Monday, January 26, 2009

बच्चों को सीखना चाहिये आत्मसम्मान में रहना, और देश केलिए कुछ करना

बच्चों को सीखना चाहिये आत्मसम्मान में रहना, और देश केलिए कुछ करना

जब डिस्ट्रिक्ट अडमिनिस्टेशन ने उन्हें सूचित किया कि सूरज और अभिषेक को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार के लिए चुना गया है, तो पिता मोहन सूरी की आंखें भर आईं। उनके बेटों की दिलेरी को गांव ही नहीं आसपास के लोग भी याद करते हैं। उन्होंने एक डूबते हुए बच्चे को तो बचा लिया लेकिन खुद अपनी जान गंवा बैठे। यह पुरस्कार हरियाणा के राज्यपाल डॉ. ए. आर. किदवई 26 जनवरी को रेवाड़ी में आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में मोहन सूरी व उनकी पत्नी किरण को प्रदान करेंगे। गुड़गांव के सिविल हॉस्पिटल में रेडक्रॉस के मेडिकल स्टोर पर कार्यरत फॉर्मासिस्ट मोहन सूरी ने बताया कि उनके दो ही बेटे थे। मास्टर अभिषेक 9 और मास्टर सूरज 7 साल का। यह दोनों साल 2007 में स्कूल की छुट्टियों के दौरान हिसार में हांसी के निकट अपने गांव हाजमपुर गए थे। 23 मार्च के दिन जब ये बच्चे सुबह शौच के लिए निकले, तो उन्होंने एक बच्चे को टैंक में डूबते देखा। बच्चा बचाने की गुहार लगा रहा था। अभिषेक व सूरज उसे बचाने के लिए पानी में कूद गए। बच्चे को तो उन्होंने बचा लिया लेकिन खुद उनकी जान चली गई। यह बताते हुए मोहन सूरी की आंखों में आंसू आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि सूरज व अभिषेक को 2008 में राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर बहादुरी पुरस्कार दिया गया था। यह पुरस्कार मोहन सूरी ने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से प्राप्त किया था। अब सूरज और अभिषेक के लिए राज्य सरकार भी बहादुरी पुरस्कार देगी। बहादुरी पुरस्कार राज्यपाल रेवाड़ी में देंगे। इसके लिए डीसी दीप्ति उमाशंकर ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर सगान सिंह को उनके आने-जाने की व्यवस्था करने की हिदायत दी है।

तारीफ करना एक अच्छा और नेक काम है, अवश्य करनी चाहिये

तारीफ करना एक अच्छा और नेक काम है, अवश्य करनी चाहिये
तारीफ एक ऐसा शब्द है जो करने वाले और सुनने वाले दोनों को अच्छा लगता है क्योंकि इससे निकलने वाली पॉजिटिव एनर्जी किसी व्यक्ति को सर्वोत्तम कोशिश करने के लिए प्रेरित और उत्साहित करती है। वैसे तो तारीफ के जुमले महज कुछ शब्द होते हैं लेकिन इनके भीतर के मायने कई मामलों में बहुत विशेष होते हैं। वेस्ट में 24 जनवरी को मनाए जाने वाले कांप्लिमंट डे के बारे में भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि तारीफ सीधे आपकी आत्मगरिमा को बढ़ाती है और आपके अंदर खुशी भर देती है। इंटरनैशनल बुक डिजाइनर संजोग शरण के अनुसार हर व्यक्ति के अंदर यह तमन्ना होती है कि उसके अच्छे कामों की सराहना हो। कहावत है कि महिलाएं अपनी सुंदरता की सराहना सुनते नहीं लेकिन यह बात सिर्फ महिलाओं पर ही नहीं बल्कि सब पर लागू होती है क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी अपनी सराहना पसंद करते हैं। थकतीं।इसी का मुजाहिरा बराक ओबामा ने भी हाल में दायित्व संभालने के बाद अपनी पत्नी मिशेल के सुंदर दिखने के बारे में लोगों से सार्वजनिक तौर पर सवाल पूछकर किया भी। संजोग ने कहा कि किसी भी आदमी की जब आप तारीफ कर रहे होते हैं या उसके बारे में कुछ अच्छी बात कर रहे होते हैं तो दरअसल आप उस व्यक्ति की एनर्जी को बढ़ाने का काम करते हैं। तारीफ से निश्चित तौर पर आदमी के भीतर पॉजिटिव एनर्जी बढ़ती है। संजोग ने ओबामा का ही उदाहरण देते हुए कहा कि वह आज इतने एनर्जेटिक क्यों लग रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि न सिर्फ अमेरिका बल्कि दुनिया भर के लोग तमाम कारणों से उनकी तारीफ कर रहे हैं। इससे निश्चित तौर पर उन्हें पॉजिटिव एनर्जी मिल रही है। उन्होंने कहा कि हमें तारीफ करने के लिए किसी बडे़ मौके का इंतजार नहीं करना चाहिए। ऐसा नहीं है कि आप किसी व्यक्ति को भारतरत्न या पद्म पुरस्कार मिलने पर ही बधाई दें। यदि आपका फ्रेंड किसी बूढ़े व्यक्ति की मदद करता है या आपका कोई छोटा सा काम करता है तो आप इतनी छोटी सी बात के लिए भी उसकी तारीफ कर सकते हैं। इस छोटे से व्यवहार से आपके संबंधों की मधुरता काफी गुना बढ़ जाती है।

आम भारतीय आदमी जो वास्तव में है, खास भारतीय आदमी, हमारी शुभकामनाएं

आम भारतीय आदमी जो वास्तव में है, खास भारतीय आदमी, हमारी शुभकामनाएं
ओलिंपिक में पहला इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने वाले अभिनव बिंद्रा को पद्म भूषण दिया जा रहा है। क्रिकेट खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी और हरभजन सिंह के अलावा बिलियर्ड्स खिलाड़ी पंकज आडवाणी को पद्मश्री मिलेगा। ऐक्ट्रेस ऐश्वर्या रॉय, गायक उदित नारायण, ऐक्टर अक्षय कुमार को भी पद्मश्री देने का फैसला किया गया है। नई दिल्ली। इस साल देश की इन अनमोल हस्तियों को पद्म अलंकरण के लिए चुना गया है। पद्म विभूषण (10) सिविल सर्विस : डॉ. चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव (महाराष्ट्र)। पर्यावरण संरक्षण : सुंदरलाल बहुगुणा (उत्तराखंड)। साहित्य एवं शिक्षा : प्रो. डी. पी. चट्टोपाध्याय (प. बंगाल)। मेडिसिन : प्रो. जसबीर सिंह बजाज (पंजाब), डॉ. पुरुषोत्तम लाल (यूपी)। पब्लिक अफेयर्स : गोविंद नारायण (यूपी)। साइंस ऐंड इंजीनियरिंग : डॉ. अनिल काकोडकर (महाराष्ट्र), जी. माधवन नायर (कर्नाटक)। सामाजिक कार्य : सिस्टर निर्मला (प.बंगाल)। ट्रेड ऐंड इंडस्ट्री : डॉ. ए. एस. गांगुली (महाराष्ट्र)। पद्म भूषण (30) कला : जी. सिवराम कृष्णमूर्ति उर्फ कृष्णा (आंध्र प्रदेश), प्रो. रामलाल. सी. मेहता (गुजरात), शमशाद बेग (महाराष्ट्र), वी. पी. धनंजयन और शांता धनंजयन (तमिलनाडु), डॉ. वैद्यनाथन गणपति स्थापति (तमिलनाडु)। सिविल सर्विस: एस. के. मिश्रा (हरियाणा)। जर्नलिजम : शेखर गुप्ता (दिल्ली)। साहित्य व शिक्षा : प्रो. ए. एस. मेनन (केरल), सी. के. प्रहलाद (एनआरआई), डी. जयकांथन (तमिलनाडु), डॉ. इशर जज आहलूवालिया (दिल्ली), कुंवर नारायण (दिल्ली), प्रो. मिनोरू हारा (विदेशी), रामचंद्र गुहा (कर्नाटक)। मेडिसिन : डॉ. ब्रजेंद्र कुमार राव (दिल्ली), वैद्य देवेंद्र त्निगुणा (दिल्ली), डॉ. खालिद हमीद (एनआरआई)। नैशनल सिक्यूरिटी अफेयर्स : ले. जनरल (रिटा.) सतीश नांबियार (दिल्ली)। पब्लिक अफेयर्स : डॉ. इंदरजीत कौर बारठाकुर (मेघालय), डॉ. किरीट शांतिलाल पारिख (दिल्ली)। साइंस ऐंड इंजीनियरिंग : डॉ. भक्त. बी. रथ (एनआरआई), कांजिवरम श्रीरंगाचारी शेषाद्री (तमिलनाडु), डॉ. गुरदीप सिंह रंधावा (दिल्ली), सैम पित्रोदा (दिल्ली), प्रो. सर्वज्ञ सिंह कटियार (यूपी), प्रो. थॉमस कैलाथ (एनआरआई)। सामाजिक कार्य : डॉ. नागनाथ नायकवाडी (महाराष्ट्र), डॉ. सरोजनी वरदप्पन (तमिलनाडु)। खेल : अभिनव बिंद्रा (पंजाब)। ट्रेड ऐंड इंडस्ट्री : अनिल मणिभाई नाइक (महाराष्ट्र)। पद्मश्री कला : थीलकन (केरल), ए. विवेक (तमिलनाडु), ऐश्वर्या राय बच्चन (महाराष्ट्र), अक्षय कुमार (महाराष्ट्र), डॉ. अमीना अहमद आहूजा (दिल्ली), अरुणा साईराम (तमिलनाडु), देवयानी चैमौट्टी (विदेशी), गीता कपूर (दिल्ली), गोविंद राम निर्मलकर (छत्तीसगढ़), गुरुमायुम गौर किशोर शर्मा (दिल्ली), हशमत उल्ला खान (जम्मू-कश्मीर), हेलन खान (महाराष्ट्र), हेमी बावा (दिल्ली), पंडित हृदयनाथ मंगेशकर (महाराष्ट्र), इरावथम मादेवन (तमिलनाडु), के. पी. उदयभानू (केरल), डॉ. कन्नेगंटी ब्रह्मनंदम (आंध्र प्रदेश), प्रो. किरण सेठ (दिल्ली), कुमार शानू भट्टाचार्जी (महाराष्ट्र), प्रो. डॉ. लीला ओमचेरी (दिल्ली), मट्टानूर शंकरनकुट्टी मरार (केरल), निरंजन गोस्वामी (पश्चिम बंगाल), भाई निर्मल सिंह खालसा (पंजाब), पेनाज मसानी (महाराष्ट्र), प्रकाश एन. दुबे (महाराष्ट्र), डॉ. प्रतापादित्य पाल (एनआरआई), राम किशोर छिपा (राजस्थान), साओली मित्रा (पश्चिम बंगाल), स्केनड्रोवेल सियमलियेह (मरणोपरांत)(मेघालय), डॉ. सुब्रमण्यम कृष्णस्वामी (तमिलनाडु), सुरेश दत्ता (पश्चिम बंगाल), तफाजुल्ल अली (मरणोपरांत)(असम), उदित नारायण (महाराष्ट्र), वडक्का मानालथ गोविंदन उर्फ कलामंडलम गोपी (केरल)। सिविल सर्विस: एस. बी. घोष दास्तिदार। कॉमेंट्री ऐंड ब्रॉडकास्टिंग : अमीन सयानी (महाराष्ट्र)। जर्नलिजम : अभय छजलानी (मध्य प्रदेश)। साहित्य और शिक्षा : डॉ. ए. शंकर रेड्डी (दिल्ली), आलोक मेहता (एडिटर्स गिल्ड के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार, दिल्ली), डॉ. बनानजे गोविंदाचार्य (कर्नाटक), डॉ. बिरेंदनाथ दत्ता (असम), गेशे नवांग सैमटेन (विदेशी), प्रो. जलीस अहमद खान तारें (पुडुचेरी), जयंत महापात्र (उड़ीसा), डॉ. जॉन रालस्टन मार (विदेशी), लालथंगफाला सायलो (मिजोरम), लक्ष्मण बापू माणे (महाराष्ट्र), डॉ. मथूर कृष्णमूर्ति (कर्नाटक), नॉरेडेन शेरिंग (सिक्किम), डॉ. पंचपाकेसा जयरामन (एनआरआई), प्रो. राम शंकर त्रिपाठी (उत्तर प्रदेश), प्रो. (डॉ.) रणबीर चंदर सोबती (चंडीगढ़), डॉ. रवींद नाथ श्रीवास्तव (बिहार), शमसुर रहमान फारुकी (उत्तर प्रदेश), शशी देशपांडे (कर्नाटक), सनी वर्के (एनआरआई), सुरेश गुंडु अमोनकर (गोवा), डॉ. उत्पल बनर्जी (दिल्ली)। मेडिसिन : डॉ. ए. के. गुप्ता (तमिलनाडु), डॉ. अलमपुर साईबाबा गौड़ (आंध्र), डॉ. अरविंद लाल (दिल्ली), डॉ. अशोक के. वैद्य (दिल्ली), डॉ. अशोक कुमार ग्रोवर (दिल्ली), डॉ. बालस्वरूप चौबे (महाराष्ट्र), डॉ. डी. एस. राणा (हिमाचल), डॉ. गोविंदन विजयराघवन (केरल), डॉ. कल्याण बनजीर् (दिल्ली), पी. आर. कृष्णकुमार (तमिलनाडु), डॉ. शिवरामन (तमिलनाडु), डॉ. शेक खादर नूरदीन (तमिलनाडु), डॉ. थनीकांचलम सदागोपान (तमिलनाडु), डॉ. यश गुलाटी (दिल्ली)। पब्लिक अफेयर्स : के. अशुंगबा संगतम (नगालैंड), डॉ. श्यामला पप्पू (दिल्ली)। हिमालयन ग्लेशियर पर रिसर्च : प्रोफेसर सईद इकबाल हसनैन (दिल्ली)। साइंस ऐंड इंजीनियरिंग : गोरीपार्थी नरसिंह राजू यादव (आंध्र), प्रो. प्रमोद टंडन (मेघालय)। सोशल र्वक्स : बंसीलाल राठी (मध्य प्रदेश), बिलकीस लतीफ (आंध्र), चेरिल कृष्ण मेनन (एनआरआई), रेव जोसेफ परेरा (महाराष्ट्र), के. विश्वनाथन (केरल), कीपू त्सेरिंग लेपचा (सिक्किम), श्याम सुंदर महेश्वरी (राजस्थान), सुनील कांति राय (प. बंगाल)। खेल : बलबीर खुल्लर (पंजाब), हरभजन सिंह (पंजाब), महेंद सिंह धोनी (झारखंड), पंकज आडवाणी (कर्नाटक)। टेक्नॉलजी सल्यूशंस : सुरिंदर मेहता (दिल्ली)। टेड ऐंड इंडस्ट्री : अरुणमुगम शक्तिवेल (तमिलनाडु), डॉ. भावगुथू रघुराम शेट्टी (एनआरआई) और आर. के. कृष्ण कुमार (महाराष्ट्र)।

Friday, January 23, 2009

एनसीआर में रहते हुए दिल्ली के वोटर बने लोगों के लिए चेतावनी।

एनसीआर में रहते हुए दिल्ली के वोटर बने लोगों के लिए चेतावनी। यूपी और हरियाणा के मुख्य चुनाव अधिकारियों को पत्र लिखकर दिल्ली से लगे विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट मांगी गई है, ताकि उनका मिलान दिल्ली की वोटर लिस्ट से किया जा सके। अगर जांच में पाया गया कि कोई दो जगहों की वोटर लिस्ट में नाम लिखाए हुए हैं, उनके खिलाफ पुलिस केस दर्ज कराया जाएगा। ऐसे वोटरों के लिए अभी भी दिल्ली की वोटर लिस्ट से नाम कटवाने का मौका है। इसके लिए फॉर्म नंबर-7 भरना होगा। भरे गए फॉर्म को संबंधित विधानसभा क्षेत्र में स्थित वोटर रजिस्ट्रेशन ऐंड एपिक सेंटर (वीआरईसी) या उन स्थानों पर जहां फॉर्म इकट्ठा किए जा रहे हैं, जमा कराया जा सकता है। वोटर जमा फॉर्म की रसीद लेना न भूलें। मुख्य चुनाव अधिकारी कार्यालय सूत्रों के मुताबिक, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद, गुड़गांव और सिंघु बॉर्डर के पास रहने वाले लोग दिल्ली के भी वोटर बने हुए हैं। इन जैसे वोटरों की ही जांच करने के लिए ही यह कार्रवाई शुरू की जा रही है। गौरतलब है कि दिल्ली में 12 जनवरी से नए वोटर बनाने और पुराने वोटर कार्ड में हुईं गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए वोटरों से फॉर्म लिए जा रहे हैं। चुनाव कार्यालय का यह अभियान 27 जनवरी तक चलेगा। सूत्रों का कहना है कि 28 जनवरी से चुनाव अधिकारी इकट्ठा हुए ऐसे फॉर्म की जांच करने का काम शुरू कर देंगे। चुनाव कार्यालय ने अपने आदेशों में कहा है कि इसमें नए वोटर बनने के लिए भरे जाने वाले फॉर्म नंबर-6 की गंभीरता से जांच की जाए। इन फॉर्मों की जांच में यह पता लगाया जाए कि इनमें से कितने ऐसे लोग हैं जो एनसीआर में रहते हुए दिल्ली का वोटर कार्ड बनवाना चाह रहे हैं। साथ ही ऐसे पुराने वोटरों की भी लिस्ट तैयार की जाएगी जो पहले से ही एनसीआर में रह रहे हैं मगर उन्होंने अपने नाम दिल्ली की वोटर लिस्ट में भी दर्ज करा रखे हैं। इस मामले में दिल्ली की मुख्य चुनाव अधिकारी सतबीर साइलस बेदी का कहना है कि ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए ही यूपी और हरियाणा सरकार के संबंधित चुनाव अधिकारियों से दिल्ली बॉर्डर से लगे उनके इलाकों की वोटर लिस्ट मांगी गई है। बेदी ने बताया कि इसके बाद जितने भी लोगों के नाम सामने आएंगे उन सब की पहले तो चुनाव अधिकारियों के माध्यम से डोर टु डोर जांच कराई जाएगी। बाद में इन लोगों के नाम और पते पुलिस को दे दिए जाएंगे, ताकि ऐसे वोटरों के खिलाफ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम-1950 की धारा 31 के तहत कार्रवाई की जा सके। इस कानून के तहत अपराध साबित होने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है। ट्रांसफर नहीं होता वोटर रजिस्ट्रेशन अगर आप दूसरे शहर या फिर उसी शहर में किसी और जगह ट्रांसफर होते हैं तो वोटर रजिस्ट्रेशन को ट्रांसफर नहीं करा सकते। आपको नई जगह पर रहते हुए छह महीने हो गए हों तो वोटर रजिस्ट्रेशन के लिए दोबारा अप्लाई करना होगा। इसमें पहले के रजिस्टेशन का जिक्र करना होगा, ताकि उसे चुनाव आयोग कैंसल कर सके। नई जगह के लिए आपके संसदीय क्षेत्र और विधानसभा क्षेत्र का नंबर भी बदल जाएगा। दो जगहों से वोट डालना गैरकानूनी है।

आडवाणी ने वादा किया कि एनडीए के सत्ता में आने के बाद गुजरात डिवेलपमेंट मॉडल को पूरे देश में लागू किया जाएगा।

बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं। इसके साथ ही आडवाणी ने वादा किया कि एनडीए के सत्ता में आने के बाद गुजरात डिवेलपमेंट मॉडल को पूरे देश में लागू किया जाएगा। तस्वीरों में : मैं हूं इंडिया का 'ओबामा' एक ऑनलाइन चैटिंग सेशन के दौरान जब आडवाणी से पूछा गया कि बीजेपी के पास उनके अलावा कोई दूसरा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार है , तो आडवाणी ने कहा कि बीजेपी में ऐसे बहुत नेता हैं , जिनमें मोदी भी शामिल हैं। एक अन्य सवाल के जवाब में आडवाणी ने कहा कि मोदी के नेतृत्व में गुजरात देश के लिए भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का एक बेहतर मॉडल है। मुझे विश्वास है कि केंद्र में जब एनडीए की सरकार बनेगी , तो गुजरात मॉडल को डिवेलपमेंट मॉडल के रूप में स्वीकार किया जाएगा। पाकिस्तान पर हमले के बारे में आडवाणी ने कहा कि सरकार को सभी बातों को मद्देनजर रखते हुए कोई फैसला लेना चाहिए। जहां जरूरी हो वहां कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। जब उनसे पूछा गया कि क्या देश को युवा प्रधानमंत्री की जरूरत है , तो आडवाणी ने कहा , मेरा मानना है कि जरूरी यह है कि जो प्रधानमंत्री बने उसे दुनिया के माहौल की समझ होनी चाहिए और जो नए भारत के बारे में सोचे। ये दोनों गुण देश के नेतृत्व के लिए जरूरी है। मैं विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता हूं कि मैं ऐसा कर सकता हूं। उनसे चैटिंग करने वाले एक शख्स ने जानना चाहा कि 82 साल की उम्र में भी कैसे उनका स्वास्थ्य अच्छा है , आडवाणी ने कहा कि मैं कम खाता हूं और मेरी सोच और विचारधारा मुझे स्वस्थ बनाए रखती है। कश्मीर के बारे में आडवाणी ने कहा कि इस मामले पर सभी पक्षों से बात करना जरूरी है। हालांकि कश्मीर के नाम पर आतंकवाद को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। तस्वीरों में : गजनी लुक में कैसे दिखेंगे मोदी उन्होंने कहा कि ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से खुश होने की दो वजह हैं। पहला , इससे भारत और अमेरिका के रिश्तों में और मजबूती आएगी। दूसरा , समानता , स्वाधीनता और नस्लवाद का विरोध कर उन्होंने महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग के विचारों को आगे बढ़ाने का विश्वास दिलाया है। मुझे उम्मीद है कि आतंकवाद पर भी ओबामा कोई समझौता नहीं करेंगे। ऑनलाइन चैटिंग में आडवाणी से 11 हजार सवाल पूछे गए , जिसमें से उन्होंने 35 के जवाब दिए। इधर , एक सम्मान समारोह में आडवाणी ने कहा कि रथयात्रा के जरिए मैंने धर्मनिरपेक्षता को लेकर नई बहस शुरू की। इससे वास्तविक और दिखावा करने वाले धर्मनिरपेक्षतावादी आमने - सामने आ गए। मो . अली जिन्ना की मजार पर जाने का भी उन्होंने बचाव किया।

Thursday, January 22, 2009

अन्त सबका एक सा, चाहे बुश हो या हिटलर, मायूस होना उचित नहीं, यही शाश्वत सत्य है

अन्त सबका एक सा, चाहे बुश हो या हिटलर, मायूस होना उचित नहीं, यही शाश्वत सत्य है
जब सारी दुनिया में बराक ओबामा की जय- जयकार हो रही है, यह बंदा बेहद मायूस है। मायूसी इसलिए है कि कोई भी एक हारे हुए और अभूतपूर्व से भूतपूर्व हो गए राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दु:ख से दु:खी नहीं है। ओबामा के शपथ ग्रहण समारोह में बुश का बुझा हुआ चेहरा देखकर इस बंदे को बेहद पीड़ा हुई। जैसे उनके मासूम चेहरे की आभा किसी ने रातोंरात छीन ली हो। इतना मलिन मुख। शपथ ग्रहण के बाद जब जॉर्ज बुश अपनी पत्नी लॉरा बुश के साथ हेलिकॉप्टर में टेक्सस के लिए रवाना हो रहे थे और राष्ट्रपति ओबामा और उपराष्ट्रपति बाइडन अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उन्हें विदा देने आए थे तो विदाई दृश्य देखकर तो इस बंदे की आंखों से पानी बहने लगा और यह बंदा ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना करने लगा कि हे! ईश्वर ओबामा को सद्बुद्घि दो कि वह अपनी कुर्सी भारत के इस सबसे बड़े शुभचिन्तक जॉर्ज बुश के लिए त्याग दे और खुद अज्ञातवास पर चला जाए।
अमेरिका तो अमेरिका, यह पूरी दुनिया बुश के बिना जी नहीं सकेगी। बुश ने दुनिया को आतंकवाद से निरापद और सुरक्षित बनाया। इराक और अफगानिस्तान के अधूरे कामों को अब कौन पूरा करेगा? सोचकर फिर अश्रुधारा बह निकली। लेकिन ओबामा और बाइडन तो हंसते-हंसते हाथ हिला रहे थे। ऊपर से शालीन लेकिन जैसे मन ही मन कह रहे हों- जा दफा हो। आठ साल में तूने देश को इतना भिनका दिया है कि हमारा चार साल का कार्यकाल भी कम पड़ेगा। कहां एक जमाने में अमेरिका के पेशाब से दुनिया में चिराग जलते थे, कहां ऐसी मीठी मगर मन्द-मन्द मार पड़ी कि लोग हंसना बोलना तो क्या हगना-मूतना तक भूल गए। मंदी है हर चीज बचाकर रखो ताकि वक्त-जरूरत पर काम आए। बुश के उस उदास चेहरे को एकमात्र इसी बंदे ने पढ़ा और मन व्याकुल हो गया। इतना नफीस आदमी और विधाता का उसके साथ ऐसा क्रूर सलूक। अब हमारे मामूजान किसे कहेंगे कि भारत के लोग आपको बहुत प्यार करते हैं। हा हन्त! ऐसा अन्त। इस बंदे को तूने धृतराष्ट्र क्यों नहीं बनाया। यह असह्य पीड़ा देखनी तो नहीं पड़ती। सिर्फ एक मौका उसे और मिल जाता तो इस दुनिया का कल्याण कर जाता। ऐसा शालीन राष्ट्रपति अमेरिका के इतिहास में न कभी पैदा हुआ है और न होगा। राष्ट्रपतियों का इतिहास रहा है कि नवम्बर में चुने गए नए राष्ट्रपति और 20 जनवरी की दोपहर तक काम करनेवाले पुराने राष्ट्रपति के बीच एक अव्यक्त चबड़-चबड़ और एक अदृश्य रगड़-सगड़ चलती रहती है। पुराना राष्ट्रपति नए को किसी चीज पर हाथ नहीं धरने देता। मान लो गलती से नए राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त कोई बंदा किसी वजह से पुरानों के बीच आ धमके तो पुराने लोग उसे ऐसे देखते थे जैसे बावलों के गांव में ऊंट आ गया हो। मगर अपने जॉर्ज बुश के व्यक्तित्व में सज्जनता कूट कूटकर भरी है। उन्होंने तो सत्ता हस्तांतरण के वक्त तक के लिए बाकायदा एक ट्रांजीशन टीम बना दी थी। कोई लफड़ा ही नहीं। आने वाले और जाने वाले राष्ट्रपतियों के स्टाफ के बीच कैसी तलवारें चलती हैं इसे तो वे ही भुक्तभोगी बयां कर सकते हैं जिन्होंने रोनल्ड रीगन से बुश साहब के पिताजी जनाब सीनिअर बुश को सत्ता हस्तांतरण के दृश्य देखे हैं। भगवान ने ओबामा को ऐसा दिन नहीं दिखाया। अत: उन्होंने बाकायदा बुश को शुक्रिया अदा किया। बुश जूनिअर एक परम्परा के अनुसार ओवल ऑफिस में अपने मेज की ऊपरी दराज में ओबामा के नाम एक पर्चा छोड़ गए हैं, जैसे और राष्ट्रपति छोड़ते हैं। जाहिर है वे इतने शालीन और स्वाभिमानी हैं कि अपने मुंह से न तो कभी कहेंगे और अपने हाथ से न ही कभी लिखेंगे कि संविधान में रद्दोबदल करके कोई ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे मुझे अपने अधूरे कामों को पूरा करने के लिए एक मौका और मिल जाए। ओबामा गोपनीयता की मर्यादा से बंधे हैं, वे क्यों बुश की इच्छा बताने लगे हालांकि इस बंदे को मालूम है कि शपथग्रहण के मौके पर जब वे दोनों गले मिले थे तो बुश ने कान में फुसफुसाने की अपनी मीठी और मारक अदा को अपनाते हुए ओबामा से जरूर कुछ कहा होगा, जैसे भारत आने पर उन्होंने हमारे मामूजान के कान में कहा था। किसी को बताया उन्होंने? ऐसी बातें बताने के लिए नहीं होतीं।

मुसलमानों को खुश करने केलिए यह सरकार कोई कसर छोडना नहीं चाहती ।

मुसलमानों को खुश करने केलिए यह सरकार कोई कसर छोडना नहीं चाहती ।
देश के किसी भी शैक्षिक बोर्ड से संबद्धता नहीं रखने वाले चुनिंदा मदरसों के लिए समान पाठ्यक्
रम तैयार करने के लिए सरकार ने मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. ए. एम. पठान की अध्यक्षता में बुधवार को एक सेल का गठन किया। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने यहां संवाददाताओं को बताया, यह सेल उन मदरसों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करेगा, जो किसी बोर्ड से संबद्ध नहीं हैं। सेल समान पाठ्यक्रम तैयार करने से पहले सभी मदरसा बोर्ड्स के पाठ्यक्रमों की स्टडी करेगा। सरकार मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा को केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के बराबर बनाने का फैसला पहले ही कर चुकी है, ताकि मुस्लिम छात्रों को केंद्र सरकार की नौकरियां हासिल करने में मदद की जा सके। हालांकि यह फायदा केवल उन्हीं मदरसों से पढ़ने वाले छात्रों को मिलेगा, जो दस राज्यों में स्थित प्रदेश मदरसा बोर्ड से संबद्ध हैं। उन्होंने कहा, कुछ मदरसे ऐसे हैं, जो ज्यादातर धार्मिक शिक्षा देते हैं और वे किसी बोर्ड से संबद्ध नहीं हैं, इसलिए सेल एक समान पाठ्यक्रम की सिफारिश करेगा ताकि इन मदरसों में शिक्षा पाने वाले छात्रों को सीबीएसई के बराबर प्रमाण पत्र दिए जा सकें। उन्होंने कहा कि मदरसों के पाठ्यक्रम के मौलिक स्वरूप को नहीं बदला जाएगा। जामिया मिलिया इस्लामिया, जामिया हमदर्द और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधियों को सेल से जोड़ा जाएगा। फातमी ने बताया कि अभी कोई समयसीमा नहीं दी गई है। सेल यह भी तय करेगा कि मदरसों में परीक्षाएं और दूसरी शैक्षिक गतिविधियों का संचालन कैसे हो। मदरसा बोर्ड उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, असम, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश में हैं। सरकार ने प्रो. पठान की अध्यक्षता में एक अन्य समिति का गठन किया है जो मदरसों में दी जाने वाली यूनिवर्सिटी लेवल की शिक्षा को मान्यता देने के बारे में सुझाव देगी।

Sunday, January 18, 2009

हमें इनपर गर्व है, ये है भावी देख के खेवनहार

२० बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार, हमें इनपर गर्व है, ये है भावी देख के खेवनहार

रील लाइफ के हीरो को देखकर प्रेरित होने वाले कुछ नन्हे-मुन्ने बच्चे आज रियल लाइफ में खुद दूसरों के लिए प्रेरणा बन गए हैं। अपनी जान की बाजी लगाकर दूसरों की जान बचाने और देश सेवा में योगदान देने वाले ऐसे 20 बच्चों को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार-2008 के लिए चुना गया है। इनमें 12 लड़कियां और 8 लड़के हैं। प्रधानमंत्री इन बच्चों को 26 जनवरी 2009 के समारोह में पुरस्कृत करेंगे। राष्ट्रपति और विभिन्न राज्य सरकारें भी इनके सम्मान में आयोजन करेंगे। काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर में शनिवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुरस्कार के लिए चयनित बच्चों के नामों का ऐलान किया गया। इस मौके पर आमंत्रित बच्चे खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। इनमें उत्तर प्रदेश के 13 साल के सौमिक मिश्रा को संजय चोपड़ा अवॉर्ड, मध्य प्रदेश की प्राची संतोष सेन को गीता चोपड़ा अवॉर्ड, 14 साल की राजस्थान की रहने वाली आशू कंवर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली साढ़े 16 साल की सीमा कंवर और 15 साल की स्वर्गीय कविता कंवर को बापू गैधानी अवॉर्ड दिया जाएगा। अन्य चयनित बच्चों में कृतिका, हिना, सिल्वर खरबानी, अनिता कोरा, रीना कोरा, दीनू केजी, मंजुशा, वाई एदीसन, शहंशाह, विशाल यूर्याजी, मरुडू पंडी, भूमिका, गगन, मनीष और राहुल हैं। भारतीय बाल कल्याण परिषद द्वारा दिए जाने वाले इस अवॉर्ड के तहत पुरस्कृत बच्चों को उनकी स्कूलिंग के लिए आर्थिक मदद दी जाती है। राज्य सरकारें भी अपनी तरफ से सहायता देती हैं। साथ ही इंदिरा गांधी स्कॉलरशिप स्कीम के तहत बच्चों को इंजीनियरिंग, मेडिकल जैसे प्रफेशनल कोर्सेज़ और ग्रैजुएशन की पढ़ाई में भी मदद दी जाती है। ब्रेवरी अवॉर्ड पाने वाले बच्चों के लिए केंद्र सरकार की ओर से मेडिकल, इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक की कुछ सीटें भी रिजर्व की गई हैं। ये अवॉर्ड 1957 में शुरू किए गए थे और तब से अब तक 756 बच्चों को पुरस्कृत किया गया है। इनमें 541 लड़के और 215 लड़कियां शामिल हैं।

12वीं पास स्टूडेंट्स भी सिविल सर्विसेज में

अगर सरकारी पैनल की सिफारिशों को हरी झंडी मिल गई तो 12वीं पास स्टूडेंट्स भी सिविल सर्विसेज में जा सकेंगे। वीरप्पा मोइली की अगुवाई वाले दूसरे अडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स कमिश्न (एआरसी) ने 12वीं पास स्टूडेंट्स को भी सिविल सर्विस में जाने का ऑप्शन देने के लिए तीन साल का स्पेशल कोर्स चलाने की सिफारिश की है। मोइली ने कहा कि स्कूल से पढ़ाई करके निकले स्टूडेंट्स को अगर सिविल सर्विस में करियर बनाने के लिए चुना जाएगा तो वे ज्यादा मजबूत संकल्प और नजरिए के साथ सेवाएं देंगे। एआरसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस कोर्स के लिए स्टूडेंट्स का सिलेक्शन नैशनल डिफेंस अकैडमी ( एनडीए) की तर्ज पर ऑल इंडिया एंट्रंस के आधार पर किया जाएगा। इसमें सफल स्टूडेंट्स को नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईपीए) में तीन साल का कोर्स करना होगा। कमिश्न ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार को लोक प्रशासन-मैनिजमंट में डिग्री कोर्स कराने के लिए एनआईपीए जैसे कई और इंस्टिट्यूट खोलने चाहिए। लंबे समय में ये इंस्टि्टयूट सिविल सर्विस में जाने के इच्छुक छात्रों के प्रमुख स्रोत बनकर उभरेंगे। मोइली ने कहा कि तीन साल के कोर्स के दौरान छात्रों का इस पेशे के प्रति नजरिया और संकल्प स्पष्ट हो जाएगा। जो छात्र सिविल सेवा में करियर बनाने के अनिच्छुक होंगे उन्हें इससे बाहर निकलने की छूट होगी। मोइली ने बताया कि कोर्स के दौरान समय-समय पर टेस्ट भी लिया जाएगा। अंतिम टेस्ट पास करने वाले छात्रों को ग्रैजुएशन की डिग्री दी जाएगी। उन्होंने बताया कि जो स्टूडेंट सिविल सर्विस में करियर बनाने के इच्छुक होंगे उन्हें कोर्स खत्म होने के बाद सेवा का आवंटन किया जाएगा। मोइली ने बताया कि सेवा आवंटन पाने वाले छात्रों को राष्ट्रीय संस्थानों में दो साल का सर्विस कोर्स करना होगा। इसका सिलेबस संबंधित सेवा की जरूरतों के हिसाब से तैयार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि कोर्स की समाप्ति के बाद एक और टेस्ट लिया जाएगा। उसके बाद हर सर्विस के लिए अंतिम मेरिट लिस्ट जारी की जाएगी, जिसके आधार पर ऑल इंडिया सर्विसेज के उम्मीदवारों को कैडर का आवंटन किया जाएगा।

Friday, January 16, 2009

संजय दत्त समाजवादी पार्टी से चुनाव लडेंगे,

संजय दत्त समाजवादी पार्टी से चुनाव लडेंगे, परिवारिक संबंधो मे दरार, प्रिया दत्त मनाने में नाकाम
Bollywood actor Sanjay Dutt has finally made it clear that he will contest polls on a Samajwadi Party ticket. “Amar Singh is like my elder brother, I can’t refuse him,” said the actor. “I want to serve the people of this country... If Navjot Singh Sidhu can contest elections, so can I,” he said addressing a press conference here. Referring to his sister Priya Dutt’s objection that theirs had always been a Congress family,.Dutt said, “I am the eldest in my family, I take my own decisions.” “Sonia and Rahul Gandhi can call on me whenever they need me,” he added.

Tuesday, January 13, 2009

आडवाणी ने महंगाई और आतंकवाद को देश के सबसे बड़े मुद्दे बताए।

मध्यप्रदेश में बीजेपी के नव निर्वाचित विधायकों को संसदीय आचरण का पाठ पढ़ाने पहुंचे सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहने का संदेश दे गए। आडवाणी ने महंगाई और आतंकवाद को देश के सबसे बड़े मुद्दे बताए। 2 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का समापन करते हुए आडवाणी ने विधायकों से कहा कि वे आत्मविश्वासी तो बनें मगर अहंकारी नहीं। उन्हें आत्मविश्वास और अहंकार के बीच की रेखा को पहचानना होगा तथा अपने संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति के सामने विनम्रता से पेश आना होगा। आडवाणी बीजेपी को अन्य सभी राजनीतिक दलों से अलग मानते हैं, क्योंकि बीजेपी का राजनीति शास्त्र राष्ट्रवाद के ऊपर आधारित है। बीजेपी सिर्फ राजनीतिक दल नहीं बल्कि एक आंदोलन है। आडवाणी ने कहा कि आज देश में आतंकवाद और महंगाई सबसे बड़े मुद्दे हैं।

मस्जिद होने के कारण इस्लामी कानून के मुताबिक वहां महिलाओं की उपस्थिति इस्लामिक कानूनों के लिहाज से नाजायज

बांग्लादेश के एक कस्बे में पिछले महीने मुस्लिम महिलाओं को एक खास सड़क पर जाने से रोक दिया गया। एक स्वयंभू मौलवी का कहना है कि सड़क पर मस्जिद होने के कारण इस्लामी कानून के मुताबिक वहां महिलाओं की उपस्थिति इस्लामिक कानूनों के लिहाज से नाजायज है। खास बात यह कि इस सड़क पर डाकघर के साथ ही तमाम लोगों के घर भी हैं। अपने को पीर कहने वाले रिटायर्ड सैनिक अब्दुस सत्तार हाथ में लाठी लिए चटगांव के फिरोजपुर कस्बे में पिछले महीने से उस सड़क की रखवाली में लगे हुए हैं। द डेली स्टार ने मंगलवार को बताया कि सत्तार के खिलाफ प्रशासन की ओर से अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। बारा मस्जिद की दीवार पर लिखा गया है, 'इस सड़क पर महिलाओं का आवागमन वर्जित है।' इस मस्जिद के बगल में उसी सड़क पर कस्बे का डाकघर व कई लोगों के अपने घर भी हैं। अस्पताल के लिए भी इसी सड़क से होकर जाना होता है। समाचार पत्र के अनुसार सड़क से गुजरने वाली यहां की महिलाओं व स्कूली लड़कियों को धमकाया जाता है और उन पर फब्तियां कसी जाती हैं।

Friday, January 9, 2009

पाक के बर्खास्त राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी।

पाक के बर्खास्त राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी।

मुंबई हमलों के सिलसिले में गिरफ्तार अजमल आमिर कसब की राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बयान देने के मामले में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी को बुधवार रात पद से बर्खास्त कर दिया गया। प्रधानमंत्री निवास से जारी संक्षिप्त बयान में कहा गया है कि यूसुफ रजा गिलानी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर प्रधानमंत्री और अन्य को विश्वास में नहीं लेने और तालेमल नहीं रखने के कारण दुर्रानी को पद से बर्खास्त कर दिया है। जियो न्यूज चैनल ने गिलानी के हवाले से कहा है कि कसब की राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बयान देने के मामले में सरकार को विश्वास में नहीं लेने के कारण दुर्रानी को पद से बर्खास्त किया गया है। प्रधानमंत्री ने चैनल से कहा कि दुर्रानी के गैरजिम्मेदार बयान से पाकिस्तान की छवि प्रभावित हुई है और यह सरकार की नीतियों के खिलाफ गया है। यह कदम सूचना मंत्री शेरी रहमान और विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद सादिक के बयान से उठाया गया है। दोनों ने संवाददाताओं से कहा कि पाकिस्तानी सुरक्षा एजंसियों की जांच में इस बात की पुष्टि हुई है कि कसब पाकिस्तानी नागरिक है।

डी डी ए केवल घोटाले केलिए नई स्कीम बना देती है

डी डी ए केवल घोटाले केलिए नई स्कीम बना देती है पुरानी स्कीमों पर ध्यान नहीं । रोहणी में घर का सपना सन १९८१ में दिखाया गया था जो अब तक पूरा नहीं हुआ । पहले उन सभी को घर केलिए प्लॉट या फ्लेट दिया जाना चाहिये जिन्होने १९८१ में रोहिणी केलिए आवेदन दिया था ।
डीडीए हाउसिंग स्कीम घोटाले में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने एफआईआर दर्ज कर एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। डीडीए की भूमिका की भी जांच की जा रही है। ड्रॉ में इस्तेमाल किए गए डीडीए के कंप्यूटरों के सॉफ्टवेयर की फरेंसिक जांच चल रही है। डीडीए ड्रॉ को रद्द किए जाने के आसार बनने लगे हैं। अडिशनल पुलिस कमिश्नर एस.बी.के.सिंह ने बताया कि गिरफ्तार किए गए शख्स का नाम है लक्ष्मी नारायण मीणा (54), जो झुनझनू में प्रॉपर्टी डीलर है। राजस्थान के सहकारी बैंक में नौकरी छोड़कर मीणा ने प्रॉपर्टी डीलिंग का धंधा शुरू किया था। उसके खिलाफ आईपीसी के सेक्शन 420, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया गया है। जानकारी के मुताबिक उन्होंने अनुसूचित जनजाति के 200 से ज्यादा लोगों के नाम से डीडीए के फॉर्म अप्लाई किए थे। इनमें से दर्जनों के नाम विजेताओं की लिस्ट में हैं। हालांकि एस.बी.के.सिंह के मुताबिक अभी मीणा के खिलाफ एक ही शिकायतकर्ता का बयान पुलिस को मिला है। उन्होंने बताया कि राजस्थान निवासी शिकायतकर्ता के नाम फ्लैट निकला है। सुरक्षा के मद्देनजर उसकी पहचान नहीं बताई जा रही है। इस स्कीम में डाली गई दर्जनों ऐप्लिकेशनों में फर्जीवाड़े के पक्के सबूत पुलिस को राजस्थान में मिल रहे हैं। साउथ दिल्ली में तीन प्रॉपर्टी डीलरों की तलाश पुलिस कर रही है। अभी तक पुलिस का रुख ड्रॉ में डीडीए द्वारा की गई कथित घपलेबाजी के बजाय कुछ आवेदकों के फर्जीवाड़े तक ही है। आर्थिक अपराध शाखा के एक पुलिस अफसर ने बताया कि इस हाउसिंग स्कीम में दिए गए दर्जनों आवेदन पत्रों में फर्जीवाड़े के सबूत मिल चुके हैं। इनके नंबर डीडीए ड्रॉ में विजेताओं की लिस्ट में हैं। ये सभी आवेदक राजस्थान के भरतपुर, झुनझुनू और बयाना जिलों में रहने वाले हैं। इस केस की जांच आर्थिक अपराध शाखा में एसीपी (लैंड ऐंड बिल्डिंग) दीपक पुरोहित, इंस्पेक्टर अनिल समोता और इंस्पेक्टर हरीश चंद की टीम कर रही है। पुलिस ने भरतपुर, झुनझुनू और बयाना के कई गांवों में रेड डाली और ड्रॉ के विजेताओं के बयान कलमबंद किए। राजस्थान में पुलिस को यह देखकर हैरत हुई कि कई फ्लैट विजेताओं के घर पर छत ही नहीं है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, बयाना में फ्लैट विजेताओं ने बयान दर्ज कराया है कि दिल्ली से आए कुछ लोगों ने उनके फोटो खींचकर कुछ कागजों पर अंगूठे लगवाए थे। रोशन, धर्म सिंह और हरी सिंह ने पुलिस को बताया कि उनके फॉर्म कुछ बाहरी लोग भरकर ले गए थे। ड्रॉ में इन तीनों के नाम फ्लैट निकल गए। इनमें किसी के पास पैन कार्ड या सेलफोन नहीं है, जबकि डीडीए फॉर्म में इनका रेकॉर्ड लिखा गया। झुनझुनू में रहने वाले कई फ्लैट विजेताओं ने पुलिस को बयान दिया है कि उन्होंने आवेदन करने के लिए कोई पैसा नहीं दिया था। रामेश्वर मीणा के नाम फ्लैट निकला है।
रामेश्वर ने पुलिस को बताया कि उन्होंने डीडीए स्कीम की फीस नहीं दी थी। इन लोगों के राशनकार्ड, जाति प्रमाणपत्र और वोटर कार्ड किसी लक्ष्मी नारायण ने जमा किए थे। पुलिस को झुनझुनू में कई फ्लैट विजेताओं के नाम-पते सही और कई गलत मिले। जगदीश मीणा, विक्रम सिंह मीणा, मोहन लाल मीणा और मनोज बासंग के पते फर्जी मिले।

Sunday, January 4, 2009

एक संकल्प देश से गरीबी हटाने का

नए साल से की जाने वाली अपेक्षाएं और नए साल के उपलक्ष्य में किए जाने वाले संकल्
प अक्सर पूरे नहीं होते, फिर भी इन अपेक्षाओं-संकल्पों की परंपरा चल रही है।

ऐसा ही एक संकल्प देश से गरीबी हटाने का है। हर सरकार और हर वित्त मंत्री हर साल गरीबी कम होने के दावे करता है और आने वाले साल में गरीबी और कम करने का संकल्प भी जताता है। इस संदर्भ में सबसे नया संकल्प यह है कि आगामी 7 साल में देश को गरीबी से मुक्त कर दिया जाएगा। सवाल यह है कि इस मुक्ति का मतलब क्या है? क्या इसका मतलब यह है कि हर हाथ को काम मिल जाएगा और कोई भूखा नहीं सोएगा, कोई नंगा नहीं रहेगा? अथवा इसका मतलब यह है कि देश में कोई किसान आत्महत्या के लिए विवश नहीं होगा या कोई बच्चा कुपोषण से नहीं मरेगा? अथवा क्या इसका अर्थ यह होगा कि देश के सब बच्चे स्कूलों में पढ़ने के लिए जाएंगे, दोपहर में मिलने वाले मुफ्त भोजन के लिए नहीं? ऐसे ढेरों प्रश्नों का उत्तर दुर्भाग्य से 'हां' नहीं है। फिर भी यह कल्पना ही अपने आप में सुखद है कि अब हमें सिर्फ सात साल तक गरीबी का शाप झेलना है। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? जरा देश में गरीबी के आंकड़ों पर एक नजर डालें। सन 2004-05 में देश की 28 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे का जीवन जी रही थी। दावा है कि वर्ष 2008 में यह संख्या घटकर 23 प्रतिशत रह गई। यानी चार साल में पांच प्रतिशत की कमी। अच्छा लगता है यह आंकड़ा। यह अहसास भी अच्छा लगता है कि देश में गरीबों की संख्या कम हो रही है। 1973-74 में यह संख्या 55 प्रतिशत थी। 55 से 23 प्रतिशत तक की यह यात्रा हमने 35 साल में पूरी की है। अर्थात औसतन एक प्रतिशत गरीब देश में प्रतिवर्ष कम हुए हैं। पता नहीं किस आधार पर यह दावा किया जा रहा है, लेकिन सरकार का कहना है कि 2015 तक देश में कोई भी व्यक्ति गरीबी की रेखा से नीचे का जीवन नहीं जीएगा। इसका मतलब यह हुआ कि गरीबी कम करने की रफ्तार हम कम से कम तीन गुनी कर देंगे। यह कैसे होगा, पता नहीं। होगा या भी नहीं, यह भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन फिर भी इस खुशफहमी का अच्छा लगना स्वाभाविक है। बहरहाल, इस संदर्भ में दो नजरियों से विचार किया जाना जरूरी है: पहला तो यह कि गरीबी की रेखा से ऊपर आने का मतलब क्या होता है और दूसरे यह कि सचमुच की गरीबी और गरीबी की सरकारी परिभाषा में क्या रिश्ता है। गरीबी की रेखा का निर्णय अलग-अलग देशों में अलग-अलग पैमानों पर तो होता ही है, इसके लिए तरीके भी अलग-अलग अपनाए जाते हैं। कभी सरकारें प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की आय को आधार बनाती हैं, तो कभी व्यय करने की क्षमता को। कभी इसे पौष्टिकता के परिमाण से जोड़ दिया जाता है और कभी जीवन की आवश्यकताओं के संदर्भां से। इसके अलावा औसत का खेल तो होता ही है, जो अक्सर वास्तविकता को छिपाने के काम आता है। इसी का नतीजा है कि देश में गरीबों की संख्या और गरीबी की मात्रा के लेकर अक्सर विवाद होता रहा है। अब सरकार ने इसके लिए एक 13 सूत्री फॉर्म्युला बनाया है, लेकिन केंद्र और राज्यों की सरकारें इस फॉर्म्युले को लेकर अभी तक एकमत नहीं हो सकी हैं। अक्सर राज्यों में यह संख्या बढ़ाकर दिखाने की प्रवृत्ति होती है, ताकि इस संदर्भ में केंदीय सहायता की मात्रा बढ़ सके। अक्सर केंद्र यह संख्या कम बताना चाहता है, ताकि उपलब्धियां का पलड़ा भारी दिखाया जा सके और राज्यों को इस मद में पैसा भी कम देना पडे़। पिछले चार दशकों के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का एक नतीजा यह भी है कि गरीबों की संख्या भले ही कम आंकी जा रही हो, गरीबी का असर लगातार बढ़ रहा है। हमारी राजनीति को यह विरोधाभास भले ही दिखाई न देता हो, लेकिन कुपोषण से मरने वाले बच्चों की संख्या, बाल मजदूरी का लगातार अधिक विकृत होता चेहरा, किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला न रुकना, रोजीरोटी के लिए मजदूरों का एक से दूसरे राज्य में पलायन, ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों का स्कूल न जा पाना या दो चार साल बाद ही स्कूल छोड़ने के लिए विवश होना और भूखे पेट सोने वाले भारतीयों के बारे में यूनेस्को द्वारा जारी आंकडे़ आदि आंख में उंगली डालकर हमें बता रहे हैं कि कुछ क्षेत्रों में विकास के प्रभावकारी दावों के बावजूद असंतुलित विकास की हमारी कहानी बहुत लंबी है। गरीबी इसी असंतुलन के परिणाम और प्रमाण के रूप में हमारे सामने खड़ी है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ग्रामीण रोजगार योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, रोजगार वृद्धि के प्रयासों आदि से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों का जीवन बेहतर बनाने के रास्ते खुले हैं, लेकिन राजनीति के ठेकेदारों और नौकरशाहों के तौर तरीकों ने इन रास्तों पर कितने अवरोध खड़े कर दिए हैं, उनकी ओर हम देखकर भी देखना नहीं चाहते। अब आगामी सात वर्षों में देश को गरीबी से निजात बनाने की योजनाएं बन रही हैं। मन तो 'आमीन' कहने को करता है, लेकिन शासन-प्रशासन और समाज को चलाने का दम भरने वाले ठेकेदारों के तौर-तरीके सिर्फ आशंकाओं को जन्म दे रहे हैं। सरकार का कहना है कि अगले कुछ वर्षों में देश के प्रति परिवार की औसत आय तीन- चार हजार रुपये वाषिर्क हो जाएगी और यह आंकड़ा उसे गरीबी की रेखा से ऊपर उठा देगा। लेकिन सवाल इस काल्पनिक रेखा के ऊपर-नीचे होने का नहीं है, बल्कि जीवन स्तर में वास्तविक सुधार का है। सभी को काम मिले, सभी को रोटी-कपड़ा मिले, सब शिक्षित हों, सबके सिर पर छत हो- गरीबी से उबरने का मानक यह होना चाहिए। भले ही पिछले चार दशक की कहानी यह बता रही हो कि देश में गरीबी एक प्रतिशत वार्षिक की दर से कम हुई है, पर गरीबों की दशा में वास्तव में कोई सुधार शायद ही हुआ हो। इसलिए शर्मनाक है यह प्रतिशत और खतरनाक है इस प्रक्रिया से पनप रही विषमता। शर्म और खतरे के दोहरे अहसास को समझकर ही समृद्ध भारत की कल्पना की जा सकती है। गरीबी का अभिशाप भी तभी मिटेगा।
हर व्यक्ति दूसरे पर प्रभाव जमाना चाहता है। वह चाहता है कि उसे लोगों की सराहना मिले
। हर कोई लोकप्रिय होना चाहता है। यह इच्छा ही लोगों के व्यवहार को नियंत्रित करती है। बहुत से लोग लोकप्रिय होने या प्रशंसा बटोरने के लिए भी सदाचरण करते हैं। वे भलाई करते हैं, मीठी बोली बोलते हैं, हमेशा हंसते रहते हैं। लेकिन प्रशंसा हासिल करने के चक्कर में वे कई बार समझौते करते हैं और अपने मन के विपरीत काम करते रहते हैं। जो लोग दूसरों को नाराज करने का साहस नहीं रखते, वे जीवन में कोई जोखिम भी नहीं ले पाते। उन्हें विरोध से डर लगने लगता है। वे ऐसा कोई कदम उठाना ही नहीं चाहते, जिस पर किसी को आपत्ति हो। इसलिए ऐसे लोग लोकप्रिय होने के बावजूद एक सीमित दायरे में कैद हो कर रह जाते हैं। समाज में वे पसंद जरूर किए जाते हैं, लेकिन वे समाज के लिए उपयोगी नहीं रह जाते। समाज के लिए उपयोगी तो वे होते हैं जो विरोध की परवाह नहीं करते और अलोकप्रिय तथा अलग-थलग पड़ जाने का खतरा उठाकर भी बड़े फैसले करते हैं और अपना रास्ता खुद बनाते हैं।

पूर्व राष्ट्रपति कलाम भी यही सोच रहे है कि अब तो आतंकवादी ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया जाए

अब प्रत्येक आम भारतीय आदमी को सोचना है क्योंकि पूर्व राष्ट्रपति कलाम भी यही सोच रहे है कि अब तो आतंकवादी ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया जाए
पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम चाहते हैं कि पाकिस्तान में स्थित आतंकवादी ठिकानों पर
हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया जाए। कलाम ने आतंकवाद से लड़ने के लिए तीन रणनीतियों की वकालत की है। इनमें देश के अंदर और बाहर स्थित आतंकवादी ठिकानों पर छापा मारकर उन्हें नष्ट करना शामिल है। स्टूडंट्स के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि आतंकवादी खतरों से निपटने के लिए सबसे एक व्यापक राष्ट्रीय अभियान चलाने की जरूरत है जिसमें हर नागरिक को शामिल किया जाए। कलाम ने कहा कि इसके बाद देश के अंदर और बाहर स्थित आतंकवादी ठिकानों पर छापा मारकर उन्हें नष्ट किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश के अंदर और बाहर स्थित आतंकवादी ठिकानों को ध्वस्त कर आतंक को खत्म किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के सूत्रधारों को दंड देने के लिए ऐसे मामलों को तुरंत निपटाए जाने की जरूरत है। हमीरपुर में कई स्कूलों के स्टूडंट्स के साथ बातचीत में पूर्व राष्ट्रपति ने आतंकवाद के खतरे से लेकर निजी जिंदगी के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब दिए। कलाम यहां एनआईटी, हमीरपुर के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लेने आए थे।

सेक्स के बारे में संगोष्ठी

मुंबई विश्वविद्यालय में सेक्स के बारे में संगोष्ठी
With an aim to increase awareness on 'sexual harassment' act in work place and also on the increasing the misuse of 'sexual harassment' act in educational institutions, the University of Mumbai has begun conducting various workshops for its administrative staff as well as faculty. Under the vice-chancellor's directive and on Vishaka guidelines of Apex Court, the university has made different modules for faculty as well as for the administrative staff and other karmacharis at its Women Development Cell, said its chairperson Kranti Jejurkar. Gender equity and gender sensitization are some of the main issues that they take up in these workshops, she said at the two-day National seminar on `Gender and Caste: Interface and issues' which concluded here yesterday. Since it has become mandatory to follow the Vishaka guidelines in work places, they are also imparted through NSS, Language forum and other associations within the university structure. "We make sure committees are constituted in the different institutions in such a way they are able to make their cases acceptable to the court," Jejurkar said adding this was necessary since in some cases, the committees could not argue the case in favour of the harassed person