सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में सोमवार को कहा
कि बिन ब्याही मां को उसके बच्चे का लीगल गार्जियन नियुक्त किया जा
सकता है और इसके लिए बच्चे के पिता की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसके साथ ही
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे के पिता की पहचान जाहिर करना मां के लिए जरूरी नहीं
है।
गार्जियनशिप से जुड़े कुछ मामलों में मां के लिए बच्चे के पिता का नाम याचिका में बताना जरूरी नहीं रह गया है। जस्टिस विक्रमजीत सेन ने इस मामले में कहा कि बच्चे के हित में यह जरूरी है कि उसके पिता को नोटिस देने की आवश्यकता से छुटकारा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में एक मां ने बच्चे के लीगल गार्जियन बनने के लिए दायर याचिका में उसके पिता को शामिल किए जाने की कानूनी बाध्यता को चुनौती दी थी जिससे उसने कभी शादी ही नहीं की थी। याचिका में बच्चे की मां ने कहा कि उसके पिता को बच्चे के अस्तित्व के बारे में पता भी नहीं है।
'दी गार्जियन ऐंड वॉर्ड्स ऐक्ट' और 'हिंदू माइनॉरिटी ऐंड गार्जियनशिप ऐक्ट' के तहत बच्चे के लीगल गार्जियन का फैसला करते वक्त उसके पिता की सहमति लेना जरूरी होता है। इस मामले में महिला ने इस प्रावधान को चुनौती दी थी।
गार्जियनशिप से जुड़े कुछ मामलों में मां के लिए बच्चे के पिता का नाम याचिका में बताना जरूरी नहीं रह गया है। जस्टिस विक्रमजीत सेन ने इस मामले में कहा कि बच्चे के हित में यह जरूरी है कि उसके पिता को नोटिस देने की आवश्यकता से छुटकारा दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में एक मां ने बच्चे के लीगल गार्जियन बनने के लिए दायर याचिका में उसके पिता को शामिल किए जाने की कानूनी बाध्यता को चुनौती दी थी जिससे उसने कभी शादी ही नहीं की थी। याचिका में बच्चे की मां ने कहा कि उसके पिता को बच्चे के अस्तित्व के बारे में पता भी नहीं है।
'दी गार्जियन ऐंड वॉर्ड्स ऐक्ट' और 'हिंदू माइनॉरिटी ऐंड गार्जियनशिप ऐक्ट' के तहत बच्चे के लीगल गार्जियन का फैसला करते वक्त उसके पिता की सहमति लेना जरूरी होता है। इस मामले में महिला ने इस प्रावधान को चुनौती दी थी।
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