राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने हिंदुओं को एक करने के लिए नए फॉर्म्युले
पर काम करने का फैसला लिया है। संघ के लिए अगले तीन साल में 'एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान भूमि' की रणनीति अहम होगी। इसके
जरिये संगठन का इरादा जाति के आधार पर भेदभाव को खत्म कर हिंदू धर्म में आस्था
रखने वाले सभी लोगों को एकजुट करने का है। साथ ही, उन लोगों को भी फिर से हिंदू
धर्म के दायरे में लाए जाने की योजना है, जिन्होंने कोई और धर्म
स्वीकार कर लिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) देश के उत्तर-पूर्व इलाके
पर फोकस करेगा और उसकी दक्षिण भारत में भी विस्तार की योजना है। साथ ही, संगठन विदेशी भाषा के बजाय
क्षेत्रीय भाषाओं को ज्यादा अहमियत देगा।
नागपुर में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में ये मुख्य बातें उभकर सामने आई हैं। इस बैठक का मकसद भगवा अजेंडे को आगे बढ़ना था। इसमें संघ के कुल 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। तीन दिनों तक चली यह बैठक रविवार को खत्म हुई। इस दौरान संघ ने जाति से जुड़े उस सर्वे का जायजा लिया, जिसे संगठन ने हाल में एक दर्जन से भी ज्यादा राज्यों में करवाया था।
नागपुर में आयोजित संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में ये मुख्य बातें उभकर सामने आई हैं। इस बैठक का मकसद भगवा अजेंडे को आगे बढ़ना था। इसमें संघ के कुल 1,400 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। तीन दिनों तक चली यह बैठक रविवार को खत्म हुई। इस दौरान संघ ने जाति से जुड़े उस सर्वे का जायजा लिया, जिसे संगठन ने हाल में एक दर्जन से भी ज्यादा राज्यों में करवाया था।
कार्यकर्ताओं को जाति के आधार पर भेदभाव और इससे निपटने के
तरीकों पर प्रेजेंटेशन देने को कहा गया। माना जा रहा है कि सरसंघचालक मोहन भागवत
की इस कार्यक्रम में काफी दिलचस्पी है। स्वयंसेवकों को आने वाले महीनों में 'जनजागरण' कमिटी बनाकर सभी राज्यों में इस अभियान को तेज करने को कहा गया।
संघ के एक सीनियर नेता ने बताया, 'पिछले महीने संघ ने खुद एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें हमने वैसे सभी संतों और मठों के प्रमुखों को बुलाया था, जो छुआछूत या किसी तरह के जातिगत भेदभाव में शामिल हैं।' साथ ही, आरएसएस ने उत्तराखंड के प्रवासी जनजातीय समुदाय के लोगों को जोड़ने के लिए भी अभियान चलाया था, जो राजपूत राजा महाराणा प्रताप को आराध्य मानते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में वे हिंदू परंपरा से हट गए हैं।
आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने बताया, 'हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों में श्रोताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इससे साफ है कि इस समुदाय में एक होने की दिलचस्पी बढ़ रही है।'
इस बार प्रतिनिधि सभा में प्रतीक नगालैंड की रानी गेदिनलियू को बनाया गया, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जनजातीय समुदायों के लोगों के ईसाई धर्मांतरण का विरोध किया। जाहिर है कि संघ के लिए देश के उत्तर-पूर्व हिस्से प्राथमिकता सूची में अहम है।
संघ के एक सीनियर नेता ने बताया, 'पिछले महीने संघ ने खुद एक कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमें हमने वैसे सभी संतों और मठों के प्रमुखों को बुलाया था, जो छुआछूत या किसी तरह के जातिगत भेदभाव में शामिल हैं।' साथ ही, आरएसएस ने उत्तराखंड के प्रवासी जनजातीय समुदाय के लोगों को जोड़ने के लिए भी अभियान चलाया था, जो राजपूत राजा महाराणा प्रताप को आराध्य मानते हैं, लेकिन हाल के वर्षों में वे हिंदू परंपरा से हट गए हैं।
आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने बताया, 'हिंदू धर्म से जुड़े कार्यक्रमों में श्रोताओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। इससे साफ है कि इस समुदाय में एक होने की दिलचस्पी बढ़ रही है।'
इस बार प्रतिनिधि सभा में प्रतीक नगालैंड की रानी गेदिनलियू को बनाया गया, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और जनजातीय समुदायों के लोगों के ईसाई धर्मांतरण का विरोध किया। जाहिर है कि संघ के लिए देश के उत्तर-पूर्व हिस्से प्राथमिकता सूची में अहम है।
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