भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा दिए जाने से इनकार के बाद उन्हें
लुभाने की अमेरिका की कोशिशों को चीनी मीडिया ने काफी हास्यास्पद करार दिया है।
चीन के सरकारी मीडिया में छपे एक लेख में कहा गया है कि अमेरिका भारत के साथ अपने
संबंधों को फिर से मजबूती देना चाहता है ताकि चीन को रोकने की अपनी नीति को बढ़ावा
दे सके।
ग्लोबल टाइम्स के वेब एडिशन के एक लेख में कहा गया है, 'अमेरिका में मोदी को इस बार जिस तरह का आतिथ्य-सत्कार मिल रहा है, वह इस तथ्य के ठीक उलट है कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें 2005 में वीजा देने से इनकार कर दिया था।
सरकारी शंघाई इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज के एक स्कॉलर ने अपने लेख में लिखा है, 'बहरहाल, उनकी लेटेस्ट यात्रा भी बहुत सुगम नहीं रही है। मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले न्यू यॉर्क की एक अदालत ने गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों में उनकी कथित भूमिका के लिए उनके खिलाफ समन जारी किया।
लेख में कहा गया है, 'मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले और उसके बाद अमेरिका का अलग-अलग रुख बिल्कुल हास्यास्पद है। दुनिया की नंबर एक ताकत को कूटनीतिक तौर पर इस तरह का व्यवहार शोभा नहीं देता।' लेख के मुताबिक, वास्तव में यह ग्लोबल गवर्नेंस में नैतिकता और मानवाधिकार के मानदंड से खुद को बाहर रखने की अमेरिका की इच्छा को दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका भारत से असंतुष्ट रहा है ।
भारत और अमेरिका के लक्ष्यों में स्पष्ट अंतर की ओर इशारा करते हुए लेख में कहा गया, 'रणनीति और सुरक्षा के मामले में भारत के लक्ष्यों और अमेरिका के लक्ष्यों में अंतर अब भी बरकरार है।' लेख में इस बात को लेकर संकेत दिया गया है कि चीन के बढ़ने से भारत में शंकाएं हैं, लेकिन वह वॉशिंगटन की चीन पर काबू पाने की नीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है। अमेरिका रक्षा सहयोग को नीति के तौर पर सबसे ऊपर रखने की उम्मीद करता है, जबकि भारत की रुचि इस बात में है कि अमेरिकी हथियार निर्माता भारत में निवेश करें।
ग्लोबल टाइम्स के वेब एडिशन के एक लेख में कहा गया है, 'अमेरिका में मोदी को इस बार जिस तरह का आतिथ्य-सत्कार मिल रहा है, वह इस तथ्य के ठीक उलट है कि अमेरिकी सरकार ने उन्हें 2005 में वीजा देने से इनकार कर दिया था।
सरकारी शंघाई इंस्टिट्यूट ऑफ इंटरनैशनल स्टडीज के एक स्कॉलर ने अपने लेख में लिखा है, 'बहरहाल, उनकी लेटेस्ट यात्रा भी बहुत सुगम नहीं रही है। मोदी की अमेरिका यात्रा से ठीक पहले न्यू यॉर्क की एक अदालत ने गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों में उनकी कथित भूमिका के लिए उनके खिलाफ समन जारी किया।
लेख में कहा गया है, 'मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले और उसके बाद अमेरिका का अलग-अलग रुख बिल्कुल हास्यास्पद है। दुनिया की नंबर एक ताकत को कूटनीतिक तौर पर इस तरह का व्यवहार शोभा नहीं देता।' लेख के मुताबिक, वास्तव में यह ग्लोबल गवर्नेंस में नैतिकता और मानवाधिकार के मानदंड से खुद को बाहर रखने की अमेरिका की इच्छा को दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका भारत से असंतुष्ट रहा है ।
भारत और अमेरिका के लक्ष्यों में स्पष्ट अंतर की ओर इशारा करते हुए लेख में कहा गया, 'रणनीति और सुरक्षा के मामले में भारत के लक्ष्यों और अमेरिका के लक्ष्यों में अंतर अब भी बरकरार है।' लेख में इस बात को लेकर संकेत दिया गया है कि चीन के बढ़ने से भारत में शंकाएं हैं, लेकिन वह वॉशिंगटन की चीन पर काबू पाने की नीति का हिस्सा नहीं बनना चाहता है। अमेरिका रक्षा सहयोग को नीति के तौर पर सबसे ऊपर रखने की उम्मीद करता है, जबकि भारत की रुचि इस बात में है कि अमेरिकी हथियार निर्माता भारत में निवेश करें।