वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूटीओ) में
ट्रेड समझौते के मामले में भारत के सख्त रवैये ने पश्चिमी देशों, खासतौर पर अमेरिका को हैरान कर दिया है।
भारत का यह रुख ब्रिक्स बैंक का हेडक्वॉर्टर चीन में बनाए जाने के ऐलान के तुरंत
बाद सामने आया है। विश्लेषकों का कहना है कि इस रुख में घरेलू और विदेश नीति के
मोर्चे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजरिये का अक्स है।
सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि डब्ल्यूटीओ में कॉमर्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमण के सख्त रवैये के पीछे प्रधानमंत्री का ही हाथ था। हालांकि, मोदी ने ब्रिक्स बैंक के हेडक्वॉर्टर पर कोई बवाल नहीं खड़ा किया, क्योंकि वह इस पहल के दायरे को व्यापक बनाना चाहते हैं।
एक आला सरकारी अफसर ने बताया, 'ब्रिक्स बैंक के हेडक्वॉर्टर पर बातचीत के बीच जब बाकी देश इस बात को लेकर दुविधा में थे कि इसे शंघाई में होना चाहिए या नहीं, तो प्रधानमंत्री मोदी ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि चीन की इस मांग को स्वीकार कर लेना चाहिए। मोदी ने कहा कि इसी तरह से बाकी दुनिया को यह मेसेज दिया जा सकेगा कि यह एक गंभीर पहल है।'
वर्ल्ड बैंक-आईएमएफ के विकल्प के तौर पर नए ब्रिक्स बैंक से भारत को न केवल फायदा होगा, बल्कि इससे पश्चिमी देशों को मोदी की कूटनीतिक क्षमताओं के बारे में भी मेसेज जाएगा। ब्राजील में हुई ब्रिक्स शिखर वार्ता में दक्षिण अफ्रीका प्रतिनिधिमंडल इस बात को सुनकर हैरान था कि कॉमर्स मिनिस्टर सीतारमण को जेनेवा में होने वाली डब्ल्यूटीओ की जनरल काउंसिल की बैठक से पहले सिडनी में जी-20 मीटिंग में शिरकत करने को कहा गया था।
सिडनी में सीतारमण ने साफ कर दिया कि भारत की चिंताओं को खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने जी-20 बैठक में ट्रेड समझौते से जुड़ी भारत की समस्याओं और ऐग्रिकल्चर प्रॉडक्ट्स की वैल्यूएशन के मसले जोरशोर से उठाए। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को घटनाक्रम की जानकारी दी।
सरकार के एक सूत्र ने बताया, 'अगले दिन (बीते रविवार) पीएम ने सभी संबंधित सचिवों को बुलाकर जेनेवा में गुरुवार और शुक्रवार को होने वाली डब्ल्यूटीओ बैठक में भारत की पोजिशन के बारे में जानकारी दी। सोमवार को उन्होंने कैबिनेट की बैठक बुलाई और इसमें भाग लेने के लिए सीतारमण भी दिल्ली पहुंचीं।'
कुछ लोग इसकी तुलना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 1998 में हुए परमाणु परीक्षण से कर रहे हैं। हालांकि, मोदी सरकार के इस रुख की वजह कुछ घरेलू मजबूरियां भी हो सकती है। चुनाव प्रचार में मोदी ने किसानों से वादा किया था कि उनकी सरकार 50 फीसदी प्रॉफिट मार्जिन सुनिश्चित करेगी। डब्ल्यूटीओ में भारत के सख्त रवैये की एक वजह यह भी हो सकती है।
प्रधानमंत्री का इरादा जो भी रहा हो, लेकिन इसे आक्रामक फॉरेन और ट्रेड पॉलिसी के तौर पर देखा जा रहा है। इससे कम से कम इतना तो सुनिश्चित हो गया है कि सितंबर में पीएम के अमेरिकी दौरे पर बारीक नजर होगी।
सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया कि डब्ल्यूटीओ में कॉमर्स मिनिस्टर निर्मला सीतारमण के सख्त रवैये के पीछे प्रधानमंत्री का ही हाथ था। हालांकि, मोदी ने ब्रिक्स बैंक के हेडक्वॉर्टर पर कोई बवाल नहीं खड़ा किया, क्योंकि वह इस पहल के दायरे को व्यापक बनाना चाहते हैं।
एक आला सरकारी अफसर ने बताया, 'ब्रिक्स बैंक के हेडक्वॉर्टर पर बातचीत के बीच जब बाकी देश इस बात को लेकर दुविधा में थे कि इसे शंघाई में होना चाहिए या नहीं, तो प्रधानमंत्री मोदी ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि चीन की इस मांग को स्वीकार कर लेना चाहिए। मोदी ने कहा कि इसी तरह से बाकी दुनिया को यह मेसेज दिया जा सकेगा कि यह एक गंभीर पहल है।'
वर्ल्ड बैंक-आईएमएफ के विकल्प के तौर पर नए ब्रिक्स बैंक से भारत को न केवल फायदा होगा, बल्कि इससे पश्चिमी देशों को मोदी की कूटनीतिक क्षमताओं के बारे में भी मेसेज जाएगा। ब्राजील में हुई ब्रिक्स शिखर वार्ता में दक्षिण अफ्रीका प्रतिनिधिमंडल इस बात को सुनकर हैरान था कि कॉमर्स मिनिस्टर सीतारमण को जेनेवा में होने वाली डब्ल्यूटीओ की जनरल काउंसिल की बैठक से पहले सिडनी में जी-20 मीटिंग में शिरकत करने को कहा गया था।
सिडनी में सीतारमण ने साफ कर दिया कि भारत की चिंताओं को खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने जी-20 बैठक में ट्रेड समझौते से जुड़ी भारत की समस्याओं और ऐग्रिकल्चर प्रॉडक्ट्स की वैल्यूएशन के मसले जोरशोर से उठाए। इसके बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को घटनाक्रम की जानकारी दी।
सरकार के एक सूत्र ने बताया, 'अगले दिन (बीते रविवार) पीएम ने सभी संबंधित सचिवों को बुलाकर जेनेवा में गुरुवार और शुक्रवार को होने वाली डब्ल्यूटीओ बैठक में भारत की पोजिशन के बारे में जानकारी दी। सोमवार को उन्होंने कैबिनेट की बैठक बुलाई और इसमें भाग लेने के लिए सीतारमण भी दिल्ली पहुंचीं।'
कुछ लोग इसकी तुलना अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान 1998 में हुए परमाणु परीक्षण से कर रहे हैं। हालांकि, मोदी सरकार के इस रुख की वजह कुछ घरेलू मजबूरियां भी हो सकती है। चुनाव प्रचार में मोदी ने किसानों से वादा किया था कि उनकी सरकार 50 फीसदी प्रॉफिट मार्जिन सुनिश्चित करेगी। डब्ल्यूटीओ में भारत के सख्त रवैये की एक वजह यह भी हो सकती है।
प्रधानमंत्री का इरादा जो भी रहा हो, लेकिन इसे आक्रामक फॉरेन और ट्रेड पॉलिसी के तौर पर देखा जा रहा है। इससे कम से कम इतना तो सुनिश्चित हो गया है कि सितंबर में पीएम के अमेरिकी दौरे पर बारीक नजर होगी।
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