देश हो, प्रदेश हो, जिला या कस्बा हर जगह कभी न कभी लोगों के बीच आपसी विवाद होते हैं और
मामले थाने तक पहुंच जाते हैं, लेकिन दमोह जिले का एक गांव
ऐसा जहां पिछले 50 साल से एक भी विवाद नहीं हुआ। यदि कभी
छोटा-मोटा विवाद हुआ भी है तो वह पुलिस थाने तक नहीं पहुंच पाया।
गांव के वरिष्ठ ही पंचायत कर मामले में
समझौता करा देते हैं। इस गांव की खासियत ये है कि गांव प्रमुख मार्ग से 17 किमी
दूर जंगल के बीच बसा हैं, जहां मौलिक सुविधाओं का काफी अभाव
है। गांव में 95 प्रतिशत आदिवासी रहते हैं, जिनमें ज्यादातर अशिक्षित हैं, उसके बाद भी उनकी सोच
व समझ शिक्षित समाज से कहीं आगे है।
हम बात कर रहे हैं तेंदूखेड़ा ब्लॉक अंतर्गत
आने वाले रामपुर-महका गांव की। यह गांव दमोह सागर व नरसिंहपुर की सीमा से सटा हुआ
है। गांव तक जाने के लिए महज एक पगडंडी है। बारिशकाल मे गांव से संपर्क पूरी तरह
टूट जाता है। इस गांव में रहने वाले ज्यादातर आदिवासी हैं और अशिक्षित हैं, लेकिन
वे सभी आपसी सद्भाव के साथ रहते हैं। उनके बीच कभी आपसी विवाद नहीं होता।
यहां के लोग काफी सजह स्वाभाव के हैं।
गांव के बुर्जुगों का कहना है कि उनके गांव में कभी विवाद नहीं होता, यदि
कभी कोई विवाद की स्थिति निर्मित होती है तो हम लोग पंचायत बुलाकर आपसी समझौता करा
देते हैं। जिसकी गलती होती है उससे क्षमा मांगने को कहते हैं और दूसरा पक्ष उस पर
राजी हो जाता है।
50 सालों से तो हम देख रहे
गांव के बुजुर्ग गोरेलाल आदिवासी (65 ) ने
बताया कि उन्होंने जब से होश संभाला है उन्हें याद नहीं कि गांव में किसी के बीच
विवाद हुआ हो और विवाद पुलिस थाने पहुंचा हो। उन्होंने बताया कि गांव में रामपुर
और महका गांव की कुल जनसंख्या लगभग एक हजार है। दोनों गांव आस-पास ही हैं और हमारे
बीच अच्छे संबंध हैं। गांव में किसी को भी तकलीफ या परेशानी होती है तो सभी मिलकर
हल खोज लेते हैं।
गुलाबरानी आदिवासी (70) ने बताया
कि गांव के लोगों का मानना है कि यदि विवाद पुलिस में पहुंचता है तो फिर कोर्ट
कचहरी में सालों बीत जाते हैं। दोनों पक्षों को परेशान होना पड़ता है और आखिर में
कुछ हाथ नहीं आता, इसलिए सभी ने सोच रखा है कि आपस में विवाद
नहीं करना है, यदि कभी कोई विवाद होता है तो गांव के
बुर्जुगों की बात मानकर विवाद खत्म कर दिया जाता है।
20 साल पहले सामने आया था एक विवाद
गांव के बुजुर्ग रामचरण आदिवासी (62) ने
बताया कि गांव में लगभग 20 साल पहले एक महिला के साथ छेड़खानी
का मामला सामने आया था। जिस पर आरोप था, उसे पंचायत में
बुलाया गया। जब दोनों से बातचीत की तो पता चला कि सहज बातचीत को लेकर विवाद की
स्थिति बनी हैं।
जब दोनों से बात की गई तो मामले में कुछ
नहीं निकला। उसके बाद दोनों परिवारों के बीच समझौता करा दिया गया और मामला समाप्त
हो गया। उन्होंने बताया कि यदि मामला पुलिस में दर्ज हो जाता तो दोनों पक्षों को
परेशान होना पड़ता सामाजिक प्रतिष्ठा खराब होती तो वो अलग। आपसी बातचीत से विवाद भी
खत्म हो गया और मन का मैल भी धुल गया।
बारिश में बीमार हुए, तो
भगवान बचाए
बारिशकाल में इन दोनों गांव का संपर्क
पूरी तरह जिले से टूट जाता है। इस मौसम में यदि गांव का कोई व्यक्ति बीमार हो जाता
है तो देशी नुस्खों से ही उसका इलाज किया जाता है। गंभीर बीमार को भी गांव से
अस्पताल तक ले जाना संभव नहीं होता। ऐसे में गांव के बीमार भगवान भरोसे ही हो जाते
हैं। या तो वह देशी इलाज से ठीक हो जाते हैं या फिर उनकी मौत हो जाती है।
खास बात ये है कि बारिश के मौसम में गांव
का एकमात्र सरकारी प्राथमिक स्कूल बंद हो जाता है, क्योंकि यहां पदस्थ
शिक्षक तेंदूखेड़ा में रहता है। यदि कहा जाए तो शिक्षण सत्र जारी के दौरान भी गांव
के स्कूल में अघोषित अवकाश हो जाता है।
परंपरागत शैली में जी रहे जीवन
गांव घने जंगल के बीच बसा है। सरकारी
स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। राशन दुकान गांव से लगभग 20 किमी
दूर झमरा गांव में हैं। बारिश के समय वह राशन भी नहीं ले पाते हैं। जीवन यापन के
लिए थोड़ी बहुत खेती करते हैं। जंगली फल जैसे अचार, आंवला और
गोंद का एकत्रित करते हैं जिन्हें साल में एक बार अन्य जिलों से आने वाले व्यापारी
खरीदकर ले जाते हैं। इन लोगों की जीवन शैली पूरी तरह तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक जंगली जीवन पर आधारित है।
20 साल का रिकार्ड तो मैंने देखा है
तारादेही थाना प्रभारी राजेंद्र शर्मा ने
भी बताया कि गांव का एक भी विवाद उनके कार्यकाल में थाने तक नहीं आया। उन्होंने यह
भी बताया कि पिछले 20 साल का रिकार्ड उन्होंने देखा है
जिसमें गांव का एक भी अपराध दर्ज नहीं है। यदि इसी तरह की आपसी सौहार्द से सभी लोग
रहने लगें तो न विवाद होंगे और न ही अपराध दर्ज होंगे।