महंगाई घटने की वजह क्या है? इसका श्रेय किसे मिलना चाहिए? मोदी या राजन को या इसके पीछे कोई छिपी ताकत है? क्या
जमाखोर मोदी एडमिनिस्ट्रेशन के डर से कम स्टॉक कर रहे हैं? क्या
RBI के ब्याज दर ऊंची बनाए रखने के कदम का असर धीरे-धीरे
दिखने लगा है? क्या दुनियाभर में क्रूड ऑयल, मेटल और दूसरी कमोडिटी की कीमत में आ रही कमी से इंडिया को फायदा हो रहा
है? ये तीनों बातें तो सही हैं, लेकिन
सरकार और RBI के कदमों का असर विवाद का विषय है। इसकी बड़ी
वजह अकाट्य आंकड़े हैं।
इनफ्लेशन इंडेक्स कई कमोडिटी बास्केट से बना है जिसमें सबका अलग वेटेज है। इनसे पता चलता है कि पिछले साल इनकी अहमियत और डिमांड ज्यादा थी और इस साल इनमें थोड़ी कम तेजी आई है। इकनॉमिस्ट इसको बेस इफेक्ट बताते हैं। बेस इफेक्ट ज्यादा होने से महंगाई कम दिखती है। मतलब 2012-13 में कीमतें 2013-14 के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ीं। ऐसा नहीं है कि इस दौरान सब्जियों और मछली के दाम में कमी आई। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि महंगाई पिछली बार से कम रही है।
इनफ्लेशन इंडेक्स कई कमोडिटी बास्केट से बना है जिसमें सबका अलग वेटेज है। इनसे पता चलता है कि पिछले साल इनकी अहमियत और डिमांड ज्यादा थी और इस साल इनमें थोड़ी कम तेजी आई है। इकनॉमिस्ट इसको बेस इफेक्ट बताते हैं। बेस इफेक्ट ज्यादा होने से महंगाई कम दिखती है। मतलब 2012-13 में कीमतें 2013-14 के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ीं। ऐसा नहीं है कि इस दौरान सब्जियों और मछली के दाम में कमी आई। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि महंगाई पिछली बार से कम रही है।
इसके
बावजूद महंगाई मीडिया की सुर्खियों में है। कुछ इंटेलेक्चुअल्स का मानना है कि
टमाटर और प्याज की कीमत का ऊंची बयाज दरों से ज्यादा लेना-देना नहीं है। दूसरी तरफ
टीम राजन को लगता है कि ऊंची ब्याज दर से जमाखोरों को दिक्कत होती है, होलसेल प्राइस पर अंकुश लगता
है जिससे कंजयूमर इनफ्लेशन में कमी आती है। बड़ी बात तो यह है कि वे इस बात पर
भरोसा करते हैं और इकनॉमिस्ट्स को उनके इस विश्वास से डिगाना नामुमकिन है कि इन
सबसे महंगाई में कमी आती है।
अगर महंगाई का अनुमान ज्यादा होता है, मतलब जब बहुत से लोगों को लगता है महंगाई बढ़ेगी, सेलर्स को दाम बढ़ाने का लालच आता है और ट्रेड यूनियंस ज्यादा सेलरी हाइक की डिमांड करते हैं, तो महंगाई का चक्र अपने आप शुरू हो जाता है। अगर महंगाई का अनुमान इस साल मॉनसून में अनियमितता और बुआई वाले इलाके में कमी आने से बढ़ा है, तो इसकी वजह MSP में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है, जिस रेट पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है।
सच्चाई यह है कि महंगाई पर किसी एक का पूरा जोर नहीं चलता इसलिए किसी को इसका पूरा क्रेडिट नहीं दिया जा सकता। जिस देश में ट्रेन टिकट और ग्रॉसरी क्रेडिट कार्ड से खरीदे जाते हों, वहां ऊंची ब्याज दरों से कंजयूमर डिमांड को कुछ हद तक घटाया जा सकता है, लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं है। यहां तो मॉनेटरी पॉलिसी का कंजयूमर प्राइस इंडेक्स (जिस पर राजन करीब से नजर रखते हैं) में शामिल उन चीजों की डिमांड पर थोड़ा बहुत फर्क पड़ता है।
अगर महंगाई का अनुमान ज्यादा होता है, मतलब जब बहुत से लोगों को लगता है महंगाई बढ़ेगी, सेलर्स को दाम बढ़ाने का लालच आता है और ट्रेड यूनियंस ज्यादा सेलरी हाइक की डिमांड करते हैं, तो महंगाई का चक्र अपने आप शुरू हो जाता है। अगर महंगाई का अनुमान इस साल मॉनसून में अनियमितता और बुआई वाले इलाके में कमी आने से बढ़ा है, तो इसकी वजह MSP में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है, जिस रेट पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है।
सच्चाई यह है कि महंगाई पर किसी एक का पूरा जोर नहीं चलता इसलिए किसी को इसका पूरा क्रेडिट नहीं दिया जा सकता। जिस देश में ट्रेन टिकट और ग्रॉसरी क्रेडिट कार्ड से खरीदे जाते हों, वहां ऊंची ब्याज दरों से कंजयूमर डिमांड को कुछ हद तक घटाया जा सकता है, लेकिन इंडिया में ऐसा नहीं है। यहां तो मॉनेटरी पॉलिसी का कंजयूमर प्राइस इंडेक्स (जिस पर राजन करीब से नजर रखते हैं) में शामिल उन चीजों की डिमांड पर थोड़ा बहुत फर्क पड़ता है।
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