Thursday, July 16, 2015

दवाओं की कीमत 4000 फीसदी ज्यादा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आवश्यक दवाओं की कीमत के लिए ड्रग प्राइसिंग पॉलिसी पर फिर से गौर करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पॉलिसी को 'असंगत और अतार्किक' बताया है क्योंकि कुछ दवाओं की कीमत तो कुछ राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मूल्यों से 4000 फीसदी ज्यादा है।
जस्टिस टी.एस.ठाकुर की अध्यक्षता में एक बेंच ने रसायन और उर्वरक मंत्रालय से विश्लेषण करने और स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है कि जरूरी दवाओं की कीमत इतनी ज्यादा क्यों रखी गई है? इससे गरीब आदमी वाजिब दाम पर जीवन रक्षी दवाओं को खरीदने से वंचित है।
बेंच ने सरकार से पूछा, 'आपका फॉर्म्युला संगत और तार्किक नहीं लग रहा है। तमिल नाडु और केरल सरकारों द्वारा जिस मूल्य पर दवा उपलब्ध कराई जा रही है, आपका मूल्य उससे 4000 फीसदी ज्यादा है। यह किस तरह का नियंत्रण है?आप इस पर संज्ञान क्यों नहीं ले रहे हैं?''
अडिशनल सलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने अदालत को आश्वासन दिया कि सरकार मामले की छानबीन करेगी और जरूरत पड़ने पर सुधार के लिए कदम उठाएगी।
बेंच ने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) को चुनौती देने वाली एनजीओ ऑल इंडिया ड्रग ऐक्शन नेटवर्क से सरकार को विरोधपत्र देने के लिए कहा है। इसने कहा कि मंत्रालय छह महीने के अंदर तर्कपूर्ण आदेश जारी करेगा।
मौजूदा समय में सरकार सभी दवाओं के साधारण औसत के आधार पर कुल 348 जरूरी दवाओं के मूल्य को नियंत्रित करती है। सरकार ने 1995 के उस नियम के स्थान पर डीपीसीओ, 2013 नोटिफाई किया जो 15 मई 2014 से लागू हुआ। इसके तहत 680 फॉर्म्युलेशंस को कवर किया जा रहा है जबकि पहले वाले नियम के तहत सिर्फ 74 दवाओं को नियंत्रित किया जाता था।
डीपीसीओ को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने दलील दी कि नई पॉलिसी के तहत ड्रग निर्माताओं और डीलरों के लिए प्रॉफिट का मार्जिन 10-1300 फीसदी हो गया है। इसने यह भी कहा कि राष्ट्रीय आवश्यक दवा सूची में सिर्फ 348 ड्रग्स ही हैं जबकि कई आवश्यक दवाओं को मूल्य नियंत्रण से बाहर रखा गया है।

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