औरहो गया हिन्दी का श्राद्ध्
हिन्दी वालों ने कर दिया हिन्दी का श्राद्ध् तथा एक साल के लिए कर दी सरकारी दफ्तरों से हिन्दी की छुट्टी । यह कोई नई बात नहीं है, साठ साल से यही हो रहा है और अनन्त काल तक इसी प्रकार होता रहेगा । यह एक संयोग है कि इस साल श्राद्ध् अमावश्या तथा हिन्दी के सप्ताह मनाने का दिन एक ही था । सभी कार्यालयों के अध्यक्ष 14 सितम्बर को तो संदेश वाचन में व्यस्त थे या इंदिरा गांधी पुरस्कार की दौड में । हिन्दी सप्ताह मनाया गया तथा 14 सितम्बर से 18 सितम्बर तक यह आयोजन हुआ । बडी बडी बाते कही गई, बडे बडे भाषण और व्याख्यान दिए गए । हिन्दी के सम्मान में सभी ने गुणगान कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री की । अपने अपने विभागाध्यक्ष से इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए पुरस्कार प्राप्त किया और हिन्दी को एक साल के लिए खूंटी पर टांग दिया अब यही सबकुछ अगले साल होगा ।
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी स्व. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार भारत की महामहिम राष्ट्रपति महोदया के कर-कमलों से पाकर कार्यालयाध्यक्ष धन्य हो गए लेकिन किस कीमत पर, केवल झूठ के सहारे । धारा 3(3) का शत प्रतिशत अनुपालन दिखाया गया जबकि जो कागजात उन कार्यालयों से कंप्यूटर से जॅनरेट होते है , वे सभी केवल और केवल अंग्रेजी में ही जारी हो रहे है । मैं इस तथ्य को इसलिए कह रहा हूं कि यह मामला संसदीय राजभाषा समिति की अनेकानेक बैठकों में उठा है और इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार पाने वाले कार्यालयाध्यक्षों ने संसदीय राजभाषा समिति के समक्ष यह स्वीकार किया है कि उनके यहां राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) का अनुपालन नहीं हो पा रहा है विशेषकर कंप्यूटर जनित दस्तावेज तो केवल अंग्रेजी में जारी हो रहे है । इस तथ्य के बाद भी इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार दिया जाना शायद स्व. इंदिरा गांधी जी को कभी भी स्वीकार नहीं होता । क्या इस तथ्य पर राजभाषा विभाग गौर करेगा कि इसकी इंक्वारी सीबीआई से कराई जाए और झूटे आंकडे जिन कार्यालयों ने दिये है उस आंकडों के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के विरूद्ध् कडी कार्रवाई हो तो शायद भारत का आम आदमी अपनी भाषा के कार्यान्वयन का सपना देख सके । अन्यथा प्रणाम राजभाषा विभाग को और उनके ऐसे अधिकारियों को जो केवल कुछ गिफ्ट लेकर इस प्रकार का घृणित अपराध करते है कि अपनी भाषा के प्रति ही भृष्ट आचरण करते हैं । मैं ऐसे विभागो को भी प्रणाम करता हूं जो झूटे आंकडे देकर पुरस्कृत हो रहे हैं । वे सभी धन्य हैं ।
हिन्दी वालों ने कर दिया हिन्दी का श्राद्ध् तथा एक साल के लिए कर दी सरकारी दफ्तरों से हिन्दी की छुट्टी । यह कोई नई बात नहीं है, साठ साल से यही हो रहा है और अनन्त काल तक इसी प्रकार होता रहेगा । यह एक संयोग है कि इस साल श्राद्ध् अमावश्या तथा हिन्दी के सप्ताह मनाने का दिन एक ही था । सभी कार्यालयों के अध्यक्ष 14 सितम्बर को तो संदेश वाचन में व्यस्त थे या इंदिरा गांधी पुरस्कार की दौड में । हिन्दी सप्ताह मनाया गया तथा 14 सितम्बर से 18 सितम्बर तक यह आयोजन हुआ । बडी बडी बाते कही गई, बडे बडे भाषण और व्याख्यान दिए गए । हिन्दी के सम्मान में सभी ने गुणगान कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री की । अपने अपने विभागाध्यक्ष से इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए पुरस्कार प्राप्त किया और हिन्दी को एक साल के लिए खूंटी पर टांग दिया अब यही सबकुछ अगले साल होगा ।
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी स्व. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार भारत की महामहिम राष्ट्रपति महोदया के कर-कमलों से पाकर कार्यालयाध्यक्ष धन्य हो गए लेकिन किस कीमत पर, केवल झूठ के सहारे । धारा 3(3) का शत प्रतिशत अनुपालन दिखाया गया जबकि जो कागजात उन कार्यालयों से कंप्यूटर से जॅनरेट होते है , वे सभी केवल और केवल अंग्रेजी में ही जारी हो रहे है । मैं इस तथ्य को इसलिए कह रहा हूं कि यह मामला संसदीय राजभाषा समिति की अनेकानेक बैठकों में उठा है और इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार पाने वाले कार्यालयाध्यक्षों ने संसदीय राजभाषा समिति के समक्ष यह स्वीकार किया है कि उनके यहां राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) का अनुपालन नहीं हो पा रहा है विशेषकर कंप्यूटर जनित दस्तावेज तो केवल अंग्रेजी में जारी हो रहे है । इस तथ्य के बाद भी इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार दिया जाना शायद स्व. इंदिरा गांधी जी को कभी भी स्वीकार नहीं होता । क्या इस तथ्य पर राजभाषा विभाग गौर करेगा कि इसकी इंक्वारी सीबीआई से कराई जाए और झूटे आंकडे जिन कार्यालयों ने दिये है उस आंकडों के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के विरूद्ध् कडी कार्रवाई हो तो शायद भारत का आम आदमी अपनी भाषा के कार्यान्वयन का सपना देख सके । अन्यथा प्रणाम राजभाषा विभाग को और उनके ऐसे अधिकारियों को जो केवल कुछ गिफ्ट लेकर इस प्रकार का घृणित अपराध करते है कि अपनी भाषा के प्रति ही भृष्ट आचरण करते हैं । मैं ऐसे विभागो को भी प्रणाम करता हूं जो झूटे आंकडे देकर पुरस्कृत हो रहे हैं । वे सभी धन्य हैं ।
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