सुप्रीम कोर्ट की
निगरानी में चल रही कोयला घोटाले की सीबीआई जांच के लपेटे में क्या प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह भी आ सकते हैं? इस
सवाल को तब और बल मिला जब कोयला घोटाले में आदित्य बिड़ला ग्रुप (2,50,000 करोड़) के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला और पूर्व कोयला सचिव पी.सी. पारेख
के खिलाफ दायर एफआईआर में एक सक्षम अधिकारी (कॉम्पिटेंट अथॉरिटी) का जिक्र सामने
आया।
सवाल गर्म है कि सीबीआई जिस शख्स को सारे महत्वपूर्ण फैसलों के पीछे बता रही है आखिर वह सक्षम अधिकारी है कौन? न्यूज चैनल एनडीटीवी ने बिड़ला और पारेख पर दर्ज एफआईआर की कॉपी के हवाले से बताया है कि कोल ब्लॉक आवंटन में एक सक्षम अधिकारी अहम फैसलों को बदलता था। गौरतलब है कि तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास ही कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी थी। सीबीआई इस पर फिलहाल कुछ भी कहने से बच रही है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि इस मामले में कुछ भी छुपाया नहीं जा रहा है।
पूर्व कोयला सचिव पी. सी. पारेख ने कहा कि हिंडाल्को को तालाबीरा−2 कोल ब्लॉक देने में कोई गड़बडी नहीं हुई है। अगर गड़बड़ी है तो प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार हैं। पारेख ने एफआईआर के बाद कहा था कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। तब प्रधानमंत्री के हिस्से में ही कोयला मंत्रालय था और अंतिम फैसला वही लेते थे। ऐसे में दिलचस्प मामला यह है कि सीबीआई की एफआईआर मेंप्रधानमंत्री या उनके दफ्तर का नाम नहीं है।
सवाल गर्म है कि सीबीआई जिस शख्स को सारे महत्वपूर्ण फैसलों के पीछे बता रही है आखिर वह सक्षम अधिकारी है कौन? न्यूज चैनल एनडीटीवी ने बिड़ला और पारेख पर दर्ज एफआईआर की कॉपी के हवाले से बताया है कि कोल ब्लॉक आवंटन में एक सक्षम अधिकारी अहम फैसलों को बदलता था। गौरतलब है कि तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास ही कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी थी। सीबीआई इस पर फिलहाल कुछ भी कहने से बच रही है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि इस मामले में कुछ भी छुपाया नहीं जा रहा है।
पूर्व कोयला सचिव पी. सी. पारेख ने कहा कि हिंडाल्को को तालाबीरा−2 कोल ब्लॉक देने में कोई गड़बडी नहीं हुई है। अगर गड़बड़ी है तो प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार हैं। पारेख ने एफआईआर के बाद कहा था कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है। तब प्रधानमंत्री के हिस्से में ही कोयला मंत्रालय था और अंतिम फैसला वही लेते थे। ऐसे में दिलचस्प मामला यह है कि सीबीआई की एफआईआर मेंप्रधानमंत्री या उनके दफ्तर का नाम नहीं है।
सीबीआई का कहना है
कि पीसी पारेख ने फैसला बदला दूसरी तरफ एफआईआर में एक सक्षम अधिकारी का जिक्र है, जिसने फैसला
बदलने को मंज़ूरी दी। एफआईआर के मुताबिक महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड और नेवेलि
लिग्नाइट कार्पोरेशन को तालाबीरा−2 और तालाबीरा−3 कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने की सिफारिश और कुछ दिशा निर्देशों में संशोधन
प्रस्तावों को सक्षम अधिकारी के सामने रखा गया। इसने दिशा निर्देशों में
प्रस्तावित बदलावों को मंजूरी दी और निर्देश दिया कि संशोधित दिशा निर्देशों के
तहत 25वीं स्क्रीनिंग कमिटी के मिनट देखें और कोयला सचिव के
स्तर पर मंजूर किए जाएं। इसी के मुताबिक तत्कालीन कोयला सचिव पीसी पारेख ने 16
जून 2005 के अपने नोट के जरिये 15 जुलाई 2005 तक आवंटन पत्र जारी करने का निर्देश
दिया।
सीबीआई की एफआईआर में सक्षम अधिकारी का जिक्र आगे भी आता है। सीबीआई जांच से पता चला है कि जब सक्षम अधिकारी द्वारा स्क्रीनिंग कमिटी की सिफारिशों को मंजूरी दी जा रही थी, तभी उसे हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड के कुमार मंगलम बिड़ला की ओर से 7 मई 2005 और 17 जून 2005 को लिखी गईं चिट्ठियां मिलीं। इनमें तालाबीरा−2 कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने का अनुरोध किया गया था इसे कोयला मंत्रालय को भेज दिया गया। एफआईआर के इस हिस्से दो बातें पूरी तरह से साफ हो जाती हैं कि न कोयला सचिव सक्षम अधिकारी हैं और न ही कोयला मंत्रालय। तब सवाल उठता है कि यह सक्षम अधिकारी कौन है। सीबीआई इस सवाल का जवाब नहीं देती। बस इतना कहती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी क्लीन चिट नहीं दी गई है।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी राज्य के तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक का आवंटन उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को किए जाने की सिफारिश की थी। उन्होंने यह ब्लॉक सरकारी क्षेत्र की नेवेली लिग्नाइट को अलॉट किए जाने के बाद कोयला मंत्री को खत लिखा था, जिसमें हिंडाल्को को अलॉटमेंट न होने पर आपत्ति जताते हुए फिर से अलॉटमेंट की बात कही गई थी। सीबीआई को मामले की जांच के दौरान यह खत बरामद हुआ है। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि जांच के दौरान नवीन से भी पूछताछ की जा सकती है। गौरतलब है कि यह कोल ब्लॉक हिंडाल्को को दिए जाने के बाद सीबीआई ने तत्कालीन कोयला सचिव पी.सी. पारेख और बिड़ला के खिलाफ केस दर्ज किया है।
पीएम का नाम शामिल करने की याचिका
कोल ब्लॉक अलॉटमेंट मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके कहा गया है कि सीबीआई ने इस मामले में जो 14 वीं एफआईआर दर्ज की है, उसमें तत्कालीन कोल मिनिस्टर यानी पीएम मनमोहन सिंह का नाम नहीं है और ऐसे में एफआईआर में उनका भी नाम होना चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कोल ब्लॉक अलॉटमेंट को कैंसल करने की अर्जी दाखिल की जा चुकी है, जिस पर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ता एडवोकेट एम. एल. शर्मा के मुताबिक, याचिका में कहा गया है कि मनमोहन सिंह 2005 में कोयला मंत्री थे और उसी वक्त कोल ब्लॉक अलॉटमेंट का फैसला लिया गया था। याचिका के मुताबिक, 15 अक्टूबर, 2013 को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज किया, जिसमें तत्कालीन कोल सेक्रेटरी प्रकाश चंद्र पारेख और अन्य को आरोपी बनाया है। आवेदन में पारेख के बयान का जिक्र किया गया है, जिसमें पारेख ने 16 अक्टूबर को बयान दिया है कि अलॉटमेंट का फैसला गलत नहीं है और अगर सीबीआई कहती है कि यह साजिश के तहत किया गया है तो तत्कालीन कोल मिनिस्टर यानी पीएम को भी जिम्मेदार बनाया जाए।
सीबीआई की एफआईआर में सक्षम अधिकारी का जिक्र आगे भी आता है। सीबीआई जांच से पता चला है कि जब सक्षम अधिकारी द्वारा स्क्रीनिंग कमिटी की सिफारिशों को मंजूरी दी जा रही थी, तभी उसे हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड के कुमार मंगलम बिड़ला की ओर से 7 मई 2005 और 17 जून 2005 को लिखी गईं चिट्ठियां मिलीं। इनमें तालाबीरा−2 कोल ब्लॉक आवंटित किए जाने का अनुरोध किया गया था इसे कोयला मंत्रालय को भेज दिया गया। एफआईआर के इस हिस्से दो बातें पूरी तरह से साफ हो जाती हैं कि न कोयला सचिव सक्षम अधिकारी हैं और न ही कोयला मंत्रालय। तब सवाल उठता है कि यह सक्षम अधिकारी कौन है। सीबीआई इस सवाल का जवाब नहीं देती। बस इतना कहती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को भी क्लीन चिट नहीं दी गई है।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी राज्य के तालाबीरा-2 कोल ब्लॉक का आवंटन उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को किए जाने की सिफारिश की थी। उन्होंने यह ब्लॉक सरकारी क्षेत्र की नेवेली लिग्नाइट को अलॉट किए जाने के बाद कोयला मंत्री को खत लिखा था, जिसमें हिंडाल्को को अलॉटमेंट न होने पर आपत्ति जताते हुए फिर से अलॉटमेंट की बात कही गई थी। सीबीआई को मामले की जांच के दौरान यह खत बरामद हुआ है। सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि जांच के दौरान नवीन से भी पूछताछ की जा सकती है। गौरतलब है कि यह कोल ब्लॉक हिंडाल्को को दिए जाने के बाद सीबीआई ने तत्कालीन कोयला सचिव पी.सी. पारेख और बिड़ला के खिलाफ केस दर्ज किया है।
पीएम का नाम शामिल करने की याचिका
कोल ब्लॉक अलॉटमेंट मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके कहा गया है कि सीबीआई ने इस मामले में जो 14 वीं एफआईआर दर्ज की है, उसमें तत्कालीन कोल मिनिस्टर यानी पीएम मनमोहन सिंह का नाम नहीं है और ऐसे में एफआईआर में उनका भी नाम होना चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही कोल ब्लॉक अलॉटमेंट को कैंसल करने की अर्जी दाखिल की जा चुकी है, जिस पर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ता एडवोकेट एम. एल. शर्मा के मुताबिक, याचिका में कहा गया है कि मनमोहन सिंह 2005 में कोयला मंत्री थे और उसी वक्त कोल ब्लॉक अलॉटमेंट का फैसला लिया गया था। याचिका के मुताबिक, 15 अक्टूबर, 2013 को सीबीआई ने एफआईआर दर्ज किया, जिसमें तत्कालीन कोल सेक्रेटरी प्रकाश चंद्र पारेख और अन्य को आरोपी बनाया है। आवेदन में पारेख के बयान का जिक्र किया गया है, जिसमें पारेख ने 16 अक्टूबर को बयान दिया है कि अलॉटमेंट का फैसला गलत नहीं है और अगर सीबीआई कहती है कि यह साजिश के तहत किया गया है तो तत्कालीन कोल मिनिस्टर यानी पीएम को भी जिम्मेदार बनाया जाए।
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