केंद्र सरकार खुदकुशी की कोशिश को अपराध की
कैटिगरी से बाहर करने जा रही है। इसके लिए आईपीसी में बदलाव की प्रक्रिया शुरू हो
चुकी है। ऐसा करने के लिए सरकार आईपीसी की धारा 309 को खत्म करने जा रही है। यह सूचना गृह मंत्रालय ने संसद को
भी दे दी है।
हाल ही में लॉ कमिशन की एक रिपोर्ट में ऐसी सिफारिश की गई थी। 'ह्यूमनाइजेशन ऐंड डिक्रिमिनलाइजेशन ऑफ सूइसाइड' नाम की इस रिपोर्ट में माना गया था कि खुदकुशी की कोशिश करने वाला व्यक्ति किसी मजबूरी के तहत ही ऐसा करता है इसलिए इसे अपराध मानना ठीक नहीं होगा। इस सिफारिश को मानते हुए सरकार ने खुदकुशी को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला किया है। अभी आईपीसी की धारा 309 के मुताबिक आत्महत्या की कोशिश कानून की नजर में दंडनीय अपराध है। इसके लिए कम से कम एक साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
मंगलवार को गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने लोकसभा में कहा कि इस मुद्दे पर विचार विमर्श जारी है। रिजिजु ने सदन को बताया कि भारत के विधि आयोग ने 'ह्यूमनाइजेशन ऐंड डिक्रिमिनलाइजेशन ऑफ सूइसाइड' नाम की 210 पन्नों की रिपोर्ट में सिफारिश की है कि आईपीसी की धारा 309 को कानून के दायरे से हटा देना चाहिए। दरसअल, इस धारा को हटाने की सिफारिश के पीछे दलील है कि यह कानून बेहद अमानवीय है। अपने जवाब में रिजिजु ने कहा कि गृह मंत्रालय विधि आयोग की इस सिफारिश पर अमल करने पर विचार कर रहा है। उन्होंने बताया कि मंत्रालय आईपीसी व सीआरपीसी की कुछ और धाराओं में संशोधन पर भी विचार कर रहा है।
2011 के एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इस कानून को अमान्य करने पर विचार करने के लिए कहा था, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री की 2007 की एक रिपोर्ट में, चेन्नई में स्नेहा नाम का आत्महत्या बचाव नेटवर्क चलाने वाली लक्ष्मी विजय कुमार ने कहा आत्महत्या को अवैध बनाना प्रतिकूल साबित हुआ है। उन्होंने लिखा, 'कई अस्पतालों में आत्महत्या की कोशिश करने वालों को आपातकालीन चिकित्सा देने से इनकार कर दिया जाता है, कानूनी परेशानियों से डरे डॉक्टर जरूरी उपचार देने से हिचकिचाते हैं। आत्महत्या की कोशिशों के वास्तविक आंकड़ों का पता लगाना कठिन है क्योंकि पुलिस और कानूनी दांव-पेचों से बचने के लिए इस तरह के कई कोशिशों को हादसा कहकर टाल दिया जाता है।'
हाल ही में लॉ कमिशन की एक रिपोर्ट में ऐसी सिफारिश की गई थी। 'ह्यूमनाइजेशन ऐंड डिक्रिमिनलाइजेशन ऑफ सूइसाइड' नाम की इस रिपोर्ट में माना गया था कि खुदकुशी की कोशिश करने वाला व्यक्ति किसी मजबूरी के तहत ही ऐसा करता है इसलिए इसे अपराध मानना ठीक नहीं होगा। इस सिफारिश को मानते हुए सरकार ने खुदकुशी को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला किया है। अभी आईपीसी की धारा 309 के मुताबिक आत्महत्या की कोशिश कानून की नजर में दंडनीय अपराध है। इसके लिए कम से कम एक साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
मंगलवार को गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजु ने लोकसभा में कहा कि इस मुद्दे पर विचार विमर्श जारी है। रिजिजु ने सदन को बताया कि भारत के विधि आयोग ने 'ह्यूमनाइजेशन ऐंड डिक्रिमिनलाइजेशन ऑफ सूइसाइड' नाम की 210 पन्नों की रिपोर्ट में सिफारिश की है कि आईपीसी की धारा 309 को कानून के दायरे से हटा देना चाहिए। दरसअल, इस धारा को हटाने की सिफारिश के पीछे दलील है कि यह कानून बेहद अमानवीय है। अपने जवाब में रिजिजु ने कहा कि गृह मंत्रालय विधि आयोग की इस सिफारिश पर अमल करने पर विचार कर रहा है। उन्होंने बताया कि मंत्रालय आईपीसी व सीआरपीसी की कुछ और धाराओं में संशोधन पर भी विचार कर रहा है।
2011 के एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने संसद को इस कानून को अमान्य करने पर विचार करने के लिए कहा था, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। इंडियन जर्नल ऑफ साइकेट्री की 2007 की एक रिपोर्ट में, चेन्नई में स्नेहा नाम का आत्महत्या बचाव नेटवर्क चलाने वाली लक्ष्मी विजय कुमार ने कहा आत्महत्या को अवैध बनाना प्रतिकूल साबित हुआ है। उन्होंने लिखा, 'कई अस्पतालों में आत्महत्या की कोशिश करने वालों को आपातकालीन चिकित्सा देने से इनकार कर दिया जाता है, कानूनी परेशानियों से डरे डॉक्टर जरूरी उपचार देने से हिचकिचाते हैं। आत्महत्या की कोशिशों के वास्तविक आंकड़ों का पता लगाना कठिन है क्योंकि पुलिस और कानूनी दांव-पेचों से बचने के लिए इस तरह के कई कोशिशों को हादसा कहकर टाल दिया जाता है।'
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