देश के बाहर खुफिया सूचनाएं जमा करने वाली महत्वपूर्ण एजंसी 'रिसर्च ऐंड अनैलिसिस विंग' (रॉ) के अधिकारियों ने सरकार के फैसले के खिलाफ विद्रोह कर दिया है। अपने से जूनियर अफसर को प्रमोशन देकर ऊपर बैठाए जाने से नाराज रॉ के अधिकारी लामबंद हो गए हैं। सात सीनियर अधिकारी विरोध स्वरूप छुट्टी पर चले गए हैं। सूत्रों के मुताबिक हालात की गंभीरता को देखते हुए कैबिनेट सचिवालय ने आदेश जारी किया है कि अगले हफ्ते तक विभागीय प्रमोशन कमिटी की बैठक बुलाई जाए। इस बैठक में छुट्टी पर गए सात अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की प्रमोशन पर विचार किया जाएगा। सारा विवाद मणिपुर कैडर के 1975 बैच के आईपीएस अधिकारी ए. बी. माथुर की रॉ में नियुक्ति को लेकर है। सरकार ने माथुर को प्रमोशन देकर रॉ में स्पेशल सेक्रटरी नियुक्त किया है। इस नियुक्ति में रॉ के अपने कैडर के अधिकारियों की वरिष्ठता की अनदेखी की गई है। रॉ के जिन अफसरों को प्रमोशन प्रभावित हुई है, उनमें 1973 बैच पी. एम. हबलीकर और चक्र सिन्हा भी शामिल हैं।
सूत्रों के मुताबक नाराज अफसरों ने अपने मुखिया के. सी. वर्मा को अपने फैसले से अवगत करा दिया था। वर्मा की पहल पर कैबिनेट सचिवालय ने अगले सप्ताह विभागीय कमिटी की बैठक बुलाने का आदेश दिया है। रॉ में बाहरी अधिकारियों का मुद्दे लंबे समय से एक समस्या बना हुआ है। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब इंटेलीजेंस ब्यूरो के स्पेशल डाइरेक्टर ए. एस. दौलत को रॉ का चीफ बनाया गया था। 2005 में मनमोहन सरकार ने जब केरल के पुलिस महानिदेशक पी. के. एच. थाराकन को रॉ का नेतृत्व सौंपा था तो उस समय रॉ के तत्कालीन विशेष सचिव जे. के. सिन्हा ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 1970 बैच के आईएएस अफसर अशोक चतुर्वेदी रॉ के चीफ बनाए गए थे। उस समय अम्बर सेन को सुपरसीड किया गया था। रॉ का अपना अलग कैडर है। रॉ अलाइड सर्विसेज (आरएएस) कैडर के अफसरों को इस प्रतिष्ठित एजंसी में वरीयता मिलती रही है। आईएएस और आईपीएस से रॉ में आने वाले अफसरों की वरीयता क्रम में सबसे नीचे रखा जाता है। उन्होंने कोई वरिष्ठता लाभ भी नहीं दिया जाता है। इन हालात में माथुर की नियुक्ति ने बवाल खड़ा कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह मुद्दा गंभीर रूप ले सकता है।
सूत्रों के मुताबक नाराज अफसरों ने अपने मुखिया के. सी. वर्मा को अपने फैसले से अवगत करा दिया था। वर्मा की पहल पर कैबिनेट सचिवालय ने अगले सप्ताह विभागीय कमिटी की बैठक बुलाने का आदेश दिया है। रॉ में बाहरी अधिकारियों का मुद्दे लंबे समय से एक समस्या बना हुआ है। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब इंटेलीजेंस ब्यूरो के स्पेशल डाइरेक्टर ए. एस. दौलत को रॉ का चीफ बनाया गया था। 2005 में मनमोहन सरकार ने जब केरल के पुलिस महानिदेशक पी. के. एच. थाराकन को रॉ का नेतृत्व सौंपा था तो उस समय रॉ के तत्कालीन विशेष सचिव जे. के. सिन्हा ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 1970 बैच के आईएएस अफसर अशोक चतुर्वेदी रॉ के चीफ बनाए गए थे। उस समय अम्बर सेन को सुपरसीड किया गया था। रॉ का अपना अलग कैडर है। रॉ अलाइड सर्विसेज (आरएएस) कैडर के अफसरों को इस प्रतिष्ठित एजंसी में वरीयता मिलती रही है। आईएएस और आईपीएस से रॉ में आने वाले अफसरों की वरीयता क्रम में सबसे नीचे रखा जाता है। उन्होंने कोई वरिष्ठता लाभ भी नहीं दिया जाता है। इन हालात में माथुर की नियुक्ति ने बवाल खड़ा कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह मुद्दा गंभीर रूप ले सकता है।
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