है और वे यह भी जानते हैं कि अपने बूते पर वे किसी को को मुस्लिम वोट दिलाने की स्थिति में नहीं हैं। सच्चाई तो यह है कि मुस्लिम वोट को हिंदू, दलित, जैन या सिख वोट से हट कर नहीं देखना चाहिए क्योंकि मुसलमानों की समस्याएं देश के बाकी समुदायों से भिन्न नहीं हैं। जिस प्रकार सामान्य हिंदू बेरोजगारी, शिक्षा के साधनों की कमी, समाज में आगे बढ़ने के लिए सुविधाओं के अभाव आदि से पीड़ित हैं, वैसे ही मुसलमान भी हैं। ऐसा कहा जाता है कि भारतीय मुसलमान एक मुश्त वोट देते हैं। यदि यह बात सही होती तो एक ही क्षेत्र में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी आदि जैसी तीन-चार पार्टियों को मुसलमानों के वोट कैसे मिलते? केरल में तो मुस्लिम लीग मौजूद है, उत्तर प्रदेश में उलेमा काउंसिल है और हैदराबाद में इत्तेहाद-उल-मुस्लेमीन है। अगर मुसलमान वोट देने में सांप्रदायिक भाव से प्रेरित होते तो उनके सारे या ज्यादातर वोट इन पार्टियों को ही जाते। यहां यह याद दिलाना गलत नहीं होगा कि एक मुश्त वोटिंग की प्रवृत्ति मुसलमानों से अधिक गैर मुस्लिम समुदायों में देखने को मिलती है, और अपने क्षेत्र में यदि बीजेपी से कोई मुसलमान खड़ा हो जाए तो भी मुस्लिम मतदाता उसे मात्र धर्म के आधार पर वोट न देकर किसी गैर मुस्लिम सेक्युलर उम्मीदवार को विजयी बना देते हैं।

राजनीतिक दल अभी भी महिलाओं को आगे लाने में परहेज बरत रहे

भारतीय राजनीति में भले ही इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, जयललिता से लेकर मायावती तक कुछ प्रभावशाली महिलाएं अपना असर छोड़ने में सफल रही हों, पर जमीनी और मंझोले स्तर की सियासत में महिलाओं की स्थिति अब भी अछूत जैसी ही है। राजनीतिक दल अभी भी महिलाओं को आगे लाने में परहेज बरत रहे हैं। अव्वल तो उन्हें पार्टी का टिकट ही नहीं दिया जाता और अगर कोई महिला अपने दमखम पर कुछ आगे बढ़ आई हो, तो उसे अहम जिम्मेदारियों से दूर रखा जाता है। अभी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों की जो सूची आ रही है, उससे एक बार फिर साफ हो गया है कि हमारे राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में कितना फर्क है। अलग-अलग समय पर लगभग हरेक पार्टी ने महिला आरक्षण बिल का समर्थन किया है, महिलाओं को राजनीति में अधिकाधिक भागीदारी देने की बात भी कही है, पर जब टिकट देने की बारी आई है, तो उन्हें साफ भुला दिया है। महिला आरक्षण बिल के पास होने में कई अड़चनें हो सकती हैं, लेकिन जो दल सियासत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के पक्षधर हैं, उन्हें इस चुनाव के रूप में तो एक अवसर मिला है। वे चाहें तो महिलाओं को एक तिहाई टिकट देकर एक मिसाल कायम कर सकते हैं। पर कोई पार्टी ऐसा करने को तैयार नहीं दिखती। इससे महिला संगठनों के इस आरोप को बल मिला है कि हमारे सियासी दल पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रस्त हैं। वे ऊपर से चाहे जो कहें, मन से महिलाओं को राजनीति में भागीदारी नहीं देना चाहते। जो लेफ्ट पार्टियां महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण देने की बात सबसे जोरशोर से कहती रही हैं, उन्होंने भी इस बार महिलाओं का खयाल नहीं रखा। उन्होंने अपने गढ़ पश्चिम बंगाल में पिछले चुनाव की तुलना में महिलाओं को कम टिकट दिए हैं। राज्य में कुल 42 उम्मीदवारों में वाम मोर्चा की सिर्फ दो महिला उम्मीदवार हैं, जबकि पिछली बार पांच महिलाओं को टिकट दिए गए थे। गौर करने की बात है कि ये दो उम्मीदवार भी सीपीएम की हैं। सीपीआई, आरएसपी और फॉरवर्ड ब्लॉक ने तो एक भी महिला को इस लायक नहीं समझा। क्या इनके नेताओं को अपने ही भाषण याद नहीं जो इन्होंने महिला आरक्षण बिल के समर्थन में दिए थे? बीजेपी भी महिला आरक्षण बिल की हिमायत करती रही है, लेकिन अब तक जो उसकी सूची आई है उसमें महिलाओं का अपेक्षित प्रतिनिधित्व नहीं दिखाई पड़ता। पिछले दिनों बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने महिला आरक्षण बिल अब तक पास न होने के लिए यूपीए को जिम्मेदार ठहराया था और कहा कि एनडीए सरकार इसे जरूर पास करेगी। पूछा जा सकता है कि जब बीजेपी इसे लेकर इतना गंभीर है तो क्यों नहीं टिकट बांटने में वह महिलाओं का विशेष ध्यान रख रही है? कांग्रेस की अब तक की सूची से भी यही पता चलता है कि उसकी रुचि भी सिटिंग- गेटिंग में ही ज्यादा है। अब तक मध्य प्रदेश, गुजरात और असम की कुछ सीटों के लिए घोषित उम्मीदवारों में महिलाएं सिरे से गायब हैं जबकि कांग्रेसी नेता यह दोहराना नहीं भूलते कि सोनिया गांधी महिला आरक्षण बिल को लेकर काफी उत्सुक हैं और इसे हर हाल में पास कराना चाहती हैं। लेकिन वही इच्छा टिकट बांटने में क्यों नहीं झलक रही है? समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, आरजेडी के लालू प्रसाद यादव और जेडीयू के शरद यादव इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि महिला आरक्षण बिल का लाभ कहीं संभ्रात वर्ग की महिलाएं न उठा ले जाएं। इसके लिए इन नेताओं ने आरक्षण के भीतर आरक्षण की वकालत की और पिछड़े तथा दलित वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से सीटें तय करने को कहा। इनकी आपत्तियों के कारण ही बिल पर बहस में नए आयाम जुड़े और इसके पास होने की प्रक्रिया और लंबी खिंचती गई। अब इन नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या टिकट बंटवारा करते समय ये दबे-कुचले वर्ग की उन महिलाओं का ध्यान रखेंगे, जिन्हें ये पॉलिटिक्स में भागीदारी देने की बात करते रहे हैं? समाजवादी पार्टी की सूची से तो ऐसा नहीं लगता। उनकी पार्टी से जयाप्रदा लड़ रही हैं, जो कहीं से भी शोषित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। लखनऊ से फिल्म अभिनेता संजय दत्त को लड़ाने की तैयारी है, लेकिन यदि कोर्ट ने उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी तो पार्टी उनकी जगह जया बच्चन या संजय दत्त की पत्नी मान्यता दत्त को टिकट देने के बारे में सोच रही है। असल में ये दल किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहते। इन्होंने उन लोगों को टिकट दिए हैं, जिनके जीतने की संभावना प्रबल है, ताकि ये दल सत्ता की दौड़ में बने रह सकें। इससे एक निष्कर्ष और भी निकलता है कि राजनीति के दरवाजे साधारण महिलाओं के लिए लगभग बंद हैं। राजनीति में वर्षों से सक्रिय बुजुर्ग नेता या तो खुद जमे रहना चाहते हैं या अपनी संतानों के लिए जगह सुनिश्चित करना चाहते हैं। जमीन से जुड़ा एक साधारण कार्यकर्ता चुनाव टिकट पाने के सपने भी नहीं देख सकता। यह एक तरह का नव-ब्राह्मणवाद है, जिसका शिकार कमोबेश सभी पार्टियां हैं। समाजवादी पार्टी या आरजेडी के पास अब इतनी फुर्सत नहीं है कि वह पिछड़े वर्ग की उन महिलाओं की पहचान करे जो राजनीति में आ सकती हैं और जनप्रतिनिधि बन कर जनता की सेवा कर सकती हैं। आम तौर पर इन पार्टियों ने उन्हीं गिनी-चुनी महिलाओं को टिकट दिए हैं, जो किसी न किसी स्थापित नेता या शख्सियत के परिवार से संबंधित रही हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि महिलाओं को राजनीति में भागीदारी दिए जाने की बातें छलावा थीं? क्या नई लोकसभा में भी महिला आरक्षण बिल को किसी न किसी बहाने टाल दिया जाएगा? हालांकि अब भी मौका है। पॉलिटिकल पार्टियां अगर मन से महिला आरक्षण बिल के साथ हैं तो वे टिकट बंटवारे में अपने इस इरादे का इजहार करें और महिलाओं को एक तिहाई टिकट दें।

Sunday, April 26, 2009

22 अप्रैल को पर्चा भरने के बाद वरुण ने जब हर मजहब की रक्षा करने की बात कही तो अल्पसंख्यकों ने इसका जोरदार स्वागत किया।

वरुण गांधी के कथित भड़काऊ भाषण और जहर उगलते शब्दों ने पीलीभीत के अल्प संख्यकों को सकते में डाल दिया है। उनको विश्वास नहीं हो रहा है कि लंदन से पढ़े-लिखे, गांधी परिवार के इस नौजवान के मुंह से समाज को बांटने की बातें निकल सकती हैं। 22 अप्रैल को पर्चा भरने के बाद वरुण ने जब हर मजहब की रक्षा करने की बात कही तो अल्पसंख्यकों ने इसका जोरदार स्वागत किया। अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधियों का कहना है कि वरुण से अब उनको कोई गिला-शिकवा नहीं है। वरुण ने जो कुछ कहा, वह नादानी में कहा। उनकी वरुण से यह गुजारिश है कि बेशक सांसद बनें, मगर इस तरह किसी के खिलाफ जहर उगलकर और नफरत बांटकर नहीं। बेहतर होगा कि वे पॉजिटिव राजनीति करके विकास की बातें करें, खुद को आगे बढ़ने और देश के नौजवानों को आगे बढ़ाने की बात करें तो यह उनके और देश के लिए बेहतर होगा। जमात-ए-इस्लामी हिंद के पीलीभीत क्षेत्र के प्रमुख मोहम्मद रज़ा खान ने एनबीटी से बातचीत में कहा कि जब यह घोषणा हुई कि वरुण गांधी यहां से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे तो मुसलमान काफी खुश थे। उनको लगा कि एक पढ़ा-लिखा युवा पीलीभीत से सांसद बनेगा तो युवाओं को रोजगार और तरक्की की बात करेगा। मगर वरुण ने सारे सपने तोड़ दिए। वरुण गांधी की मां मेनका ने कभी इस तरह की बात नहीं कही। वह पिछले दो दशक से यहां से चुनी गई हैं। इसका कारण है कि उनका गांधी परिवार से संबंध और सिख होना। क्या मुसलमानों का वोट वरुण के खिलाफ जाएगा? रजा खान का मानना है कि ऐसी बात नहीं है। मुसलमानों ने वरुण को नादान बच्चा समझकर माफ कर दिया है। उन्हें लगता है कि वरुण ने या तो नादानी में, या किसी के दबाव में आकर ऐसे बयान दिए। अब वरुण पहले की तुलना में परिपक्व हो चुके हैं। ऐसे में अब मुसलमान चाहते हैं कि अगर वे यहां से सांसद चुने गए तो इंसानियत और सभी लोगों के उत्थान की बात करें न कि मरने या मारने की। पीलीभीत में एकमात्र क्रिश्चियन डिग्री कॉलेज अलोसियस कॉलेज के परिचालक फादर नॉरबेट मानते हैं कि वरुण के सीडी प्रकरण के बाद अल्पसंख्यकों में निराशा फैल गई थी। पीलीभीत में आज तक कोई दंगा नहीं हुआ। गरीबी, बेरोजगारी और शिक्षा यहां की प्रमुख समस्या है। बेहतर होगा कि वरुण इन समस्याओं पर ध्यान देते। यह पूछने पर कि क्या वह चाहेंगे कि वरुण यहां से जीते? फादर नॉरबेट कहते हैं, बिल्कुल। वरुण से अनजाने में गलती हुई है, पर अल्पसंख्यकों को उनकी काबिलियत पर जरा भी शक नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता सरदार हंस पाल सिंह के अनुसार वरुण का जो सीडी प्रकरण हुआ, वह काफी दुखदायी है। उम्मीद है कि यह युवा नेगेटिव बातें छोड़कर पाजिटिव बातों पर दिल लगाएगा।

मृत्युदंड देने का उद्देश्य पूरा नहीं होता।

वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम ने राय दी है कि किसी अपराधी को मृत्युदंड दिए जाने की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा हो जाने पर राष्ट्रपति के समक्ष उसकी क्षमा याचिका को अर्से तक लंबित नहीं रखा जाना चाहिए। इससे मृत्युदंड देने का उद्देश्य पूरा नहीं होता। वह पुणे के राठी हत्याकांड का हवाला दे रहे थे। इस मामले में तीन अपराधियों ने एक परिवार की आठ महिलाओं की हत्या कर दी थी। उनके लिए मृत्युदंड की पुष्टि भी सुप्रीम कोर्ट से हो गई है। पर उनकी क्षमा याचिका पिछले दस सालों से लंबित है। अगर क्षमा याचिकाओं को अर्से तक लंबित रखने की अनुमति दी गई तो मृत्युदंड को कम कर उम्रकैद की सजा में बदल दिए जाने की संभावना रहती है। इससे मृत्युदंड दिए जाने का उद्देश्य पराजित होता है। निकम शुक्रवार की रात एक समारोह में बोल रहे थे, जहां उन्हें 'लोक अधिवक्ता' का सम्मान दिया गया। अलग-अलग मामलों में 713 अपराधियों को उम्रकैद और 33 को मृत्युदंड की सजा दिला चुके निकम ने कहा कि मृत्युदंड घृणित अपराधों को निरुत्साहित करता है। मुम्बई पर हुए आतंकी हमलों पर निकम ने कहा कि 26 नवंबर 2008 की घटना ने सारी दुनिया को झकझोर दिया।

मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर

श्रीलंका में तुरंत सीजफायर की अपनी मांग पर जोर देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। सोमवार सुबह हड़ताल पर बैठने से पहले वह अपने राजनीतिक गुरु अन्नादुरई की प्रतिमा पर फूल चढाने गए। उन्होंने कहा, 'यह तमिल कॉज के लिए मेरा बलिदान है। मुझे भी राजपक्षे (श्रीलंकाई राष्ट्रपति)के जनसंहार की बलि चढ़ जाने दीजिए। ' गौरतलब है कि लिट्टे ने रविवार को इकतरफा युद्धविराम का ऐलान किया जिसे श्रीलंका सरकार ने नामंजूर कर दिया। लिट्टे का यह ऐलान तब आया जब रविवार को ही श्रीलंका सेना ने सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण व्लायरमदाम इलाके पर कब्जा करके बचे हुए करीब 6 किलोमीटर इलाके को चारों ओर से घेर माना जा रहा है कि इसी 6 किलोमीटर के इलाके में लिट्टे चीफ प्रभाकरन और उसके प्रमुख सहयोगी छिपे हुए हैं। शुक्रवार को करुणानिधि ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि अगर श्रीलंका सरकार सीजफायर के इसके सुझाव को स्वीकार नहीं करती तो उसके साथ सारे कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए जाएं। इससे पहले वह प्रभाकरन को अपना अच्छा मित्र भी बता चुके हैं। मगर, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह श्रीलंका में तमिल नागरिकों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन तमिल आतंकवादियों से कोई सहानुभूति नहीं रखती।

मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर

श्रीलंका में तुरंत सीजफायर की अपनी मांग पर जोर देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। सोमवार सुबह हड़ताल पर बैठने से पहले वह अपने राजनीतिक गुरु अन्नादुरई की प्रतिमा पर फूल चढाने गए। उन्होंने कहा, 'यह तमिल कॉज के लिए मेरा बलिदान है। मुझे भी राजपक्षे (श्रीलंकाई राष्ट्रपति)के जनसंहार की बलि चढ़ जाने दीजिए। ' गौरतलब है कि लिट्टे ने रविवार को इकतरफा युद्धविराम का ऐलान किया जिसे श्रीलंका सरकार ने नामंजूर कर दिया। लिट्टे का यह ऐलान तब आया जब रविवार को ही श्रीलंका सेना ने सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण व्लायरमदाम इलाके पर कब्जा करके बचे हुए करीब 6 किलोमीटर इलाके को चारों ओर से घेर माना जा रहा है कि इसी 6 किलोमीटर के इलाके में लिट्टे चीफ प्रभाकरन और उसके प्रमुख सहयोगी छिपे हुए हैं। शुक्रवार को करुणानिधि ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि अगर श्रीलंका सरकार सीजफायर के इसके सुझाव को स्वीकार नहीं करती तो उसके साथ सारे कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए जाएं। इससे पहले वह प्रभाकरन को अपना अच्छा मित्र भी बता चुके हैं। मगर, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह श्रीलंका में तमिल नागरिकों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन तमिल आतंकवादियों से कोई सहानुभूति नहीं रखती।

मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर

श्रीलंका में तुरंत सीजफायर की अपनी मांग पर जोर देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। सोमवार सुबह हड़ताल पर बैठने से पहले वह अपने राजनीतिक गुरु अन्नादुरई की प्रतिमा पर फूल चढाने गए। उन्होंने कहा, 'यह तमिल कॉज के लिए मेरा बलिदान है। मुझे भी राजपक्षे (श्रीलंकाई राष्ट्रपति)के जनसंहार की बलि चढ़ जाने दीजिए। ' गौरतलब है कि लिट्टे ने रविवार को इकतरफा युद्धविराम का ऐलान किया जिसे श्रीलंका सरकार ने नामंजूर कर दिया। लिट्टे का यह ऐलान तब आया जब रविवार को ही श्रीलंका सेना ने सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण व्लायरमदाम इलाके पर कब्जा करके बचे हुए करीब 6 किलोमीटर इलाके को चारों ओर से घेर माना जा रहा है कि इसी 6 किलोमीटर के इलाके में लिट्टे चीफ प्रभाकरन और उसके प्रमुख सहयोगी छिपे हुए हैं। शुक्रवार को करुणानिधि ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि अगर श्रीलंका सरकार सीजफायर के इसके सुझाव को स्वीकार नहीं करती तो उसके साथ सारे कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए जाएं। इससे पहले वह प्रभाकरन को अपना अच्छा मित्र भी बता चुके हैं। मगर, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह श्रीलंका में तमिल नागरिकों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन तमिल आतंकवादियों से कोई सहानुभूति नहीं रखती।

मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर

श्रीलंका में तुरंत सीजफायर की अपनी मांग पर जोर देने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके नेता करुणानिधि अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। सोमवार सुबह हड़ताल पर बैठने से पहले वह अपने राजनीतिक गुरु अन्नादुरई की प्रतिमा पर फूल चढाने गए। उन्होंने कहा, 'यह तमिल कॉज के लिए मेरा बलिदान है। मुझे भी राजपक्षे (श्रीलंकाई राष्ट्रपति)के जनसंहार की बलि चढ़ जाने दीजिए। ' गौरतलब है कि लिट्टे ने रविवार को इकतरफा युद्धविराम का ऐलान किया जिसे श्रीलंका सरकार ने नामंजूर कर दिया। लिट्टे का यह ऐलान तब आया जब रविवार को ही श्रीलंका सेना ने सामरिक लिहाज से महत्वपूर्ण व्लायरमदाम इलाके पर कब्जा करके बचे हुए करीब 6 किलोमीटर इलाके को चारों ओर से घेर माना जा रहा है कि इसी 6 किलोमीटर के इलाके में लिट्टे चीफ प्रभाकरन और उसके प्रमुख सहयोगी छिपे हुए हैं। शुक्रवार को करुणानिधि ने केंद्र सरकार से मांग की थी कि अगर श्रीलंका सरकार सीजफायर के इसके सुझाव को स्वीकार नहीं करती तो उसके साथ सारे कूटनीतिक संबंध समाप्त कर लिए जाएं। इससे पहले वह प्रभाकरन को अपना अच्छा मित्र भी बता चुके हैं। मगर, केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह श्रीलंका में तमिल नागरिकों की पूरी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती है, लेकिन तमिल आतंकवादियों से कोई सहानुभूति नहीं रखती।

असल में अक्षय तृतीया

चुनावी माहौल में रैलियों के कारण पहले से ही ट्रैफिक जाम से जूझते लोगों के लिए सोमवार का दिन और भारी पड़ सकता है। सोमवार को अक्षय तृतीया है और -दिल्ली-एनसीआर में हजारों शादियां हैं। ऐसे में देर रात तक निकलने वाली बरातें सड़कों को जाम कर सकती हैं। पार्क, बैंक्विट हॉल से लेकर फॉर्म हाउस तक सबकी बुकिंग फुल है। अगर आपको भी किसी शादी में जाना है, तो जरा जल्दी निकलें या कम ट्रैफिक वाली सड़क पकड़ें। बाकी लोग इस दौरान निकलने से बच सकें तो अच्छा।
शुभ विवाह का निमंत्रण सात जनमों के बंधन में बंधने को तैयार, ट्रैफिक जाम लगे चाहे, बाधाएं हों हजार। नए जीवन का आशीर्वाद आपसे चाहिए, अब चाहे पैदल या फिर उड़कर आइए।
असल में अक्षय तृतीया को विवाह के लिए बहुत शुभ दिन माना जाता है। जाने माने ज्योतिषी केवल आनंद जोशी का कहना है कि इस वजह से लोग इस दिन अपने बच्चों की शादी कराने को खासे उत्सुक रहते हैं। एमसीडी के एक अधिकारी के अनुसार विवाह आदि के आयोजन के लिए विभाग के पास करीब 200 बैंक्विट हॉल और करीब 750 पार्क हैं। सोमवार के लिए ये सभी बुक हो चुके थे। सोमवार के लिए अधिकतर फार्महाउस भी बुक हो चुके हैं। बवाना रोड स्थित पालकी फार्महाउस के मालिक जे. पी. ग्रेवाल का कहना है कि उनके इलाके के सभी फार्महाउसों में सोमवार को शादी का आयोजन हो रहा है। यही हाल महरौली स्थित फार्महाउसों का है। वसंत कुंज निवासी विनोद कुमार के अनुसार जिस दिन शादी का साया होता है, उस दिन महिपालपुर-अंधेरिया मोड़ पर रात होते ही जाम लग जाता है और यह स्थिति देर रात तक बनी रहती है। पश्चिमी दिल्ली के अग्रवाल केटरर्स के मुताबिक सोमवार के लिए अधिकतर केटरर्स बुक हो चुके हैं। ट्रैफिक पुलिस अलर्ट नई दिल्ली ।। सोमवार को होने जा रही हजारों शादियों के मद्देनजर ट्रैफिक पुलिस भी कमर कस रही है। जॉइंट पुलिस कमिश्नर (ट्रैफिक) सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने बताया कि अरबिन्दो मार्ग, अणुव्रत मार्ग, एमजी रोड, वसंत कुंज इलाके, रोहतक रोड, जीटी करनाल रोड आदि सड़कों के किनारे कारें पार्क नहीं होने दी जाएंगी। इन सड़कों पर स्थित फार्महाउसों और बैंक्विट हॉलों में बहुतायत में शादियां आयोजित होती हैं। इन सभी सड़कों पर दिन-रात भारी ट्रैफिक रहता है। श्रीवास्तव के मुताबिक, ट्रैफिक पुलिस सड़कों पर क्रेन लेकर घूमती रहेगी। जहां भी सड़कों पर कारें पार्क की गई नजर आएंगी, उन्हें उठा लिया जाएगा। देर रात तक सड़कों पर तैनाती के लिए ट्रैफिक पुलिसकर्मियों और सीनियर अफसरों को हिदायत जारी की गई है।

Saturday, April 25, 2009

5 करोड़ 55 लाख रुपये की लॉटरी के लालच में साढ़े 51 लाख रुपये गंवा दिए।

सरकारी विभाग के एक सीनियर अफसर ने इंटरनेट और फोन पर मिली 5 करोड़ 55 लाख रुपये की लॉटरी के लालच में साढ़े 51 लाख रुपये गंवा दिए। अज्ञात धोखेबाज उन्हें महज 15 दिनों में ही इतना बड़ा चूना लगाने में कामयाब रहे। इस संबंध में पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। फिलहाल पुलिस के हाथ कोई सुराग नहीं लग पाया है। भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम इरकॉन इंटरनैशनल के असिस्टंट जनरल मैनेजर रमाकांत मिश्रा इस ठगी का शिकार बने हैं। उन्हें 5 अप्रैल को मोबाइल पर मेसेज मिला कि उनकी 5 करोड़ 55 लाख रुपये की लॉटरी निकली है। यहां के सेक्टर 43 की पीडब्ल्यूडी कॉलोनी में रहने वाले रमाकांत ने मेसिज पर रिप्लाई भेजा कि इसे क्लेम करने के लिए उन्हें क्या करना होगा। इस पर जवाब आया कि उन्हें शुरू में एक लाख 49 हजार रुपये बताए गए अकाउंट नंबर में जमा कराने होंगे। ऐसा करने के बाद भी जब उन्हें लॉटरी की रकम नहीं मिली, तो उन्होंने फिर से संपर्क किया। संपर्क करने पर रमाकांत को कहा गया कि वह इंग्लैंड के नागरिक नहीं हैं, इसलिए उन्हें और पैसा जमा कराना होगा। इस तरह उन्हें लगातार पैसा जमा कराने की हिदायतें मिलती रहीं और लालच में आकर उन्होंने महज 15 दिनों में ही 51 लाख 66 हजार रुपये जमा करा दिए। इसी बीच जब सामने वाले का नंबर स्विच ऑफ मिला तो उन्हें शक हुआ। तब जाकर उन्हें पता चला कि उनके साथ लाखों की ठगी हो चुकी है और कोई लॉटरी का चक्कर ही नहीं है।

एयरहोस्टेस के व्यवहार से ज्यादा उनके फिगर की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन एयरलाइंस को इस बात के लिए लताड़ लगाई है कि एयरहोस्टेस के व्यवहार
से ज्यादा उनके फिगर की चिंता की जा रही है। वजन कम करने में नाकाम रही एक एयर होस्टेस को नौकरी से निकालने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एयर होस्टेस अच्छा व्यवहार दिखाएगी , तो पैसिंजर्स ज्यादा खुश होंगे। जस्टिस तरुण चटर्जी और जस्टिस एच. एल. दत्तू की बेंच ने कहा कि बेहतर होगा व्यवहार पर ध्यान दिया जाए। सरकारी एयरलाइंस का मानना है कि जब प्राइवेट एयरलाइंस के साथ मुकाबला बढ़ता जा रहा है , तो ओवरवेट एयरहोस्टेस नहीं रखी जा सकतीं , क्योंकि वे कम आकर्षक और कम ऐक्टिव होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक डेमॉक्रेटिक देश में 13 एयरहोस्टेस को सिर्फ इसलिए निकाला जाना क्या सही है कि उनका वजन ज्यादा था। कोर्ट इन 14 एयर होस्टेस द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हालांकि कोर्ट ने इन एयर होस्टेस को नौकरी से निकाले जाने के फैसले पर तुरंत रोक लगाने से इनकार कर दिया।

Tuesday, April 21, 2009

मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने रविवार को कहा कि वह लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन को आतंकवादी नहीं मानते।

डीएमके अध्यक्ष और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने रविवार को कहा कि वह लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन को आतंकवादी नहीं मानते। श्रीलंका की सेना और लिट्टे के बीच जारी लड़ाई में उनकी मौत हुई तो उन्हें दुख होगा। एक टीवी चैनल से करुणानिधि ने कहा, 'प्रभाकरन मेरे अच्छे दोस्त हैं। मैं कोई आतंकवादी नहीं हूं।' गौरतलब है कि प्रभाकरन राजीव गांधी हत्याकांड में घोषित अपराधी है। इस बीच कांग्रेस ने करुणानिधि के इस नजरिए को खारिज कर दिया। दिल्ली में पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि हम लिट्टे को आतंकवादी संगठन मानते हैं। टीवी कार्यक्रम में करुणानिधि के साथ उनकी बेटी और राज्यसभा सदस्य कोनीमाझी भी मौजूद थीं। करुणानिधि ने कहा- प्रभाकरन के संगठन के लोगों को आतंकवादी बनाया गया। लेकिन इसमें प्रभाकरन की गलती नहीं है। तमिल गुटों की आपसी लड़ाई की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अगर प्रभाकरन मारा गया, मुझे बेहद अफसोस होगा। लिट्टे का मकसद 'वाजिब' है, लेकिन उसने 'गलत तरीका' अख्तियार किया।

अगली सरकार में लालू का मंत्री बनना मुश्किल है।

कांग्रेस और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद के बीच जारी जुबानी जंग लगातार गहराती जा रही है। कांग्रेस नेता और विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने चुनावी सभा में कहा कि किसी भी अगली सरकार में लालू का मंत्री बनना मुश्किल है। हालांकि प्रणव मुखर्जी के बयान का जवाब देने में लालू ने भी देर नहीं की। उन्होंने कहा कि ये तो वक्त ही बताएगा कि सरकार में कौन शामिल होगा। समस्तीपुर में मंगलवार को एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने कहा,'लालू जी की सरकार बनाने की बात तो दूर की है, उनका तो अब किसी सरकार में शामिल होना भी मुश्किल है क्योंकि वह अभी किसी के साथ नहीं हैं। समस्तीपुर की इस चुनावी सभा को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संबोधित करने वाली थीं लेकिन उनके नहीं आने पर मुखर्जी को यहां आना पड़ा।
मुखर्जी का यह बयान लालू द्वारा सुबह दिए गए बयान, केंद्र में यूपीए की ही सरकार बनेगी लेकिन मनमोहन सिंह उसका नेतृत्व करेंगे यह निश्चित नहीं है, के कुछ ही देर बाद आया है। मनमोहन सिंह को यूपीए का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने वाली कांग्रेस ने लालू के इस बयान पर पलटवार करने के लिए ही प्रणव मुखर्जी को बिहार भेजा था। सीटों के बंटवारे का जिक्र करते हुए प्रणव मुखर्जी ने कहा, 'हमने ज्यादा सीटें नहीं मांगी थीं मगर वो भी उन्होंने नहीं दिया। उन्होंने इस बारे में चर्चा भी नहीं की। पांच साल तक वो सरकार में रहे। हम सभी उनकी इज्जत करते थे, मगर उन्होंने कांग्रेस के साथ जो बर्ताव किया वो किसी कांग्रेसी को मंजूर नहीं होगा।'

यह देश भृष्टाचार की गर्त में जा पहुंचा है , यहां सब कुछ हो सकता है ।

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने वोटर लिस्ट तैयार करने में होने वाली
गड़बड़ी को साबित करने के लिए आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन और मुंबई हमले के मामले में गिरफ्तार कसाब का पुणे में बना जाली राशन कार्ड पेश किया है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में वोटरों की सूचियां राशन कार्ड की मदद से बनाई गई हैं। राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र भारत का अकेला ऐसा राज्य है जहां राशन कार्ड में फोटो नहीं होता है। राज ने अपनी पार्टी के लोगों से इस तरह के फर्जी वोटरों से सतर्क रहने को कहा है।
राज ठाकरे ने पुणे में एक रैली में दोनों का फर्जी राशन कार्ड पेश करते हुए कहा कि राजनेता अपने वोटों की खातिर कितना नीचे गिर जाते हैं कि जाली राशन कार्ड और वोटर आई-कार्ड धड़ल्ले से बनवा देते हैं। उन्होंने कहा कि इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारी सुरक्षा को कितना खतरा है। राज ने रैली में एनसीपी के नेता शरद पवार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि यह समझ से परे है कि जब देश में चुनाव चल रहा है तो क्रिकेटरों को देश से बाहर क्यों भेजा गया। उन्होंने कहा कि हम रोज चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि हर नागरिक वोट डाले और सिर्फ पैसे के लिए क्रिकटरों को साउथ अफ्रीका भेज देते हैं।

Sunday, April 19, 2009

अमेरिकी वैज्ञानिक राजीव जे. शाह को कृषि विभाग में महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करना चाहते हैं।

अमेरिकी प्रेजिडंट बराक ओबामा एक भारतीय अमेरिकी वैज्ञानिक राजीव जे. शाह को कृषि विभाग में महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करना चाहते हैं। शाह वर्तमान में 'बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन' के साथ जुड़े हैं। राष्ट्रपति कार्यालय वाइट हाउस ने शुक्रवार को कहा कि ओबामा शाह को कृषि विभाग में रिसर्च, शिक्षा और अर्थव्यवस्था मामलों के उप मंत्री बनाने के इच्छुक हैं। फाउंडेशन में शाह गरीबों के स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रमों का संचालन करते हैं। शाह वर्ष 2001 में फाउंडेशन से जुड़े थे। उन्होंने कृषि क्षेत्र में किसानों की उत्पादकता और बाजार तक पहुंच को लेकर काम किया है।

Thursday, April 16, 2009

स्कूलों में सेक्स शिक्षा नहीं होनी चाहिए।

स्कूलों में सेक्स शिक्षा की शुरुआत का एक संसदीय समिति ने विरोध किया है। इस समिति ने सलाह
दी है कि बायॉलजी के सिलेबस में उचित चैप्टर जोड़ दिए जाएं। यह काम भी प्लस टू से पहले नहीं होना चाहिए। पिटिशंस पर बनी राज्यसभा की समिति ने कहा है कि स्कूलों में सेक्स शिक्षा नहीं होनी चाहिए। बीजेपी नेता वेंकैया नायडू की अध्यक्षता वाली समिति के मुताबिक, स्कूली बच्चों को यह बात उचित ढंग से बताई जानी चाहिए कि शादी से पहले सेक्स संबंध नहीं होने चाहिए, क्योंकि यह अनैतिक और अस्वस्थ है। छात्रों को इस बात के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए कि वैवाहिक संबंधों से अलग हटकर सेक्स सामाजिक मर्यादाओं के खिलाफ है। समिति ने सुझाव दिया है कि उम्र के मुताबिक वैज्ञानिक ढंग से स्वास्थ्य शिक्षा, नैतिक शिक्षा, व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण के लिए उचित पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। हायर क्लास में एचआईवी/एड्ज के बारे में उचित चैप्टर बायॉलजी के सिलेबस में जोड़ा जाना चाहिए। कमिटी ने कहा है कि 'किशोरावस्था में शारीरिक और मानसिक विकास' और 'एचआईवी/एड्ज और सेक्स संचारित अन्य रोग' जैसे चैप्टर हटाकर इन्हें टेन प्लस टू स्टेज में जोड़ा जाना चाहिए। नया सिलेबस सभी स्कूलों में लागू करने से पहले मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में सहमति के लिए पेश किया जाना चाहिए।

कैपिटेशन फीस के रूप में लाखों रुपये की अवैध वसूली होती है।

हायर एजुकेशन पर बनी यशपाल कमिटी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। फरवरी 2008 में बनी कमिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 40 सालों से हायर एजुकेशन में बड़े सुधार नहीं किए गए हैं। यह ठीक है कि हायर एजुकेशन में प्राइवेट संस्थाओं का अहम योगदान है, लेकिन फीस को लेकर कड़े नियम हों ताकि आम स्टूडेंट भी यहां पर पढ़ सकें। रिपोर्ट में प्राइवेट यूनिवर्सिटीज और डीम्ड यूनिवर्सिटीज को लेकर काफी गंभीर सवाल उठाए गए हैं। कहा गया है कि इनमें गैर-कानूनी रूप वसूली जाने वाली कैपिटेशन फीस की रेंज काफी ज्यादा है। ताज्जुब की बात यह है कि रेग्युलेटरी एजेंसी भी गैरकानूनी कैपिटेशन और सालाना फीस पर रोक लगाने में नाकाम साबित हो रही हैं। यूजीसी के चेयरमैन रह चुके प्रफेसर यशपाल ने एनबीटी को बताया कि पिछले कुछ सालों से जिस तरह से प्राइवेट संस्थाओं को डीम्ड यूनिवर्सिटीज का दर्जा दिया जा रहा है, उस पर रोक लगनी चाहिए। जो यूनिवर्सिटीज नियम-कायदों पर खरी न उतरें, तीन साल बाद उनसे डीम्ड का स्टेटस वापस ले लिया जाए। क्या है बीमारी - कुछ प्राइवेट प्रफेशनल कॉलिजों को जैसे ही यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला, उन्होंने पांच से छह गुना तक ज्यादा स्टूडंट्स लेने शुरू कर दिए, जबकि सुविधाओं में इजाफा नहीं हुआ। - कैपिटेशन फीस के रूप में लाखों रुपये की अवैध वसूली होती है। रेग्युलेटरी संस्थाएं इस फीस पर लगाम कसने में असफल हैं। -1956-1990 के बीच केवल 29 इंस्टिट्यूट ही डीम्ड यूनिवर्सिटी बने। पिछले 15 साल में 63, जबकि सिर्फ पांच साल में 36 इंस्टिट्यूशंस को डीम्ड का दर्जा। फिलहाल 108 प्राइवेट डीम्ड यूनिवर्सिटीज। क्या है इलाज -यूजीसी, एआईसीटीई जैसी रेग्युलेटरी बॉडीज को हटाकर कमिशन फॉर हायर एजुकेशन बनाया जाए। यह कमिशन देश में हायर एजुकेशन के लिए ठोस नीति बनाए। - स्टेट यूनिवर्सिटीज की ओर भी पूरा ध्यान रखा जाए और सेंट्रल व स्टेट यूनिवर्सिटी में भेदभाव न हो। स्टेट यूनिवर्सिटीज को उचित फंड मिले। - डीम्ड यूनिवर्सिटीज का दर्जा दिए जाने और वहां पर एजुकेशन के स्टैंडर्ड को बढ़ाने के लिए कड़े नियम हों। हायर एजुकेशन में प्राइवेट यूनिवर्सिटी और संस्थाएं स्टूडंट्स के लिए गहरी चिंता का सबब हैं। इनमें मेडिकल, इंजीनियरिंग और दूसरे कोर्स के लिए वसूली जा रही फीस का कोई बुनियादी आधार नहीं है। फीस तय करते समय नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। ये बातें प्रफेसर यशपाल की अध्यक्षता में गठित कमिटी ने कही हैं, जिसका गठन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने किया था।

Wednesday, April 15, 2009

चिदंबरम ने कहा- मैं गृह मंत्री होता तो इसे स्वीकार नहीं करता।

कंधार अपहरण कांड में तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी की भूमिका पर सवाल उठाते हुए गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने बुधवार को कहा कि ऐसी स्थिति में वे एनडीए सरकार की तरह आतंकवादियों को मुक्त करने का कदम कभी नहीं उठाते। संवाददाता सम्मेलन में कंधार प्रकरण के संबंध में पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा- मैं गृह मंत्री होता तो इसे स्वीकार नहीं करता। 4 सालों बाद मैं यह नहीं कहता कि मुझे पता नहीं कि विदेश मंत्री आतंकवादियों के साथ गए थे या नहीं। गौरतलब है कि आडवाणी ने कथित तौर पर दावा किया था कि 1999 के कंधार अपहरण कांड (इंडियन एयरलाइंस विमान अपहरण कांड) में विदेश मंत्री जसवंत सिंह यात्रियों को छुड़ाने के बदले में 3 आतंकवादियों को ले जाकर मुक्त करेंगे, इस निर्णय के बारे में उन्हें नहीं बताया गया था। आतंकवाद से लड़ने में यूपीए की विफलता पर बीजेपी के आरोपों के जवाब में बहस में कूदते हुए चिदंबरम ने कहा- प्रधानमंत्री को कहा होता कि विदेश मंत्री को आतंकवादियों को साथ ले जाने की अनुमति न दें। कंधार अपहरण कांड में जैश-ए-मुहम्मद संस्थापक मसूद अजहर सहित चरमपंथी संगठन के 3 आतंकवादियों को मुक्त करने पर बीजेपी को कांग्रेस की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

कार्यालय तक ठीक, पर विस्तर में नहीं

अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्पष्ट कर दिया है कि लंबे इंतजार के बाद मंगलवार को वाइट हाउस रहने पहुंचा कुत्ता बो ओवल ऑफिस तक तो आ सकता है लेकिन उनके बिस्तर में हरगिज नहीं। वाइट हाउस में बो के दाखिल होते ही क्षण भर के लिए तो सभी लोग आर्थिक संकट या पाकिस्तान के हालात को भूल ही गए और बो से दिल बहलाने लगे। एक संवाददाता ने ओबामा से जानना चाहा कि क्या बो को भी पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के कुत्ते बार्नी, जो बेधड़क ओवल ऑफिस चला आता था, जैसे विशेषाधिकार हासिल होंगे। ओबामा ने कहा, 'क्यों नहीं।' संवाददाता ने ओबामा से पूछा, 'क्या वह बिस्तर पर सोएगा?' ओबामा ने कहा, 'मेरे बिस्तर में नहीं।' ओबामा ने कहा, 'हम सभी बो को बारी-बारी घुमाने ले जाएंगे। हम जिम्मेदार स्वामी बनने की कोशिश कर रहे हैं।' ओबामा ने संवाददाताओं से चुटकी लेते हुए कहा, 'आखिरकार मुझे एक मित्र मिल गया।' ओबामा ने राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए हुए प्रचार के दौरान अपनी पुत्रियों से वादा किया था कि चुनाव जीतने पर उनके परिवार के सदस्यों के साथ उनका कुत्ता भी वाइट हाउस रहने जाएगा।

Saturday, April 11, 2009

सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर अब नहीं रहे।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर अब नहीं रहे। उन्होंने शुक्रवार रात दुनिया को अलविदा कह दिया। वह 97 साल के थे। उनके परिवार में 2 बेटे और 2 बेटियां हैं।
उनके बेटे अतुल प्रभाकर ने बताया कि विष्णु प्रभाकर सीने और मूत्र में संक्रमण के चलते 23 मार्च से महाराजा अग्रसेन अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने 20 मार्च से खाना पीना छोड़ दिया था। अतुल के अनुसार उनके पिता ने शुक्रवार रात लगभग 12 बजकर 45 मिनट पर अंतिम सांस ली। प्रभाकर ने अपनी मृत्यु से पहले ही एम्स को अपने शरीर को दान करने का फैसला कर लिया था।
भले ही विष्णु प्रभाकर हमारे बीच से चले गए लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा लोगों के साथ रहेंगी। प्रभाकर को पद्मभूषण दिया गया था, लेकिन सरकार द्वारा किसी साहित्यकार की देर से सुध लेने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सम्मान वापस कर दिया था। उनके बारे में प्रभाकर लिखा गया था, 'साहित्य और पाठकों के बीच स्लिप डिस्क के सही हकीम हैं। यही कारण है कि उनका साहित्य पुरस्कारों के कारण नहीं पाठकों के कारण चर्चित हुआ।' प्रभाकर का जन्म 20 जुलाई 1912 को उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही वह पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हिसार चले गए थे। प्रभाकर पर महात्मा गांधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया जो आजादी के लिए सतत् संघर्षरत रही।
अपने दौर के लेखकों में वह प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही। हिन्दी मिलाप में 1931 में पहली कहानी छपने के साथ उनके लेखन को एक नया उत्साह मिला और उनकी कलम से साहित्य को समृद्ध करने वाली रचनाएं निकलने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह करीब 8 दशकों तक जारी रहा। आजादी के बाद उन्हें दिल्ली आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक बनाया गया।
नाथूराम शर्मा के कहने पर वह शरतचंद की जीवनी पर आधारित उपन्यास 'मसीहा' लिखने के लिए प्रेरित हुए। विष्णु प्रभाकर को साहित्य सेवा के लिए पद्म भूषण, अर्द्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी सम्मान और मूर्तिदेवी सम्मान सहित देश विदेश के अनेक सम्मानों से नवाजा गया।

जिसका खतना नहीं हुआ होता, तो उसे भारतीय एजेंट बता दिया जाता।

पाकिस्तान अक्सर अपने यहां होने वाले हमलों के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराता रहा है। इसके पीछे उसके तर्क रहे हैं आतंकियों के वे शव, जिनका खतना नहीं हुआ होता था। इसलिए जब भी किसी ऐसे आतंकी का शव मिलता जिसका खतना नहीं हुआ होता, तो उसे भारतीय एजेंट बता दिया जाता। लेकिन पाक के इस दावे की पोल वहां के डॉक्टरों ने ही खोल दी है। दरअसल पाक के बेहद अशांत इलाके स्वात में अक्सर ऐसे आतंकियों के शव मिलते रहे हैं। खास बात यह थी कि ये ऐसे इलाके हैं जहां किसी भारतीय के हाथ होने की बात सोची भी नहीं जा सकती है। ऐसे कई शव मिलने के बाद जब वहां के डॉक्टरों ने इसकी जांच की, तो पता चला कि वजीरिस्तान में पस्तून जनजाति में खतना की प्रथा जरूरी नहीं है। गौरतलब है कि आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के अधिकतर आतंकी यहीं से आते हैं।
इस दौरान बिना खतना वाले कई ऐसे शव भी मिले, जिनकी शिनाख्त बाद में सरकारी सैनिकों के तौर पर भी हुई। जांच के बाद सामने आया कि ये सैनिक वजीरिस्तान की पिछड़े इलाकों के ही थे। वजीरिस्तान से आने वाले पाकिस्तानी के एक विधायक कामरान खान ने बताया कि वजीरिस्तान के कुछ इलाके बेहद पिछड़े हुए हैं। कुछ जनजातियों में खतना की प्रथा जरूरी नहीं है। इन इलाकों में अस्पताल तो क्या नाई तक नहीं हैं। इससे यहां के लोग खतना करवाते से कतराते हैं।

Tuesday, April 7, 2009

विद्वेश तो लालू फैला रहे हैं

राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) प्रमुख और रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव पर रासुका क्यों नही, उन्हे तो फांसी पर तुरंत लटका दिया जाना चाहिये । विद्वेश तो लालू फैला रहे हैं
राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) प्रमुख और रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव मुश्किल में फंसते नज़र आ रहे हैं। बिहार के किशनगंज जिले में 6 अप्रैल को एक रैली में भाषण के दौरान लालू ने कहा था कि अगर वह गृहमंत्री होते तो वरुण गांधी पर बुल्डोजर चलवा देते। किशनगंज के डीएम ने पुलिस को लालू के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। इस मामले में लालू को गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। गौरतलब है कि वरुण गांधी पर आरोप है कि उन्होंने पीलीभीत में एक चुनाव सभा के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिया था। गौरतलब है कि डीएम पदेन जिले का चुनाव अधिकारी भी होता है।
किशनगंज में लालू ने कहा था कि यदि वह गृह मंत्री होते तो अल्पसंख्यकों के खिलाफ आग उगलने वाले वरुण गांधी पर रोलर चलाकर उसे नेस्तनाबूद कर देते। उन्होंने कहा कि चाहे इसका अंजाम जो भी होता , उसकी वह तनिक भी परवाह नहीं करते। गौरतलब है कि इससे पहले उनकी पत्नी राबड़ी देवी की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जेडी ( यू ) के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह के खिलाफ की गई टिप्पणी पर जमकर विवाद हुआ था। केंद्रीय मंत्री और आरजेडी प्रत्याशी तस्लीमुद्दीन के नामांकन भरने के बाद किशनगंज के रुईघासा मैदान में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए रेल मंत्री ने कहा कि सोनिया गांधी को विदेशी मूल का कहने वाली बीजेपी को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान सत्ता में आने से उन्होंने ही रोका था। लालू ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर बाबरी मस्जिद ढहाने वाले लालकृष्ण आडवाणी की गोद में बैठे होने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि नीतीश उन्हें प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं , लेकिन उनका यह सपना कभी पूरा होने वाला नहीं है।

अब गृहमंत्री पी चिदंबरम पर जूता फैंका गया

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गृहमंत्री पी . चिदंबरम पर ' दैनिक जागरण ' अख़बार के वरिष्ठ पत्रकार जरनैल सिंह ने 24 , अकबर रोड पर मौजूद कांग्रेस हेड क्वार्टर में प्रेस कॉन्फ्रेन्स के दौरान जूता फेंक दिया। ख़बरों के मुताबिक जरनैल सिंह 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने से नाराज थे।
इसी मुद्दे पर जरनैल सिंह ने गृहमंत्री से सवाल पूछा। लेकिन जवाब से संतुष्ट नहीं होने पर पत्रकार ने चिदंबरम पर जूता फेंक दिया। इस घटना के बाद जरनैल सिंह ने कहा कि हो सकता है कि उनका तरीका ग़लत हो , लेकिन वह इसके लिए माफी नहीं मांगेंगे। जरनैल सिंह ने यह भी कहा कि मुझे अफसोस है कि ऐसा हुआ , ऐसा नहीं होना चाहिए। जरनैल सिंह ने कहा कि उन्हें चिदंबरम से गिला नहीं है। इस घटना के बाद जरनैल सिंह को तुगलक रोड थाने की पुलिस ने हिरासत में ले लिया। लेकिन करीब एक घंटे की पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। कुछ महीनों पहले अमेरिका के पूर्व प्रेज़िडंट जॉर्ज बुश पर इराक में एक पत्रकार मुंतजर अल जैदी ने जूते फेंके थे।

Monday, April 6, 2009

जो लोग हिंदुत्व के खिलाफ जुबान खोलते हैं उनका सिर कलम कर देना चाहिए।

कर्नाटक में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के नेताओं की जुबानी जंग अब हाथ काटने और सिर कलम करने के स्तर तक जा पहुंची है। कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री कगोदू थिम्माप्पा के हिंदुत्ववादियों के हाथ काटने बयान के जवाब में होन्नाली से बीजेपी के विधायक एम.पी. रेणुकाचार्या ने कहा है कि जो लोग हिंदुत्व के खिलाफ जुबान खोलते हैं उनका सिर कलम कर देना चाहिए। थिम्माप्पा के खिलाफ शिमोगा में कर्नाटक पुलिस आपराधिक मामला दर्ज कर चुकी है और बीजेपी की शिकायत पर चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ रिपोर्ट भी मांगी है। इस बयान के बाद बीजेपी विधायक की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। उनके खिलाफ पहले से ही कई मामले चल रहे हैं।
रविवार को यहां संवाददाताओं से बात करते हुए बीजेपी नेता ने कहा कि चुनाव आयोग को थिम्माप्पा को उसी तरह से दंडित करना चाहिए जिस तरह से वरुण गांधी सजा भुगत रहे हैं। उन्होंने कांग्रेसी नेता के बयान का जवाब देते हुए कहा कि फिर हिंदुत्व के विरोध में बोलने वालों का सिर कलम करने में क्या गलत है। कांग्रेस और जेडी (एस)के आरोपों को अनर्गल प्रलाप करार देते हुए कहा कि बीजेपी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए बहुत कुछ किया है। बीजेपी विधायक रेणुकाचार्या पहले भी गलत कारणों से सुर्खियों में रह चुके हैं। इससे पहले नर्स जयालक्ष्मी को धमकाने के मामले में भी उनके खिलाफ गैर-जमानती वॉरंट जारी हो चुका है। जयालक्ष्मी ने विधायक पर आरोप लगाया था कि वह उनकी आपत्तिजमनक तस्वीरें सार्वजनिक करने की धमकी दे रहे हैं। इसके अलावा भी उनके खिलाफ 16 मामले दर्ज हैं।

Friday, April 3, 2009

करीब 6 लाख रुपए)में अपनी वर्जिनिटी बेच दी।

लंदन की 18 साल की लड़की रोजी रीड ने आखिरकार 8,400 पाउंड (करीब 6 लाख रुपए)में अपनी वर्जिनिटी बेच दी। वह एक 44-वर्षीय बीटी एन्जीनियर के साथ एक होटेल के कमरे में रात भर रहीं। रोजी ने जनवरी में अपनी वर्जिनिटी की ऑनलाइन नीलामी करने की घोषणा की थी। पहले यह नीलामी ईबे की वेबसाइट पर शुरू हुई, लेकिन फिर इस ऐड को हटा दिया गया। फिर भी रोजी ने इसे अपनी वेबसाइट पर जारी रखा। दुनिया भर से 2 हजार से भी ज्यादा लोगों ने इस नीलामी में हिस्सा लिया। लेकिन बाजी मारी एन्जीनियर ने जो तलाकशुदा हैं और दो बच्चों के पिता हैं।
रोजी ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की स्टूडंट है। वह सोशल पोलसी में ग्रैजुएशन कर रही हैं। उनका कहना है कि वह पढ़ाई के खर्च का बोझ उठा नहीं पा रही थीं। ट्यूशन फीस और रहने-खाने का खर्चा बढ़ता जा रहा था। खर्च उठाने के लिए उसे पढ़ाई से ज्यादा काम करना पड़ता था। अगर यही आलम रहता तोग्रैजुएशन करते-करते उस पर 15 हजार पाउंड का कर्ज चढ़ जाता। इस स्थिति से निजात पाने के लिए रोजी ने अपनी वर्जिनिटी नीलाम करने की ठानी। रोजी ने बताया कि तीन हफ्ते पहले युस्टन के एक होटेल में उसने नीलामी में जीते एन्जीनियर के साथ रात गुजारी। रोजी ने बताया: 'यह भयावह था। मैं नर्वस और डरी हुई थी। ऐसा नहीं लगा कि यह सब मेरे साथ हो रहा है, बल्कि मुझे लगा जैसे मैं किसी दूसरे के साथ ऐसा होते हुए देख रही हूं। जब यह सब हो गया तो मैंने राहत की सांस ली। मेरा पार्टनर जेस कैमरॉन उस वक्त उसी होटेल में ठहरा था। मैं रात भर असहज रही। मैं अपने पार्टनर के पास जाने को बेसब्र थी। अगली सुबह मैं उसके पास गई। हम दोनों खूब रोए। मगर रोजी को उस एन्जीनियर से कोई शिकवा नहीं है बल्कि वह खुश है कि उसने उसका बोझ खत्म कर दिया। रोजी ने कहा, 'मैं उसे खुश करने के लिए आभारी थी, क्योंकि उसने मुझे इतनी सारी रकम दी थी।' एन्जीनियर ने रोजी को बैंकर ड्राफ्ट के जरिये 8,400 पाउंड का बैंक ड्राफ्ट दिया। मगर अब पुलिस अब रोजी के पीछे पड़ गई है। वह उसे गिरफ्तार करने पर विचार कर रही है।

नीलामियां और भी हैं:

रोमानिया की एक 18 वर्षीय स्टूडंट एलिना पर्सिया ने भी पिछले हफ्ते एक जर्मन वेबसाइट पर इपनी वर्जिनिटी 50 हजार पाउंड में नीलाम करने की घोषणा की थी। मगर अब तक उसे सिर्फ 5 हजार पाउंड की राशि ऑफर हुई है। इस नीलामी की मियाद एक हफ्ता ही रखी गई थी। अभी यह पता नहीं चला है कि पर्सिया की रेस में किसने बाजी मारी या उसने मियाद बढ़ा दी है। इसी तरह, अमेरिका की 22 वर्षीय स्टूडंट नतालिया डायलॉन अपनी वर्जिनिटी की ऑनलाइन नीलामी कर रही है। खबर है कि उसे पाने के लिए 10 हजार से भी ज्यादा लोग बोली लगा चुके हैं। अभी तक की सबसे ज्यादा बोली 18 करोड़ रुपए की लगी है। लेकिन नतालिया अभी और ज्यादा बोली का इंतजार कर रही है।

Thursday, April 2, 2009

वोटर का जागना बेहतरहै।

वोटर का जागना बेहतरहै। रोड नहीं तो वोट नहीं, स्वागत योग्य कदम
'Road nahin to vote nahin' (no road no vote): One can see this slogan inscribed on pamphlet slogan pasted extensively on the walls in Shrinagar colony. "What is the use of electing our representatives if they are not concerned about our problems," said Saurabh Srivastava, a local resident of Shrinagar colony. Interestingly the election office of the Bharatiya Janata Party (BJP) candidate Murli Manohar Joshi is located in the same colony, which is one of the posh localities of the city. 'We are not going to vote in favour of any candidate in the Lok Sabha election if we have to live in such a pathetic condition," said another person Amit Kumar Saxena indicating the broken road. Definitely, it was an outburst of their emotions and aspirations. 'It is a link road that remains busy whole day, but unfortunately it has been in bad shape for over 10 years,' said Srivastava adding that the condition becomes more pathetic during monsoon season as there is no proper drainage. 'We are fed-up with things and it is our unanimous decision to boycott the election if the situation remains the same," said Saxena. "At the time of elections the contestants come with promises, but once the election is over the promises are forgotten," they said. "We have displayed the posters to draw the attention of the contesting candidates as well as the authorities towards the pathetic condition of civic amenities," they said. But, how they will believe the promises if made again? "We know that there is no guarantee that the promises would be fulfilled, but by doing so we are not only showing our confidence in the existing system but also trying to stir the minds of contestants and general people as well," said Om Prakash. They feel that there should be a system to recall the elected representatives if they fail to fulfil their promises and duty. Shrinagar colony is not the only place that is facing such problem but similar is the condition in many other localities of the cities. "We hope that the candidates of political parties will see these posters and understand our feelings," they concluded

देश किस राह पर, टाइटलर को क्लीन चिट और वरुण पर रासुका

देश किस राह पर, टाइटलर को क्लीन चिट और वरुण पर रासुका लगाया गया, ठीक इसी प्रकार से मेरठ के मांस व्यापारी ने जब किसी के सिर को काटकर लाने के लिए एक करोड की घोषणाकी तो वह मामला भी रासुका में नहीं आता क्योकि वह मुसलमान है, अत्याचार केवल हिन्दुओं पर प्रभावी ।

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई)ने गुरुवार को दिल्ली की एक कोर्ट को बताया कि वह 1984 के सिख विरोधी दंगों से जुड़े एक मामले की जांच बंद करना चाहती है जिसमें कथित रूप से पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर शामिल हैं। सीबीआई के वकील ने कड़कड़डूमा कोर्ट के अडिशनल मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राकेश पंडित को बताया- हम मामले में रद्द करने संबंधी रिपोर्ट दाखिल कर चुके हैं और जांच को बंद करना चाहते हैं। इससे पहले, अदालत ने सीलबंद लिफाफे को खोलने का आदेश दिया जिसमें 28 मार्च को दाखिल अंतिम जांच रिपोर्ट व जांच के दौरान सीबीआई द्वारा दाखिल की गई अन्य स्थिति रिपोर्ट शामिल थीं। कोर्ट इस मामले में 9 अप्रैल को फैसला करेगा। गौरतलब है कि सीबीआई 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टाइटलर की भूमिका की जांच कर रही थी। अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा है कि 1984 के दंगों में टाइटलर की भूमिका की हर कोण से जांच की गई, लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। सीबीआई ने ये भी कहा है कि अमेरिका के कैलीफोर्निया में बैठे जिस जसबीर सिंह को अहम गवाह बताया जा रहा था, वो विश्ववसनीय नहीं है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के वकील एच. एस. फुल्का ने कथित रूप से रिपोर्ट को टाइटलर को लीक किए जाने पर आपत्ति जाहिर की जिन्होंने मामले में खुद को निर्दोष बताया है। उन्होंने कहा- लगता है कि सीबीआई आरोपी से मिली हुई है जिसने दावा किया है कि उसे क्लिन चिट दे दी गयी है। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 9 अप्रैल को तय की है।