दिल्ली में सीएनजी की कीमतों में 2.10 रुपए प्रति लीटर की वृद्धि अब जहां सिर्फ वक्त की बात रह गई है, वहीं रसोई गैस की कीमतें बढ़ने की सुगबुगाहट भी साफ दिखने लगी है। आर्थिक संसाधनों की कमी से जूझ रही दिल्ली सरकार की नजर एलपीजी पर दी जा रही 40 रुपए प्रति सिलेंडर की सब्सिडी खत्म करने पर है। सरकार ने अभी तक इस बारे में खुलकर कुछ नहीं कहा है, लेकिन तथ्य यही है कि एलपीजी सब्सिडी से दिल्ली सरकार पर 165 करोड़ रुपए सालाना का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। सब्सिडी के कारण दिल्ली में गैस सिलेंडर कीमत 280 रुपए है जबकि बाकी राज्यों में यह 320 रुपए के आसपास है। ऐसे में 22 जून को पेश होने वाले बजट से पहले एलपीजी की कीमतों में वृद्धि देखने को मिल सकती है।
दिल्ली सरकार का सबसे अधिक जोर राष्ट्रमंडल परियोजनाओं और आधारभूत ढांचे के विकास पर है। दिल्ली सरकार इस समय जो प्रमुख सब्सिडी दे रही है, वह एलपीजी और बिजली क्षेत्र में है। पिछले वित्त वर्ष में दिल्ली सरकार का कर संग्रह लक्ष्य से 1,300 करोड़ रुपए कम रहा था। विचार-विमर्श की प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, 'वरिष्ठ अधिकारी इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि एलपीजी में सब्सिडी किस हद तक खत्म की जा सकती है। दरअसल, यह सब्सिडी पिछले साल जून में तब दी गई थी जब केंद्र सरकार ने एलपीजी सिलेंडर की कीमत 50 रुपए बढ़ाई थी। दिल्ली में रसोई को इस झटके से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से सेल्स टैक्स में छूट के जरिए 40 रुपए की सब्सिडी दी थी। इस तरह दिल्ली वालों को गैस सिलेंडर पर सिर्फ 10 रुपए ज्यादा देने पड़े थे। अब जबकि दिल्ली सरकार के राजस्व पर दबाव पड़ रहा है तो इस सब्सिडी को खत्म करना एक विकल्प हो सकता है।' दिल्ली सरकार ने सब्सिडी देने का फैसला ऐसे वक्त पर किया था जब कुछ महीने बाद ही पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव होने थे। अब दिल्ली में 2012 से पहले कोई बड़ा चुनाव नहीं है। एमसीडी के चुनाव 2012 में होंगे। ऐसे में सरकार पर लोकलुभावन फैसले लेने का बहुत दबाव नहीं है। अगर दिल्ली सरकार की माली हालत पर नजर डालें तो दिल्ली सरकार की ओर से 25 फरवरी को पेश अंतरिम बजट में कर संग्रह लक्ष्य से 1,300 करोड़ रुपए कम रहने की बात कही गई थी। इसके अलावा 2008-09 के बजट में दिल्ली सरकार ने कुछ सामान पर वैट में छूट दी थी और राज्य में किसी भी तरह का कर नहीं बढ़ाया था। सरकार की तरफ से सख्त कदम उठाने की आशंका इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होना है। अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया था कि सरकार के पास इतना ही पैसा है कि खेल आयोजन के लिए पहले से मंजूर योजनाओं को अमल में लाया जा सके। राष्ट्रमंडल की नई योजनाओं को अमल में लाने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। ऐसे में सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठा सकती है। अंतरिम बजट पर नजर डालें तो रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों की मंदी के कारण कर संग्रह कम रहा। सरकार ने वित्त वर्ष 2008-09 में 13,840 करोड़ रुपए के कर संग्रह का लक्ष्य रखा था, लेकिन मंदी के कारण वित्त वर्ष 2008-09 में सिर्फ 12,535 करोड़ रुपए कर राजस्व के रूप में मिल पाया। इस तरह मंदी ने कर संग्रह में 1,317 करोड़ रुपए की सेंध लगाई है। सरकार के लिए तसल्ली की बात यही है कि कर संग्रह पिछले वित्त वर्ष के 11,966.50 करोड़ रुपए से 4.65 फीसदी अधिक रहने का अनुमान है।
दिल्ली सरकार का सबसे अधिक जोर राष्ट्रमंडल परियोजनाओं और आधारभूत ढांचे के विकास पर है। दिल्ली सरकार इस समय जो प्रमुख सब्सिडी दे रही है, वह एलपीजी और बिजली क्षेत्र में है। पिछले वित्त वर्ष में दिल्ली सरकार का कर संग्रह लक्ष्य से 1,300 करोड़ रुपए कम रहा था। विचार-विमर्श की प्रक्रिया से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, 'वरिष्ठ अधिकारी इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं कि एलपीजी में सब्सिडी किस हद तक खत्म की जा सकती है। दरअसल, यह सब्सिडी पिछले साल जून में तब दी गई थी जब केंद्र सरकार ने एलपीजी सिलेंडर की कीमत 50 रुपए बढ़ाई थी। दिल्ली में रसोई को इस झटके से बचाने के लिए सरकार ने अपनी तरफ से सेल्स टैक्स में छूट के जरिए 40 रुपए की सब्सिडी दी थी। इस तरह दिल्ली वालों को गैस सिलेंडर पर सिर्फ 10 रुपए ज्यादा देने पड़े थे। अब जबकि दिल्ली सरकार के राजस्व पर दबाव पड़ रहा है तो इस सब्सिडी को खत्म करना एक विकल्प हो सकता है।' दिल्ली सरकार ने सब्सिडी देने का फैसला ऐसे वक्त पर किया था जब कुछ महीने बाद ही पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव होने थे। अब दिल्ली में 2012 से पहले कोई बड़ा चुनाव नहीं है। एमसीडी के चुनाव 2012 में होंगे। ऐसे में सरकार पर लोकलुभावन फैसले लेने का बहुत दबाव नहीं है। अगर दिल्ली सरकार की माली हालत पर नजर डालें तो दिल्ली सरकार की ओर से 25 फरवरी को पेश अंतरिम बजट में कर संग्रह लक्ष्य से 1,300 करोड़ रुपए कम रहने की बात कही गई थी। इसके अलावा 2008-09 के बजट में दिल्ली सरकार ने कुछ सामान पर वैट में छूट दी थी और राज्य में किसी भी तरह का कर नहीं बढ़ाया था। सरकार की तरफ से सख्त कदम उठाने की आशंका इसलिए भी बढ़ रही है, क्योंकि 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होना है। अंतरिम बजट में वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया था कि सरकार के पास इतना ही पैसा है कि खेल आयोजन के लिए पहले से मंजूर योजनाओं को अमल में लाया जा सके। राष्ट्रमंडल की नई योजनाओं को अमल में लाने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं है। ऐसे में सरकार राजस्व बढ़ाने के लिए कुछ कदम उठा सकती है। अंतरिम बजट पर नजर डालें तो रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों की मंदी के कारण कर संग्रह कम रहा। सरकार ने वित्त वर्ष 2008-09 में 13,840 करोड़ रुपए के कर संग्रह का लक्ष्य रखा था, लेकिन मंदी के कारण वित्त वर्ष 2008-09 में सिर्फ 12,535 करोड़ रुपए कर राजस्व के रूप में मिल पाया। इस तरह मंदी ने कर संग्रह में 1,317 करोड़ रुपए की सेंध लगाई है। सरकार के लिए तसल्ली की बात यही है कि कर संग्रह पिछले वित्त वर्ष के 11,966.50 करोड़ रुपए से 4.65 फीसदी अधिक रहने का अनुमान है।
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