Wednesday, October 29, 2014

काला धन: सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी 627 नामों की लिस्ट

सभी विदेशी अकाउंट होल्डर्स के नामों को शेयर करने के सुप्रीम कोर्ट का निर्देश विभिन्न देशों से हुए टैक्स संधियों में गोपनीयता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के लिए चिंताजनक स्थिति बन गई है। इससे अमेरिका से भेजे जाने वाले धन पर भी बुरा असर पड़ सकता है। बिना कोई प्रॉसिक्यूशन के किसी अकाउंट होल्डर का नाम पब्लिक में आने से अमेरिका के साथ होने वाले फॉरन अकाउंट टैक्स कम्पलाइअंस ऐक्ट (एफएटीसीए) करार बुरी तरह प्रभावित होगा। इसमें गोपनीयता कायम रखने की प्रतिबद्धता है। विशेषज्ञों का कहना है कि विभिन्न सरकारों के बीच बिना एफएटीसीए समझौते के विदेशों से भेजे जाने वाले धन यहां तक कि निर्यात भुगतान पर मिलने वाले 30 पर्सेंट टैक्स पर बुरा असर पड़ेगा।
भारत और दूसरे देश विभिन्न सरकारों के बीच 31 दिसंबर से समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले हैं कि 2015 से टैक्स की जवाबदेही को सुनिश्चित किया जा सके। एफएटीसीए समझौते पर यूपीए सरकार में पहल हुई थी लेकिन औपचारिक रूप से यह करार अब फइनल स्टेज में था। एक्सपर्ट्स का कहना है कि बिना प्रॉसिक्यूशन के विदेशी अकाउंट होल्डर्स के नाम पब्लिक में लाने से बुरा असर केवल अमेरिका से हुए समझौतों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि सरकार की उन कोशिशों को भी धक्का लगेगा जिनमें विदेशों में गोपनीय तरीके से रखे गए अवैध पैसों के बारे में सूचनाएं हासिल कर टैक्स नियमों की कसौटी पर कसने में लगी है।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से तल्ख लहजे में 24 घंटे के अंदर बंद लिफाफे में सभी फॉरन अकाउंट होल्डर्स के नाम सौंपने का निर्देश दिया है। टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि यदि आप नाम पब्लिक में लाते हैं तो स्विस अथॉरिटी से कोई और सूचना हासिल करने की हसरत छोड़ दें। रेवेन्यू सेक्रेटरी शक्तिकांत दास के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधि मंडल से स्विटजरलैंड हाल ही में तथाकथित एचएसबीसी अकाउंट होल्डर्स से जुड़ी सूचनाएं साझा करने को राजी हुआ था। इसमें शर्त थी की भारत पहले इन अकाउंट्स की जांच पूरी करेगा। इसके साथ ही दोनों देशों के बीच जानकारी स्वतः आदान-प्रदान करने की बात बनी थी।
इसी तरह जी20 देशों के बीच प्रस्तावित ऑटोमैटिक सूचना अदान-प्रदान समझौते में गोपनीयता एक शर्त है। इसमें 48 देशों के बीच सहमति बनी थी जिसमें भारत भी शामिल है। इस करार पर 2017 से पहले हस्ताक्षर होने थे। जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस करार पर भी असर पड़ने की आशंका बन गई है। एक्सपर्ट का कहना है कि इसमें गोपनीयता बेहद अहम है। सरकार लगातार कह रही थी कि बिना प्रॉसिक्यूशन के नाम पब्लिक में लाना विभिन्न देशों से हुए समझौते का उल्लंघन होगा। यहां तक कि जर्मन अथॉरिटिज ने नामों के खुलासे पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। सरकार यह भी कह रही थी कि उसका इरादा किसी के नाम छुपाने का नहीं है बल्कि हम कई संधियों से बंधे हैं।

No comments: