Friday, September 11, 2015

डॉक्‍टर बनने में एक चाय वाले का भी योगदान

यहां पीजीआईएमईआर के 34 वें दिक्षांत समारोह में भाग लेने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दीक्षांत समारोह को शिक्षांत समारोह ना समझें। दिक्षांत शिक्षा का अंत नहीं है। जीवन में शिक्षा हमेशा प्राप्‍त करते रहना चाहिए।
उन्‍होंने आगे कहा कि, कोई व्‍यक्ति जब डॉक्‍टर बनता है तो उसके डॉक्‍टर बनने में एक चाय वाले का भी योगदान होता है जो आधी रात को उसे चाय बनाकर देता है जिसके बाद छात्र कुछ समय और पढ़ता है।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि, आप जब डॉक्‍टर बनते हो तो उस मुकाम तक पहुंचने में समाज के हर व्‍यक्ति का कहीं ना कहीं योगदान होता है। इसका मतलब है कि आप डॉक्‍टर सरकार की वजह से नहीं बल्कि समाज के लोगों की वजह से डॉक्‍टर बनें हैं और यह आपकी जिम्‍मेदारी होती है कि समाज के उस कर्ज को चुकाएं। आप जब भी कोई काम करें तो समाज के उसक आख‍िरी व्‍यक्ति को याद करें जिसे आपकी जरूरत है।'
उन्‍होंने आगे कहा कि, इंज‍ीनि‍यर और डॉक्‍टर में फर्क होता है। डॉक्‍टर का काम मशीन के साथ नहीं, इंसान के साथ है। आज डॉक्‍टरों के पास अच्‍छी तकनीक है, जिससे वे आसानी से बीमारी को समझ सकते हैं।'
उन्‍होंने योग दिवस का जिक्र करते हुए कहा कि, अगर फीजियोथेरेपिस्‍ट योग सीखें तो वो बेहतर डॉक्‍टर बन सकेंगे। फीजियोथेरेपी भी योग की तरह ही है।

इससे पहले अपना भाषण शुरू करते हुए कहा कि 'आज 9/11 है जब सैकड़ों मासूम लोग मारे गए थे और इंसानियत शर्मसार हुई थी। अगर स्‍वामी विवेकानंद द्वारा शिकागो में 11 सितंबर 1893 को दिए गए भाषण का अनुसरण किया गया होता तो यह घटना कभी नहीं होती।

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