सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पत्नी के रूप में अगर कोई महिला गुजारा
भत्ता का दावा करती है तो इसे पाने के उसके अधिकार पर सवाल उठाया ही नहीं जा सकता।
कोर्ट ने व्यवस्था दी कि इस नियम से जुड़ी सीआरपीसी की धारा 125 तलाकशुदा मुस्लिम
महिलाओं पर भी लागू होगी। सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग ने तस्वीर साफ कर दी है कि देश
का सिविल लॉ किसी भी पर्सनल लॉ पर भारी पड़ेगा।
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस पी सी पंत की बेंच ने कहा, 'अगर पति स्वस्थ हो, खुद को सपोर्ट करने लायक हो तो उसका कानूनी तौर पर दायित्व बनता है कि वह अपनी पत्नी को सपोर्ट करे क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का पत्नी का अधिकार ऐसा है कि इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।'
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस पी सी पंत की बेंच ने कहा, 'अगर पति स्वस्थ हो, खुद को सपोर्ट करने लायक हो तो उसका कानूनी तौर पर दायित्व बनता है कि वह अपनी पत्नी को सपोर्ट करे क्योंकि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का पत्नी का अधिकार ऐसा है कि इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।'
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस सेक्शन के तहत गुजारा भत्ता
पाने से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता है और वे तब
तक इसकी हकदार बनी रहेंगी, जब तक कि वे दोबारा शादी न कर लें। कोर्ट ने एक संविधान पीठ की पहले की
व्यवस्था का हवाला देते हुए कहा, 'सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत दिए जाने वाले गुजारा भत्ता की रकम को केवल इद्दत की
अवधि तक सीमित नहीं किया जा सकता है।'
कोर्ट के इस स्पष्टीकरण से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को मदद मिलेगी, जिनके गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को संसद से पास किए गए एक कानून ने सीमित कर दिया था। वह कानून राजीव गांधी सरकार ने पास कराया था। सरकार ने वह कदम शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था को देखते हुए उठाया था।
बेंच ने कहा, 'इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त संसाधन होते हुए भी अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करता है तो ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आदेश जारी किया जा सकता है।' बेंच ने कहा, 'कभी-कभार पति अनुरोध करता है कि उसके पास गुजारा-भत्ता देने के लिए संसाधन नहीं हैं क्योंकि वह नौकरी नहीं कर रहा है या उसका कारोबार सही नहीं चल रहा है। यह सब कोरा बहाना होता है। हकीकत यह है कि उनके मन में कानून की इज्जत ही नहीं होती है।'
कोर्ट ने यह बात लखनऊ की शमीना फारूकी से जुड़े एक मामले में कही है। उनके पति शाहिद खान ने उनके साथ बुरा बर्ताव किया था। खान ने फिर दूसरी शादी कर ली और शमीना को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था। शमीना ने 1998 में अपील की थी, जिस पर 2012 में सुनवाई शुरू हो सकी। खान ने पहले दावा किया था कि सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम महिला के मामले में लागू ही नहीं होती और उनका तलाक शादी के पांच साल बाद 1997 में हो गया था और उन्होंने मेहर लौटा दी थी।
कोर्ट के इस स्पष्टीकरण से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को मदद मिलेगी, जिनके गुजारा भत्ता पाने के अधिकार को संसद से पास किए गए एक कानून ने सीमित कर दिया था। वह कानून राजीव गांधी सरकार ने पास कराया था। सरकार ने वह कदम शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था को देखते हुए उठाया था।
बेंच ने कहा, 'इस बात में कोई शक नहीं होना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त संसाधन होते हुए भी अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करता है तो ऐसे मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत आदेश जारी किया जा सकता है।' बेंच ने कहा, 'कभी-कभार पति अनुरोध करता है कि उसके पास गुजारा-भत्ता देने के लिए संसाधन नहीं हैं क्योंकि वह नौकरी नहीं कर रहा है या उसका कारोबार सही नहीं चल रहा है। यह सब कोरा बहाना होता है। हकीकत यह है कि उनके मन में कानून की इज्जत ही नहीं होती है।'
कोर्ट ने यह बात लखनऊ की शमीना फारूकी से जुड़े एक मामले में कही है। उनके पति शाहिद खान ने उनके साथ बुरा बर्ताव किया था। खान ने फिर दूसरी शादी कर ली और शमीना को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था। शमीना ने 1998 में अपील की थी, जिस पर 2012 में सुनवाई शुरू हो सकी। खान ने पहले दावा किया था कि सीआरपीसी की धारा 125 मुस्लिम महिला के मामले में लागू ही नहीं होती और उनका तलाक शादी के पांच साल बाद 1997 में हो गया था और उन्होंने मेहर लौटा दी थी।
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