Thursday, January 22, 2009

अन्त सबका एक सा, चाहे बुश हो या हिटलर, मायूस होना उचित नहीं, यही शाश्वत सत्य है

अन्त सबका एक सा, चाहे बुश हो या हिटलर, मायूस होना उचित नहीं, यही शाश्वत सत्य है
जब सारी दुनिया में बराक ओबामा की जय- जयकार हो रही है, यह बंदा बेहद मायूस है। मायूसी इसलिए है कि कोई भी एक हारे हुए और अभूतपूर्व से भूतपूर्व हो गए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दु:ख से दु:खी नहीं है। ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह में बुश का बुझा हुआ चेहरा देखकर इस बंदे को बेहद पीड़ा हुई। जैसे उनके मासूम चेहरे की आभा किसी ने रातोंरात छीन ली हो। इतना मलिन मुख। शपथ ग्रहण के बाद जब जॉर्ज बुश अपनी पत्नी लॉरा बुश के साथ हेलिकॉप्टर में टेक्सस के लिए रवाना हो रहे थे और राष्ट्रपति ओबामा और उपराष्ट्रपति बाइडन अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उन्हें विदा देने आए थे तो विदाई दृश्य देखकर तो इस बंदे की आंखों से पानी बहने लगा और यह बंदा ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे! ईश्वर ओबामा को सद्बुद्घि दो कि वह अपनी कुर्सी भारत के इस सबसे बड़े शुभचिन्तक जॉर्ज बुश के लिए त्याग दे और खुद अज्ञातवास पर चला जाए।
अमेरिका तो अमेरिका, यह पूरी दुनिया बुश के बिना जी नहीं सकेगी। बुश ने दुनिया को आतंकवाद से निरापद और सुरक्षित बनाया। इराक और अफगानिस्तान के अधूरे कामों को अब कौन पूरा करेगा? सोचकर फिर अश्रुधारा बह निकली। लेकिन ओबामा और बाइडन तो हंसते-हंसते हाथ हिला रहे थे। ऊपर से शालीन लेकिन जैसे मन ही मन कह रहे हों- जा दफा हो। आठ साल में तूने देश को इतना भिनका दिया है कि हमारा चार साल का कार्यकाल भी कम पड़ेगा। कहां एक जमाने में अमेरिका के पेशाब से दुनिया में चिराग जलते थे, कहां ऐसी मीठी मगर मन्द-मन्द मार पड़ी कि लोग हंसना बोलना तो क्या हगना-मूतना तक भूल गए। मंदी है हर चीज बचाकर रखो ताकि वक्त-जरूरत पर काम आए। बुश के उस उदास चेहरे को एकमात्र इसी बंदे ने पढ़ा और मन व्याकुल हो गया। इतना नफीस आदमी और विधाता का उसके साथ ऐसा क्रूर सलूक। अब हमारे मामूजान किसे कहेंगे कि भारत के लोग आपको बहुत प्यार करते हैं। हा हन्त! ऐसा अन्त। इस बंदे को तूने धृतराष्ट्र क्यों नहीं बनाया। यह असह्य पीड़ा देखनी तो नहीं पड़ती। सिर्फ एक मौका उसे और मिल जाता तो इस दुनिया का कल्याण कर जाता। ऐसा शालीन राष्ट्रपति अमेरिका के इतिहास में न कभी पैदा हुआ है और न होगा। राष्ट्रपतियों का इतिहास रहा है कि नवम्बर में चुने गए नए राष्ट्रपति और 20 जनवरी की दोपहर तक काम करनेवाले पुराने राष्ट्रपति के बीच एक अव्यक्त चबड़-चबड़ और एक अदृश्य रगड़-सगड़ चलती रहती है। पुराना राष्ट्रपति नए को किसी चीज पर हाथ नहीं धरने देता। मान लो गलती से नए राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त कोई बंदा किसी वजह से पुरानों के बीच आ धमके तो पुराने लोग उसे ऐसे देखते थे जैसे बावलों के गांव में ऊंट आ गया हो। मगर अपने जॉर्ज बुश के व्यक्तित्व में सज्जनता कूट कूटकर भरी है। उन्होंने तो सत्ता हस्तांतरण के वक्त तक के लिए बाकायदा एक ट्रांजीशन टीम बना दी थी। कोई लफड़ा ही नहीं। आने वाले और जाने वाले राष्ट्रपतियों के स्टाफ के बीच कैसी तलवारें चलती हैं इसे तो वे ही भुक्तभोगी बयां कर सकते हैं जिन्होंने रोनल्ड रीगन से बुश साहब के पिताजी जनाब सीनिअर बुश को सत्ता हस्तांतरण के दृश्य देखे हैं। भगवान ने ओबामा को ऐसा दिन नहीं दिखाया। अत: उन्होंने बाकायदा बुश को शुक्रिया अदा किया। बुश जूनिअर एक परम्परा के अनुसार ओवल ऑफिस में अपने मेज की ऊपरी दराज में ओबामा के नाम एक पर्चा छोड़ गए हैं, जैसे और राष्ट्रपति छोड़ते हैं। जाहिर है वे इतने शालीन और स्वाभिमानी हैं कि अपने मुंह से न तो कभी कहेंगे और अपने हाथ से न ही कभी लिखेंगे कि संविधान में रद्दोबदल करके कोई ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे मुझे अपने अधूरे कामों को पूरा करने के लिए एक मौका और मिल जाए। ओबामा गोपनीयता की मर्यादा से बंधे हैं, वे क्यों बुश की इच्छा बताने लगे हालांकि इस बंदे को मालूम है कि शपथग्रहण के मौके पर जब वे दोनों गले मिले थे तो बुश ने कान में फुसफुसाने की अपनी मीठी और मारक अदा को अपनाते हुए ओबामा से जरूर कुछ कहा होगा, जैसे भारत आने पर उन्होंने हमारे मामूजान के कान में कहा था। किसी को बताया उन्होंने? ऐसी बातें बताने के लिए नहीं होतीं।

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