महाराष्ट्र और हरियाणा के वोटरों ने नरेंद्र मोदी के जुए पर अपना फैसला सुना
दिया है। क्या इस जुए में उन्हें जीत मिलेगी? मोदी के लिए महाराष्ट्र में
शिवसेना से 25 साल पुराना गठबंधन तोड़कर अकेले चुनाव लड़ना जुआ ही था। इसी
तरह से बीजेपी ने हरियाणा में डेरा सच्चा सौदा का समर्थन लेकर अकालियों के साथ
रिश्ते को दांव पर लगाया है।
जिंदगी में जो लोग कुछ हासिल करते हैं, उन्हें रिस्क लेने पड़ते हैं। किसान के लिए मॉनसून सीजन में खेती अब भी जुआ है। उद्यमियों के लिए नई टेक्नॉलजी पर दांव लगाना जुआ हो सकता है। युवा प्रेमियों के लिए नकारे जाने के डर के बीच अपनी चाहत का इजहार करना भी जुआ है। उन्हें तो मोदी राज में नैतिकता के ठेकेदारों के डर का भी सामना करना है। नेताओं को हमेशा फैसले करने पड़ते हैं और किसी भी फैसले में आपको चुनना पड़ता है। इसमें गलत चॉइस का डर छिपा रहता है। गैंबलर वह होता है, जो ऐसा दांव लगाए, जो वह नहीं लगाना चाहता है। क्या मोदी ने भी ऐसा किया है? लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करके केंद्र में आने वाले मोदी ने विधानसभा चुनाव के पहले फेज से झारखंड और दिल्ली को अलग रखा है। इस फेज में चुनाव सिर्फ महाराष्ट्र और हरियाणा में हो रहे हैं।
अगर विधानसभा चुनाव में जीत मोदी के लिए इतना महत्वपूर्ण है, तो उन्होंने शिवसेना के साथ बरसों पुराना गठबंधन क्यों तोड़ा? यहीं पर मोदी के जुए वाली पहलू आता है। उन्हें पता है कि उनकी अपील के चलते लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना को महाराष्ट्र में शानदार जीत मिली थी। इसलिए वह अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाकर राज्य में बीजेपी को बड़ा पार्टनर बना सकते हैं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता दांव पर लगाकर शिव सेना के साथ अलायंस तोड़ा है।
हरियाणा में बीजेपी के पास जाना-पहचाना चेहरा नहीं है। यहां की राजनीतिक लड़ाई 'मैनिपुलेटिव ट्रेडर' और 'सम्मानित किसान' के बीच होती है। इसलिए मोदी ने पुराने सहयोगियों को छोड़कर इस पारंपरिक ट्रेंड को बदलने का जुआ खेला है। इसके लिए भी उन्होंने अपनी लोकप्रियता दांव पर लगाई है यह मोदी का जुआ खेलने वाला पहलू ही था, जिसके चलते वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में ट्रेड फैसिलिटेशन डील से भारत पीछे हट गया, जबकि देश को पिछले साल पहले ही बाली में हुई डब्ल्यूटीओ मीटिंग में सब्सिडी सिस्टम को बदलने के लिए चार साल की मोहलत मिल चुकी थी। ये बदलाव डब्ल्यूटीओ के रूल्स के हिसाब से किए जाने थे।
मोदी को लगता है कि भारत फूड सिक्यॉरिटी पर कितना पैसा खर्च करता है, इसमें दखल देने का अधिकार किसी को नहीं है। हालांकि डब्ल्यूटीओ में बने गतिरोध को आसानी से सुलझाया जा सकता था। इसके बावजूद फूड सब्सिडी पर तत्काल रियायत की शर्त रखकर मोदी ने जुआ खेला। उन्हें लगा कि वह इसके लिए अमेरिका को मना लेंगे। इससे उन्हें चाहने वाली जनता वर्ल्ड स्टेज पर देख पाती कि मोदी का सीना 56 इंच का है। हालांकि, यह दांव बेकार गया।
अमेरिका ने ट्रेड फैसिलिटेशन पर भारत को एकतरफा रियायत नहीं दी। पाकिस्तान के साथ बॉर्डर पर फायरिंग मामले में भी उन्होंने यही जुआ खेला। उन्हें लगा कि पहले पाकिस्तान की आर्मी को झुकना होगा। हालांकि महाराष्ट्र के जुए के मोदी के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं। अगर वह यह जुआ जीतते हैं तो इससे उन्हें आगे बड़े दांव लगाने का हौसला मिलेगा। बहरहाल जो भी हो, पासा तो वह फेंक ही चुके हैं।
जिंदगी में जो लोग कुछ हासिल करते हैं, उन्हें रिस्क लेने पड़ते हैं। किसान के लिए मॉनसून सीजन में खेती अब भी जुआ है। उद्यमियों के लिए नई टेक्नॉलजी पर दांव लगाना जुआ हो सकता है। युवा प्रेमियों के लिए नकारे जाने के डर के बीच अपनी चाहत का इजहार करना भी जुआ है। उन्हें तो मोदी राज में नैतिकता के ठेकेदारों के डर का भी सामना करना है। नेताओं को हमेशा फैसले करने पड़ते हैं और किसी भी फैसले में आपको चुनना पड़ता है। इसमें गलत चॉइस का डर छिपा रहता है। गैंबलर वह होता है, जो ऐसा दांव लगाए, जो वह नहीं लगाना चाहता है। क्या मोदी ने भी ऐसा किया है? लोकसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल करके केंद्र में आने वाले मोदी ने विधानसभा चुनाव के पहले फेज से झारखंड और दिल्ली को अलग रखा है। इस फेज में चुनाव सिर्फ महाराष्ट्र और हरियाणा में हो रहे हैं।
अगर विधानसभा चुनाव में जीत मोदी के लिए इतना महत्वपूर्ण है, तो उन्होंने शिवसेना के साथ बरसों पुराना गठबंधन क्यों तोड़ा? यहीं पर मोदी के जुए वाली पहलू आता है। उन्हें पता है कि उनकी अपील के चलते लोकसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना को महाराष्ट्र में शानदार जीत मिली थी। इसलिए वह अपनी लोकप्रियता का फायदा उठाकर राज्य में बीजेपी को बड़ा पार्टनर बना सकते हैं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता दांव पर लगाकर शिव सेना के साथ अलायंस तोड़ा है।
हरियाणा में बीजेपी के पास जाना-पहचाना चेहरा नहीं है। यहां की राजनीतिक लड़ाई 'मैनिपुलेटिव ट्रेडर' और 'सम्मानित किसान' के बीच होती है। इसलिए मोदी ने पुराने सहयोगियों को छोड़कर इस पारंपरिक ट्रेंड को बदलने का जुआ खेला है। इसके लिए भी उन्होंने अपनी लोकप्रियता दांव पर लगाई है यह मोदी का जुआ खेलने वाला पहलू ही था, जिसके चलते वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में ट्रेड फैसिलिटेशन डील से भारत पीछे हट गया, जबकि देश को पिछले साल पहले ही बाली में हुई डब्ल्यूटीओ मीटिंग में सब्सिडी सिस्टम को बदलने के लिए चार साल की मोहलत मिल चुकी थी। ये बदलाव डब्ल्यूटीओ के रूल्स के हिसाब से किए जाने थे।
मोदी को लगता है कि भारत फूड सिक्यॉरिटी पर कितना पैसा खर्च करता है, इसमें दखल देने का अधिकार किसी को नहीं है। हालांकि डब्ल्यूटीओ में बने गतिरोध को आसानी से सुलझाया जा सकता था। इसके बावजूद फूड सब्सिडी पर तत्काल रियायत की शर्त रखकर मोदी ने जुआ खेला। उन्हें लगा कि वह इसके लिए अमेरिका को मना लेंगे। इससे उन्हें चाहने वाली जनता वर्ल्ड स्टेज पर देख पाती कि मोदी का सीना 56 इंच का है। हालांकि, यह दांव बेकार गया।
अमेरिका ने ट्रेड फैसिलिटेशन पर भारत को एकतरफा रियायत नहीं दी। पाकिस्तान के साथ बॉर्डर पर फायरिंग मामले में भी उन्होंने यही जुआ खेला। उन्हें लगा कि पहले पाकिस्तान की आर्मी को झुकना होगा। हालांकि महाराष्ट्र के जुए के मोदी के लिए गंभीर नतीजे हो सकते हैं। अगर वह यह जुआ जीतते हैं तो इससे उन्हें आगे बड़े दांव लगाने का हौसला मिलेगा। बहरहाल जो भी हो, पासा तो वह फेंक ही चुके हैं।
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