Friday, November 21, 2014

भारत सरकार के पास ब्लैक मनी से संबंधित एक फीसदी भी जानकारी नहीं

एक ओर पूरा देश विदेशों में जमा ब्लैक मनी की वापसी के लिए केंद्र सरकार की ओर टकटकी लगा कर देख रहा है, तो दूसरी ओर इस मामले से जुड़े एक महत्वपूर्ण शख्स का दावा है कि भारत सरकार के पास ब्लैक मनी से संबंधित एक फीसदी भी जानकारी नहीं है।
यह दावा करनेवाला शख्स कोई और नहीं बल्कि छह साल पहले जिनीवा स्थित एचएसबीसी बैंक के हजारों गुप्त खातों का खुलासा करने वाले बैंक के पूर्व कर्मचारी एर्वे फलचैनी हैं, जो अभी फ्रांस में रह रहे हैं।
एनडीटीवी से बातचीत में एचएसबीसी बैंक के पूर्व कर्मचारी एर्वे ने कहा, 'भारत के पास असली आंकड़ों से जुड़ी एक फीसदी से भी कम सूचना है। मैं दूसरे देशों को मदद कर रहा हूं और मैं भारत की मदद करने के लिए भी उत्सुक हूं।'
साल 2011 में फ्रांस ने एचएसबीसी में खातों वाले भारतीयों के नामों की सूची भारत सरकार को दी थी। एर्वे के मुताबिक, यह असली आंकड़ों का बहुत छोटा हिस्सा भर है। भारत को 200 जीबी के डेटा में महज 2 एमबी डेटा दिया गया है। उन्होंने आगे कहा, 'अगर कल जाकर भारत हमसे इसकी मांग करेगा तो हम इसका प्रस्ताव भेजेंगे।'
एर्वे एचएसबीसी की जिनीवा शाखा में सिस्टम इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। बाद में बैंक को पता चला कि उन्होंने स्विटजरलैंड के बैंकिंग इतिहास में सबसे बड़ा सुरक्षा सेंध लगाते हुए 1,27,000 बैंक खातों की जानकारी चुरा ली थी। तब इन खातों में 180 अरब यूरो जमा थे।
उन्होंने साल 2008 में फ्रांस को यह डेटा देकर एचएसबीसी की सूची तैयार करने में मदद की। 42 साल के एर्वे पहले तो भागते रहे। हालांकि, पकड़ में आने के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा। लेकिन अब वह वैसे कुछ देशों के खोजकर्ताओं की मदद कर रहे हैं जो बड़े पैमाने पर अवैध तरीके से टैक्स से बचनेवालों और मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार में शामिल लोगों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इन देशों में अमेरिका, फ्रांस, स्पेन और बेल्जियम भी शामिल हैं।
वकीलों और विशेषज्ञों की टीम के साथ काम करनेवाले एर्वे का दावा है, 'खोजकर्ताओं के लिए हमारे पास हजार गुना ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध हैं, जिनका उनके सामने खुलासे के लिए कई व्यावसायिक प्रक्रियाएं हैं।' उनका कहना है, 'यह भारतीय प्रशासन पर है कि वह हमसे संपर्क करे।'
विशेषज्ञ कहते हैं कि एर्वे के पास एचएसबीसी से जुड़े आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन स्विटजरलैंड हमेशा से कहता रहा है कि उसके कानूनों में चोरी किए गए आंकड़ों की कोई जगह नहीं है।

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