हिन्दी के लिए हिन्दी के विद्वानों, भाषाविदों
और सरकारों की कोशिशों के बीच आम आदमी का एक उदाहरण ऐसा भी है जो तकरीबन सालभर से
इस मशाल को जलाए हुए है। बेटे को आंध्र प्रदेश के एक विश्वविद्यालय में प्रवेश
दिलाने के लिए हिन्दी में पत्राचार किया, वहां से जवाब मिला
कि हमारे यहां अंग्रेजी में ही पत्र व्यवहार होता है। हिन्दी का अनुवादक नहीं।
फिर क्या था बैतूल के इस हिन्दी प्रेमी ने
प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और आज लड़ाई इस मुकाम तक पहुंच गई है कि सभी सरकारी
दफ्तरों को, चाहे वे दक्षिण के ही क्यों न हों, हिन्दी
में जवाब देना पड़ेगा।
कहानी कुछ यूं है-बैतूल जिले के मुलतई के रहने वाले
शंकरलाल पंवार के बेटे ने क्लेट के बाद आंध्र प्रदेश के दामोदरन संजीवनिया नेशनल
लॉ यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम में फरवरी माह में दाखिले की प्रक्रिया पूरी
की। जब प्रवेश नहीं हुआ तो सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी।
पत्र हिन्दी में लिखा गया। विवि ने जानकारी देने की
बजाय यह लिखा कि उनके यहां सारा पत्र व्यवहार अंग्रेजी में होता है। हिन्दी का
अनुवादक नहीं है। पंवार ने इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को की। पत्र गृह
मंत्रालय को गया और वहां से उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव को फटकार लगाई गई।
पत्र में कहा गया कि यह राजभाषा नियम का उल्लंघन है।
हिन्दी में चाहे किसी भी क्षेत्र से पत्र प्राप्त हो, किसी
भी राज्य सरकार, व्यक्ति या केंद्र सरकार के कार्यालय से
प्राप्त हो, केंद्र सरकार के कार्यालय से जवाब हिन्दी में
ही जाएगा। ऐसा न होने की स्थिति में अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। 12 अगस्त को यह पत्र मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबंधित विभागों को भेजा
गया।
पंवार के अनुसार, ऐसा होने से देश के सभी
हिन्दी भाषियों को सूचना के अधिकार के तहत हिन्दी में जानकारी मिलने लगेगी। कोई
भी संस्थान बहाना बनाने की स्थिति में नहीं होगा। आम आदमी की छोटी-छोटी ऐसी ही
लड़ाइयों से भाषा बलवान होगी।
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