केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 5 अगस्त को फैसला ले लिया कि सार्वजनिक
क्षेत्र की दूर संचार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) से एक अलग टॉवर
कंपनी बनाई जाएगी। इसके पीछे वजह बीएसएनएल को हुए 7000 करोड़
रुपए के घाटे को बताया गया है।
आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए सरकार बीएसएनएल को
टॉवर बिजनेस में उतारना चाहती है। लेकिन देशभर में सेवारत बीएसएनएल के 1 लाख 90
हजार कर्मचारी-अधिकारी विरोध में उतर आए हैं। इनका कहना है कि यह
बीएसएनएल को बेचने की दिशा में उठाया गया कदम है। जिस तरह विदेश संचार निगम
लिमिटेड को निजी कंपनी के हाथों बेच दिया गया।
'नईदुनिया" ने इसी मुद्दे पर पड़ताल की। जो तथ्य सामने
आए वे हैरान करने वाले हैं। दरअसल निजी टेलीकॉम कंपनियों की शहर में तो पहुंच है,
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों, दूर दराज के इलाकों,
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ये बेहद पिछड़ी हैं। या यूं कहें कि इन
क्षेत्रों में सिर्फ बीएसएनएल का राज है। ऐसी स्थिति में बीएसएनएल के टॉवर के जरिए
ये कंपनी इन इलाकों तक पहुंच सकती हैं, अपना नेटवर्क बना
सकती हैं।
ऐसी स्थिति में न सिर्फ बीएसएनएल के उपभोक्ता टूटेंगे, बल्कि
बीएसएनएल को फायदा के बजाय घाटा ही होगा। जानकारों का कहना है कि एक बार टॉवर
कंपनी बनने से निजी कंपनियों की मनमानी बढ़ जाएगी। अभी भी कई चीजें पर फैसला होना
बाकी है, जैसे टॉवर कंपनी बनने के बाद टॉवर का रखरखाव कौन
करेगा? कर्मचारी-अधिकारियों का क्या होगा? नई कंपनी में उनके ट्रांसफर होंगे या नहीं, पेंशन
मिलेगी या नहीं? गौरतलब है कि भारत में बीएसएनएल के 65
हजार टॉवर हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में 1600
हैं।
एक टॉवर को खड़ा करने की लागत 1 करोड़
'नईदुनिया" को बीएसएनएल के अधिकारियों से मिली जानकारी
के मुताबिक एक टॉवर को खड़ा करने में 1 करोड़ रुपए खर्च आता
है। अगर किसी नए शहर या क्षेत्र में नेटवर्क स्थापित करना है तो करोड़ों-अरबों रुपए
चाहिए, जो इन्वेस्ट निजी कंपनी नहीं करना चाहती। वे बीएसएनएल
के टॉवर पर रिसीवर लगाकर अपनी सेवाएं शुरू करना चाहती हैं।
2010 में बीएसएनएल ने शुरू की थी शेयरिंग
बीएसएनएल ने दूसरी निजी टेलीकॉम कंपनियों के साथ साल 2010 में
टॉवरों की शेयरिंग शुरू कर दी थी। लेकिन यह सशर्त है, सीमित
एरिया के लिए ही शेयरिंग दी गई है। यह अधिकांश शहरी क्षेत्र हैं। छत्तीसगढ़
बीएसएनएल परिमंडल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक शेयरिंग के दौरान कई बार
बीएसएनएल की सेवा से निजी कंपनियों द्वारा छेड़छाड़ की गई है।
तेजी से सेवानिवृत्त हो रहे बीएसएनएल कर्मी
बीएसएनएल की स्थापना के वक्त देशभर में 3.50 लाख
कर्मचारी-अधिकारी थे, लेकिन धीरे-धीरे ये सेवानिवृत्त होते
चले गए। आज इनकी संख्या 1.90 लाख है। जबकि साल 2018 तक 90 हजार कर्मचारी-अधिकारी सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
लेकिन सरकार द्वारा रिक्त हो रहे पदों पर भर्ती नहीं की जा रही है।
पॉलिसी चेंज करने की कोई जरूरत नहीं
हमारा सिर्फ इतना विरोध है कि बीएसएनएल ने बीते कुछ
सालों में काफी एफर्ट कर अपनी पुरानी स्थिति में लौटने की कोशिश की है। ऐसे समय
में पॉलिसी चेंज करना बीएसएनएल के रास्ते में रोड़ा ही होगा। प्रतिस्पर्धा में बने
रहने के लिए अलग टॉवर कंपनी बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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