Sunday, January 31, 2010
मंहगाई पर पार काबू पाया जा सकेगा। शरद पवार
उत्तर भारतीयों के खिलाफ हिंसा के मुद्दे पर आरएसएस हिंसा को वह कतई स्वीकार नहीं करेगा।
संघ ने अब अपने स्वयंसेवकों को हिंदी भाषियों और उत्तर भारतीयों की रक्षा के लिए आगे आने का निर्देश दिया है। मध्य प्रदेश के जबलपुर में संघ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए संघ के प्रवक्ता राम माधव ने कहा कि सरसंघचालक(मोहन भागवत) ने स्वयंसेवकों को निर्देश दिए हैं कि वे ऐसी घटनाओं को रोकें और सभी की रक्षा करें। उन्होंने कहा कि भाषा के नाम पर किसी दूसरे व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करना पूरी तरह अनुचित है और संघ इसके खिलाफ है। महाराष्ट्र में हमलों के बारे में पूछे जाने पर माधव ने कहा,'कुछ लोग हिंदी भाषी विरोधी और उत्तर भारतीय विरोधी भावनाएं भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। उस पर संघ ने अपने स्वयंसेवकों से कहा है कि वे इस तरह की घटना न घटने दें और सबकी रक्षा का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि हर भाषा को विशेष दर्जा हासिल है इसका आशय यह नहीं है कि वे दूसरे से भाषा के नाम पर किसी से दुर्व्यवहार करें।
Thursday, January 28, 2010
'12वीं क्लास में ग्रेडिंग प्रणाली को पेश करने का विचार
Tuesday, January 26, 2010
पद्म अवॉर्ड्स की घोषणा
राजपथ पर 61वें गणतंत्र दिवस पर स्पष्ट तौर पर दिखायी दी देश की सैन्य शक्ति
प्राचीन-समृद्ध संस्कृति और सभ्यता से खुद को जोड़े रखने वाले विश्व शक्ति के रूप में उभरते भारत की तस्वीर राजपथ पर 61वें गणतंत्र दिवस पर स्पष्ट तौर पर दिखायी दी। गणतंत्र दिवस पर रायसीना हिल्स की ओर से सधे कदमों से आगे बढ़ती परेड में देश की में एकताकी का प्रदर्शन किया गया साथ ही देश की सैन्य शक्ति और सेना की तैयारियां भी सामने आई। भारी कोहरे के बावजूद राजपथ पर सुसज्जित और सधे कदमों से सेना की टुकड़ी आगे की ओर बढ़ रही थी और मंच पर आसीन सैन्य बलों की सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सलामी ली। सेना परेड को गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली म्यूंग बाक, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत देश की प्रमुख राजनीतिक और सैन्य शख्सियतों ने भी शिरकत की। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और उनके दक्षिण कोरियाई समकक्ष म्यूंग बाक घोड़े पर सवार 46 सुसज्जित एवं पूर्ण प्रशिक्षित घुड़सवार गार्डो के संरक्षण में राजपथ पर पधारे। परेड शुरू होने से कुछ मिनट पहले, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी और तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने इंडिया गेट पर ब्रिटिश काल के प्रथम विश्व युद्ध स्मारक जवान ज्योतिपर पुष्पचक्र अर्पित कर देश के लिए प्राणों का त्याग करने वाले वीर सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की। गणतंत्र दिवस पर आज पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था के चाक चौबंद प्रबंध किए गए। समारोह में व्यवधान पैदा करने के किसी भी संभावित प्रयास को विफल बनाने के लिए स्निपर और मोबाइल दस्तों को तैनात किया गया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराने के बाद पारंपरिक तौर पर 21 तोपों की सलामी दी गई। इसके बाद दिल्ली क्षेत्र के सेना के जनरल आफिसर कमांडिंग मेजर जनरल के जे एस ओबेराय के नेतृत्व में परेड शुरू हुई। हालांकि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में घने कोहरे के कारण एमआई-17 हेलिकॉप्टर का प्रदर्शन नहीं हो सका। एमआई-17 हेलिकॉप्टर से दर्शकों पर पुष्पवर्षा की जानी थी लेकिन खराब मौसम की वजह से इसे रोक देना पड़ा। सलामी मंच के सामने से गुजरने वालों में सबसे आगे परमवीर चक्र और अशोक चक्र विजेता रहे और उसके बाद 61वीं कैवेलरी के दस्ते ने पारंपरिक अनोखे अंदाज में राष्ट्रपति को सलामी पेश की। राजपथ पर सेना ने देश की सैन्य शक्ति और तैयारियों का जबर्दस्त प्रदर्शन किया जिसमें मुख्य युद्धक टैंक बहुप्रक्षेपी रॉकेट प्रणाली, बख्तरबंद इंजीनियर टोही वाहन, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, सेना का पुल का भी प्रदर्शन किया गया। सेना ने अत्याधुनिक आईसीवी संचार वाहन के अलावा इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, बख्तरबंद वाहन सारथ और एम्बुलेंस का भी प्रदर्शन किया। राजनथ पर सधे कदमों से आगे बढ़ते और जोरदार सलामी देते सैन्य टुकडि़यों में मद्रास रेजिमेंट, जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट, गढ़वाल रेजिमेंट, बिहार रेजिमेंट, गोरखा रेजिमेंट और प्रादेशिक सेना शामिल थी। ऐतिहासिक राजपथ पर विभिन्न रेजिमेंटों के संगीत बैंड दस्तों ने सैम बहादुरहंसते लुसाईऔर जनरल टैप्पी की धुनों से समा बांध दिया। पूर्ण सुसज्जित 148 नौसैनिकों का दस्ता शिवालिकके प्रारूप के साथ भारतीकी धुन पर कदमताल करता हुआ आगे बढ़ रहा था। आईएनएस शिवालिक को जल्द ही नौसेना में शामिल किया जायेगा।
Saturday, January 23, 2010
विशेष परिस्थितियों में उन्हें फोटो खिंचाने की इजाजत
गोदाम से 4,200 क्विंटल चीनी बरामद
Friday, January 22, 2010
रिकॉर्ड तोड़ कोहरा
Thursday, January 21, 2010
बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई
Monday, January 18, 2010
सिजेरियन ऑपरेशन केवल पैसा वसूलने का धंधा मात्र हैं
सीपीएम के मुख्यालय जाकर दिवंगत नेता को श्रद्धांजलि दी।
बसु का पार्थिव शरीर अभी 'पीस ऑफ हेवन' नामक फ्यूनरल पार्लर में रखा हुआ है। मंगलवार को उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए राज्य सचिवालय लाया जाएगा और अंत में उनके पार्थिव शरीर को एसएसकेएम अस्पताल के अधिकारियों को रिसर्च के लिए सौंप दिया जाएगा। बसु अपना शरीर दान कर चुके थे इसलिए उनका अंतिम संस्कार नहीं होगा। बसु के सम्मान में सोमवार को से शुरू हुए राजकीय शोक में लोगों ने हाथों में बसु अमर रहें लिखी हुईं तख्तियां लेकर उनके प्रति अपने सम्मान का प्रदर्शन किया। दिल्ली में उप राष्ट्रपति अंसारी सीपीएम मुख्यालय ए.के.गोपालन भवन में सुबह 10.45 बजे पहुंचे। उसके बाद 11.10 बजे प्रधानमंत्री वहां पहुंचे। मनमोहन सिंह ने शोक पुस्तिका में लिखा, 'हमारे देश ने एक महान सपूत खो दिया, जो महान राजनेता और देशभक्त था। उनके परिवार के सदस्यों और असंख्य प्रशंसकों, कॉमरेडों और अनुयायियों के प्रति मैं गहरी संवेदना प्रकट करता हूं।' अंसारी ने लिखा, 'एक देशभक्त और महान राजनेता के निधन से देश शोकाकुल है।' बसु का एक फोटो कार्यालय के स्वागत कक्ष के पास रखा गया है ताकि लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।
कंप्यूटर साइंस में बी-टेक कर रही छात्रा को घर से निकालकर बाजार में निर्वस्त्र घुमाने की कोशिश
Wednesday, January 13, 2010
जहां करोड़ों श्रद्धालु पहुंचेंगे वहीं चरसी भी दिखें तो आश्चर्य मत करना।
Sunday, January 10, 2010
संसद के शीतकालीन सत्र ने महंगाई के मुद्दे पर जनता को काफी निराश किया
संसद के शीतकालीन सत्र ने महंगाई के मुद्दे पर जनता को काफी निराश किया है। हालांकि महीना भर चले शीतकालीन सत्र दौरान संसद में महंगाई का मुद्दा, खासतौर पर खाने-पीने की चीजों की महंगाई का मसला चार बार उठाया गया। दो बार दोनों सदनों में इस पर बाकायदा बहस भी हुई। फिर भी इसमें शक की गुंजाइश नहीं है कि महंगाई के मामले में संसद ने लोगों को निराश ही किया है। संसद से जनता इस तरह मायूस हो, हमारे लोकतंत्र की सेहत के लिए यह अच्छा लक्षण नहीं है। जनता की निराशा की सबसे बड़ी वजह तो यही थी कि संसद के सत्र के दौरान भी खाने-पीने की चीजों की कीमतों में तेज बढ़ोतरी होती रही। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, शीतकालीन सत्र की शुरुआत 7 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह के जिन आंकड़ों के साथ हुई थी, उनमें खाने-पीने की वस्तुओं में महंगाई 14.55 फीसदी की दर दिखा रही थी। लेकिन महीने भर बाद जब यह सत्र खत्म हुआ, तो 5 दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में महंगाई की दर पांच फीसदी से भी ज्यादा ऊपर चढ़कर 19.95 फीसदी तक पहुंच चुकी थी। यानी संसद में महंगाई पर चर्चा का नतीजा उलटा निकला। जैसे-जैसे संसद में बहस हुई, वैसे-वैसे महंगाई बढ़ती ही गई। जनता की निराशा की वजह सिर्फ यही नहीं है कि संसद में चर्चाओं के बावजूद महंगाई तेजी से बढ़ती रही। निराशा की वजह यह भी नहीं थी कि बार-बार यह मुद्दा उठने के
बावजूद सरकार कभी सूखे-बाढ़ का या खाद्यान्न पैदा करने वाले किसानों को पहले से ज्यादा समर्थन मूल्य दिए जाने का बहाना बनाती रही। कभी वह राज्य सरकारों द्वारा कालाबाजारी आदि से निपटने के लिए कारगर कदम नहीं उठाने को कोसती रही और खुद, अगली फसल आने पर महंगाई की दर नीचे आ जाने का जनता को दिलासा देने के सिवा कुछ करने के लिए तैयार ही नहीं हुई। जनता की निराशा की एक महत्वपूर्ण वजह यह भी थी कि सत्ता पक्ष ही नहीं आमतौर पर विपक्ष भी, इस मामले में खाना-पूरी ही कर रहा था। यह इसके बावजूद था कि अन्य वस्तुओं की महंगाई की तुलना में खाने-पीने की चीजों की महंगाई चौंकाने की हद तक थी। बेशक, इस अर्थ में यह अंतर कोई नया नहीं है कि जब से भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक मंदी का असर दिखाई देना शुरू हुआ है, तभी से आम इन्फ्लेशन की दर तेजी से गिरी थी। यह महीनों तक शून्य से नीचे भी बनी रही, जबकि खाने-पीने की चीजों में महंगाई की दर इस पूरे दौर में न सिर्फ ऊंची रही है बल्कि उसमें बढ़त होती रही है। फिर भी यह सच हमारी राजनीति की मुख्यधारा से और ज्यादातर सांसदों की नजरों से छुपा ही रहा है कि फूड इन्फ्लेशन के आम इन्फ्लेशन से इतना ऊपर चढ़ जाने का सीधा सा अर्थ देश की गरीब जनता की कमाई पर सीधे-सीधे डाका डालना है। सचाई यह है कि जो लोग मेहनत-मजदूरी की कमाई से अपना पेट भरते हैं, उन्हें अपनी मामूली आमदनी का सबसे बड़ा हिस्सा पेट भरने में ही खर्च करना पड़ रहा है। फूड इन्फ्लेशन की ऊंची दर जहां एक ओर ऐसे लोगों की क्रय शक्ति में भारी गिरावट को दिखाती है, वहीं आम इन्फ्लेशन की निचली दर इसका इशारा करती है कि उनकी मजदूरी नहीं बढ़ रही है। मेहनत-मजदूरी करने वाले तबके पर दोहरी मार पड़ रही है। ऐसे तबके के पास जो बेचने को है यानी उनका श्रम, उसके दाम या तो घट रहे हैं या जहां के तहां बने हुए हैं, पर दूसरी ओर वह जो खरीदते हैं यानी मुख्यत: खाने-पीने की चीजें, उनके दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। मेहनत-मजदूरी करने वालों की जिंदगी के लिए ऐसी महंगाई कितनी कष्टकर है, इसके अहसास की कोई गूंज संसद में नहीं सुनाई दी। यह संयोग ही नहीं था कि काफी शोर-शराबे के बाद 26 नवंबर को जब लोकसभा में इस मुद्दे पर चर्चा की बारी आई, तो सदन में कुल 26 सदस्य उपस्थित थे। यह उपस्थिति निचले सदन की कुल सदस्य संख्या के पांच परसेंट से भी कम थी। बाद में राज्यसभा में इसी मुद्दे पर हुई चर्चा में भी उपस्थिति ऐसी ही थी। यूं तो इस पर हुई चीख-पुकार के बाद सत्र के आखिर में इसी मुद्दे पर दोबारा हुई चर्चा में उपस्थिति कहीं बेहतर रही, पर इस बहस में हिस्सा लेने वाले अनेक सांसदों से एक अंग्रेजी दैनिक की बातचीत में यह सचाई सामने आई कि महंगाई पर चिंता जताने वालों में से भी अनेक को वास्तव में इस महंगाई का न तो कोई प्रत्यक्ष अनुभव है और ठीक-ठीक कोई अनुमान। पर इसमें अचरज की बात भी क्या है। मौजूदा लोकसभा में 300 से ज्यादा करोड़पति सांसद चुनकर आए हैं। यानी करीब 60 फीसदी। यह संख्या चौदहवीं लोकसभा के मुकाबले दोगुनी है। पंद्रहवीं लोकसभा में सिर्फ 21 सदस्य हैं, जिन्होंने चुनाव के समय अपनी घोषणा में अपनी परिसंपत्तियां 10 लाख रुपये या उससे कम बताई हैं। दिलचस्प है कि पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में से उत्तर प्रदेश से चुने गए लोकसभा सदस्यों की औसत संपत्ति चार करोड़ रुपये बैठती है। राजस्थान के सदस्यों की तीन करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश के सदस्यों की दो करोड़ रुपये और बिहार के सदस्यों की एक करोड़ रुपये। सत्ताधारी कांग्रेस के लोकसभा सदस्यों की औसत परिसंपत्ति चौदहवीं लोकसभा के चुनाव के समय के तीन करोड़ 40 लाख के आंकड़े से दोगुनी हो गई और पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव के समय छह करोड़ 80 लाख रुपये पर पहुंच गई। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बीजेपी के सांसदों की औसत प्रॉपर्टी एक करोड़ 20 लाख रुपये से बढ़कर तीन करोड़ 60 लाख रुपये के आंकड़े तक पहुंच गई, यानी तीन गुनी हो गई। अपनी सारी नेकनीयती के बावजूद 60 फीसदी करोड़पतियों वाली लोकसभा से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह इसका कोई अनुमान लगा सके कि करीब 20 प्रतिशत फूड इन्फ्लेशन के दौर में 20 रुपये रोजाना कमाने वाली देश की 78 प्रतिशत आबादी की गुजर-बसर कैसे होती होगी। मौजूदा सरकार में लोकसभा से आए मंत्रियों में 47 करोड़पति हैं और उनकी औसत प्रॉपर्टी 7 करोड़ 73 लाख की बैठती है। यानी लोकसभा सदस्यों की औसत प्रॉपर्टी से भी डेढ़ गुना ज्यादा। जब हमारे प्रतिनिधि इतने खास और अमीर हों और आम जनता बेहद लाचार, तो दोनों का साथ भला कैसे निभ सकता है?
Monday, January 4, 2010
बिग बाजार की मुंबई ब्रांच के स्टाफ में लगभग 80 फीसदी महिलाएं ही रखी गई हैं।
Saturday, January 2, 2010
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हमारे प्रिय पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएं
नव वर्ष 2010 आपकेलिए सुख-समृद्ध् आरोग्य, तथा मनोकामनाएं पूर्ण करे,
इन्ही शुभकामनाओं द्वारा आपके समक्ष नई आशाओं के साथ
डॉ राजेन्द्र कुमार गुप्ता