देश को आजाद कराने का सेहरा किसी एक शख्स के
सिर नहीं बंधा। इस ऐतिहासिक कहानी में कई नायक हैं। हर स्वतंत्रता सेनानी का
अपना-अपना योगदान रहा है। कुछ चेहरे ऐसे भी हैं जो आजादी के बाद मिली सत्ता को
संवारने के दौरान चमके। ऐसे महापुरुषों,
स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं के योगदान को सदा जिंदा रखने की
दिशा में सरकार की तरफ से उनके जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर विज्ञापनों के जरिए
श्रद्धांजलि दी जाती है। अगर इन विज्ञापनों पर पिछले पांच साल का खर्च देखा जाए तो
महात्मा गांधी के बाद सिर्फ राजीव गांधी ही ऐसे नेता हैं जिनके जन्मदिवस और
पुण्यतिथि पर उस वक्त की सरकार की ओर से दिल खोलकर खर्च किया गया। बाकी नेताओं में
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही ऐसे हैं, जिनके योगदान को सबसे कम
खर्च के साथ इन दो खास मौकों पर याद किया गया।
सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णकांत सिंह द्वारा दाखिल आरटीआई में यह खुलासा हुआ। कार्यकर्ता ने सूचना अधिकारी से पिछले 10 सालों में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न महापुरुषों और नेताओं के जन्मदिवस और पुण्यतिथियों पर जारी किए गए विज्ञापनों पर खर्च का ब्योरा मांगा था। जवाब में सूचना एवं प्रसारण विभाग के अधीनस्थ विभाग डीएवीपी ने साल 2008 से 2013 की जानकारी देते हुए कहा कि इससे पहले की जानकारी उनके पास उपलब्ध नहीं है।
इसके मुताबिक तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा सबसे ज्यादा खर्च महात्मा गांधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर किया गया। इन पांच सालों में तत्कालीन केंद्र सरकार ने राष्ट्रपिता के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर लगभग 35,52,13,725 रुपये खर्च किए। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही ऐसे नेता रहे जिन्हें श्रद्धांजलि के तौर पर खर्च के जरिए राष्ट्रपिता के बराबर का दर्जा और सम्मान दिया गया। इतना ही नहीं, सबसे ज्यादा योजनाएं भी राजीव गांधी के नाम पर चल रही हैं। 20 अगस्त को उनके जन्मदिवस पर सद्भावना दिवस और अक्षय ऊर्जा दिवस व पुण्यतिथि को बलिदान दिवस और आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इन दोनों के अलावा इंदिरा गांधी के रूप में एक और गांधी ऐसी हैं जिनके विज्ञापनों पर सरकार की तरफ से पिछले पांच सालों के दौरान करीब 18,14,27,224 रुपये खर्च किए गए। वहीं खर्च के मामले में सबसे कम रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। 23 जनवरी को मनाई जाने वाली उनकी जयंती में पिछले पांच सालों के दौरान महज 50,02,120 रुपये ही खर्च किए गए। हालांकि तत्कालीन सरकार को भगत सिंह जरूर याद आए और उसने 9,36,83,361 रुपये खर्च कर दिए।
तत्कालीन सरकार को ये महापुरुष तो फिर भी याद रहे, लेकिन आचार्य बिनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को वह शायद पूरी तरह भूल गई और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और मोरारजी देसाई को शायद इस श्रेणी में गिनती ही नहीं।
सामाजिक कार्यकर्ता कृष्णकांत सिंह द्वारा दाखिल आरटीआई में यह खुलासा हुआ। कार्यकर्ता ने सूचना अधिकारी से पिछले 10 सालों में केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न महापुरुषों और नेताओं के जन्मदिवस और पुण्यतिथियों पर जारी किए गए विज्ञापनों पर खर्च का ब्योरा मांगा था। जवाब में सूचना एवं प्रसारण विभाग के अधीनस्थ विभाग डीएवीपी ने साल 2008 से 2013 की जानकारी देते हुए कहा कि इससे पहले की जानकारी उनके पास उपलब्ध नहीं है।
इसके मुताबिक तत्कालीन यूपीए सरकार द्वारा सबसे ज्यादा खर्च महात्मा गांधी के जन्मदिन और पुण्यतिथि पर किया गया। इन पांच सालों में तत्कालीन केंद्र सरकार ने राष्ट्रपिता के जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर लगभग 35,52,13,725 रुपये खर्च किए। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही ऐसे नेता रहे जिन्हें श्रद्धांजलि के तौर पर खर्च के जरिए राष्ट्रपिता के बराबर का दर्जा और सम्मान दिया गया। इतना ही नहीं, सबसे ज्यादा योजनाएं भी राजीव गांधी के नाम पर चल रही हैं। 20 अगस्त को उनके जन्मदिवस पर सद्भावना दिवस और अक्षय ऊर्जा दिवस व पुण्यतिथि को बलिदान दिवस और आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इन दोनों के अलावा इंदिरा गांधी के रूप में एक और गांधी ऐसी हैं जिनके विज्ञापनों पर सरकार की तरफ से पिछले पांच सालों के दौरान करीब 18,14,27,224 रुपये खर्च किए गए। वहीं खर्च के मामले में सबसे कम रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। 23 जनवरी को मनाई जाने वाली उनकी जयंती में पिछले पांच सालों के दौरान महज 50,02,120 रुपये ही खर्च किए गए। हालांकि तत्कालीन सरकार को भगत सिंह जरूर याद आए और उसने 9,36,83,361 रुपये खर्च कर दिए।
तत्कालीन सरकार को ये महापुरुष तो फिर भी याद रहे, लेकिन आचार्य बिनोवा भावे, जयप्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को वह शायद पूरी तरह भूल गई और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और मोरारजी देसाई को शायद इस श्रेणी में गिनती ही नहीं।
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