Monday, April 6, 2015

गलत बैंक अकाउंट में पैसा ट्रांसफर होने का खतरा भी

आज के समय में 80-85 फीसदी एनईएफटी और आरटीजीएस ट्रांजैक्शंस नेटबैंकिंग या ऐप्स से हो रहे हैं। ऑनलाइन ट्रांसफर सुविधाजनक और तेज है। इसके अलावा इसके लिए अलग से आपको कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ता। इसके लिए आप जिस व्यक्ति को पैसा भेजना चाह रहे हैं उसका अकाउंट नंबर और बैंक आईएफएससी कोड देकर रजिस्टर करना होता है और पैसा ट्रांसफर किया जा सकता है। लेकिन इसमें गलत बैंक अकाउंट में पैसा ट्रांसफर होने का खतरा भी रहता है।
किसी तरह की गलती से बचने के लिए कस्टमर को बेनेफिशरी (जिसको पैसा ट्रांसफर किया जाना है) के अकाउंट नंबर को दो बार डालने की व्यवस्था है। यदि अकाउंट नंबर और आईएफएससी कोड में मिलान नहीं होने पर सिस्टम एंट्री को स्वीकार नहीं करता है। इसके अलावा एक बेनिफिशरी को ऐड करने के बाद 30 मिनट का कूलिंग पीरियड होता है जिस दौरान आप ट्रांजैक्शन नहीं कर पाएंगे।
कुछ बैंक कूलिंग पीरियड के दौरान कस्टमर्स को उनके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबरों पर टेक्स्ट नोटिफिकेशन भेजते हैं जिसमें उस बेनेफिशरी के अकाउंट नंबर की पुष्टि की जाती है जो उन्होंने ऐड किया होता है। कस्टमर्स इस स्थान पर फिर से नंबर को कंफर्म कर सकते हैं। कुछ बैंक आपको बेनेफिशरी का मोबाइल नंबर ऐड करने का ऑप्शन देते हैं कि जब आप रजिस्टर करें तो उनको एसएमएस के जरिये सूचित किया जा सके।
संयोगवश आप एक अंक गलत लिख देते हैं और यह अकाउंट होल्डर के नाम से नहीं है तो भी ट्रांजैक्शन हो जाता है। यह भी संभव है कि आपके पास गलत अकाउंट नंबर है या आप ट्रांसफर की जाने वाली अमाउंट में एक एक्सट्रा जीरो लगा दें। अगर ऐसी गलती हो जाती है तो तुरंत बैंक को सूचित करें। जितना जल्दी आप बैंक को सूचित करेंगे उतना ज्यादा सही रहेगा। अगर आप एक घंटे के अंदर बैंक को सूचित कर देंगे तो तुरंत आपका पैसा वापस हो जाएगा।
बेनेफिशरी को भी सूचित करना होगा। बेनेफिशरी की अनुमति के बगैर बैंक ट्रांजैक्शन को रिवर्स नहीं कर सकता है। अगर बेनेफिशरी सहयोग करने से इनकार कर देता है तो आपको कानून का सहारा लेना होगा।
आरबीआई का स्प्ष्ट निर्देश है, 'ऐसे मामलों में जहां यह पता चलता है कि क्रेडिट गलत खाते में हो गया है, बैंक को इस प्रकार की क्रेडिट को रिवर्स करने और गलती को सही करने के लिए पारदर्शी और त्वरित निपटारा व्यवस्था करना जरूरी है।' लेकिन, ऐसे मामले बहुत ही कम सामने आते है इसलिए बैंकों में इसके निपटारे के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

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