Friday, September 4, 2015

शिक्षक दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्‍चों के सवालों के जवाब दिए

शिक्षक दिवस पर हुए कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर के अलग-अलग स्‍कूलों में मौजूद बच्‍चों से वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग के जरिये बात करते हुए उनके सवालों के जवाब दिए।
सवाल: आपके जीवन पर किसका ज्‍यादा प्रभाव रहा।
जवाब: जीवन पर किसी एक व्‍‍यक्ति का प्रभाव नहीं होता। अगर आपका दिमाग जिज्ञासु है तो आपके जीवन में हर कदम पर लोग मिलते हैं जिनसे आप ढेर सारी बातें सीख सकते हैं। मैं हमेशा एक जिज्ञासु था। मैं अपना वक्‍त लायब्रेरी में बिताता था जहां मैंने स्‍वामी विवेकानंद के बारे में पढ़ा। मैंने हर मोड़ पर हर किसी से कुछ ना कुछ सीखा।
सवाल: जवाहर नवोदय विद्यालय मणिपुर की छात्रा ने पूछा कि में नेता बनना चाहती हूं मैं क्‍या करूं?
जवाब: देश में लोग राजनीति से डरे हुए हैं। यह देश की जरूरत है कि इसमें हर क्षेत्र के विद्वान लोग आए जिससे राजनीतिक क्षेत्र भी समृद्ध होगा। राजनीति में आने के लिए लीडरशीप रोल करना होगा। खुद में लीडरशीप क्‍वालिटी को बढाएं। यह भी साफ हो कि लीडर क्‍यों बनना चाहते हैं। अगर आप लोगों की समस्‍याओं के समाधान के लिए बनना चाहते हैं तो आपको लोगों से जुड़ना होगा। अगर आपमें यह बात है तो आप खुद लीडर बन जाओगी।
सवाल: केवी इंडियन मिलीट्री एकेडमी देहरादून, उत्‍तराखंड के सार्थक भारद्वाज ने पूछा कि डिजिटल इंडिया अनोखा कार्यक्रम है लेकिन देश के कई गांवों में बिजली नहीं है फिर यह कैसे सफल होगा।
जवाब: डिजिटल इंडिया से हम सब अब अछूते नहीं रह सकते, ये हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन गया है। हमारे देश में 18 हजार गांव ऐसे जहां बिजली नहीं। मैंने अधिकारियों की बैठक ली है। अपने अधिकारियों से कहा है कि 1000 दिनों में मुझे इन गांवों में बिजली पहुंचानी है और बिना बिजली के डिजिटल होने का काम रुकता नहीं है। डिजिटल इंडिया सशक्तिकरण का मिशन है, इसलिए बिजली रुकावट नहीं बनेगी।
सवाल: पणजी के विशेष छात्रा सोनिया ने पीएम से पूछा कि उनका पसंदीदा खेल कौन सा है।
जवाब: जब एक लड़की आगे बढ़ती है तो इसमें उसकी मां का अहम रोल होता है। जब हम छोटे थे तो आज के समय की तरह खेल नहीं होते थे। मैं जब छोटा था तो मुझे कबड्डी, तैरना और थोड़ा योग करना पसंद था। गांव में एक कसरत करने की जगह थी जहां मैं भी जाता था। रही बात अब की तो राजनेता क्‍या खेल खेलते हैं वो सब जानते हैं।
सवाल: बेंगलुरु की स्‍कूल की छात्राओं ने स्‍वच्‍छ भारत मिशन को लेकर पूछा सवाल
जवाब: जब मैंने स्‍वच्‍छ भारत अभियान शुरू किया था तब इसे लेकर मुझे कुछ आशंकाएं थीं। लेकिन आपने जिस तरह से वेस्‍ट मैंनेजमेंट के लिए ऐप बनाई है तो मुझ यकीन है कि यह अभियान सफल होगा। इस कार्यक्रम में हर कोई पूरा सपोर्ट कर रहा है। हर पक्ष इसमें साथ आ रहा है।
सवाल: बोकारों की छात्रा अंशिका ने पूछा कि आपको क्‍या लगता है कि एक छात्र के लिए सफलता के लिए क्‍या रेसिपी हो सकती है।
जवाब: सफलता की कोई रेसिपी नहीं होती और होना भी नहीं चाहिए। ठान लो कि असफल नहीं होना है और जो ये ठान लेता है वो कभी विफल नहीं होता। विफलता को सपनों का कब्रस्‍तान मत बनने दो बल्कि सपने सच करने का आधार बनाना चाहिए। हर किसी के जीवन में विफलता आती है लेकिन इसे देखने का दृष्टिकोण मायने रखता है। आपको एक किताब के बारे में बताता हूं 'पॉली ऐना' जिसमें आपको हर बात को सकारात्‍मक दृष्टिकोण से देखने में मदद मिलेगी। सफलता की कोई रेसिपी नहीं बस मन की रचाना हो कि असफल नहीं होना है।
सवाल: रविया नजीर केंद्रिय विद्यालय अ‍मिनुगुल्‍दा, कुलगाम ने पूछा कि आपको बचपन में सबसे ज्‍यादा क्‍या आकर्षित करता था।
जवाब: बचपन में मैं घर के कामों में भी लगा रहता था। बाहर निकलते थे तो कई चीजें से सीखने को मिलती थी। क्‍लासरूम में चीजों को देखने और समझने का नजरिया मिलता है। मैंरा स्‍वाभाव हर चीज से सीखने वाला था और छोटी-छोटी चीजों से सीखता था।
सवाल: एक अच्‍छा वक्‍ता कैसे बन सकते हैं
जवाब: अच्‍छा वक्‍ता बनने के लिए एक अच्‍छा श्रोता होना जरूरी है। आप अगर अच्‍छा वक्‍ता बनना चाहते हैं तो इंटरनेट पर दुनियाभर के वक्‍ताओं के भाषण मिलेंगे आप उन्‍हें सुनकर भी इस स्‍कि‍ल को बढ़ा सकते हैं। दूसरी बात जब भी आप बोलें तो यह नहीं सोचें की लोग आपके और आपके विचारों के बारे में क्‍या सोचेंगे।
सवाल: आपने कैसे दुनिया में भारत परिधानों को बढ़ावा देने का खयाल कैसे आया

जवाब: मैं किसी फैशन डिजाइनर को नहीं जानता। बचपन में दो कपड़े होते थे उन्‍हें खुद ही धोते थे। लोटे में कोयला रखकर कपड़े प्रेस करता था। बचपन से ही अच्‍छी तरह रहने की आदत थी। मैं जो कुर्ता पहनता था उसकी बांह लंबी थी तो उसे खुद काटकर छोटा किया और फिर हपनने लगा।

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