सिस्टम को बदलने के दावों से लेकर महज दूसरों को गरियाने और त्याग के बहाने
पल्ला झाड़ लेने वाले अरविंद केजरीवाल पर जितना ज्यादा विश्वास करने की कोशिश करता
हूं, उतना ही उनकी खोखली दलीलें और
बिल्कुल ‘आम आदमी’ जैसा व्यवहार मुझे
यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि वह मुझ जैसे आम लोगों के नायक तो हो ही नहीं
सकते! फिर यह सवाल भी मन को बेचैन कर देता है कि केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी
हर बात में जिस ‘आम आदमी’ का जिक्र
करते हैं, वह कौन है?
क्या यह वही 'आम आदमी' है जो अपनी इमानदारी का ढोल पीटे बग़ैर खुद, अपने परिवार और समाज के लिए काम करता जाता है। जो हर वक्त शिकायत के मोड में रहने की बजाय पहाड़ को काट कर कई किलोमीटर लंबा रास्ता बना देने तक का माद्दा रखता है। जिसके कई भूखे सपने तो पूरे हो जाते हैं पर कई बेमौत मारे भी जाते हैं, लेकिन वह अपने वसूलों से कोई समझौता नहीं करता है। जिसकी उंगलियां दूसरों के साथ-साथ अपनों की गलतियों पर भी उतने ही तनाव से उठती हों। जो एक ऐसा समाज बनाना चाहता है जहां आदमी की पहचान इस जाति-धर्म के दायरों में न सिमटी हो?
क्या यह वही 'आम आदमी' है जो अपनी इमानदारी का ढोल पीटे बग़ैर खुद, अपने परिवार और समाज के लिए काम करता जाता है। जो हर वक्त शिकायत के मोड में रहने की बजाय पहाड़ को काट कर कई किलोमीटर लंबा रास्ता बना देने तक का माद्दा रखता है। जिसके कई भूखे सपने तो पूरे हो जाते हैं पर कई बेमौत मारे भी जाते हैं, लेकिन वह अपने वसूलों से कोई समझौता नहीं करता है। जिसकी उंगलियां दूसरों के साथ-साथ अपनों की गलतियों पर भी उतने ही तनाव से उठती हों। जो एक ऐसा समाज बनाना चाहता है जहां आदमी की पहचान इस जाति-धर्म के दायरों में न सिमटी हो?
या
फिर वह 'आम आदमी' जो सारे दांव-पेच लगा कर अपना काम करवाना जानता है। जो समाज में
बराबरी लाने की डींगें तो खूब हांकता हो, मगर जिसे हिंदू, मुस्लिम, सिख
जैसी पहचान से भी प्यार हो और मौका मिलने पर जाति के आधार पर भी फैसले लेने से
जिसे परहेज न हो। जो करप्शन पर खूब हो-हल्ला तो मचाता हो, मगर
वक्त आने पर उसी करप्शन में शामिल लोगों को अपने कुनबे की शोभा बढ़ाने देने में
कोई गुरेज नहीं करता हो। जो मौके के हिसाब से खुद को अलग-अलग रंगों में रंगना
जानता हो और जल्द से जल्द सफल होने के लिए कई तरह के शॉर्टकट का इस्तेमाल करना
जानता हो। जो यह सोचता है उसे छोड़ कर सारी दुनिया को
इमानदार बने रहने का ठेका मिला हुआ है?
गुस्ताखी माफ करें केजरीवाल साहब, लेकिन जब भी आपके और आपकी आम आदमी पार्टी के बारे में सोचने लगता हूं तो रामलीला मैदान में चले ‘अन्ना आंदोलन’ के कई छोटे-मोटे वाकये याद आने लगते हैं। याद आने लगते हैं वे ऑटो वाले जो शान से ‘मैं अन्ना हूं’ की टोपी तो पहले लेते थे, मगर मीटर से चलने के बजाय दूसरों को टोपी पहनाने में कोई शर्म महसूस नहीं करते थे।
इस वाकये को बताने या इन सवालों को उठाने का मेरा मकसद आपकी उपलब्धियों को खारिज करना या आपका मज़ाक बनाना नहीं है केजरीवाल साहब। यह तो बस उस ‘आम आदमी’ की टीस है, जिसने आपसे बड़ी उम्मीदें पाल ली थीं। जो सेटिंग करने से ज्यादा सीधे रास्ते पर चलने में यकीन करने वालो में से है। और हो भी क्यों नहीं, इस देश में बदलाव की सपना देख रहे उन तमाम लोगों की तरह वह भी यह मान बैठा था कि इस सड़ांध में आपका उदय ऐसी ताज़ा हवा कि तरह है जिसकी खुशबू नयापन का अहसास लेकर आएगी।
खैर, आप इनमें से किस ‘आम आदमी’ के नायक बनना चाहते हैं वह पूरी तरह से आपका फैसला है और आपको अपने फैसले लेने का पूरा हक भी है। लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि ‘आप’ की विफलता, देश में बदलाव के सपनों को आनेवाले कई दशकों के लिए खत्म कर देगी, क्योंकि ‘आप’ की सरकार बनने के वक्त जो ‘आम आदमी’ फिर से सपने देखने लगा था, वह अब बहुत निराश है।
गुस्ताखी माफ करें केजरीवाल साहब, लेकिन जब भी आपके और आपकी आम आदमी पार्टी के बारे में सोचने लगता हूं तो रामलीला मैदान में चले ‘अन्ना आंदोलन’ के कई छोटे-मोटे वाकये याद आने लगते हैं। याद आने लगते हैं वे ऑटो वाले जो शान से ‘मैं अन्ना हूं’ की टोपी तो पहले लेते थे, मगर मीटर से चलने के बजाय दूसरों को टोपी पहनाने में कोई शर्म महसूस नहीं करते थे।
इस वाकये को बताने या इन सवालों को उठाने का मेरा मकसद आपकी उपलब्धियों को खारिज करना या आपका मज़ाक बनाना नहीं है केजरीवाल साहब। यह तो बस उस ‘आम आदमी’ की टीस है, जिसने आपसे बड़ी उम्मीदें पाल ली थीं। जो सेटिंग करने से ज्यादा सीधे रास्ते पर चलने में यकीन करने वालो में से है। और हो भी क्यों नहीं, इस देश में बदलाव की सपना देख रहे उन तमाम लोगों की तरह वह भी यह मान बैठा था कि इस सड़ांध में आपका उदय ऐसी ताज़ा हवा कि तरह है जिसकी खुशबू नयापन का अहसास लेकर आएगी।
खैर, आप इनमें से किस ‘आम आदमी’ के नायक बनना चाहते हैं वह पूरी तरह से आपका फैसला है और आपको अपने फैसले लेने का पूरा हक भी है। लेकिन इतना जरूर कहना चाहूंगा कि ‘आप’ की विफलता, देश में बदलाव के सपनों को आनेवाले कई दशकों के लिए खत्म कर देगी, क्योंकि ‘आप’ की सरकार बनने के वक्त जो ‘आम आदमी’ फिर से सपने देखने लगा था, वह अब बहुत निराश है।
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