प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 68वें स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर
से दिया गया भाषण कई मायनों में यादगार रहा। मोदी के संबोधन की खास बात यह रही कि
उन्होंने बिना किसी सुरक्षा ढाल के बेखौफ अंदाज में पूरी देश दुनिया के सामने अपनी
बात रखी। आमतौर पर पहले से तैयार भाषण को पढ़ने की परंपरा से हटते हुए मोदी ने
धाराप्रवाह भाषण दिया। ट्विटर पर मोदी का यह भाषण छाया हुआ है। मोदी के प्रधान
सेवक, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया
जैसे शब्द ट्विटर पर टॉप ट्रेंड्स में हैं।
नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से करीब एक घंटा 6 मिनट तक भाषण दिया। मोदी का भाषण लोगों के साथ संवाद की शैली में था। इसमें उन्होंने मुस्कुराते हुए 'चायवाले' का जिक्र किया, तो वह 15 अगस्त जैसे बड़े मौके पर इस शैली में भाषण देने की विपक्ष द्वारा संभावित आलोचना को लेकर भी सतर्क दिखे। पढ़िए मोदी के भाषण के टॉप 20 कोट्स
1-'मैं नहीं जानता हूं मेरी कैसी आलोचना होगी'
अपने भाषण में सफाई और महिलाओं के खुले में शौच जैसे विषयों को उठाने के बाद मोदी ने कहा, 'किसी को लगेगा 15 अगस्त का इतना बड़ा मौका है। लाल किले से सफाई की बात करना, लाल किले से टॉइलेट की बात करना, यह कैसा प्रधानमंत्री है... मैं नहीं जानता हूं मेरी कैसी आलोचना होगी, लेकिन मैं ये सब बातें मन से मानता हूं। मैं गरीब परिवार से आया हूं। मैंने गरीबी देखी है। और गरीब को इज्जत मिले, इसकी शुरुआत यहां से होती है।'
2-'चायवाले की बात पर अपनापन महसूस होता है'
बचपन में स्टेशन पर चाय बेच चुके मोदी ने अपने भाषण में चायवाले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब कभी चायवाले की बात होती है तो उन्हें अपनापन महसूस होता है। मोदी ने पर्यटन को बढ़ावा देने और इससे रोजगार की अपार संभावनाओं का जिक्र करते हुए कहा, 'हम पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते हैं। पर्यटन से गरीब से गरीब आदमी को रोजगार मिलता है। इससे पकौड़े बेचने वाला कमाता है, चना बेचने वाला कमाता है, चाय बेचने वाला कमाता है। जब कभी चाय बेचने वाली बात होती है तो मुझे जरा अपनापन महसूस होता है।'
3-'मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं'
गुजरात के करीब साढ़े बारह वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद प्रधानमंत्री पद की बागडोर संभालने वाले नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वह दिल्ली के लिए आउटसाइडर हैं और दिल्ली की दुनिया के इंसान नहीं हैं। मोदी ने कहा, 'मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर हूं। मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं हूं। मैं यहां के कामकाज को नहीं जानता। मैं यहां की एलीट क्लास से बहुत अछूता रहा हूं। लेकिन एक बाहर के व्यक्ति ने, एक आउटसाइडर ने दिल्ली आ करके पिछले दो महीने में एक इनसाइडर व्यू लिया, तो मैं चौंक गया। मोदी ने कहा कि उनकी इस बात को राजनीति के तराजू से ना तौला जाए।
4-'यह लोकतंत्र की ताकत है'
'एक छोटे से नगर के गरीब परिवार के एक बालक ने आज लाल किले की प्राचीर पर भारत के तिरंगे झंडे के सामने सिर झुकाने का सौभाग्य प्राप्त किया। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है, यह भारत के संविधान रचयिताओं की हमें दी हुई अनमोल सौगात है। मैं भारत के संविधान के निर्माताओं को इस पर नमन करता हूं।'
5-'होती है', 'चलती है', से देश नहीं चल सकता
देश में सरकारी अफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह कोई न्यूज़ होती है क्या? और अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितने नीचे गए हैं, कितने गिरे हैं, इसका वह सबूत बन जाती है और इसलिए भाइयो-बहनो, सरकारें कैसे चली हैं? आज वैश्विक स्पर्धा में कोटि-कोटि भारतीयों के सपनों को साकार करना होगा तो यह 'होती है', 'चलती है', से देश नहीं चल सकता।
6-'मेरा क्या' और 'मुझे क्या',
आज देश में एक ऐसा माहौल बना हुआ है कि किसी के पास कोई भी काम लेकर जाओ, तो कहता है, 'इसमें मेरा क्या?' वहीं से शुरू करता है, 'इसमें मेरा क्या' और जब उसको पता चलेगा कि इसमें उसका कुछ नहीं है, तो तुरंत बोलता है, 'तो फिर मुझे क्या?' 'ये मेरा क्या' और 'मुझे क्या', इस दायरे से हमें बाहर आना है। हर चीज़ अपने लिए नहीं होती है। कुछ चीज़ें देश के लिए भी हुआ करती हैं।
7-'कभी बेटों से भी पूछो'
आज इस मंच से मैं उन माताओं और उनके पिताओं से पूछना चाहता हूं, हर मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और बाप चौकन्ने रहते हैं, हर बात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी, पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं, लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो? अगर हर मां-बाप तय करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डाल करके देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।
8-'कंधे पर हल रखकर भी देखो'
कंधे पर बंदूक ले करके आप (नक्सलियों को) धरती को लाल तो कर सकते हो, लेकिन कभी सोचो, अगर कंधे पर हल होगा, तो धरती पर हरियाली होगी, कितनी प्यारी लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करते रहेंगे? और हमने पाया क्या है? हिंसा के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है।
9- 'जातिवाद और संप्रदायवाद'
आज़ादी के बाद भी कभी जातिवाद का ज़हर, कभी सम्पद्रायवाद का ज़हर, ये पापाचार कब तक चलेगा? किसका भला होता है? बहुत लड़ लिया, बहुत लोगों को काट लिया, बहुत लोगों को मार दिया। एक बार पीछे मुड़कर देखिए, किसी ने कुछ नहीं पाया है। सिवाय भारत मां के अंगों पर दाग लगाने के हमने कुछ नहीं किया है और इसलिए, मैं देश के उन लोगों का आह्वान करता हूं कि जातिवाद का ज़हर हो, सम्प्रदायवाद का ज़हर हो, आतंकवाद का ज़हर हो, ऊंच-नीच का भाव हो, यह देश को आगे बढ़ाने में रुकावट है।
10- 'बेटी को मां-बाप के लिए जीवन खपाते देखा है'
मैं सामाजिक जीवन में काम करने वाला इंसान हूं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पांच बेटे हों, पांचों के पास बंगले हों, घर में दस-दस गाड़ियां हों, लेकिन बूढ़े मां-बाप ओल्ड एज होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं। मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह बेटी अपने सपनों की बलि चढ़ाती है, शादी नहीं करती और बूढ़े मां-बाप की सेवा के लिए अपने जीवन को खपा देती है।
11-'सरकारी नौकरी सेवा है'
मैं जब गुड गवर्नेंस की बात करता हूं, तब आप मुझे बताइए कि कोई प्राइवेट में नौकरी करता है, अगर आप उसको पूछोगे, तो वह कहता है कि मैं जॉब करता हूं। लेकिन जो सरकार में नौकरी करता है, उसको पूछोगे, तो वह कहता है कि मैं सर्विस करता हूं। दोनों कमाते हैं, लेकिन एक के लिए जॉब है और एक के लिए सर्विस है। मैं सरकारी सेवा में लगे सभी भाइयों और बहनों से प्रश्न पूछता हूं कि क्या कहीं यह 'सर्विस' शब्द, उसने अपनी ताकत खो तो नहीं दी है, अपनी पहचान खो तो नहीं दी है? सरकारी सेवा में जुड़े हुए लोग 'जॉब' नहीं कर रहे हैं, 'सेवा' कर रहे हैं, 'सर्विस' कर रहे हैं।
12-'कम, मेक इन इंडिया'
आज लाल किले की प्राचीर से विश्व भर में लोगों से कहना चाहता हूं, 'कम, मेक इन इंडिया', 'आइए, हिन्दुस्तान में निर्माण कीजिए।' दुनिया के किसी भी देश में जाकर बेचिए, लेकिन निर्माण यहां कीजिए, उत्पादन यहां कीजिए।
13-'जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट'
भारत दुनिया में एक्सपोर्ट करने वाला देश बन सकता है और इसलिए मेरा आग्रह है, नौजवानों से विशेष करके, छोटे-मोटे उद्योगकारों से - दो बातों में समझौता न करें, एक ज़ीरो डिफेक्ट, दूसरा ज़ीरो इफेक्ट। हम वह बनाएं, जिसमें ज़ीरो डिफेक्ट हो, ताकि दुनिया के बाज़ार से वह कभी वापस न आए और हम वह बनाएं, जिससे ज़ीरो इफेक्ट हो, पर्यावरण पर इसका कोई नेगेटिव इफेक्ट न हो।
14- आईटी प्रफेशनल्स ने बनाई नई पहचान
25-30 साल पहले तक दुनिया के कई कोने ऐसे थे जो हिन्दुस्तान के लिए यही सोचते थे कि ये तो 'सपेरों का देश' है। ये सांप का खेल करने वाला देश है, काले जादू वाला देश है। भारत की सच्ची पहचान दुनिया तक पहुंची नहीं थी, लेकिन हमारे 20-22-23 साल के नौजवान, जिन्होंने कंप्यूटर पर अंगुलियां घुमाते-घुमाते दुनिया को चकित कर दिया। विश्व में भारत की एक नई पहचान बनाने का रास्ता हमारे आईटी प्रफेशन के नौजवानों ने कर दिया।
15- 'डिजिटल इंडिया'
हमें 'डिजिटल इंडिया' की ओर जाना है। और 'डिजिटल इंडिया' की तरफ जाना है, तो इसके साथ हमारा यह भी सपना है, हम आज बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से इलेक्ट्रॉनिक गुड्स इम्पोर्ट करते हैं। देश के लिए पेट्रोलियम पदार्थों को लाना अनिवार्य है, डीज़ल और पेट्रोल लाते हैं, तेल लाते हैं। उसके बाद इम्पोर्ट में दूसरे नंबर पर हमारी इलेक्ट्रॉनिक गुड्स हैं। अगर हम 'डिजिटल इंडिया' का सपना ले करके इलेक्ट्रॉनिक गुडस के निर्माण के लिए चल पड़ें तो देश की तिजोरी को बड़ा लाभ हो सकता है।
16- 'महिलाएं शौच के लिए अंधेरे का इंतजार करती हैं'
क्या कभी हमारे मन को पीड़ा हुई कि आज भी हमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है? बेचारी गांव की मां-बहनें अंधेरे का इंतजार करती हैं, जब तक अंधेरा नहीं आता है, वे शौच के लिए नहीं जा पाती हैं। उसके शरीर को कितनी पीड़ा होती होगी, कितनी बीमारियों की जड़ें उसमें से शुरू होती होंगी! क्या हमारी मां-बहनों की इज्जत के लिए हम कम-से-कम शौचालय का प्रबंध नहीं कर सकते हैं?
17-प्लानिंग कमिशन को नया रंग-रूप
अब प्लानिंग कमिशन के नए रंग-रूप से सोचना पड़ेगा। इसलिए लाल किले की इस प्राचीर से एक बहुत बड़ी चली आ रही पुरानी व्यवस्था में उसका कायाकल्प भी करने की जरूरत है, उसमें बहुत बदलाव करने की आवश्यकता है। कभी-कभी पुराने घर की रिपेयरिंग में खर्चा ज्यादा होता है लेकिन संतोष नहीं होता है। फिर मन करता है, अच्छा है, एक नया ही घर बना लें और इसलिए बहुत ही कम समय के भीतर योजना आयोग के स्थान पर नए रंग-रूप के साथ, नए शरीर, नई आत्मा के साथ, नई सोच के साथ एक नए इंस्टिट्यूशन का हम निर्माण करेंगे।
18-'मैं प्रधान सेवक हूं'
आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं मेरी सरकार के साथियों को भी कहता हूं, अगर आप 12 घंटे काम करोगे, तो मैं 13 घंटे करूंगा। अगर आप 14 घंटे कर्म करोगे, तो मैं 15 घंटे करूंगा। क्यों? क्योंकि मैं प्रधान मंत्री नहीं, प्रधान सेवक के रूप में आपके बीच आया हूं।
19-'आदर्श गांव बनाएं सांसद'
आज सांसद के नाम पर एक योजना घोषित करता हूं - 'सांसद आदर्श ग्राम योजना।' मैं सांसदों से आग्रह करता हूं कि वे अपने इलाके में तीन हजार से पांच हजार के बीच का कोई भी गांव पसंद कर लें। हर सांसद 2016 तक अपने इलाके में एक गांव को आदर्श गांव बनाए। इतना तो कर सकते हैं न भाई! करना चाहिए न! देश बनाना है तो गांव से शुरू करें। 2016 के बाद, जब 2019 में वह चुनाव के लिए जाए, उसके पहले और दो गांवों को करे और 2019 के बाद हर सांसद 5 साल के कार्यकाल में कम से कम 5 आदर्श गांव अपने इलाके में बनाए।
20-काफिला रुकवाकर बच्चों से मिले मोदी
मोदी लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह स्थल से रवाना होते समय अपनी कार से उतरे और एसपीजी सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए समारोह स्थल पर आए स्कूली बच्चों के समूह से मिलने पहुंचे। प्रधानमंत्री के पास छात्रों से मिलने का बहुत कम समय था, लेकिन समारोह स्थल पर उनसे हाथ नहीं मिला पाए छात्र भी उन्हें करीबी से देखकर ही खुश थे।
नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से करीब एक घंटा 6 मिनट तक भाषण दिया। मोदी का भाषण लोगों के साथ संवाद की शैली में था। इसमें उन्होंने मुस्कुराते हुए 'चायवाले' का जिक्र किया, तो वह 15 अगस्त जैसे बड़े मौके पर इस शैली में भाषण देने की विपक्ष द्वारा संभावित आलोचना को लेकर भी सतर्क दिखे। पढ़िए मोदी के भाषण के टॉप 20 कोट्स
1-'मैं नहीं जानता हूं मेरी कैसी आलोचना होगी'
अपने भाषण में सफाई और महिलाओं के खुले में शौच जैसे विषयों को उठाने के बाद मोदी ने कहा, 'किसी को लगेगा 15 अगस्त का इतना बड़ा मौका है। लाल किले से सफाई की बात करना, लाल किले से टॉइलेट की बात करना, यह कैसा प्रधानमंत्री है... मैं नहीं जानता हूं मेरी कैसी आलोचना होगी, लेकिन मैं ये सब बातें मन से मानता हूं। मैं गरीब परिवार से आया हूं। मैंने गरीबी देखी है। और गरीब को इज्जत मिले, इसकी शुरुआत यहां से होती है।'
2-'चायवाले की बात पर अपनापन महसूस होता है'
बचपन में स्टेशन पर चाय बेच चुके मोदी ने अपने भाषण में चायवाले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब कभी चायवाले की बात होती है तो उन्हें अपनापन महसूस होता है। मोदी ने पर्यटन को बढ़ावा देने और इससे रोजगार की अपार संभावनाओं का जिक्र करते हुए कहा, 'हम पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते हैं। पर्यटन से गरीब से गरीब आदमी को रोजगार मिलता है। इससे पकौड़े बेचने वाला कमाता है, चना बेचने वाला कमाता है, चाय बेचने वाला कमाता है। जब कभी चाय बेचने वाली बात होती है तो मुझे जरा अपनापन महसूस होता है।'
3-'मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं'
गुजरात के करीब साढ़े बारह वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के बाद प्रधानमंत्री पद की बागडोर संभालने वाले नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि वह दिल्ली के लिए आउटसाइडर हैं और दिल्ली की दुनिया के इंसान नहीं हैं। मोदी ने कहा, 'मैं दिल्ली के लिए आउटसाइडर हूं। मैं दिल्ली की दुनिया का इंसान नहीं हूं। मैं यहां के कामकाज को नहीं जानता। मैं यहां की एलीट क्लास से बहुत अछूता रहा हूं। लेकिन एक बाहर के व्यक्ति ने, एक आउटसाइडर ने दिल्ली आ करके पिछले दो महीने में एक इनसाइडर व्यू लिया, तो मैं चौंक गया। मोदी ने कहा कि उनकी इस बात को राजनीति के तराजू से ना तौला जाए।
4-'यह लोकतंत्र की ताकत है'
'एक छोटे से नगर के गरीब परिवार के एक बालक ने आज लाल किले की प्राचीर पर भारत के तिरंगे झंडे के सामने सिर झुकाने का सौभाग्य प्राप्त किया। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत है, यह भारत के संविधान रचयिताओं की हमें दी हुई अनमोल सौगात है। मैं भारत के संविधान के निर्माताओं को इस पर नमन करता हूं।'
5-'होती है', 'चलती है', से देश नहीं चल सकता
देश में सरकारी अफसर समय पर दफ्तर जाएं, यह कोई न्यूज़ होती है क्या? और अगर वह न्यूज़ बनती है, तो हम कितने नीचे गए हैं, कितने गिरे हैं, इसका वह सबूत बन जाती है और इसलिए भाइयो-बहनो, सरकारें कैसे चली हैं? आज वैश्विक स्पर्धा में कोटि-कोटि भारतीयों के सपनों को साकार करना होगा तो यह 'होती है', 'चलती है', से देश नहीं चल सकता।
6-'मेरा क्या' और 'मुझे क्या',
आज देश में एक ऐसा माहौल बना हुआ है कि किसी के पास कोई भी काम लेकर जाओ, तो कहता है, 'इसमें मेरा क्या?' वहीं से शुरू करता है, 'इसमें मेरा क्या' और जब उसको पता चलेगा कि इसमें उसका कुछ नहीं है, तो तुरंत बोलता है, 'तो फिर मुझे क्या?' 'ये मेरा क्या' और 'मुझे क्या', इस दायरे से हमें बाहर आना है। हर चीज़ अपने लिए नहीं होती है। कुछ चीज़ें देश के लिए भी हुआ करती हैं।
7-'कभी बेटों से भी पूछो'
आज इस मंच से मैं उन माताओं और उनके पिताओं से पूछना चाहता हूं, हर मां-बाप से पूछना चाहता हूं कि आपके घर में बेटी 10 साल की होती है, 12 साल की होती है, मां और बाप चौकन्ने रहते हैं, हर बात पूछते हैं कि कहां जा रही हो, कब आओगी, पहुंचने के बाद फोन करना। बेटी को तो सैकड़ों सवाल मां-बाप पूछते हैं, लेकिन क्या कभी मां-बाप ने अपने बेटे को पूछने की हिम्मत की है कि कहां जा रहे हो, क्यों जा रहे हो, कौन दोस्त है? आखिर बलात्कार करने वाला किसी न किसी का बेटा तो है। उसके भी तो कोई न कोई मां-बाप हैं। क्या मां-बाप के नाते, हमने अपने बेटे को पूछा कि तुम क्या कर रहे हो, कहां जा रहे हो? अगर हर मां-बाप तय करे कि हमने बेटियों पर जितने बंधन डाले हैं, कभी बेटों पर भी डाल करके देखो तो सही, उसे कभी पूछो तो सही।
8-'कंधे पर हल रखकर भी देखो'
कंधे पर बंदूक ले करके आप (नक्सलियों को) धरती को लाल तो कर सकते हो, लेकिन कभी सोचो, अगर कंधे पर हल होगा, तो धरती पर हरियाली होगी, कितनी प्यारी लगेगी। कब तक हम इस धरती को लहूलुहान करते रहेंगे? और हमने पाया क्या है? हिंसा के रास्ते ने हमें कुछ नहीं दिया है।
9- 'जातिवाद और संप्रदायवाद'
आज़ादी के बाद भी कभी जातिवाद का ज़हर, कभी सम्पद्रायवाद का ज़हर, ये पापाचार कब तक चलेगा? किसका भला होता है? बहुत लड़ लिया, बहुत लोगों को काट लिया, बहुत लोगों को मार दिया। एक बार पीछे मुड़कर देखिए, किसी ने कुछ नहीं पाया है। सिवाय भारत मां के अंगों पर दाग लगाने के हमने कुछ नहीं किया है और इसलिए, मैं देश के उन लोगों का आह्वान करता हूं कि जातिवाद का ज़हर हो, सम्प्रदायवाद का ज़हर हो, आतंकवाद का ज़हर हो, ऊंच-नीच का भाव हो, यह देश को आगे बढ़ाने में रुकावट है।
10- 'बेटी को मां-बाप के लिए जीवन खपाते देखा है'
मैं सामाजिक जीवन में काम करने वाला इंसान हूं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं कि पांच बेटे हों, पांचों के पास बंगले हों, घर में दस-दस गाड़ियां हों, लेकिन बूढ़े मां-बाप ओल्ड एज होम में रहते हैं, वृद्धाश्रम में रहते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखे हैं। मैंने ऐसे परिवार भी देखे हैं, जहाँ संतान के रूप में अकेली बेटी हो, वह बेटी अपने सपनों की बलि चढ़ाती है, शादी नहीं करती और बूढ़े मां-बाप की सेवा के लिए अपने जीवन को खपा देती है।
11-'सरकारी नौकरी सेवा है'
मैं जब गुड गवर्नेंस की बात करता हूं, तब आप मुझे बताइए कि कोई प्राइवेट में नौकरी करता है, अगर आप उसको पूछोगे, तो वह कहता है कि मैं जॉब करता हूं। लेकिन जो सरकार में नौकरी करता है, उसको पूछोगे, तो वह कहता है कि मैं सर्विस करता हूं। दोनों कमाते हैं, लेकिन एक के लिए जॉब है और एक के लिए सर्विस है। मैं सरकारी सेवा में लगे सभी भाइयों और बहनों से प्रश्न पूछता हूं कि क्या कहीं यह 'सर्विस' शब्द, उसने अपनी ताकत खो तो नहीं दी है, अपनी पहचान खो तो नहीं दी है? सरकारी सेवा में जुड़े हुए लोग 'जॉब' नहीं कर रहे हैं, 'सेवा' कर रहे हैं, 'सर्विस' कर रहे हैं।
12-'कम, मेक इन इंडिया'
आज लाल किले की प्राचीर से विश्व भर में लोगों से कहना चाहता हूं, 'कम, मेक इन इंडिया', 'आइए, हिन्दुस्तान में निर्माण कीजिए।' दुनिया के किसी भी देश में जाकर बेचिए, लेकिन निर्माण यहां कीजिए, उत्पादन यहां कीजिए।
13-'जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट'
भारत दुनिया में एक्सपोर्ट करने वाला देश बन सकता है और इसलिए मेरा आग्रह है, नौजवानों से विशेष करके, छोटे-मोटे उद्योगकारों से - दो बातों में समझौता न करें, एक ज़ीरो डिफेक्ट, दूसरा ज़ीरो इफेक्ट। हम वह बनाएं, जिसमें ज़ीरो डिफेक्ट हो, ताकि दुनिया के बाज़ार से वह कभी वापस न आए और हम वह बनाएं, जिससे ज़ीरो इफेक्ट हो, पर्यावरण पर इसका कोई नेगेटिव इफेक्ट न हो।
14- आईटी प्रफेशनल्स ने बनाई नई पहचान
25-30 साल पहले तक दुनिया के कई कोने ऐसे थे जो हिन्दुस्तान के लिए यही सोचते थे कि ये तो 'सपेरों का देश' है। ये सांप का खेल करने वाला देश है, काले जादू वाला देश है। भारत की सच्ची पहचान दुनिया तक पहुंची नहीं थी, लेकिन हमारे 20-22-23 साल के नौजवान, जिन्होंने कंप्यूटर पर अंगुलियां घुमाते-घुमाते दुनिया को चकित कर दिया। विश्व में भारत की एक नई पहचान बनाने का रास्ता हमारे आईटी प्रफेशन के नौजवानों ने कर दिया।
15- 'डिजिटल इंडिया'
हमें 'डिजिटल इंडिया' की ओर जाना है। और 'डिजिटल इंडिया' की तरफ जाना है, तो इसके साथ हमारा यह भी सपना है, हम आज बहुत बड़ी मात्रा में विदेशों से इलेक्ट्रॉनिक गुड्स इम्पोर्ट करते हैं। देश के लिए पेट्रोलियम पदार्थों को लाना अनिवार्य है, डीज़ल और पेट्रोल लाते हैं, तेल लाते हैं। उसके बाद इम्पोर्ट में दूसरे नंबर पर हमारी इलेक्ट्रॉनिक गुड्स हैं। अगर हम 'डिजिटल इंडिया' का सपना ले करके इलेक्ट्रॉनिक गुडस के निर्माण के लिए चल पड़ें तो देश की तिजोरी को बड़ा लाभ हो सकता है।
16- 'महिलाएं शौच के लिए अंधेरे का इंतजार करती हैं'
क्या कभी हमारे मन को पीड़ा हुई कि आज भी हमारी माताओं और बहनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है? बेचारी गांव की मां-बहनें अंधेरे का इंतजार करती हैं, जब तक अंधेरा नहीं आता है, वे शौच के लिए नहीं जा पाती हैं। उसके शरीर को कितनी पीड़ा होती होगी, कितनी बीमारियों की जड़ें उसमें से शुरू होती होंगी! क्या हमारी मां-बहनों की इज्जत के लिए हम कम-से-कम शौचालय का प्रबंध नहीं कर सकते हैं?
17-प्लानिंग कमिशन को नया रंग-रूप
अब प्लानिंग कमिशन के नए रंग-रूप से सोचना पड़ेगा। इसलिए लाल किले की इस प्राचीर से एक बहुत बड़ी चली आ रही पुरानी व्यवस्था में उसका कायाकल्प भी करने की जरूरत है, उसमें बहुत बदलाव करने की आवश्यकता है। कभी-कभी पुराने घर की रिपेयरिंग में खर्चा ज्यादा होता है लेकिन संतोष नहीं होता है। फिर मन करता है, अच्छा है, एक नया ही घर बना लें और इसलिए बहुत ही कम समय के भीतर योजना आयोग के स्थान पर नए रंग-रूप के साथ, नए शरीर, नई आत्मा के साथ, नई सोच के साथ एक नए इंस्टिट्यूशन का हम निर्माण करेंगे।
18-'मैं प्रधान सेवक हूं'
आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं मेरी सरकार के साथियों को भी कहता हूं, अगर आप 12 घंटे काम करोगे, तो मैं 13 घंटे करूंगा। अगर आप 14 घंटे कर्म करोगे, तो मैं 15 घंटे करूंगा। क्यों? क्योंकि मैं प्रधान मंत्री नहीं, प्रधान सेवक के रूप में आपके बीच आया हूं।
19-'आदर्श गांव बनाएं सांसद'
आज सांसद के नाम पर एक योजना घोषित करता हूं - 'सांसद आदर्श ग्राम योजना।' मैं सांसदों से आग्रह करता हूं कि वे अपने इलाके में तीन हजार से पांच हजार के बीच का कोई भी गांव पसंद कर लें। हर सांसद 2016 तक अपने इलाके में एक गांव को आदर्श गांव बनाए। इतना तो कर सकते हैं न भाई! करना चाहिए न! देश बनाना है तो गांव से शुरू करें। 2016 के बाद, जब 2019 में वह चुनाव के लिए जाए, उसके पहले और दो गांवों को करे और 2019 के बाद हर सांसद 5 साल के कार्यकाल में कम से कम 5 आदर्श गांव अपने इलाके में बनाए।
20-काफिला रुकवाकर बच्चों से मिले मोदी
मोदी लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह स्थल से रवाना होते समय अपनी कार से उतरे और एसपीजी सुरक्षा घेरा तोड़ते हुए समारोह स्थल पर आए स्कूली बच्चों के समूह से मिलने पहुंचे। प्रधानमंत्री के पास छात्रों से मिलने का बहुत कम समय था, लेकिन समारोह स्थल पर उनसे हाथ नहीं मिला पाए छात्र भी उन्हें करीबी से देखकर ही खुश थे।
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