Tuesday, September 22, 2009

अयोटा रेयर सर्जरी के बाद अब वह बिल्कुल ठीक हैं।

एम्स में भर्ती 23 साल के अनिल ठाकुर को 2-3 दिन में छुट्टी मिल जाएगी। यहां के काडिर्योथोरेसिक एंड वेसकुलर सर्जरी डिपार्टमेंट में अयोटा (दिल से पूरे शरीर को शुद्ध खून सप्लाई करने वाली नली) की रेयर सर्जरी के बाद अब वह बिल्कुल ठीक हैं। यह सर्जरी रेयर इसलिए है कि इस दौरान कुछ देर के लिए दिमाग को होने वाली ब्लड सप्लाई भी रोक दी जाती है। अयोटा रिप्लेसमेंट की जरूरत डॉ. चौधरी ने बताया कि अयोटा रिप्लेसमेंट सर्जरी की जरूरत तब पड़ती है जब मरीज को अयोटा की होने वाली बीमारी आयोटिक डिसेक्शन हो जाता है। अयोटा की दीवार तीन परतों से बनी होती है, कम उम्र में अयोटा की दीवार काफी लचीली होती है जो उम्र के साथ-साथ कठोर होती जाती है। हार्ट के पंपिंग प्रेशर की वजह से उम्र बढ़ने पर दीवार की भीतरी पर्त कमजोर होकर फट जाती है, जिससे खून बीच की परत में आ जाता है। धीरे-धीरे छोटा सा फटा हुआ भाग ब्लड प्रेशर की वजह से बढ़कर हार्ट से लेकर किडनी या उसके नीचे भी जा सकता है। इसकी वजह से पेट के भागों में, जैसे लीवर, पैन्क्रियास और आंतों में खून की सप्लाई पर असर पड़ता है और मरीज पेट दर्द या पीठ में दर्द की शिकायत करता है। कई बार जेनेटिक कारणों से भी अयोटा की दीवार कमजोर हो जाती है यह ज्यादातर पुरुषों में होता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों में इसकी संभावना ज्यादा रहती है। कुछ मरीजों में अयोटिक वॉल्व में तीन की जगह दो ही लीफलेट होती हैं। ऐसे मरीजों में आयोटिक डिसेक्शन की संभावना ज्यादा रहती है। अगर इसका तुरंत इलाज नहीं किया गया तो बची हुई परत भी फट सकती है और खून पूरी बॉडी में फैल सकता है जिससे तुरंत मौत हो जाती है। जानकारी न होना है बड़ी दिक्कत देश में इस सर्जरी को करने वाले सर्जन की संख्या तो कम है ही, ज्यादातर मामलों में इसकी वक्त रहते पहचान भी नहीं हो पाती। कई बार अयोटा की दिक्कत को हार्ट अटैक समझ लिया जाता है क्योंकि शुरुआत में चेस्ट और बैक पेन होता है। सिटी स्कैन और इको के जरिए ही इसका पता लगाया जा सकता है सिर्फ ईसीजी से नहीं जान सकते। दिक्कत यह है कि इको और सिटी स्कैन की सुविधा सब जगह नहीं है। इसलिए इसमें मृत्यु दर 80 परसेंट हैं और 50 परसेंट मरीज तो हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।

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