Friday, July 18, 2014

ब्राह्मणों को लुभाने की मायावती की कोशिश को करारी चोट

 उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों को रिझाने की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की कोशिशों को करारा झटका लगा है। पार्टी में ब्राह्मणों का चेहरा माने जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा की चचेरी बहन डॉ. दिव्या मिश्रा गुरुवार को बीजेपी में शामिल हो गईं। 
अचानक हुए इस घटनाक्रम से जहां बीजेपी को एक और बढ़त मिली है, वहीं ब्राह्मणों को लुभाने की मायावती की कोशिश को करारी चोट भी लगी। सतीश चंद्र मिश्रा के लिए भी यह एक बड़ी मुसीबत है क्योंकि सूबे में बीएसपी की सरकार रहने के दौरान उन्होंने दिव्या मिश्रा पर काफी भरोसा जताया था।
 
2007 में प्रदेश की सीएम बनने के बाद मायावती ने जो कुछ शुरुआती नियुक्तियां की थीं, उनके तहत उन्होंने सतीश चंद्र मिश्रा की बहन आभा अग्निहोत्री को राज्य महिला आयोग का अध्यक्ष और डॉ. दिव्या मिश्रा को राज्य समाज कल्याण बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था।
 

इसे मिश्रा के लिए इनाम माना गया था, जिन्होंने 2007 के विधानसभा चुनाव प्रचार में बीएसपी के पाले में ब्राह्मण वोट लाने की कोशिश की थी। सत्ता में पहुंचने के लिए तब मायावती ने ब्राह्मणों को अपने कोर वोटर्स दलितों के बराबर सत्ता में साझेदारी का भरोसा दिया था। वकील से नेता बने सतीश चंद्र मिश्रा को मायावती ने अपनी पार्टी का ब्राह्मण चेहरा बनाया, जो बाद में उनके करीबी सलाहकार भी बने। 
सीएम बनने पर मायावती ने मिश्रा के कई करीबी लोगों की सरकार में नियुक्तियां की थीं। इनमें मिश्रा के एक अन्य रिश्तेदार अनंत मिश्रा को स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया था। हालांकि, दिव्या सतीश चंद्र मिश्रा के ज्यादा करीब मानी गईं क्योंकि सतीश मिश्रा ने अखिलेश यादव सरकार बनने के बाद भी दिव्या का कार्यकाल बढ़वा लिया था।
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने कहा कि दिव्या मिश्रा का बीजेपी में आना इस बात का साफ संकेत है कि बीजेपी के पक्ष में हवा चल रही है। उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि दिव्या मिश्रा सतीश चंद्र मिश्रा की चचेरी बहन हैं।
 
वाजपेयी ने कहा कि बीएसपी और समाजवादी पार्टी के कई अन्य विधायक और नेता बीजेपी के संपर्क में हैं और उन्होंने पार्टी में शामिल होने की इच्छा जताई है।
 
यूपी में ब्राह्मण वोट अहम माना जाता है। एसपी, बीएसपी, कांग्रेस, बीजेपी सभी पार्टियां इन्हें अपने पाले में करने की कोशिश करती रही हैं। अब, दिव्या का यूं अचानक पाला बदलना मायावती के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
 
इससे ब्राह्मणों के करीब पहुंचने की उनकी कोशिशों को पलीता लग सकता है, जिसके चलते उनके कोर वोटर्स का एक तबका कुछ नाराज भी हो चुका था।

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