Thursday, September 24, 2009
यह भी सोचना चाहिये कि हम भारत की संस्कृति को कहीं विनाश की ओर तो नहीं ले जा रहे है कयों यह तथ्य कि अखबार चाइनडेली में छपी एक खबर के मुताबिक
Tuesday, September 22, 2009
अयोटा रेयर सर्जरी के बाद अब वह बिल्कुल ठीक हैं।
चिट्ठी नहीं ये है लेटर बम
Sunday, September 20, 2009
पंडित रविशंकर की बेटी और कंपोजर अनुष्का शंकर की निजी तस्वीरों हैक करने वाले को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया
पंडित रविशंकर की बेटी और कंपोजर अनुष्का शंकर की निजी तस्वीरों को उनके लैपटॉप से हैक कर ब्लैकमेल करने वाले को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। कोर्ट ने जुनैद को 14 दिनों के लिए जुडिशल कस्टडी में भेज दिया है। मुंबई से गिरफ्तार इस शख्स का नाम जुनैद अहमद बताया जा रहा है। इससे पहले मीडिया और टीवी चैनलों में खबरें आईं कि किसी ने मशहूर सितारवादक पंडित रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर के लैपटॉप से निजी फोटो चुरा लिए हैं। इन तस्वीरों के जरिए अनुष्का को ब्लैकमेल करने की कोशिश की जा रही है। दिल्ली पुलिस ने आईपीसी की धारा 386 के तहत अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कर ली थी और इस मामले की जांच कर रही थी। बताया जाता है कि अनुष्का का लैपटॉप मरम्मत के लिए दक्षिणी दिल्ली के ऐपल सर्विस सेंटर में भेजा गया था। पुलिस को शक है कि सर्विस सेंटर में ही किसी ने अनुष्का की तस्वीरें चुरा लीं। खबरों के मुताबिक , अनुष्का शंकर , अमेरिका के कैलिफोर्निया में रहती हैं और उनका एक घर दिल्ली में भी है। इस साल फरवरी में उन्होंने अपना लैपटॉप मरम्मत के लिए सर्विस सेंटर भेजा था। अगस्त में पंडित रवि शंकर ने इस मामले की शिकायत दिल्ली पुलिस से की जिसके बाद पुलिस ने तहकीकात शुरू कर दी। इस मामले में जांचकर्ताओं का शक मुंबई में रहने वाले एक शख्स पर है।
ग्लैमरस अंदाज में अनुष्का शंकर कहा जा रहा है कि तथाकथित ब्लैकमेलर ने अनुष्का को कई ईमेल भेजे हैं जिनमें से कुछ भारत के बाहर से भी भेजे गए। ऐसे ही एक ईमेल में तस्वीरें के बदले एक लाख डॉलर की मांग भी की गई। लेकिन जांचकर्ताओं का कहना है कि आईपी अड्रेस और जीपीआरएस कनेक्शन के डीटेल से पता चला है कि यह ईमेल भारत से ही भेजे गए हैं।
ओरहो गया हिन्दी का श्राद्ध्
हिन्दी वालों ने कर दिया हिन्दी का श्राद्ध् तथा एक साल के लिए कर दी सरकारी दफ्तरों से हिन्दी की छुट्टी । यह कोई नई बात नहीं है, साठ साल से यही हो रहा है और अनन्त काल तक इसी प्रकार होता रहेगा । यह एक संयोग है कि इस साल श्राद्ध् अमावश्या तथा हिन्दी के सप्ताह मनाने का दिन एक ही था । सभी कार्यालयों के अध्यक्ष 14 सितम्बर को तो संदेश वाचन में व्यस्त थे या इंदिरा गांधी पुरस्कार की दौड में । हिन्दी सप्ताह मनाया गया तथा 14 सितम्बर से 18 सितम्बर तक यह आयोजन हुआ । बडी बडी बाते कही गई, बडे बडे भाषण और व्याख्यान दिए गए । हिन्दी के सम्मान में सभी ने गुणगान कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री की । अपने अपने विभागाध्यक्ष से इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए पुरस्कार प्राप्त किया और हिन्दी को एक साल के लिए खूंटी पर टांग दिया अब यही सबकुछ अगले साल होगा ।
सरकारी कार्यालयों में हिन्दी में सर्वोत्कृष्ट कार्य करने के लिए हर साल की तरह इस साल भी स्व. इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार भारत की महामहिम राष्ट्रपति महोदया के कर-कमलों से पाकर कार्यालयाध्यक्ष धन्य हो गए लेकिन किस कीमत पर, केवल झूठ के सहारे । धारा 3(3) का शत प्रतिशत अनुपालन दिखाया गया जबकि जो कागजात उन कार्यालयों से कंप्यूटर से जॅनरेट होते है , वे सभी केवल और केवल अंग्रेजी में ही जारी हो रहे है । मैं इस तथ्य को इसलिए कह रहा हूं कि यह मामला संसदीय राजभाषा समिति की अनेकानेक बैठकों में उठा है और इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार पाने वाले कार्यालयाध्यक्षों ने संसदीय राजभाषा समिति के समक्ष यह स्वीकार किया है कि उनके यहां राजभाषा अधिनियम की धारा 3(3) का अनुपालन नहीं हो पा रहा है विशेषकर कंप्यूटर जनित दस्तावेज तो केवल अंग्रेजी में जारी हो रहे है । इस तथ्य के बाद भी इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार दिया जाना शायद स्व. इंदिरा गांधी जी को कभी भी स्वीकार नहीं होता । क्या इस तथ्य पर राजभाषा विभाग गौर करेगा कि इसकी इंक्वारी सीबीआई से कराई जाए और झूटे आंकडे जिन कार्यालयों ने दिये है उस आंकडों के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी के विरूद्ध् कडी कार्रवाई हो तो शायद भारत का आम आदमी अपनी भाषा के कार्यान्वयन का सपना देख सके । अन्यथा प्रणाम राजभाषा विभाग को और उनके ऐसे अधिकारियों को जो केवल कुछ गिफ्ट लेकर इस प्रकार का घृणित अपराध करते है कि अपनी भाषा के प्रति ही भृष्ट आचरण करते हैं । मैं ऐसे विभागो को भी प्रणाम करता हूं जो झूटे आंकडे देकर पुरस्कृत हो रहे हैं । वे सभी धन्य हैं ।
सगे बेटे ने बैंक मैनेजर के साथ मिलकर मां के खाते से लाखों रुपये निकाल लिए
सगे बेटे ने बैंक मैनेजर के साथ मिलकर मां के खाते से लाखों रुपये निकाल लिए । आरोप है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों ने नियम कानून को तक पर रखकर पेंशन खाते में अवैध रूप से उनके बेटे का नाम जोड़ दिया और खाते पर इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा भी मुहैया करा दी। महत्वपूर्ण है कि पेंशन खाते से रकम निकालने की अनुमति बैंक अधिकारी पेंशनर की उपस्थिति सुनिश्चित करने के बाद ही देते हैं। इस मामले में शिकायत के बाद पुलिस ने केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। पुलिस के मुताबिक पलवल की कृष्णा कॉलोनी में रहने वाली राजवती का एसबीआई बैंक में पेंशन का अकाउंट है। 3 जुलाई को वह अपने खाते से रुपये निकालने गईं तो पता चला कि उनका खाता इस ब्रांच से फरीदाबाद के सेक्टर-21 सी स्थित एसबीआई ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया गया है। एसबीआई के अधिकारियों ने राजवती को बताया कि उनके खाते से पांच लाख रुपये निकाल लिए गए हैं। राजवती ने दावा किया कि उन्होंने इतनी बड़ी रकम नहीं निकाली है। जब राजवती ने पलवल में बैंक अधिकारियों से बात की तो उन्हें फरीदाबाद जाने को कहा गया। वह फरीदाबाद के सेक्टर-21 सी स्थित एसबीआई ब्रांच पहुंची। वहां मैनेजर ने बताया कि वह अपने बेटे मंदीप के साथ आई थीं और यह रकम निकाली, जबकि राजवती का कहना था कि वह पहली बार इस ब्रांच में आई हैं। राजवती का कहना है कि एसबीआई की फरीदाबाद ब्रांच के मैनेजर ने उनके पेंशन खाते में उनके बेटे मंदीप का नाम भी जोड़ दिया। इस खाते पर इंटरनेट बैंकिंग सुविधा भी उपलब्ध करा दी। महत्वपूर्ण है कि पेंशन खाते में किसी और व्यक्ति का नाम नहीं जोड़ा जा सकता है। राजवती ने आरोप लगाया कि मंदीप ने बैंक मैनेजर की मिलीभगत से उनके खाते से पांच लाख रुपये निकाले। तीनों ने उनके नाम से झूठे कागजात बनाए। इन कागजों में जीपीए, पैन कार्ड समेत दूसरे कागजात शामिल हैं। इन पर उनके साइन नहीं हैं। पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
Tuesday, September 15, 2009
कॉमनवेल्थ गेम्स : परियोजनाएं या तो लेट हैं या फिर शुरू ही नहीं हो पाई हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों को लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन के अध्यक्ष माइकल फेनेल की चिंता पूरी तरह से जायज नजर आ रही है। गेम्स के लिए चल रहीं कुल 35 परियोजनाओं में से आधा दर्जन को छोड़ बाकी परियोजनाएं या तो लेट हैं या फिर शुरू ही नहीं हो पाई हैं। अक्षरधाम के निकट बन रहा गेम्स विलेज भी समय पर तैयार हो पाएगा कहना मुश्किल है। बिजली - पानी के पूरे इंतजाम नहीं हैं। अब तक बसों का ही अता - पता नहीं है तो ट्रांसपोर्ट सिस्टम कैसे दुरुस्त होगा ? एयरपोर्ट के लिए तैयार किया जा रहा वॉटर प्लांट मंदी की मार झेल रहा है। सड़कें बदहाल हैं , कई रेलवे ओवर ब्रिज लटके पड़े हैं। ऐसे में फेनेल का प्रधानमंत्री डॉ । मनमोहन सिंह का हस्तक्षेप चाहना भी ठीक लगता है। कवि की चुटकी :
खतरे की घंटी पर संतुष्ट हमारी शीला अंटी
स्टेडियम टारगेट से पीछे अगले महीने अक्टूबर में कॉमनवेल्थ गेम्स फेडरेशन की टीम तैयारियों का जायजा लेने दिल्ली आ रही है। इस टीम में कॉमनवेल्थ गेम्स के सभी 70 देशों के सदस्य आ रहे हैं। सभी तैयारियां लेट चल रही हैं। गेम्स विलेज में सिर्फ ढांचा खड़ा किया गया है। बाकी कामबाकी है। त्यागराज स्टेडियम को छोड़ कर छत्रसाल स्टेडियम , नेहरू स्टेडियम , यमुना स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स , डॉ . करणी सिंह शूटिंग रेंज , साकेत स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स सहित सभ टारगेट से पीछे चल रहे हैं। राजधानी में कई सरकारी एजेंसियां होने के कारण 16 रेलवे ओवर ब्रिज किसी न किसी विवाद में फंसे हैं। एजेंसियों की आपसी खींचतान के कारण इन्हें पूरा करने में दिक्कतें आ रही हैं। न ब्यूटीफिकेशन , न बिजली गेम्स के लिए तैयार हो रहे स्थलों के आसपास 12 सड़कों का सौंदर्यीकरण किया जाना है , ये काम भी आपसी खींचतान में फंसा हुआ है। गेम्स के दौरान बिजली कहां से आएगी , इस पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। पूरी तरह गेम्स के लिए तैयार किया जा रहे 1500 मेगावॉट क्षमता के बवाना पावर प्लांट में अभी 30 फीसदी तक ही काम हुआ है। प्लांट में कंट्रोल पैनल तक नहीं बना है। दादरी पावर प्लांट गैस के लिए जूझ रहा है। दामोदर वैली कॉरपोरेशन से भी बिजली की आस नजर नहीं आ रही है। जहां तक पानी का सवाल है तो इंटरनैशनल एयरपोर्ट के लिए तैयार किए जा रहे 50 एमजीडी के द्वारका वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट पर भी बादल मंडरा रहे हैं। प्लांट को तत्काल 300 करोड़ रुपये चाहिए , लेकिन जल बोर्ड के पास पैसा नहीं है। ऐसे में प्लांट का काम धीमा चल रहा है। 29 होटलों का काम शुरू नहीं मंदी के कारण होटलों की 29 साइटों में से काफी सारी साइटों पर काम ही शुरू नहीं हो पाया है। लो फ्लोर बसों का अभी तक कोई अता - पता नहीं है , ऐसे में ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। ये सारी चिंताएं गेम्स की तैयारियों पर ग्रहण लगा रही हैं।
Sunday, September 13, 2009
इच्छुक कैदियों से पैसे लेकर करीब एक महीने तक फिल्म दिखाते रहे
तिहाड़ जेल में अभी तक चोरी-छिपे बीड़ी, अफीम और गांजा ही बिकते थे, लेकिन अब ब्लू फिल्म दिखाने का भी धंधा शुरू हो गया है। कुछ कैदियों ने यह कारनामा किया है। यह कैदी ब्लू फिल्म देखने के इच्छुक कैदियों से पैसे लेकर करीब एक महीने तक फिल्म दिखाते रहे, लेकिन जेल प्रशासन की नींद तब टूटी जब यह मामला काफी कैदियों के बीच चर्चा का विषय बन गया। आनन-फानन में तिहाड़ की सभी जेलों में छापे मारे गए। चार कैदियों से 10 पेन ड्राइव मिलीं, जिनमें ब्लू फिल्म लोड थीं। अब जेल प्रशासन इस मामले को दबाने में जुटा है। सूत्रों का कहना है कि ब्लू फिल्म दिखाने का यह धंधा तिहाड़ की जेल नंबर-2 और 3 में चल रहा था। यहां के चार कैदियों ने कहीं से 10 पेन ड्राइव का इंतजाम किया और इनमें ब्लू फिल्में लोड कर लीं। अभी यह साफ नहीं है कि ब्लू फिल्में कहां से आईं, लेकिन आशंका है कि ये फिल्में जेल सुपरिंटेंडेंट के कंप्यूटरों से ही लोड की गईं, क्योंकि जेल में सिर्फ जेल सुपरिंटेंडेंट के कंप्यूटरों में ही इंटरनेट कनेक्शन है। सूत्रों के मुताबिक, पेन ड्राइव में ब्लू फिल्में लोड करने के बाद इन चारों कैदियों ने दोनों जेलों की लाइब्रेरी में रखे कंप्यूटरों पर इन्हें दूसरे कैदियों को दिखाना शुरू कर दिया। जेलों की लाइब्रेरी में कंप्यूटर कैदियों को सिखाने के लिए हैं। कंप्यूटरों की मदद से गरीब कैदियों के लिए कोर्ट कार्यवाही के लिए डॉक्युमेंट भी तैयार किए जाते हैं। सूत्रों ने बताया कि पहले तो ब्लू फिल्में कैदियों को फ्री में दिखाई गईं लेकिन बाद में दो मिनट की मूवी दिखाने के लिए 100 रुपये और 5 मिनट की मूवी दिखाने के लिए यह कैदी इच्छुक कैदी से 150 रुपये ले रहे थे। दोनों जेलों में ब्लू फिल्म देखने वाले कैदियों की संख्या में इजाफा होता गया। करीब एक महीने तक ऐसा चलता रहा। सूचना मिलने पर जेल प्रशासन ने सभी जेलों में रात में छापे मारे। छापे के दौरान सभी जेलों की लाइब्रेरी में लगे कंप्यूटरों की जांच की गई। इस दौरान जेल नंबर-2 में तीन कैदियों के पास 6 और जेल नंबर-3 में एक कैदी के पास 4 पेन ड्राइव मिलीं। इन पेन ड्राइव की जांच की गई तो उनमें सिर्फ ब्लू फिल्में थीं। इस मामले में तिहाड़ जेल के प्रवक्ता सुनील कुमार ने कहा कि जेल में ब्लू फिल्म दिखाने वाला कोई मामला उनकी जानकारी में नहीं आया है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि जेल प्रशासन इस बात को दबा रहा है। चारों कैदियों पर अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
सूचना मिलते ही पुलिस भी तत्काल मौके पर पहुंची।
Thursday, September 10, 2009
करीब 5 हजार हिंदू तालिबान के डर से भाग कर भारत आ गए
पिछले चार सालों में पाकिस्तान से करीब 5 हजार हिंदू तालिबान के डर से भाग कर भारत आ गए, कभी वापस न जाने के लिए। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर, आना आसान नहीं है। लेकिन इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। 2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है भारत में बाड़मेर के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं गए हैं। वह इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं। गौर करने लायक बात यह है कि यह आंकड़े आधिकारिक हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या कहीं अधिक है जो पाकिस्तान से यहां आए और स्थानीय लोगों में मिल कर अब स्थानीय निवासी बन कर रह रहे हैं। अधिकारियों का इन विस्थापितों के प्रति नरम व्यवहार है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग पाकिस्तान में भयावह स्थिति से गुजरे हैं। वह दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाते हैं।
मुनाबाओ रेलवे स्टेशन के इमिग्रेशन ऑफिसर हेतुदन चरण का कहना है, 'भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है। हर हफ्ते 15-16 परिवार यहां आ रहे हैं। लेकिन इनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि वह यहां बसने के इरादे से आए हैं। लेकिन आप उनका सामान देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह शायद अब वापस नहीं लौटेंगे।' राना राम पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रहीमयार जिले में अपने परिवार के साथ रहता था। अपनी कहानी सुनाते हुए उसने कहा- वह तालिबान के कब्जे में था। उसकी बीवी को तालिबान ने अगवा कर लिया। उसके साथ रेप किया और उसे जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। इतना ही नहीं, उसकी दोनों बेटियों को भी इस्लाम कबूल करवाया। यहां तक की जान जाने के डर से उसने भी इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद उसने वहां से भागना ही बेहतर समझा और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ भारत भाग आया। उसकी पत्नी का अभी तक कोई अता पता नहीं है। एक और विस्थापित डूंगाराम ने कहा- पिछले दो सालों में हिंदुओं के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं खासकर परवेज़ मुशर्रफ के जाने के बाद। अब कट्टरपंथी काफी सक्रिय हो गए हैं... हम लोगों को तब स्थायी नौकरी नहीं दी जाती थी, जब तक हम इस्लाम कबूल न कर लें। बाड़मेर और जैसलमेर में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले सीमांत लोक संगठन के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं- भारत में शरणार्थियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं है। यही कारण है कि पाकिस्तान से भारी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं। सोढ़ा ने कहा- पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत सरकार शायद ही कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा नहीं उठाती है। उन्होंने कहा- 2004-05 में 135 शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है। उन्होंने कहा- पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर 2008 में करीब 200 हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं जो हिंदू धर्म नहीं छोड़ना चाहते लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।
Tuesday, September 8, 2009
सरकार के फैसले के खिलाफ विद्रोह
सूत्रों के मुताबक नाराज अफसरों ने अपने मुखिया के. सी. वर्मा को अपने फैसले से अवगत करा दिया था। वर्मा की पहल पर कैबिनेट सचिवालय ने अगले सप्ताह विभागीय कमिटी की बैठक बुलाने का आदेश दिया है। रॉ में बाहरी अधिकारियों का मुद्दे लंबे समय से एक समस्या बना हुआ है। इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब इंटेलीजेंस ब्यूरो के स्पेशल डाइरेक्टर ए. एस. दौलत को रॉ का चीफ बनाया गया था। 2005 में मनमोहन सरकार ने जब केरल के पुलिस महानिदेशक पी. के. एच. थाराकन को रॉ का नेतृत्व सौंपा था तो उस समय रॉ के तत्कालीन विशेष सचिव जे. के. सिन्हा ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 1970 बैच के आईएएस अफसर अशोक चतुर्वेदी रॉ के चीफ बनाए गए थे। उस समय अम्बर सेन को सुपरसीड किया गया था। रॉ का अपना अलग कैडर है। रॉ अलाइड सर्विसेज (आरएएस) कैडर के अफसरों को इस प्रतिष्ठित एजंसी में वरीयता मिलती रही है। आईएएस और आईपीएस से रॉ में आने वाले अफसरों की वरीयता क्रम में सबसे नीचे रखा जाता है। उन्होंने कोई वरिष्ठता लाभ भी नहीं दिया जाता है। इन हालात में माथुर की नियुक्ति ने बवाल खड़ा कर दिया है। सूत्रों का कहना है कि यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो यह मुद्दा गंभीर रूप ले सकता है।
शशि थरूर ने अपने बयान में कहा है कि वे तो ताज होटल 1 सितंबर को ही छोड़ चुके हैं।
फाइव स्टार होटेलों में रहने को लेकर हो रही आलोचना के बाद विदेश मंत्री एस. एम. कृष्णा और विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर गेस्ट हाउसों में रहने चले गए हैं। इसके पहले प्रणब मुखर्जी ने भी इस बारे में पूछे जाने पर कहा था कि मैंने कृष्णा और थरूर को अपने गेस्ट हाउसों में जाने की सलाह दी थी। उन्होंने मंत्रालयों को सरकारी खर्च कम करने का आदेश देने के मद्देनजर संवाददाताओं के सवालों के जवाब में यह टिप्पणी की। हालांकि दोनों मंत्रियों का कहना है कि वे होटलों में अपने खर्चे से रह रहे थे। शशि थरूर ने अपने बयान में कहा है कि वे तो ताज होटल 1 सितंबर को ही छोड़ चुके हैं।
गौरतलब है कि सोमवार को वित्त मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों को नोटिस जारी कर कहा था कि वे अपने खर्चों में 10 पर्सेंट तक की कटौती करें। मंत्री विदेशों का दौरा कम करें। मंत्री न तो फाइव स्टार होटलों में प्रेस कॉन्फ्रेंस करें और न फाइव स्टार होटलों में रहें। किसी भी प्रदेश के दौरे में वे सरकारी भवन में ही रहें। यहां पत्रकारों से बातचीत में प्रणब मुखर्जी ने कहा, 'दोनों मंत्रियों से होटेल को खाली करने का अनुरोध किया गया है। वे जिन राज्यों से चुनाव जीतकर आए हैं, उन राज्यों के सरकारी भवनों में रह सकते हैं। इसके अलावा दोनों विदेश मंत्रालय से मंत्री है और हैदराबाद हाउस में मंत्रालय का गेस्ट हाउस भी बना हुआ है। दोनों मंत्री चाहे तो वहां रह सकते हैं।' एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि दोनों मंत्री होटेल के कमरों को मंगलवार को ही खाली करने पर सहमत हो गए हैं। सूत्रों के अनुसार एस. एम. कृष्णा फॉरेन सर्विस इंस्टिट्यूट (एफएसआई) गेस्ट हाउस जा रहे हैं। कृष्णा मौर्या के जिस सुइट (कमरे) में रह रहे थे, उस प्रतिदिन का किराया एक लाख रुपये था। लोकसभा चुनावों से पहले दो नेताओं ने अपनी कुल संपत्ति 10 करोड़ रुपये से ज्यादा की बताई है। दोनों मंत्रियों का मानना है कि होटेलों में रहने का पूरा खर्च उन्होंने खुद उठाया है। मगर उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि होटल बिल कितने का दिया। इस मामले में दोनों का तर्क यह है कि दोनों को जो बंगला दिया गया है, उसकी मरम्मत का काम चल रहा है। यही कारण है कि उन्हें होटेल में रहना पड़ा। इधर कांग्रेस पार्टी ने इस मामले में प्रणब मुखर्जी के बयान को सही बताया है। कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी का कहना है कि सरकार खर्चों में कमी का ऐलान कर रही है। ऐसे में अगर मंत्री फाइव स्टार होटलों में रहेंगे तो इसका गलत संदेश गलत जाएगा। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि सरकार ने इन दोनों मंत्रियों के होटलों का बिल नहीं दिया है।
Thursday, September 3, 2009
राजशेखर रेड्डी की मौत
Tuesday, September 1, 2009
चीन को भारत के 20-30 टुकड़े कर देने चाहिए।
खंडित भारत का उसे दिखे स्वप्न
हसीन चीनी थिंक टैंक - चाइना इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज की वेबसाइट पर झान लू नामक लेखक ने लिखा है कि चीन अपने मित्र देशों - पाकिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल और भूटान की मदद से तथाकथित भारतीय महासंघ को तोड़ सकता है। झान लू तमिल और कश्मीरियों को आजाद कराने और अल्फा जैसे संगठनों का समर्थन करने की बात भी कहते हैं। झान कहते हैं कि चीन बांग्लादेश को प . बंगाल की आजादी को समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित करे , ताकि एक बांग्ला राष्ट्र का उदय हो सके। वह अरुणाचल प्रदेश में 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन को मुक्त कराने की सलाह भी देते हैं।
चीनी सरकार को सलाह देने वाले थिंक टैंक की यह वेबसाइट अधिकृत हो या नहीं , पर यह इस बात का प्रमाण तो है ही कि वहां के बुद्धिजीवी अभी भी भारत के बारे में क्या सोचते हैं। ऐसी व्याख्याएं करते वक्त वे यह भूल जाते हैं कि आजादी के बाद भारत के टूट जाने संबंधी उतने सिद्धांत सामने नहीं आए हैं जितने चीन के। चीन की टूट की भविष्यवाणी करने वालों में चीनी सरकार से असंतुष्ट , ताइवानी पृष्ठभूमि से लेकर अन्य श्रेणी के लोग भी शामिल हैं। ये चीन का विखंडन निश्चित मानते हैं। जापान में केनिची ओहमेइ ने लिखा है कि चीन के टूटने के बाद 11 गणराज्य पैदा हो सकते हैं , जो एक ढीलाढाला संघीय गणराज्य कायम कर लेंगे। 1993 में दो विद्वानों ने युगोस्लाविया से तुलना करते हुए चीन की संभावित टूट के प्रति आगाह किया था। उन्होंने केंद्रीय सरकार के वित्तीय केंद्रीकरण की नीति को युगोस्लाविया के समान मानते हुए कहा कि इस वजह से इस देश को एक रख पाना संभव नहीं होगा। सोवियत संघ एवं पूर्वी यूरोप में कम्युनिस्ट शासन के ध्वंस काल में अमेरिकी रक्षा विभाग ने चीन के भविष्य के आकलन के लिए एक 13 सदस्यीय पैनल का गठन किया , जिसमें बहुमत से चीन के बिखर जाने की बात कही गई थी। 1995 में यूनिवसिर्टी ऑफ कैलिफोनिर्या के प्रो . जैक गोल्डस्टोन ने फारेन अफेयर्स में लिखे अपने लेख ' द कमिंग चाइनीज कोलैप्स ' में कहा कि अगले 10 से 15 वर्षों में चीन के शासक वर्ग के सामने बड़ा संकट पैदा होगा। इसके संदर्भ में उन्होंने बुजुर्गों की बढ़ती आबादी , कर्मचारियों व किसानों का असंतोष और नेतृत्व के बीच मतभेद का संकट तथा वित्तीय कमजोरियों के कारण नेतृत्व की प्रभावकारी शासन करने की क्षमता में तेज गिरावट आदि का उल्लेख किया था। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के ही गॉर्डन सी . चांग ने अपनी पुस्तक - कमिंग कोलैप्स ऑफ चाइना में चीन की आर्थिक संस्थाओं की कमजोरियों का विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा है कि विश्व व्यापार संगठन में उसका प्रवेश उसके विघटन का कारण बन जाएगा।