सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाई गई रिटायर्ड जस्टिस रिटायर्ड एच एस बेदी की
अध्यक्षता वाली एक कमिटी को गुजरात में मुठभेड़ में मौतों के 22 मामलों में प्रदेश सरकार का
हाथ होने का कोई सबूत नहीं मिला है। यह कमिटी इस नतीजे के साथ अपनी रिपोर्ट पेश कर
सकती है कि इस बात का कोई पैटर्न सामने नहीं आया है, जिससे कहा जा सके कि
अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को आतंकवादी मानकर टारगेट किया गया।
इस कमिटी की जांच से वाकिफ एक शीर्ष कानूनी सूत्र ने बताया कि हालांकि मुठभेड़ के कम-से-कम तीन मामलों में पुलिस ऑफिसरों की गलत हरकतों के सबूत मिले हैं। उन्होंने कहा कि ये मुठभेड़ें फर्जी लग रही हैं।
इस कमिटी की जांच से वाकिफ एक शीर्ष कानूनी सूत्र ने बताया कि हालांकि मुठभेड़ के कम-से-कम तीन मामलों में पुलिस ऑफिसरों की गलत हरकतों के सबूत मिले हैं। उन्होंने कहा कि ये मुठभेड़ें फर्जी लग रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2012 में अपने रिटायर्ड जज जस्टिस एच एस बेदी को एक मॉनिटरिंग अथॉरिटी का चेयरमैन
बनाया था। इस अथॉरिटी को गुजरात में साल 2002 से लेकर 2006 के बीच मुठभेड़ों में हुई सभी मौतों के मामलों की जांच का जिम्मा दिया गया था।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ये मुठभेड़ें फर्जी थीं।
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई की बेंच ने वरिष्ठ पत्रकार बी जी वर्गीज और गीतकार जावेद अख्तर की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अथॉरिटी बनाने का निर्देश दिया था। इन याचिकाओं में स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से मामलों की जांच कराने की मांग की गई थी।
मामले की जानकारी देने वाले सूत्र ने बताया, 'ऐसा कोई पैटर्न नहीं दिखा है कि मुसलमानों को जानबूझकर टारगेट किया गया। हिंदुओं और सिखों की मौतों के भी मामले हैं। ये मामले उन लोगों के हैं, जो केरल, गढ़वाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से आए थे। गुजरात के एक सिख की भी मौत हुई थी।' उन्होंने कहा, 'हमने पाया है कि इनमें से लगभग सभी मामलों में जो लोग मारे गए, उनके आपराधिक रिकॉर्ड थे।'
जस्टिस बेदी से इस बारे में संपर्क नहीं हो सका, लेकिन मॉनिटरिंग अथॉरिटी के एक सूत्र ने बताया कि फाइनल रिपोर्ट तीन-चार महीनों में सौंप दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने साल 2012 में 'किसी ऐसे शख्स की निगरानी में जांच होने पर जोर दिया था, जिसकी ईमानदारी पर कोई शक न हो।' बेंच ने कहा था, 'जस्टिस बेदी कथित फर्जी मुठभेड़ के मामलों की जांच के लिए बिल्कुल उपयुक्त व्यक्ति हैं।'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निर्देश दिया था कि मॉनिटरिंग अथॉरिटी तीन महीने के भीतर उसके सामने एक प्रारंभिक पोर्ट पेश करे। कोर्ट ने तब गुजरात सरकार के इन आरोपों को खारिज कर दिया था कि उसे मानव अधिकार उल्लंघन के मामलों में 'जानबूझकर' निशाना बनाया जा रहा है।
अथॉरिटी का चेयरमैन बनने के बाद जस्टिस बेदी ने सील्ड कवर में कई स्टेटस रिपोर्ट्स सुप्रीम कोर्ट को सौंपी हैं। इनमें से कुछ रिपोर्ट्स को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर याचिकाकर्ताओं को भी दिया गया है।
अधिकारी ने बताया कि कुछ मामलों में पीड़ित परिवारों को 2 लाख रुपये से लेकर 14 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया गया है। एक मामले में एक मुसलमान महिला ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया और उन्होंने मामले में न्याय किए जाने की गुहार लगाई।
जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना देसाई की बेंच ने वरिष्ठ पत्रकार बी जी वर्गीज और गीतकार जावेद अख्तर की दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अथॉरिटी बनाने का निर्देश दिया था। इन याचिकाओं में स्वतंत्र एजेंसी या सीबीआई से मामलों की जांच कराने की मांग की गई थी।
मामले की जानकारी देने वाले सूत्र ने बताया, 'ऐसा कोई पैटर्न नहीं दिखा है कि मुसलमानों को जानबूझकर टारगेट किया गया। हिंदुओं और सिखों की मौतों के भी मामले हैं। ये मामले उन लोगों के हैं, जो केरल, गढ़वाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से आए थे। गुजरात के एक सिख की भी मौत हुई थी।' उन्होंने कहा, 'हमने पाया है कि इनमें से लगभग सभी मामलों में जो लोग मारे गए, उनके आपराधिक रिकॉर्ड थे।'
जस्टिस बेदी से इस बारे में संपर्क नहीं हो सका, लेकिन मॉनिटरिंग अथॉरिटी के एक सूत्र ने बताया कि फाइनल रिपोर्ट तीन-चार महीनों में सौंप दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने साल 2012 में 'किसी ऐसे शख्स की निगरानी में जांच होने पर जोर दिया था, जिसकी ईमानदारी पर कोई शक न हो।' बेंच ने कहा था, 'जस्टिस बेदी कथित फर्जी मुठभेड़ के मामलों की जांच के लिए बिल्कुल उपयुक्त व्यक्ति हैं।'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निर्देश दिया था कि मॉनिटरिंग अथॉरिटी तीन महीने के भीतर उसके सामने एक प्रारंभिक पोर्ट पेश करे। कोर्ट ने तब गुजरात सरकार के इन आरोपों को खारिज कर दिया था कि उसे मानव अधिकार उल्लंघन के मामलों में 'जानबूझकर' निशाना बनाया जा रहा है।
अथॉरिटी का चेयरमैन बनने के बाद जस्टिस बेदी ने सील्ड कवर में कई स्टेटस रिपोर्ट्स सुप्रीम कोर्ट को सौंपी हैं। इनमें से कुछ रिपोर्ट्स को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर याचिकाकर्ताओं को भी दिया गया है।
अधिकारी ने बताया कि कुछ मामलों में पीड़ित परिवारों को 2 लाख रुपये से लेकर 14 लाख रुपये तक का मुआवजा दिया गया है। एक मामले में एक मुसलमान महिला ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया और उन्होंने मामले में न्याय किए जाने की गुहार लगाई।
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