Friday, February 7, 2014

केजरीवाल का भ्रष्‍टाचार-विरोध मज़दूरों के लिए नहीं

मज़दूरों से किये गये एक भी वायदे की चर्चा भी नहीं की!
केजरीवाल ने पूरी दिल्‍ली से ठेका प्रथा को खत्‍म करने का वायदा किया था। अब उन्‍होंने इसकी तकनीकि जाँच के लिए एक समिति बना दी है, जिसकी कोई ज़रूरत नहीं थी। उन्‍हें करना सिर्फ इतना था कि सिर्फ एक दिन का विधान सभा सत्र बुलाकर इस आशय का विधेयक पारित करवा लेना था कि दिल्‍ली में कोई भी निजी या सरकारी नियोक्‍ता नियमित प्रकृति के काम के लिए ठेका मज़दूर नहीं रह सकता। इसके बजाये एक समिति बनाकर केजरीवाल ने मामले को टाल दिया है। समिति रिपोर्ट देगी और उसपर सरकार विचार करेगी, तबतक लोकसभा चुनावों की आचार संहिता लागू हो जायेगी।केजरीवाल ने कहा था कि निजी झुग्‍गीवासियों को पक्‍के मकान दिये जायेंगे और तबतक कोई झुग्‍गी उजाड़ी नहीं जायेगी। अब इस काम के लिए समय-सीमा बताना तो दूर, केजरीवाल कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। यही नहीं, कांग्रेस सरकार के समय जिन झुग्‍गी बस्तियों का नियमतिकरण हुआ था, अब उनमें भ्रष्‍टाचार बताकर उस फैसले को पलटने की बात की जा रही है। यानी लाखों मज़दूरों को पुनर्वास की व्‍यवस्‍था के बिना उजाड़ने की भूमिका तैयार की जा रही है।केजरीवाल ने दिल्‍ली के सभी पटरी दुकानदारों और रेहड़ीवालों को लाइसेंस और स्‍थाई स्‍थान देने का वायदा किया था, उसके बारे में भी वे अब साँस-डकार नहीं ले रहे हैं।चुनाव प्रचार के दौरान मज़दूर बस्तियों में उनके उम्‍मीदवार सौ अतिरिक्‍त सरकारी स्‍कूल खोलने और वर्तमान स्‍कूलों के स्‍तर को ठीक करने का वायदा कर रहे थे। इस वायदें को भी ठण्‍डे बस्‍ते में डाल दिया गया।
केजरीवाल का भ्रष्‍टाचार-विरोध मज़दूरों के लिए नहीं है!केजरीवाल की राजनीति की पूरी बुनियाद भ्रष्‍टाचार-विरोध पर टिकी है। फिलहाल हम इस बुनियादी प्रश्‍न पर नहीं जाते कि पूँजीवाद को पूरी तरह भ्रष्‍टाचार-मुक्‍त किया ही नहीं जा सकता, कि पूँजीवाद स्‍वयं में ही भ्रष्‍टाचार है और यह कि जनता को भ्रष्‍टाचार-मुक्‍त पूँजीवाद नहीं, बल्कि पूँजीवाद-मुक्‍त राज और समाज चाहिए। भष्‍टाचार कितनी अधिक धनराशि का है, इससे अधिक अहम बात यह है कि किस भ्रष्‍टाचार से व्‍यापक आम आबादी का जीना मुहाल है! दिल्‍ली की साठ लाख मज़दूर आबादी का जीना मुहाल करने वाला भ्रष्‍टाचार है श्रम विभाग का भ्रष्‍टाचार। किसी भी फैक्‍ट्री या व्‍यावसायिक प्रतिष्‍ठान में मज़दूरों को न्‍यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती, काम के तय घण्‍टों से अधिक काम करना पड़ता है, ओवरटाइम तय से आधी दर पर मिलता है, कैजुअल मज़दूरों का मस्‍टर रोल नहीं मिंटेन होना, सैलरी स्लिप नहीं मिलती, पी.एफ. इ.एस.आई. की सुविधा नहीं मिलती, फैक्‍ट्री इंस्‍पेक्‍टर, लेबर इंस्‍पेक्‍टर आदि दौरा नहीं करते, कारखाने स्‍वास्‍थ्‍य, सुरक्षा और पर्यावरण के निर्धारित मानकों का पालन नहीं करते! तात्‍पर्य यह कि किसी भी श्रम कानूनों का पालन नहीं होता। यदि केजरीवाल वास्‍तव में भ्रष्‍टाचार से आम लोगों को होने वाली परेशानी से परेशान हैं, तो सबसे पहले उन्‍हें श्रम विभाग के भ्रष्‍टाचार को दूर करना चाहिए। मज़दूरों की यही माँग है।लेकिन मज़दूरों के प्रति केजरीवाल की सरकार का रवैया क्‍या है? डी.टी.सी. के 20हजार ठेका कर्मचारियों और 10हजार अस्‍थाई शिक्षकों के धरने और अनशन को हवाई आश्‍वासन की आड़ में नौकरी छीन लेने और दमन की धमकी से समाप्‍त कर दिया गया। वजीरपुर कारखाना यूनियन के मज़दूर जब अपनी माँगों को लेकर सचिवालय पहुँचे तो बैरिकेडिंग करके पुलिस खड़ी करके उन्‍हें मंत्री से मिलने से रोक दिया गया और दफ्तर में केवल उनका माँगपत्रक रिसीव कर लिया गया। केजरीवाल का जनता दरबार तो हवा हो ही गया, अब उनके मंत्री जनता से मिलते तक नहीं।

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